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पागल हो जाने से पहले सोचिए और अपने बच्चों को उन्मादी होने से बचा लीजिए

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हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक

प्रवीण तोगड़िया के बच्चे हैं. क्या आपने कभी उनके बच्चों को किसी उपद्रव में शामिल देखा ? योगी आदित्यनाथ के भतीजे को कभी देखा है ? केशव मौर्य के बेटे को देखा हैं कहीं ? स्मृति ईरानी के बच्चे शाखा क्यों नहीं जाते ? सुब्रमण्यन स्वामी के बच्चों की लाइफ सेट है. मेनका या वरुण गांधी के बच्चे बजरंग दल में नजर नहीं आते. सुशील कुमार मोदी के बच्चे बजरंग दल में नजर नहीं आते. कभी सुना हैं कि आडवाणी के घर का कोई बच्चा भगवा झंडा अदालत में लहराता पकड़ा गया ?

वसुन्धरा राजे भी कभी मंदिरों में नजर नहीं आती. नरेंद्र मोदी के घर के कितने लोग सड़क पर झंडा-डंडा लेकर भीड़ में निकलते हैं ? रमन सिंह के बच्चे बिना किसी आन्दोलन-वांदोलन से जुड़े बगैर सांसद बन जाते हैं. विनय कटियार का बेटा क्या किसी उन्मादी भीड़ में था ? कल्याण सिंह के बहू, बेटी, नाती सब सांसद-विधायक बन गए जो कभी सड़कों पर उतरे ही नहीं. राजनाथ सिंह के बेटे ने बजरंग दल क्यों नहीं जॉइन किया ? शिवराज सिंह चौहान के बच्चे को वन्देमातरम पूरा गीत नहीं आता है.

मुरली मनोहर जोशी की दोनों बेटियां क्या करती हैं, आपको पता भी नहीं होगा ? पूनम महाजन हो या पंकजा मुन्डे अपने पिता की वजह से सांसद व विधायक है. अमित शाह के बेटे को तो आप सब जानते ही हैं. पागल हो जाने से पहले सोचिए कि राजस्थान की अदालत परिसर पर भगवा झंडा फहराने से लेकर, बाबरी के गुम्बद तक चढ़े और मर रहे, गिरफ्तार हो रहे, लाठी और गोली खा रहे नौजवानों में इनके परिवार से कौन था ?

और आप अपने बच्चों को इनके और इनकी विचारधारा के हाथों में इस्तेमाल होने दे रहे हैं. थोड़ा दिमाग लगाइए. ये सिर्फ और सिर्फ़ ‘यूज़ एंड थ्रो’ यानी ‘इस्तेमाल करो और फेंको’ वाली राजनीति जानते हैं. साहब. हर रोज़ हिन्दू-हिन्दू, मुसलमान-मुसलमान और नफरत-नफरत करते रहने से क्या मिल रहा है ? क्या आपके बच्चों को नौकरी मिल रही हैं ? क्या आपके रोज़गार-धंधे में तरक्की हो रही हैं ?

क्या महंगाई कम हो रही हैं ? कितने दिन हो गए जब आप अपने अच्छे दोस्तों से नहीं मिले ? कितने दिन हो गए जब आप अपने गांव नहीं गए ? क्या इस बीच आपने कोई अच्छी किताब पढ़ी हैं ? क्या आपने कोई अच्छा गाना सुना है ? जब कभी भी आप और आपके बच्चे हाथ में लाठी-भाला-तलवार-त्रिशूल और झंडा लेकर रैलियों में शामिल होने के लिए निकले तो एक बार यह विचार अवश्य करिए कि देश के तमाम बड़े नेताओं के बच्चे कहां हैं और क्या कर रहे हैं ?

मुसलमानों को पीटने वाली, मस्जिदों पर भगवे झंडे लगाने वाली जो भीड़ तैयार की गई है, उसे जानबूझकर तैयार किया गया है. जनता को दंगाई भीड़ में बदलना एक राजनैतिक मक़सद से किया जाता है. पुलिस, सरकार, अदालत सब मिलकर इस भीड़ का निर्माण कर रहे हैं. इस भीड़ को दुश्मनों की एक लंबी लिस्ट दी गई है. अगर आप एक लिस्ट में नहीं है तो दूसरी लिस्ट में जरूर होंगे.

आपको मुसलमान कह कर मारा जा सकता है, इसाई कह कर मारा जा सकता है, वामपंथी कह कर मारा जा सकता है, सेकुलर कह कर मारा जा सकता है, आपको पाकिस्तानी अर्बन नक्सल कहकर भी मारा जा सकता है. लेकिन यह लिस्ट बढ़ती जाएगी. कुछ दिनों में कांग्रेसी कहकर लोगों की हत्या की जाएगी या सपाई-बसपाई या भाजपा का विरोध करने वाली किसी भी राजनीतिक पार्टी का समर्थक कहकर आपकी हत्या किया जाना भी उसमें शामिल हो जाएगा.

दंगाई भीड़ सरकार से कोई सवाल नहीं करती. वह सरकार से रोजगार नहीं मांगेगी बल्कि रोजगार मांगने वाले लोगों की पुलिस द्वारा पिटाई पर तालियां बजाएगी. यह भीड़ शिक्षा, यूनिवर्सिटी, स्कूल कॉलेज नहीं मांगेगी बल्कि फीस कम करने की मांग करने वाले जेएनयू यूनिवर्सिटी में या हैदराबाद बनारस और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में घुसकर छात्रों को पीटेगी. बाबा साहब को मानने वाले या हिंदू धर्म को ना मानने वाले, नास्तिकता की बात करने वाले लोगों की पिटाई भी की जाएगी.

इस भीड़ के शिकार की लिस्ट लंबी होती जाएगी. यह जींस वाली लड़कियों को पीटेगी, रेस्टोरेंट जाने वाली लड़कियों को पीटेगी. कल को तिलक ना लगाने वाले हिंदुओं को पीटना शुरू कर दिया जाएगा. घूंघट ना करने वाली, सिर ना ढकने वाली महिलाओं की सरेआम पिटाई की जा सकती है. इस भीड़ की हिंसा बढ़ती जाएगी और इसकी लिस्ट लंबी होती जाएगी. अफगानिस्तान वगैरह में आप यह सब देख भी चुके हैं.

शर्मा, मिश्रा, शुक्ला, चौधरी साहब, ठाकुर साहब, चोपड़ा साहब सब की पिटाई हो सकती है. उसका कोई ना कोई बहाना यह भीड़ खोज लेगी. यह भीड़ आप को सुरक्षा देने के नाम पर आपसे रंगदारी या सुरक्षा शुल्क मांग सकती है. इस भीड़ के अपने अपने इलाके तय हो जाएंगे. इस भीड़ के जो गैंग लीडर होंगे वही उस इलाके को कंट्रोल करेंगे. सत्ता के लिए इन गैंग लीडर से सांठगांठ करके अपना राजकाज चलाते रहना बहुत आसान हो जाएगा. फिर चुनाव, लोकतंत्र, अदालत, न्याय, पुलिस इसे भी जनता के प्रति जिम्मेदार बनाने की कोई जरूरत नहीं होगी, न ही चुनाव में हारने का कोई डर बचेगा.

ठीक इसी योजना पर बिल्कुल संतुलित कदमों से बढ़ा जा रहा है. कुछ ही समय में आप यह सब वास्तविक रूप में देख लेंगे. लोकतंत्र का खात्मा और अधिनायकतंत्र की स्थापना का यह रोड मैप सावरकर साहब ने पहले ही लिख दिया था.

आपको आश्चर्य करने की कोई जरूरत नहीं है. सरकार ठीक वही कर रही है, जिसके लिए वह सत्ता में आई थी. लेकिन अभी आगे और भी खूनी पड़ाव बाकी है. अभी अल्पसंख्यकों का कत्लेआम और एक धर्म पर आधारित सत्ता की स्थापना का लक्ष्य बाकी है. इन लोगों को आप महंगाई, अर्थव्यवस्था, कानून व्यवस्था जैसी बातों में फंसा कर इनके लक्ष्य से नहीं डिगा सकते. यह लोग सत्ता में आ गए हैं अब यह चुनाव से नहीं जाएंगे

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