तुम अक्सर भूल जाती हो
तुम स्त्री हो
तुम सपने देखने लगती हो सुख के
तुम उड़ान भरने लगती हो आसमान में
तुम करने लगती हो चुनाव अपने प्रेम का !
तुम अक्सर भूल जाती हो
तुम स्त्री हो
स्त्री को सपने नहीं देखने चाहिए
स्त्री को उड़ना नहीं चाहिए
स्त्री को सुख पाने का अधिकार नहीं
आसमान में स्त्री का जाना प्रतिबंधित हैं सदियों से !
तुम अक्सर भूल जाती हो
तुम्हारे घर में पुरुष बसता है
पुरुष जो केवल देखने में पुरुष नहीं
वरन उसके लहू मेँ दौड़ता है पुरुष का अहम
जो तुमपर थोपता ही रहेगा मनमर्जियां
इसलिए सावधान मत भूलना तुम स्त्री हो !
तुम अक्सर भूल जाती हो
तुम स्त्री हो
क्योंकि ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ का
चलता है अभियान
जिससे तुम्हें होता है
गुरुर बेटी होने पर
बेटी पढ़ाओ पर ढीढ बेटी
जो नहीं रहती
घर के पुरुष के मतानुसार
ऐसी बेटी जो ललकारती है
पुरुष की बादशाहत
खत्म कर देते हैं ये अहंकारी पुरुष
कभी कनपटी पर दागकर गोली
तो कभी रेत देते है
जानवर की तरह जिन्दा ही
तो कभी गाड़ देते हैं
जमीन के भीतर भी
उफ्फफ्फ्फ़ ये ओनर किलिंग
उफ्फफ्फ्फ़ ये पुरुषों की नाक
जिसका मान कम हो जाता
स्त्री के सुखद स्त्री रहने मेँ !
- सीमा ‘मधुरिमा’
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