सुब्रतो चटर्जी
तृतीय विश्व युद्ध की आहट सुनाई पड़ रही है. रूस के युद्ध पोत डूबने के साथ ही रूस यूक्रेन युद्ध ने एक नया मोड़ ले लिया है. रूस ने खुलेआम अमरीका को धमकी दी है कि अगर उसने यूक्रेन की सामरिक मदद की तो इसके अकल्पनीय परिणाम होंगे. पुतिन निंदा नाथ सिंह नहीं हैं और रूस को कमज़ोर समझने वाले बेवकूफ इस मुग़ालते में नहीं रहें कि रूस गीदड़ भभकी दे रहा है. पश्चिम के आर्थिक प्रतिबंधों का कोई ख़ास असर रूस की अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ा है और सउदी अरब से उसकी बढ़ती नज़दीकियों के पीछे चीन का फ़ैक्टर काम कर रहा है.
दरअसल, जो हम देखना नहीं चाहते हैं वह ये है कि शक्ति संतुलन के इस खेल में अमरीका धीरे-धीरे अकेला पड़ता जा रहा है. अगर अमरीका की बात मान कर पश्चिमी देशों ने रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाया तो अमरीकी तेल कंपनियों पर रूसी तेल की क़ीमत पर उन्हें तेल बेचने का दवाब बढ़ेगा, यह अमरीका के लिए आत्मघाती होगा.
भारत की कोई गिनती नहीं है. अमरीका जानता है कि आज़ादी के बाद भारत में सबसे ज़्यादा भ्रष्ट, अक्षम और देशद्रोही सरकार बैठा है. इसलिए भारत सरकार के कान उमेठने के लिए एक तरफ़ अमरीका मोदी सरकार की मानवाधिकार उल्लंघनों की बात करता है और दूसरी तरफ़ उसके रूसी तेल को अपने ऑयल बास्केट से निकाल देने पर मानवाधिकार के मुद्दों पर ख़ामोश हो जाता है. अगर ऐसा नहीं होता तो आकार पटेल के मामले पर अमरीका चुप नहीं बैठता.
दुनिया का शक्ति संतुलन तेज़ी से बदल रहा है. रूस और चीन की सम्मिलित ताक़त अपराजेय है और नाटो या अमरीका इनका मुक़ाबला नहीं कर सकता है. यूक्रेन पर रूसी हमले की सीमा नस्ली कारण से है. मामा रूसी है तो भांजा यूक्रेनी. इसका मतलब यह नहीं है कि पोलैंड या ब्रिटेन से युद्ध होने की स्थिति में रूस सीमित हमला करेगा. पेंटागॉन का आकलन है कि रूस के पास बहुत भारी मात्रा में ऐसे आणविक हथियार हैं जिनका उपयोग वह छोटी दूरी के लिए कर सकता है.
देखना ये है कि क्या अमरीका अपनी बेवक़ूफ़ी में रूस को उकसाना जारी रखता है या नहीं ? भारत में तो गधा प्रेरित गधेंद्र है, जिसे अपने ही देश का भूगोल नहीं मालूम है, वह जियो पॉलिटिक्स क्या समझेगा. इसका मक़सद सिर्फ़ अपने देश में गृहयुद्ध का माहौल बना कर अंबानी अदानी के हाथों देश बेचना है.
बेलगाम महंगाई, बेरोज़गारी, आर्थिक मंदी में फंसे हुए भारत की असल स्थिति कल्पना से भी बदतर है. इस समय अमरीका के ख़ेमे में सिर्फ़ सरकार बचाने के लिए जाना भी एक देशद्रोही फ़ैसला ही है. अच्छे दिनों के लिए तैयार रहिए और हनुमान चालीसा पर बहस कीजिए.
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