आखिर 52 साल में ऐसा क्या बदल गया है कि अमेरिका भारत की लगातार तरफदारी कर रहा है ? यूक्रेन युद्ध में भारत रूस के प्रति तटस्थ रुख अपनाए हुए है. संयुक्त राष्ट्र में तमाम वोटिंग के दौरान भारत रूस के खिलाफ जाने से परहेज करता रहा है और वोटिंग से दूर रहा है. तो फिर ऐसा क्या हो गया कि सोमवार को वाशिंगटन में 2+2 मंत्रीस्तरीय बैठक के दौरान अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा कि –
‘भारत की उत्तरी सीमा पर चीन का खतरा है. अगर इस इलाके में चीन किसी प्रकार की उग्र रणनीति अपनाता है तो अमेरिका भारत के साथ खड़ा होगा.’
अगर इतिहास के झरोखे में झांकेंगे तो पूंजीवादी अमेरिका कभी ऐसा नहीं रहा है. 1971 के युद्ध में तो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने खुलेआम भारत का विरोध किया था तो फिर अमेरिका के इस बात पर कितना भरोसा किया जा सकता है ?
दरअसल, अमेरिका ये अच्छी तरह से जानता है कि पूरी दुनिया में अब उसे चीन से तगड़ी टक्कर मिल रही है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और लॉयड ऑस्टिन की बैठक में अमेरिकी मंत्री लगातार चीन के खिलाफ हमलावर रहे. उन्होंने कहा कि चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने पड़ोसियों की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है. उन्हें कमजोर करने का प्रयास कर रहा है. अमेरिकी रक्षा मंत्री ने कहा कि बीजिंग भारत की सीमा पर दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है. दक्षिण चीन सागर में भी उसका दावा गैरकानूनी है. वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है. उन्होंने भारतीय रक्षा मंत्री से कहा कि आप अपने संप्रभु हितों की रक्षा करते हैं, इसके लिए हम आपके साथ खड़े रहेंगे. ये तो इसका एक पक्ष हुआ.
दूसरा पक्ष ये है कि चीन अब दुनिया की बहुत बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन चुका है. तकनीक से लेकर तमाम मोर्चे पर चीन अमेरिका से आगे निकलते जा रहा है. यही नहीं, बीजिंग अमेरिका विरोधी देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करते जा रहा है. यानी सीधे-सीधे अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती. शीत युद्ध के बाद अमेरिका दुनिया का अकेला महाशक्ति बन बैठा था. अब एशियाई देश चीन उसे टक्कर दे रहा है. अमेरिका को भी पता है कि भारत इस इलाके में चीन को टक्कर दे सकता है. ऐसे में भारत के कंधे पर बंदूक रखने की मंशा के साथ अमेरिका नई दिल्ली को समर्थन की बात कर रहा है.
यूक्रेन युद्ध के बीच आजादी के बाद से लेकर अब तक भारतीय विदेश नीति का आधार रही गुटनिरपेक्षता की नीति से अमेरिका खफा है. अमेरिका का बाइडन प्रशासन चाहता है कि भारत गुटनिरपेक्षता की विश्व प्रसिद्ध नीति से नाता तोड़े जिसके जनक जवाहर लाल नेहरू थे. यही नहीं अमेरिका यह भी चाहता है कि भारत रूस से भी दूरी बना ले जो हर संकट में हिंदुस्तान के साथ खड़ा रहता है. अमेरिका की उप विदेश मंत्री वेंडी शर्मन ने पीएम मोदी और जो बाइडन के बीच वर्चुअल मीटिंग से ठीक पहले भारत को यह चेतावनी दी है. विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका भारत को गुटनिरपेक्षता की नीति और रूस से दूर करके बड़ा खेल खेलना चाहता है.
वेंडी शर्मन ने बाइडन और मोदी की मुलाकात से ठीक पहले अमेरिकी संसद की शक्तिशाली विदेशी मामलों की समिति के सामने दिए अपने बयान में भारत को यह चेतावनी दी. शर्मन ने कहा कि अमेरिका यह ‘पसंद’ करेगा कि भारत अपनी ऐतिहासिक गुटनिरपेक्षता की नीति और रूस के साथ जी77 भागीदारी से ‘दूर’ हो जाए. इसी बैठक में शर्मन ने यह भी कहा कि भारत के साथ रक्षा व्यापार को बढ़ाने का शानदार अवसर है जो हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और समृद्धि के जटिल लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका भारत के साथ बेहद जटिल संबंध साझा करता है.
अमेरिकी उप विदेश मंत्री वेंडी शर्मन ने कहा, ‘हम निश्चित रूप से चाहेंगे कि भारत अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति और जी77 में रूस के साथ भागीदारी से दूर हो। अमेरिका ने भारतीय अधिकारियों से कहा है कि अब रूस पर प्रतिबंधों की वजह से मास्को से (हथियारों के) कलपुर्जों को पाना या उन्हें बदलना बहुत ही मुश्किल होगा। भारत ने अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों, रक्षा खरीद और सहउत्पादन के प्रयासों को मजबूत किया है और मैं समझती हूं कि इसे आने वाले समय में बढ़ाने का शानदार मौका है।’ अमेरिकी अधिकारियों ने भारत के रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस समझौते का विरोध किया है और चिंता जताई है।
दरअसल, रूस- यूक्रेन युद्ध के बीच मास्को के प्रति भारत के न्यूट्रल रहने से अमेरिका भड़का हुआ है. अन्य बड़ी शक्तियों के विपरीत भारत ने रूस के यूक्रेन पर हमला करने की निंदा नहीं की है. भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस की निंदा करने के लिए आए प्रस्तावों पर अनुपस्थित रहा है. भारत ने कहा कि इस पूरे मामले पर ‘गुटनिरपेक्ष’ रहेगा. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जोरदार कहा है कि भारत रूस-यूक्रेन जंग के पूरी तरह से खिलाफ है. भारत ने कहा कि खून बहाकर कोई हल नहीं हासिल किया जा सकता है. भारत के इसी रुख से अमेरिकी सांसद और बाइडन प्रशासन के कई अधिकारी भड़के हुए हैं.
चर्चित भारतीय रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि अमेरिका रूस पर लगे प्रतिबंधों को भारत को हथियार बेचने के अवसर के रूप में देख रहा है. चेलानी ने कहा, ‘आसान भाषा में कहें तो अमेरिका एक न्यूट्रल, गुटनिरपेक्ष या आजाद भारत को पंसद नहीं कर रहा है. यह भी है कि जिस तरह से ईरान पर लगे प्रतिबंधों की वजह से भारत अमेरिका का सबसे बड़ा तेल आयातक देश बन गया है, ठीक उसी तरह से रूस पर लगे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की वजह से अमेरिका को भारत को अपना ‘विशेष’ ग्राहक बनाने का अवसर मिल गया है.’ दरअसल, अभी तक भारत अपने सबसे ज्यादा हथियार रूस से लेता रहा है.
अमेरिका यूक्रेन युद्ध को एक अवसर के रूप में ले रहा है और एक तरफ रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाकर यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह पुतिन सरकार के प्रति सख्त है. वहीं बाइडन प्रशासन की नजर रूस के हथियारों के बाजार पर है. अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से भारत समेत अन्य रूसी हथियारों के ग्राहकों को पैसे का भुगतान करने में बाधा आ रही है और अब अमेरिका इसका फायदा उठाने की फिराक में है. भारत जैसे अपने सबसे बड़े ग्राहक के अमेरिकी पाले में जाने से रूसी हथियार उद्योग को बहुत बड़ी चोट लगेगी. वह भी तब जब भारत में हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 2012-17 के 69 प्रतिशत से घटकर 2017-21 में 46 प्रतिशत रह गई.
सिप्री की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2012-16 और 2017-21 के बीच भारत में हथियारों के आयात में 21 प्रतिशत की कमी आई. इसके बावजूद, भारत 2017-21 में प्रमुख हथियारों का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक रहा और इस अवधि में विश्व में हथियारों के कुल आयात में भारत की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत रही है. यही वजह है कि अमेरिका की नजर भारतीय बाजार पर कब्जा करने की है.
रिपोर्ट के मुताबिक 2012-16 और 2017-21 की अवधि में रूस भारत को प्रमुख हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा. साल 2017-21 में रूस का निर्यात चार देशों – भारत, चीन, मिस्र और अल्जीरिया पर अधिक केंद्रित था. इन देशों ने कुल रूसी हथियारों के निर्यात का 73 प्रतिशत प्राप्त किया. अमेरिका की हथियार बेचने की चाल पर भारत ने बाइडन प्रशासन को साफ कह दिया है कि रूस के हथियार सस्ते होते हैं और अमेरिकी हथियार महंगे होते हैं.
यही नहीं रूस हमें वे हथियार और परमाणु सबमरीन दे रहा है जो अमेरिका हमें मुहैया नहीं कराता है लेकिन चीन से निपटने के लिए वे जरूरी हैं. भारत के पास अभी 250 रूसी मूल के फाइटर जेट हैं. इसके अलावा 7 किलो क्लास की सबमरीन है. भारत रूस से लाखों एके सीरिज की असॉल्ट राइफलें ले रहा है. भारत के पास रूसी मूल के 1200 टैंक हैं. अभी 10 अरब डॉलर के रक्षा सौदों पर बातचीत चल रही है. बताया जा रहा है कि भारत के 85 फीसदी हथियार रूसी कलपुर्जों पर निर्भर हैं. ऐसे में भारत रूस से कई दशकों तक हथियारों की खरीद बंद नहीं कर सकता है.
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