Home ब्लॉग यह है मोदी का नया भारत : थाने में खड़ा नंगा पत्रकार

यह है मोदी का नया भारत : थाने में खड़ा नंगा पत्रकार

10 second read
0
0
810

भारत में मारे गए पत्रकारों की संख्या सबसे अधिक है. मध्य प्रदेश के सीधी जिले में जिन पत्रकारों को नंगा किया गया, उनमे से कनिष्क तिवारी न्यूज नेशन चैनल के रिपोर्टर हैं. कहने का मतलब यह कि रिपोर्टर नंगा होता है तो चैनल भी नंगा होता है. वह जनता भी नंगी होती है जो खामोश रहती है.

यह है मोदी का नया भारत : थाने में खड़ा नंगा पत्रकार
यह है मोदी का नया भारत : थाने में खड़ा नंगा पत्रकार

यह नया भारत है. यह लोग जो थाने में अर्धनग्न अवस्था में खड़े हैं, यह सब पत्रकार हैं. इनमे सबसे बांएं खड़े दाढ़ी वाले भाई कनिष्क तिवारी के यू-ट्यूब चैनल के सवा लाख सब्सक्राइबर हैं. अब इन्होंने गलती यह कर दी कि पहले मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार में भाजपा के ही विधायक केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ खबर लिख दी थी और अब शुक्ला के कहने पर सीधी पुलिस ने कनिष्क और उनके साथियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी है.

जब कनिष्क और उनके साथियों ने पुलिस से पूछा कि हमारा कुसूर क्या है तो उनसे कहा गया कि फर्जी आईडी से आप लोग भाजपा सरकार और विद्यायकों के खिलाफ लिखते हैं. उपरोक्त तस्वीर भारत में पत्रकारों की स्थिति को बयां करता है. वैसे तो दुनिया भर में पत्रकारों पर सरकारों ने अपने हमले तेज कर दिये हैं, लेकिन दुनिया भर सबसे बड़े लोकतंत्र का पताका फहराने वाले भारत देश किस हालत में पहुंच गया है, इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है यह. कहना नहीं होगा भारत अब पत्रकारों, बुद्धिजीवियों का कब्रगाह बनता जा रहा है.

जापानी पत्रकार युकी किताज़ुमी, जिन्हें यहां फरवरी में यांगून पुलिस थाने में ले जाते हुए दिखाया गया है, वे म्यांमार सेना के तख्तापलट के बाद मीडिया की कार्रवाई के बाद गिरफ्तार किए गए पत्रकारों में से एक थे. किताज़ुमी पर फर्जी खबरें फैलाने का आरोप लगाया गया था, लेकिन मई में उन्हें जापान लौटने की अनुमति दे दी गई. म्यांमार अब चीन के बाद पत्रकारों का दुनिया का दूसरा सबसे खराब जेलर है.

दुनिया भर की विभिन्न जेलों में बंद पत्रकारों की संख्या ने वर्ष 2021 में एक और रिकॉर्ड बनाया है. नयी तकनीकों एवं नये सुरक्षा कानूनों को लागू करते हुए, एशिया से लेकर यूरोप और यूरोप से लेकर अफ्रीका तक दमनकारी शासनों ने स्वतंत्र प्रेस पर कठोर कार्रवाई की है. सीपीजे की संपादकीय निदेशक अर्लीन गेट्ज़[1] द्वारा दिसंबर 9, 2021 को न्यूयॉर्क से प्रकशित एक विशेष रिपोर्ट.

प्रेस की स्वतंत्रता के रक्षकों के लिए यह विशेष रूप से एक धूमिल वर्ष रहा है. सीपीजे द्वारा वर्ष 2021 के लिये की गयी जेल की जनगणना में पाया गया है कि पत्रकारिता की वजह से जेल में बंद पत्रकारों की संख्या 293 के नए वैश्विक रिकॉर्ड पर पहुंच गई है, जो कि वर्ष 2020 में संशोधित कुल संख्या 280 से अधिक है.

इस वर्ष (2021)अब तक सिर्फ कवरेज किये जाने के कारण कम से कम 24 पत्रकार मारे गए हैं; 18 अन्य पत्रकारों की मृत्यु उन परिस्थितियों में हुई है जिन परिस्थितियों को देख कर यह निर्धारित नहीं किया जा सकता है कि क्या वे दिवंगत पत्रकार ही विशिष्ट लक्ष्य थे अथवा नहीं.

50 पत्रकारों को जेल भेजकर चीन लगातार तीसरे साल पत्रकारों के मामले में विश्व का सबसे खराब जेलर बना हुआ है. 1 फरवरी को सैन्य तख्तापलट के बाद मीडिया पर हुयी कार्रवाई के बाद म्यांमार दूसरे स्थान पर पहुंच गया है. इसके अतिरिक्त मिस्र, वियतनाम और बेलारूस ने क्रमश: शीर्ष पांच में जगह बनाई है.

हिरासत में लिए गए पत्रकारों की संख्या में निरंतर वृद्धि के कारण – यह लगातार छठा वर्ष है, जब सीपीजे की जनगणना में कम से कम 250 पत्रकारों को कैद किये जाने के मामले दर्ज किए गए हैं, किन्तु इन मामलों में देशों के बीच भिन्नता भी है. लेकिन सभी मामले एक गंभीर प्रवृत्ति को दर्शाते हैं : स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रति बढ़ती असहिष्णुता.

निरंकुश तानाशाह नियत प्रक्रिया की अनदेखी कर रहे हैं और खुद को सत्ता में रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानदंडों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. COVID-19 से ग्रस्त दुनिया में और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देने की कोशिश में, दमनकारी सरकारें इस बात को स्पष्ट रूप से जानती हैं कि मानवाधिकारों के हनन पर सार्वजनिक आक्रोश कुंद है और लोकतांत्रिक सरकारों में राजनीतिक या आर्थिक प्रतिशोध की भूख कम है.

यह सच है कि अप्रत्याशित रूप से कुछ देशों ने अधिक पत्रकारों को जेल में डालने की प्रवृत्ति को कम कर दिया है. कभी पत्रकारों को जेल भेजने के मामले में दुनिया का सबसे खराब देश तुर्की, पिछले साल 20 कैदियों को रिहा करने के बाद अब सीपीजे की जनगणना में छठे स्थान पर है. अठारह पत्रकार अब भी वहां जेल में बंद हैं.

सऊदी अरब द्वारा 10 कैदियों की रिहाई किये जाने के बाद और 2021 की जनगणना में कोई नया पत्रकार दर्ज नहीं किए जाने के बाद पुराने मामलों में 14 पत्रकारों को अब भी जेल में रखा गया है – इसका अर्थ यह है कि यह देश अब पांच सबसे बड़े अपराध कर्ताओं में से एक नहीं है.

हालांकि, कम कैदियों की संख्या को प्रेस के प्रति हृदय परिवर्तन के संकेत के रूप में देखना भी भोलापन होगा. जैसा कि सीपीजे ने उल्लेख किया है, वर्ष 2016 में एक असफल तख्तापलट के प्रयास के बाद तुर्की की कार्रवाई ने देश की मुख्यधारा के मीडिया को प्रभावी ढंग से मिटा दिया और कई पत्रकारों को पेशा छोड़ने के लिए प्रेरित किया. तुर्की की जेलों में ऐसे कैदियों की संख्या भी कम हो रही है क्योंकि सरकार पैरोल पर अधिक पत्रकारों को मुकदमे या अपील के परिणामों की प्रतीक्षा करने की अनुमति देती है.

17 जून, 2021 को हांगकांग में न्यूज़ रूम में पुलिस द्वारा की गयी छापेमारी के बाद ऐप्पल डेली अखबारों की प्रतियां ऐप्पल डेली और नेक्स्ट मीडिया के कार्यालयों में देखी जाती हैं. (रायटर/लैम यिक)

सऊदी अरब में, 2018 में जमाल खशोगी की आक्रामक तरीके से की गयी हत्या और उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े किये जाने के डराने वाले प्रभाव के साथ-साथ 2019 में कई अन्य पत्रकारों को नए मामलों के अन्तर्गत हिरासत में लिया गया है. इन वजहों से वहां गिरफ्तारी की किसी भी नई लहर की तुलना में कई पत्रकारों को अधिक प्रभावी ढंग से चुप रहने पर मजबूर कर दिया है.

इसके अलावा, सत्तावादी नेता स्वतंत्र पत्रकारों एवं संस्थानों को इंटरनेट की दुनिया में ब्लॉक करने के लिए अधिक परिष्कृत तरीके खोज रहे हैं – पत्रकारों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने के बजाय इंटरनेट शटडाउन और हाई-टेक स्पाइवेयर के माध्यम से उन पर निगरानी में वृद्धि जैसे तरीके शामिल हैं.

पत्रकारों को चीन द्वारा अथक रूप से क़ैद करना कोई नई बात नहीं है. हालांकि, यह पहली बार है जब सीपीजे की वार्षिक जनगणना में हांगकांग के पत्रकार भी पाए गए हैं – यह दरअसल इस शहर में हुए ऐतिहासिक लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों के जवाब में लगाए गए कठोर 2020 राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन का परिणाम है.

ऐप्पल डेली और नेक्स्ट डिजिटल के संस्थापक एवं सीपीजे द्वारा वर्ष 2021 के ग्वेन इफिल प्रेस फ्रीडम पुरस्कार से नवाजे गए जिम्मी लाई सहित हांगकांग के आठ अन्य मीडिया के शख्सियतों को जेल भेजकर शहर के पहले से ही संकटग्रस्त स्वतंत्र प्रेस को करारा झटका दिया गया. कुछ को जेल में उम्रक़ैद का सामना करना पड़ सकता है.

पुलिस ने 27 फरवरी, 2021 को म्यांमार के यांगून में म्यांमार नाउ के पत्रकार के ज़ोन न्वे को गिरफ्तार किया, क्योंकि प्रदर्शनकारी सैन्य तख्तापलट के खिलाफ प्रदर्शन में भाग ले रहे थे. (एएफपी/ये आंग थू)

चीन के मुख्य भू-भाग में अन्य लोगों को अस्पष्ट ऑरवेलियन आरोपों का सामना करना पड़ता है. स्वतंत्र वीडियो पत्रकार झांग झान, जिन्हें मई 2020 में COVID-19 महामारी के लिए चीन की प्रतिक्रिया की महत्वपूर्ण कवरेज करने के लिए गिरफ्तार किया गया था, उन्हें अब ‘झगड़े करने और परेशानी खड़ा करने’ के आरोप में लिए चार साल की कैद में रखा गया है – इस आरोप को अक्सर सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की चीनी सरकार के शांतिपूर्ण आलोचकों को लक्षित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

अन्य व्यक्तियों पर ‘दो मुंह वाले’ होने का आरोप लगाया गया है, जो बिना कानूनी आधार का एक वाक्यांश है, लेकिन वहां ऐसा माना जाता है कि यह वाक्यांश कम्युनिस्ट पार्टी का गुप्त रूप से विरोध करने का सुझाव देता है और इस आरोप को अक्सर शिनजियांग के उइघुर पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है.

चीन ने गैर-पत्रकारों को भी मीडिया के साथ सूक्ष्म संबंधों के लिए भी निशाना बनाया है, आध्यात्मिक समूह फालुन गोंग से संबद्ध एक मीडिया कंपनी द एपोच टाइम्स को कथित रूप से सामग्री भेजने के आरोप में 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इन 11 व्यक्तियों को सीपीजे की जनगणना में सूचीबद्ध नहीं किया गया है क्योंकि द एपोच टाइम्स ने कहा है कि वे पत्रकार नहीं थे, लेकिन उनकी नजरबंदी मीडिया के संभाषण को दबाने के लिए किये जा रहे चीन के प्रयासों का एक अशुभ संकेतक है.

म्यांमार, जहां 1 दिसंबर, 2020 तक कोई भी पत्रकार जेल में बंद नहीं था, वहां सेना द्वारा तख्तापलट किये जाने के बाद हुए दमन के फलस्वरूप 26 पत्रकारों को अगले 12 महीने के भीतर हिरासत में लिया गया. हालांकि, वहां की स्थिति इस संख्या से भी काफी अधिक विकट है.

अमेरिकी पत्रकार डैनी फेनस्टर समेत कई अन्य पत्रकारों को कई महीनों तक जेल में रखने के बाद जनगणना की गिनती से पहले रिहा कर दिया गया और सीपीजे के शोध से पता चलता है कि हिरासत में रखे गये कई अन्य लोगों की पहचान अभी तक पत्रकारों के रूप में की जा सकती है.

इसके अलावा, अज्ञात संख्या में पत्रकार भूमिगत हुए है या निर्वासन में चले गए हैं – उनका जाना अपदस्थ निर्वाचित सरकार के कार्यकाल के दौरान स्वतंत्र मीडिया को कार्य के सन्दर्भ में मिले लाभ के लिए एक महत्वपूर्ण झटका है.

वर्ष 2021 में 25 पत्रकारों को जेल भेज कर मिस्र अब म्यांमार के बाद दुनिया में पत्रकारों को जेल भेजने के मामले में तीसरा सबसे ख़राब देश साबित हुआ है. हालांकि गिरफ्तार हुए पत्रकारों की संख्या में पिछले साल की तुलना में कमी आयी है, लेकिन वर्तमान में वहां हो रहे पत्रकारों को गिरफ्तार किये जाने के मामले अब्देल फत्ताह अल-सीसी की सरकार द्वारा अपने ही देश के कानूनों की घोर अवहेलना के प्रतीक हैं.

इथियोपिया के पत्रकार डेसू दुल्ला, जो ओरोमिया न्यूज नेटवर्क में काम करते हैं, 25 मई, 2021 को अदीस अबाबा, इथियोपिया में अपने स्टूडियो के बाहर अपने मोबाइल फोन पर बात करते हुए। दुल्ला को 18 नवंबर, 2021 को गिरफ्तार किया गया था. (रायटर/टिकसा नेगेरी)

मिस्र के अधिकारी नियमित रूप से उस अवधि को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त शुल्क दाखिल करके कैदियों की पूर्व-परीक्षण हिरासत को दो साल तक सीमित करने वाले कानून के आसपास काम करते हैं. अन्य मामलों में, वे उन लोगों की रिहाई के लिए शर्तें संलग्न करते हैं, जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है.

उदाहरण के लिए, मिस्र के फोटो पत्रकार और सीपीजे इंटरनेशनल प्रेस फ्रीडम पुरस्कार प्राप्त करने वाले महमूद अबू ज़ीद, जिन्हें शौकन के नाम से जाना जाता है, ने 4 मार्च, 2019 को तोरा जेल से रिहा होने के बाद से हर रात पुलिस हिरासत में बिताई है. वे ‘पुलिस अवलोकन’ के तहत रिहा हुए हैं, और उन्हें अगले पांच वर्षों के लिए हर शाम एक पुलिस स्टेशन जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी. अब तक, हर शाम, पुलिस उसे थाने की कोठरियों में रात बिताने का आदेश देती है. शौकन को अपनी वित्तीय संपत्ति और संपत्ति के प्रबंधन के लिए भी पांच साल के लिए भी प्रतिबंधित किया गया है.

9 फरवरी, 2021 को मिन्स्क, बेलारूस में एक अदालती सुनवाई के दौरान कट्सियरीना आंद्रेयेवा (आर) और डारिया चुल्ट्सोवा एक प्रतिवादी के पिंजरे के अंदर खड़े हैं. दो बेलारूसी पत्रकार, जो पोलिश टेलीविजन चैनल बेलसैट के लिए काम करते हैं, इन दोनों पर 2020 में लाइव रिपोर्ट प्रसारित करके बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का समन्वय करने का आरोप है. (रायटर/स्ट्रिंगर)

अफ्रीकी महाद्वीप में सहारा के दक्षिणी भाग में मीडिया की आजादी को सबसे बड़ा झटका इथियोपिया में लगा है. 2018 में सुधार के अभूतपूर्व युग के बीच प्रधान मंत्री बने अबी अहमद की सरकार वर्ष 2021 में उप-सहारा अफ्रीका में इरिट्रिया के बाद पत्रकारों के लिये दूसरी सबसे खराब जेलर के रूप में उभर कर सामने आयी है.

एक साल से टाइग्रे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (टीपीएलएफ) के नेतृत्व वाले सुरक्षा बलों एवं संघीय सरकारी के बीच गृहयुद्ध शुरू होने के बाद से देश में कई पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है; 1 दिसंबर तक नौ पत्रकार अभी भी वहां हिरासत में थे. छह पत्रकारों को नवंबर में गिरफ्तार किया गया था क्योंकि संघर्ष बढ़ गया था और सरकार ने कठोर आपातकालीन कानून लागू किए थे. सीपीजे द्वारा पूरे वर्ष में कई अन्य प्रेस स्वतंत्रता उल्लंघनों के मामलों का भी दस्तावेजीकरण किया गया है.

इस बीच, बेलारूस के नेता अलेक्सांद्र लुकाशेंको ने यह कर दिखाया है कि वह जनता की राय की कितनी कम परवाह करते हैं और पत्रकार रमन प्रतासेविच को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से किए गए चरम उपायों से स्पष्ट होता है कि वे सत्ता में बने रहने की कितनी अधिक परवाह करते हैं : विमान से प्रतासेविच को उतारने के लिए नागरिक विमान सेवा रयानएयर की एक उड़ान को अपमानजनक तरीके से दूसरी तरफ मोड़ दिया गया था.

बेलारूस में अब 19 पत्रकार जेल में बंद हैं, जो पिछले साल की संख्या 10 से अधिक है और वर्ष 1992 में सीपीजे द्वारा कैद किये गये पत्रकारों के आंकड़े रखने शुरू किये जाने के बाद से सबसे अधिक है.

हिरासत में लिए गए लोगों में स्वतंत्र खेल समाचार साइट ट्रिब्यूना के एक पत्रकार अलियकजेंडर इवुलिन हैं. जहां एक तरफ इवुलिन को सार्वजनिक आदेश का उल्लंघन करने के आरोप में चार साल तक की जेल का सामना करना पड़ रहा है, उसके एक प्रशंसक को इवुलिन के स्थानीय फुटबॉल क्लब में एक मैच के लिए 25 नंबर वाली क्लब शर्ट पहनने के लिए 14 दिनों की कैद की सजा सुनाई गई थी. कारण ? क्लब के लिए खेलते समय इवुलिन द्वारा पहना गया वह नंबर है.

अभिव्यक्ति की आज़ादी के इस कठिन वर्ष में, उस तरह की असहिष्णुता आशावाद के लिए बहुत कम जगह छोड़ती है कि जेल में बंद पत्रकारों की संख्या जल्द ही इस तरह के रिकॉर्ड बनाना बंद कर देगी.

नोट के अन्य निष्कर्ष :

  • सीपीजे ने यह दर्ज किया है कि 1 दिसंबर, 2021 तक 19 पत्रकारों की हत्या उनके काम के बदले में की गयी है, जबकि वर्ष 2020 में 22 पत्रकारों की हत्या हुई थी. इस साल तीन और लोग संघर्षशील क्षेत्रों से पत्रकारिता करते हुए मारे गए थे, और दो अन्य लोग मारे गए थे जो घातक विरोध प्रदर्शन या सड़क पर हुई झड़पों के बीच समाचार संकलन कर रहे थे.
  • मेक्सिको पत्रकारों के लिये पश्चिमी गोलार्ध का सबसे घातक देश बना रहा. तीन पत्रकारों की हत्या उनकी पत्रकारिता के लिये सीधे प्रतिरोध में कर दी गई;
  • सीपीजे अन्य छह हत्याओं की भी जांच कर रहा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे मामले उनकी पत्रकारिता से जुड़े थे या नहीं.
  • भारत में मारे गए पत्रकारों की संख्या सबसे अधिक है – चार पत्रकारों की हत्या उनके काम के प्रतिशोध में किए जाने की पुष्टि की गई है. पांचवें पत्रकार की मौत एक विरोध प्रदर्शन में समाचार संकलन करने के दौरान हुयी है.
  • लैटिन अमेरिका की जेल जनगणना में छह पत्रकार सूचीबद्ध हैं: क्यूबा में तीन, निकारागुआ में दो और ब्राजील में एक पत्रकार जेल में बंद है. भले ही यह अपेक्षाकृत रूप से कम संख्या है, लेकिन सीपीजे ने इस क्षेत्र में प्रेस की स्वतंत्रता में चिंताजनक गिरावट दर्ज की है.
  • जेल में बंद कम से कम 17 पत्रकारों पर साइबर अपराध का आरोप लगाया गया है. पश्चिम अफ्रीकी देश बेनिन में, दो पर देश के व्यापक रूप से चलने वाले डिजिटल कोड के तहत आरोप लगाया गया है, जिसे ऑनलाइन मीडिया में प्रकाशित या वितरित किसी भी सूचना या समाचार के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने की अनुमति देकर स्वतंत्रता को दबाने की एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जाता है.
  • हिरासत में लिए गए 293 पत्रकारों में से चालीस महिलायें हैं – यह आंकड़ा कुल संख्या का 14% से कम है.
  • जनगणना किये जाने की समय सीमा के दौरान उत्तरी अमेरिका में किसी भी पत्रकार को जेल में नहीं डाला गया था. हालांकि, सीपीजे के एक सहयोगी यू.एस. प्रेस फ्रीडम ट्रैकर ने 2021 के दौरान पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका में पत्रकारों से सम्बंधित 56 गिरफ्तारी और हिरासत के मामले दर्ज किये हैं. इनमें से 86 प्रतिशत कार्यवाही विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुयी है. कनाडा में, उत्तरी ब्रिटिश कोलंबिया में भूमि अधिकारों के विरोध का समाचार संकलन करते हुए गिरफ्तार किए गए दो पत्रकारों ने एक अदालत द्वारा उनकी सशर्त रिहाई का आदेश दिये जाने से पहले तीन रातें हिरासत में बिताईं हैं.

गतिविधि :

जेल की जनगणना केवल सरकारी हिरासत में पत्रकारों के लिए है और इसमें वे लोग शामिल नहीं हैं जो गायब हो गए हैं या गैर-राज्य सरकारों द्वारा बंदी बनाए गए हैं. इन मामलों को ‘लापता’ या ‘अपहरण’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

सीपीजे पत्रकारों को ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित करता है जो प्रिंट, फोटोग्राफ, रेडियो, टेलीविजन और ऑनलाइन सहित किसी भी मीडिया में समाचार संकलन करते हैं या सार्वजनिक मामलों पर टिप्पणी करते हैं. सीपीजे की वार्षिक जेल जनगणना में, केवल वे पत्रकार शामिल होते हैं, जिनकी पुष्टि की गई है कि उन्हें उनके काम के संबंध में कैद किया गया है.

सीपीजे की यह सूची 1 दिसंबर, 2021 को सुबह 12:01 बजे जेल में बंद लोगों का एक आशुचित्र है. इसमें साल भर में कैद और रिहा किए गए कई पत्रकार शामिल नहीं हैं; उन मामलों से संबंधित जानकारियां http://cpj.org पर देखी जा सकती हैं. पत्रकार सीपीजे की सूची में तब तक बने रहते हैं जब तक कि संगठन उचित निश्चितता के साथ यह निर्धारित नहीं कर लेता कि उन्हें रिहा कर दिया गया है या हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई है.

[1] अर्लीन गेट्ज़ सीपीजे की संपादकीय निदेशक हैं. अब वे न्यूयॉर्क में रहती हैं, उन्होंने अफ्रीका, यूरोप, एशिया और मध्य पूर्व में एक विदेशी संवाददाता, संपादक एवं संपादकीय कार्यकारी के रूप में रॉयटर्स, सीएनएन और न्यूज़वीक जैसे संस्थानों में काम किया है.

Read Also –

पत्रकारिता नहीं होगी तो पत्रकार की ज़रूरत ही क्यों रहेगी ?
भारत की पत्रकारिता दुनिया भर में रोज़ बदनाम होती है
दो पत्रकार, एक सवाल, जवाब नदारद
जांबाज पत्रकार दानिश सिद्दीकी के मौत पर प्रधानमंत्री की चुप्पी, आईटीसेल का जश्न
पत्रकारिता दिवस पर अपनी कुछ अयोग्यताओं पर बात करना चाहता हूं – रविश कुमार
पत्रकारिता की चाल, चरित्र और चेहरा
पत्रकारिता के सिस्टम को राजनीतिक और आर्थिक कारणों से कुचल दिया गया

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…