Home ब्लॉग राम नाम ‘सत्य‘ है !

राम नाम ‘सत्य‘ है !

53 second read
0
0
1,075

राम नाम ‘सत्य‘ है !

गली-गली लाऊडस्पीकर के पंचम तान में राम के नाम पर लगाये जाने वाले ‘जय श्रीराम’ के उन्मादी नारे प्रेम, सौहार्द नहीं बल्कि आतंक पैदा कर रहा है. जय श्री राम का यह नारा अब हत्यारों, बलात्कारियों का प्रमुख नारा बन चुका है. राम के नाम पर स्थापित ‘रामराज्य’ की परिकल्पना लोगों में दहशत का पर्याय बन चुका है, यहु कारण है कि ‘जय श्री राम’ की आड़ में व्यक्ति ही नहीं मानवता की मौत का ‘राम नाम सत्य है’ की अनुगुंज सुनाई देने लगी है. यही कारण है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब जय श्री राम के नाम पर लोगों को बधाई देते हैं तब लोग उन्हें और उनके गिरोहों के अपराध गिनाने लगते हैं.

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता कनक तिवारी का यह आलेख कुछ ऐसा ही इशारा करता है –

बेचारे राम सदियों से इस देश के बहुत काम आ रहे हैं लेकिन यह देश उनके काम कब आएगा ? लोग आपस में मिलते हैं तो ‘राम राम‘ कहते हैं. कहीं कोई वीभत्स दृश्य या दुःखभरी खबर मिले तो भी मुंह से ‘राम राम’ निकल पड़ता है. देश के अधिकांश हिस्से में अब भी संबोधन के लिए ‘जयरामजी’ कहने की परंपरा है. यह बात अलग है कि मेघालय की एक यात्रा के दौरान पान का बीड़ा बेचने वाली एक स्नातक छात्रा ने यह स्मरणीय टिप्पणी की थी कि इस देश के लोग ‘जयराम’ कहने के बदले ‘जयसीताराम’ क्यों नहीं कहते ? ‘जयराम’ नाम इन दिनों भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में छत्तीसगढ़ की राम वन गमन योजना यात्रा में चटखारे ले रहा है.

राम को वैसे भी संघ परिवार के लोग उस कांग्रेस पार्टी से उठा ले गए हैं जिसके सबसे बड़े मसीहा ने छाती पर गोली खाने के बाद ‘हे राम’ कहा था. कांग्रेस के किसी सम्मेलन में महात्मा गांधी की आश्रम भजनावली का कोई उच्चारण नहीं होता. प्रभात फेरी, खादी, मद्य निषेध, अहिंसा सब गायब हैं. राम भी क्या करें ! पूरी राजनीति तो महाभारत वालों के जिम्मे है. कांग्रेस के सबसे बड़े नेता का नाम मोहनदास ही तो था. लोकतंत्र की रक्षा के लिए राम से ज़्यादा बड़ी कुर्बानी धरती के इतिहास में किसी ने नहीं की होगी. मां, बाप खोए. पत्नी, बच्चे खोए. भाई और रिश्तेदार खोए. वर्षों तक राजपाट खोया. जंगलों की खा़क छानी फिर भी एक अदना नागरिक के मन में राजशाही के खिलाफ थोड़ी सी शंका भी नहीं उपजने दी.

राम का जीवन एकाकी होने का पर्याय है. ऐसे अकेले राम को भीड़ के नारों की लहरों पर बार बार बिठाया जाता है. यही वजह है कि हिन्दू परंपरा के तीन आदि देव विष्णु, ब्रह्मा और शिव के मुकाबले राम जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर मृतक का साथ सबसे ज़्यादा देते हैं. ‘जयश्रीराम’ के उत्तेजक नारे से छिटका हुआ हर साधारण आदमी इस हिन्दू विश्वास में बहता रहता है कि जब वह आखिरी यात्रा पर चलेगा तब उसके पीछे ‘राम नाम सत्य है‘ का नारा अवश्य गूंजेगा.

दिल्ली के तख्तेताउस पर एक पार्टी को राम की बैसाखी लेकर बैठना है. दूसरी पार्टी ‘हे राम’ कहने वाले अपने सबसे बड़े सेनापति को भुलाए बैठी है. उसके ही पूर्व प्रधानमंत्री ने राम मन्दिर का ताला खुलवाया था, इसके बावजूद वह राम को धर्मनिरपेक्षता का ब्रांड एम्बेसडर नहीं बना पाती है. गांधी ने ही तो कहा था कि ‘ईश्वर, अल्लाह राम के ही नाम हैं.’ उनका राम केवल हिन्दू का नहीं था. यही बात तो ताज़ा बयान में विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल भी कहने लगे.

लोकतंत्र के लिए राम, कूटनीति के लिए कृष्ण, राजनीतिक दर्शन के लिए कौटिल्य, भ्रष्ट आचरण के खिलाफ तीसरी आंख खोलने वाले शिव ऐतिहासिक रोल माॅडल हैं. राजनीतिक कुर्सी हासिल करने के लिए इक्कीसवीं सदी में हर नेता दक्षिण से उत्तर की ओर यात्रा कर रहा है. यह राम थे जिन्होंने लोकतंत्र की शिक्षा ग्रहण करने के लिए उत्तर से दक्षिण की ओर यात्रा की थी. यहां उन्हें आदिवासियों, दलितों, पिछड़े वर्गों, मुफलिसों, महिलाओं और यहां तक कि पशु पक्षियों तक की सेवा करने के अवसर मिले थे.

‘जयराम’ हों या ‘जयश्रीराम’ किसी को भी इन वर्गों की सेवा से क्या लेना देना ? बिना कुब्जा, अहिल्या, शबरी, हनुमान, सुग्रीव, जटायु आदि के राम कहां ? राम क्या केवल अयोध्या नगर निगम के मतदाता रहे हैं ? इतने वर्षों तक उनका मन्दिर नहीं बना तब राम कहां थे ? मन्दिर बन भी जाए तो क्या राम उसमें ही बैठे रहेंगे ? भारतीय लोकतंत्र के सत्ताधीश जब तक राम की आत्मा का आह्वान नहीं करेंगे तब तक राम तो वनवास में ही रहने का ऐलान कर चुके हैं.

लेकिन सवाल तो फिर वही रह जाता है – ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी किसको मारने के लिए हांथ में बाण उठाएं हुए हैं ?’

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…