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KFC का धंधा बढ़ाने के लिए व्रत के नाम पर मांसाहार का खुदरा बाजार बंद करने का पाखण्ड बंद कीजिए

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KFC का धंधा बढ़ाने के लिए व्रत के नाम पर मांसाहार का खुदरा बाजार बंद करने का पाखण्ड बंद कीजिए
KFC का धंधा बढ़ाने के लिए व्रत के नाम पर मांसाहार का खुदरा बाजार बंद करने का पाखण्ड बंद कीजिए
कृष्ण कांत

भारत में KFC की फ्रेंचाइज़ी देवयानी इंटरनेशनल लिमिटेड के पास है. देवयानी, सुनने में कितना धार्मिक टाइप लग रहा है, ऐसे कि मन पवित्र हो जाए ! इसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में कुल दस लोग हैं – प्रदीप खुशहालचंद्र सरदाना, गिरीश कुमार आहूजा, नरेश त्रेहान, रश्मि धारीवाल, रवि गुप्ता, मनीष दावर, राजपाल गांधी, विराग जोशी, वरूण जयपुरिया, रविकांत जयपुरिया.

पंडित विराग जोशी इस कंपनी के होल टाइम डायरेक्टर, प्रेसिडेंट एवं सीईओ हैं. पंडित विराग जोशी समेत ये दसों हिन्दू मिलकर पूरे देश को चिकेन खिला रहे हैं – वह भी ‘हलाल सर्टिफाइड.’ कहीं किसी ने विरोध प्रदर्शन किया ? नहीं. नवरात्रि चल रहा है, KFC बंद होने के बजाए खुला हुआ है. इसके अलावा दस प्रतिशत तक दाम बढ़ा दिए गए हैं. आनलाइन बेचने वालों का चिकन बिक रहा है, खाने वाले खा रहे हैं.

ये दाम क्यों बढ़े होंगे ? क्योंकि नवरात्रि में ज्यादातर जगहों पर मीट या चिकन की खुदरा दुकानें बंद करा दी जाती हैं. मांग बढ़ गई होगी, इसलिए केएफसी ने दाम बढ़ा दिया. केएफसी का धंधा चमकेगा. लोकल बाजार के चिकन का धंधा दस दिन ठप रहेगा. खाने वाले चिकन खाएंगे, केएफसी वाले पंडित जी अपना धंधा बढ़ाएंगे. ट्विटर वाले सच्चे हिंदू इस बात से खुश रहेंगे कि अब्दुल टाइट है.

धर्म भी मजेदार चीज है. केएफसी वाले चिकन से धर्म भ्रष्ट नहीं होता, स्थानीय बाजार में गरीब मांस विक्रेता अपनी दुकान खोल दे तो पंडित जी का पूजाघर अपवित्र हो जाता है, विचित्र है ! यह सच है कि अब्दुल चिकवा की दुकान दस दिन बंद रही तो वह टाइट हुआ, लेकिन इन हरकतों से आपका बाजार तो ढीला हो गया. एक अमीर का धंधा बढ़ा और एक गरीब का नुकसान हुआ. आपको क्या मिला ? काल्पनिक सुख ? परपीड़ा सुख ?

रही बात धर्म की तो कोई खाने में मांसाहार न खाए, इससे आपका व्रत कैसे फलित होगा ? चिकेन की दुकान बंद हो जाए तो आपको इससे कैसे पुण्य मिलेगा ? आप तो नहीं खाते हैं न ? तो आपका मन अपना व्रत छोड़कर अब्दुल चिकवा के चिकन में क्यों अटका है ? आप धार्मिक नहीं, पाखंडी हैं. बहुत से ऐसे भी लोग हैं जो मांसाहारी हैं, लेकिन मंगलवार या नवरात्रि में नहीं खाते. वे लोग सही हैं, खुद खाते हैं इसलिए ज्यादा पवित्रता नहीं झाड़ते.

भारत सरकार के नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक, हर 10 में 7 लोग मांसाहार लेते हैं. देश के लगभग 70 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं. अब ये जो 10 में से तीन बच रहे हैं, ये क्यों समझ रहे हैं कि ईश्वर इन्हीं खोपड़ी पर विराजमान हैं ? सिर्फ 30 प्रतिशत का धर्म ही असली धर्म कैसे हुआ ? पूर्वांचल से लेकर साउथ तक जितने ब्राह्मण मांस खाते हैं, या जितने लोग काली जी को खुश करने के लिए मुर्गा बकरा बलि चढ़ाते हैं, वे कम हिंदू कैसे हुए ? भूतपूर्व हिंदू हृदय सम्राट अटल विहारी वाजपेयी मछली खाते थे, क्या वे कम हिंदू थे ?

हिंदुओं को पाखंड से और भाजपा की नौटंकी से बचना चाहिए. ये उत्तर प्रदेश में गोहत्या को चुनावी मुद्दा बनाते हैं, लेकिन गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों में खुद ही गोमांस सप्लाई करते हैं. सीधी-सी बात है, खाने पीने की आदतों का धर्म से कोई लेना देना नहीं है. आपकी आस्था है कि आप पूरे साल निराजल व्रत रहें तो रहिए लेकिन दूसरे की रसोईं में आपका मन अटका है तो मानसिक इलाज कराइए. यह धर्म नहीं, परसंताप है, यह आपको विकृत करता है.

न खाने को वालों को चाहिए कि अपने पूजा व्रत में ध्यान केंद्रित करें. खाने वालों को चाहिए कि शाकाहारियों को चिढ़ाएं नहीं. अपना अपना रास्ता नापिए, यह सही तरीका है. भारत में जितनी मीट निर्यात की कंपनियां हैं, सब उच्च जाति हिंदू लोग चलाते हैं और भारत विश्व के सबसे बड़े मांस/बीफ निर्यातकों में से एक है. पाखंड बंद कीजिए, अपने हवन पूजन पर ध्यान केंद्रित कीजिए.

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