कृष्ण कांत
कल एक मित्र ने लिखा कि उनके यहां एक हिंदू भाई घर अखंड रामायण का पाठ चल रहा है तो लाउडस्पीकर एक मियां भाई के छत पर लगाया गया है, क्योंकि उनका घर सबसे ऊंचा है. जिस समय देश में लाउडस्पीकर के बहाने लोगों को लड़ाया जा रहा है, समाज अपनी चाल से अलग चल रहा है. यकीन मानिए, इस समाज को ऐसे ही चलना है क्योंकि हम सबको यहां रहना है. लेकिन दिक्कत कहां आ रही है ? कौन है जो समाज की शांति में विघ्न डाल रहा है ?
मैं जब तक गांव में रहा, तब तक गांव में जहां भी अखंड रामायण का पाठ हो, मंडली के साथ मैं भी पहुंच जाया करता था. आप सभी जानते हैं कि इसमें 24 घंटे में रामचरितमानस का पाठ होता है, जिसमें हारमोनियम, ढोल, मजीरे के साथ रामचरितमानस गाया जाता है, इसके लिए लाउडस्पीकर लगाया जाता है. बिना लाउडस्पीकर के गाने में क्या मजा है ? अब तक इस आयोजन के लिए किसी को किसी से पूछना नहीं होता था. अगर अड़ोस-पड़ोस में किसी को थोड़ी-बहुत परेशानी हो तो भी लोग बर्दाश्त कर लेते थे.
हाल ही में देश में लाउडस्पीकर को लेकर बड़ा बवाल हुआ. रामनवमी और हनुमान जयंती के बहाने कट्टर हिंदू संगठनों ने देश भर में शोभायात्राएं निकाली. रामनवमी और हनुमान जयंती पर शोभायात्रा किसी धार्मिक परंपरा का हिस्सा है, यह मुझ अनपढ़ को नहीं मालूम, वह अलग बात है. इन शोभायात्राओं में लाउडस्पीकर लगाकर आपत्तिजनक नारे लगाए गए. मस्जिदों के सामने उत्पात मचाने की कोशिश की गई. बिहार के मुजफ्फरपुर में कुछ जगहों पर मस्जिद/मजार पर चढ़कर भगवा झंडा लहराया गया. कुछ जगहों पर हिंसा भी हुई और ‘सौ प्याज खाकर सौ जूता’ खाने की अदा में सरकारों ने बुलडोजर भी चलाए.
कट्टर हिंदू संगठनों ने यहां तक कह डाला कि अब हम पांचों वक्त के नमाज के समय हनुमान चालीसा बजाएंगे. पांच वक्त नमाज की नकल में उन्हें पांच वक्त लाउडस्पीकरीय पूजा की सनक चढ़ गई. इसका अगला चरण यह हो सकता है कि अगली बार वे कहने लगें कि रोजा एक महीने का होता है तो अब हम भी एक महीने का नवरात्रि पर्व मनाएंगे. क्या मुसलमानों के परसंताप में हम अपनी धार्मिक परंपराएं बदल देंगे ? क्या किसी को ईश्वर की पूजा करने से रोकने के लिए हम अपनी पूजा पद्धति को बदला लेने का हथियार बना डालेंगे ?
खैर, इस उपद्रव को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार में बादशाह सलामत का नया फरमान जारी हुआ है कि कोई भी बिना अनुमति के लाउडस्पीकर नहीं लगा सकता. यह आदेश लाउडस्पीकर विवाद को देखते हुए दिया गया है. अब उत्तर प्रदेश की मस्जिदों और मंदिरों से बड़ी संख्या में लाउडस्पीकर उतरवाए जा रहे हैं.
अब मैं सोच रहा हूं कि जिस उपद्रव और झगड़े के लिए कानून को अपना काम करना चाहिए था, नेताओं को आगे बढ़कर लोगों को रोकना/समझाना चाहिए था, सत्ताधारी नेताओं ने इस आग लगाने के कृत्य का समर्थन किया. अब इसका नतीजा यह है कि कम से कम यूपी के किसी शहर में अगर मुझे अखंड रामायण का पाठ कराना है तो मुझे प्रशासन से अनुमति लेनी होगी. अगर यह अनुमति नहीं मिलती तो हम यह आयोजन नहीं करा सकते.
गांव में ऐसी मुसीबत नहीं होगी क्योंकि वहां आज भी किसी को आपत्ति नहीं होगी, न कोई लफड़ा होगा, न पुलिस जाएगी लेकिन शहरों और कस्बों में बड़े जहीन लोग रहते हैं. कहते हैं न कि चतुर कौवा गुह खोदता है. अब शहर में किसी हिंदू परिवार को रामचरितमानस पाठ कराना हो तो उसे इजाजत लेनी होगी जो अभी तक नहीं लेनी होती थी. हो सकता है कि इसी बहाने भगवान की पूजा से पहले प्रशासन को भी कुछ चढ़ावा पेश करना पड़े.
स्वनामधन्य हिंदुओं का कहना है कि वे हिंदुओं के नाम पर राजनीति करके हिंदुओं का भला कर रहे हैं. वे हिंदुओं के हितैषी हैं. यह कौन-सा हिंदू-हित है कि हमसे हमारा पूजा या कर्मकांड का अधिकार भी छीन लिया जाए ? पूजा के लिए माइक लगाने की जरूरत नहीं है, यह एक अलग बहस हो सकती है. कबीर दास जी ने लिखा था कि ‘कांकर पाथर जोड़कर मस्जिद लई चिनाय, ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय’, लेकिन वह एक अलग और दार्शनिक पक्ष है. लौकिक पक्ष यह है कि जो समाज अपने पूजा-पाठ और कर्मकांड के लिए मुक्त था, वहां अब उसी काम के लिए प्रशासन से इजाजत चाहिए.
क्या आपको नहीं लगता कि हम 500 साल पीछे लौट गए हैं, जहां हमें अपने धार्मिक कर्मकांड के लिए राजा साब से अनुमति लेनी होगी ? जो लोग समाज में झगड़ा फैलाकर सत्ता में बने रहना चाहते हैं, वे किसी का भी हित नहीं साध रहे हैं. वे अपना हित साध रहे हैं और हमारा नुकसान कर रहे हैं. अगर यह घटिया राजनीति नहीं है तो किसी नेता ने यह क्यों नहीं कहा कि सब अपनी-अपनी पूजा करो, सब अपनी-अपनी और दूसरों की आस्था का सम्मान करो, प्रेम से मिलजुल कर रहो, क्योंकि हमें हर हाल में साथ में ही रहना है.
अब्दुल का दिल अब शैलेंद्र के सीने में धड़केगा
अब्दुल अहमदाबाद के कच्छ में पान की दुकान चलाता था. उम्र सिर्फ 25 साल थी. कुछ दिनों पहले वह स्कूटी से कहीं जा रहा था, उसी दौरान उसका एक्सीडेंट हो गया. वह बुरी तरह घायल हो गया था. उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. कुछ दिन इलाज चला लेकिन डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया.
अस्पताल के मुताबिक, अब्दुल का ब्रेन डेड हो चुका था, लेकिन उसके शरीर के बाकी अंग काम कर रहे थे. डॉक्टरों को लगा कि उसके अंग किसी जरूरतमंद को दिए जा सकते हैं. उसी अस्पताल में 52 साल के बैंक कर्मचारी शैलेंद्र को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत थी. अस्पताल की काउंसिलिंग टीम ने अब्दुल के परिवार से बारे में बात की और बेटे के अंग डोनेट करने का प्रस्ताव पेश किया. अंगदान के बारे में समझाने पर वे मान गए, जिसके बाद अब्दुल का दिल शैलेंद्र के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया गया.
खबरें हैं कि अहमदाबाद के विधायक गयासुद्दीन शेख लंबे समय से अंग डोनेशन की मुहिम चला रहे हैं. उन्होंने कहा कि रमजान के मुबारक महीने में यह बहुत बड़ा दिन है. गुजरात में शायद ऐसा पहली बार है जब किसी मुस्लिम शख्स ने अंगदान किया है. हम लंबे समय से परिवारों को अंगदान करने के लिए राजी कर रहे हैं. हमारी परंपरा में अंगदान को लेकर कुछ विपरीत मान्यताएं है लेकिन इस पहलकदमी से और लोग सामने आएंगे.
आजकल चारों तरफ ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे कि सब एक दूसरे के दुश्मन हैं. राजनीतिक लोग मजहबी बहाने लेकर लोगों को आपस में लड़ाने का षडयंत्र रच रहे हैं और भाजपा सरकारें एकतरफा कार्रवाई करके इसे और बढ़ावा दे रही हैं.
किसी नेता नूती के कहने से अपने अंदर नफरत मत पालिए. आप शैलेंद्र की जगह खुद को रखिए और फर्ज कीजिए कि खुदा ना खास्ता कभी ऐसी जरूरत आन पड़ी तो क्या होगा ? जिस सीने में आज आप नफरत भरे घूम रहे हैं, क्या पता किसी दिन उसी सीने में किसी अब्दुल का दिल धड़कने लगे. वे समाज को आपस में लड़ा रहे हैं और हमारी आस्थाओं को अपना राजनीतिक कारोबार बना रहे हैं. इन झगड़ों से किसका भला हो रहा है ? जहां सुमति तहां सम्पति नाना, जहां कुमति तहां विपति निदाना. राजनीतिक हिंदुत्व असल में हिंदू विरोधी है.
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