यह असल में लल्लनटॉप का एक आर्टिकल है, जो कुछ साल पहले मैंने पढ़ा था. फैलेसी या fallacy याने ‘झूठ और सच’ का एक ऐसा कैमोफ्लेज, जिसे जानना हम आपको लिए बेहद जरूरी है. कई मित्रों को लगता है कि मैं कई बार अनावश्यक ही एग्रेसिव होकर रिएक्ट करता हूं. दरअसल जब से मैं fallacy पहचानने लगा हूं, सीधे जुतिया कर भगाता हूं. इसे आप भी समझें.
Fallacy क्या है ?
बहस करते वक्त अतार्किक बातें करना और उससे कुछ भी निष्कर्ष निकाल लेना फैलेसी है. जैसे कि –
‘कल तुमने मुझसे दो रूपये लिए और आज दो रूपये फिर ले लिए है. कुल योग दस हुआ, तो कल तुम मुझे दस रूपये लौटाओगे.’
इस बात में आपको स्पष्ट है कि क्या अतार्किक है, लेकिन हर बार फैलेसी को पहचानना इतना आसान नहीं होता क्यूंकि हर बार ये फैलेसी ‘दो और दो, दस’ जैसी आसानी से पकड़ में नहीं आती.
5 तरह की फॉलसी बहुत कॉमन यूज होती है, क्रम से समझिए –
1. नो ट्रू स्कॉट्समैन फॉलसी (No true Scotsman Fallacy)
- धर्म के लिए हथियार न उठाए, वो सच्चा मुसलमान नहीं.
- जिसे पाकिस्तान से नफरत नही, देशभक्त या हिन्दू नही.
- सच्चे राष्ट्रभक्त हो तो पढ़ते ही शेयर करो.
याने तर्क देने वाला एक कंडीशन रख देता है, जो अगर आप पूरी न करें, तो वह आपकी हिन्दू, मुसलमान, भारतीय या स्कॉटिश होने की मान्यता को रदद् कर देगा.
इसका दूसरा स्वरूप देखिए –
कल्पना कीजिए कि एक भारतीय खबर पढ़ रहा है –
‘पाकिस्तान में एक यौन-कुंठित व्यक्ति ने लड़कियों पर हमला किया.’
वो लेख देखकर चौंकता है और कहता है कि –
‘कोई हिंदुस्तानी कभी ऐसा नहीं करेगा !’
लेकिन अगले दिन वो पढ़ता है –
‘दिल्ली में एक यौन-कुंठित व्यक्ति ने लड़कियों पर हमला किया !’
अब वो इस बात को तो मानेगा नहीं कि कल जो उसने कहा था, वो गलत था. इसलिए इस बार वो कहता है –
‘कोई ‘सच्चा’ हिंदुस्तानी ऐसा नहीं करेगा !’
याने सच्चा हिन्दू, मुसलमान, इंडियन या स्कॉटिश होने की परिभाषा, उसके सर्टिफिकेट पाने के शर्ते रोज बदल रही हैं. उसके पास यह पावर आ गयी है कि वह शर्ते लादेगा. आपको मानना पड़ेगा, वरना हिंदुत्व खत्म, इस्लाम नष्ट. आप गद्दार हो जाओगे. तो यह पावर कहां से आई ?
इसलिए कि आप उससे बात कर रहे हो, आप जवाब दे रहे हो. खुद को हिन्दू, इस्लामी, भारतीय या स्कॉटिश साबित करने में लगें हो.
वो मानेगा ही क्यों ? वो तो सहारा ही फैलेसी का ले रहा है. वो तय करके आया है कि आपको झूठ से घेरेगा. उसका एक ही इलाज है – गाली देकर भगाइये.
2. एड होमिनेम फैलेसी (Ad hominen fallacy)
- पुरुष होकर महिला हितों की बात कर रहे हो, तुम नारीवादी नहीं ‘फर्ज़ी नारीवादी’ हो’
- जो लोग ए.सी. रूम में बैठकर पॉलिसी बनाते हैं वो मज़दूरों के लिए कुछ अच्छा करेंगे, ये सोचना भी ग़लत है !
एड होमिनेम याने याने मूल विषय छोड़कर व्यक्ति विशेष पर चले जाना और उस आदमी को डिस्क्रेडिट करना.
अब यदि कोई हिमाचली, ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता व्यक्त करे, तो आप कहें कि ‘उसे क्या मलतब है ? वह तो ठंडे प्रदेश में है ? तू पक्का खान्ग्रेसी है, चमचा है, वामपंथी है !’
एड होमोनिम एक लैटिन शब्द है. इसमें ‘होमो’ का अर्थ व्यक्ति है. यानी एड होमोनिम का अर्थ बहुत हद तक – ‘व्यक्तिगत’ होता है. तर्क को काटने की जगह, तर्क देने वाले को काटना-एड होमोनिम है.
इस फैलेसी की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि हमको दिए गए तर्कों से फर्क ही नहीं पड़ता. वह तथ्य मानो ग्रेविटी की तरह सर्वमान्य क्यों न हो, आपका विपक्षी इंकार कर देगा, क्यूंकि उनको कहने वाला आदमी ही ग़लत है !
तो क्या करें ? जुतिया के भगाइये, सिंपल.
3. स्ट्रॉमैन फॉलसी
स्ट्रॉमैन (बिजूका) याने घास का आदमी, जो चिड़िया भगाने को खेतों में खड़ा किया जाता है. आप एक चीज़ को लेकर बहस कर रहे हैं और दूसरा बंदा एक पुतला खड़ा कर, बहस का रुख बड़ी सफाई से दूसरी तरफ मोड़ देता/ती है.
जैसे मैं कहूं –
‘मुजफ्फरनगर में दंगा अच्छी बात नहीं थी.’
इस पर जवाब –
‘जब मोपला हुआ, तब तुम कहां थे ? अरे 1984 पर क्यों चुप हो…?’
बहस 1984 ओर जा चुकी है, मुजफ्फरनगर छूट गया !
एक और उदाहरण देखिए –
एक –
मुझे लगता है कि टी.वी. के ऊपर भी सेंसरशिप होनी चाहिए, बच्चों पर ग़लत असर पड़ रहा है बिग बॉस का.
दूसरा –
तुम जैसे लोग ही ‘अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता’ के लिए खतरा हैं !
अब जो बात ‘बिग बॉस’ की सेंसरशिप पर होनी चाहिए थी, वो ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ पर हो गयी. आप ऑफेंस में थे, अब डिफेंस में आ गए !
इलाज ??? अरे, जुतिया के भगाइये. सिंपल.
4. फाल्स डिलेमा या ब्लैक एंड व्हाइट फैलेसी
- तुमको मोदी पसंद नहीं, पाकिस्तान चले जाओ.
- जो भ्रष्ट है, उसे मोदी से कष्ट है.
ब्लैक एंड वाइट फैलेसी के शिकार – कुतर्की को लगता है कि दो ही विकल्प हैं ! जबकि ऐसा नहीं होता.
मोदीभक्त न होने का मतलब देशद्रोही होना नहीं होता लेकिन ऊपर के उदाहरण में ऐसा लगता है कि दुनिया में दो ही लोग है – पहला जो ईमानदार हैं, मोदी को पसंद करते हैं, दूसरे वे जो देशद्रोही हैं, करप्ट हैं.
अब यदि हम पापा से कहें कि – ‘मुझे बी.टेक. नहीं करना’ और पापा कहें कि – ‘तो क्या बेरोजगार रहेगा ?’ तो पापा की बातें फैलेसी डिलेमा का शिकार हैं, क्यूंकि बी.टेक. करने का मतलब शायद रोज़गार मिल जाना होता भी हो, तो भी बी.टेक. नहीं करने का मतलब बेरोज़गारी तो कत्तई नहीं.
कोई भी जाने-अनजाने इसका प्रयोग करता है और वो ये मानता है कि दुनिया में दो ही विकल्प हैं. काला या सफेद, तो उसे रेनबो का नहीं पता !
इलाज ? जुतिया के भगाइये. (अगर वो बाप नहीं है तो)
5. ऑथरटेटिव फैलेसी
- जिसके होठ पर तिल होता है, वह स्त्री चरित्रहीन होती है. (चाणक्य)
- नेहरू भगतसिंह से मिलने तक नही गए – (मोदी जी)
- नरेंद्र मोदी इज लास्ट बेस्ट होप ऑफ द अर्थ-(न्यूयार्क टाइम्स)
किसी उच्च अधिकार प्राप्त, सम्मानित के मुख से निकला झूठ, या उसके नाम से फैलाया गया झूठ.
आप अक्सर उल्टे सीधे कोट किसी इज्जतदार आदमी के नाम से, उसके फोटो की व्हाट्सप स्लाइड में आते हैं. आपको उन सब बातों में क्यूं विश्वास हो जाता है ? क्यूंकि ये किसी ‘विशेष व्यक्ति’ ने कहा है, जिस पर आपकी श्रद्धा है ! लेकिन क्या विशेष व्यक्ति के कह देने से वो बात सत्य हो जाएगी ?
इज्ज़तदार व्यक्ति में और विशेषज्ञ व्यक्ति में अंतर होता है. आप किसी की इज्ज़त करते हैं या पूरा समाज किसी की इज्ज़त करता है, इसका मतलब ये नहीं कि उसकी सारी बातें भी सही हों, किसी तर्क में यूज़ की जाएं !
राम के नाम पर फैलाई जा रही नफरत इसी का उदारहण है. गीता के श्लोक से लोगों को हिंसा के लिए प्रेरित करना भी यही fallacy है.
इलाज वही है – जुतिया कर भगाइये. ये कोढ़ हैं, पातकी हैं, इंफेक्शन हैं. न भगाया, तो इसमें डूब जाएंगे. अब तक अगर डूब न चुके हो तो !
वैसे भी श्रीकृष्ण ने कहा है –
सुख दुःखे समे कृत्वा, लाभालाभौ जयाजयौ
ततो युद्धाय युज्यस्व, नैवं पापमवाप्स्यस
- मनीष सिंह
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