भारत की न्यायपालिका पहले भी भ्रष्ट और दलाल था, जिसके बारे में देश का बच्चा-बच्चा भी जानता था. दूसरे शब्दों में कहा जाये तो भारतीय न्यायपालिका सामंतवाद का ऐसा निकृष्ट गढ़ है, जिसके खिलाफ कोई सवाल नहीं उठा सकता, तब भी सर्वोच्च न्यायालय पर लोगों का आस्था था. लेकिन देश में जब से राष्ट्रवादी पार्टी की सरकार आई, सुप्रीम कोर्ट भी नंगा खड़ा हो गया.
अब सुप्रीम कोर्ट अय्याश, रंगरेलियां मनाने और हंसी ठठ्ठा कर अड्डा बन गया है. यहां अब लोकहित की बातें केवल मजाक करने के लिए होती है, असली काम तो औद्योगिक घरानों, गुंडों, बलात्कारियों, अपहरणकर्ताओं, हत्यारों को जनता के आक्रोश से बचाने का कवायद करने का अड्डा बन गया है. विगत दिनों जिसतरह लखीमपुर खीरी के हत्यारों को बचाने का जुगत किया गया और ‘गोली मारो सालों को’ को क्लीनचिट दी गई, वह सुप्रीम कोर्ट को नंगा करने के लिए पर्याप्त है.
कल सुप्रीम कोर्ट में फिजिकल हियरिंग था, इसमें घटी एक घटना ने सुप्रीम कोर्ट का घिनौना चेहरा और ज्यादा विदीर्ण होकर निकला है. एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश एक वकील ने कहा – मेरी अल्पवयस्क बेटी की अपहरण व गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई.
चीफ जस्टिस बोला – हाईकोर्ट जाओ.
वकील – मैं मजदूर हूं, सिस्टम का मारा हूं, उत्तर प्रदेश में कानून का शासन नहीं है.
चीफ जस्टिस बोला – सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आते हो ? इस कोर्ट में ऐसी याचिकाओं की बाढ क्यों लाते हो ?
वकील – मैं पीडिता का पिता हूं, यह खास स्थिति है.
चीफ जस्टिस बोला – आप यह बात हाईकोर्ट में कह सकते हो, सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आये ?
वकील – मैं बुलंदशहर से हूं. हाईकोर्ट बहुत दूर है.
चीफ जस्टिस बोला – हाईकोर्ट जाओ. हम ऐसी हर याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकते.
(Live Law की रिपोर्ट के आधार पर)
जी हां, चीफ जस्टिस साहब, आप ऐसी याचिकाओं को सुनने लगे तो आपको न्याय और जनतंत्र पर इतने सुंदर-सुंदर भाषण तैयार करने का वक्त कहां से मिलेगा ? फिर आपने अर्णब गोस्वामी से यति नरसिंहानंद जैसों का भी तो ख्याल रखना है, कहीं उनके साथ एक सेकंड के लिए भी ‘अन्याय’ न हो जाये !
फिर आपको वो वाले मुकदमे सुनने को भी तो प्राथमिकता देनी है कि ‘निंबूज’ नामक पेय लेमोनेड होता है या फ्रूट जूस, देर होने पर उसे बनाने वाले पूंजीपति को एक पैसा भी फालतू टैक्स देना पडा तो पृथ्वी का ही नहीं, स्वर्ग तक का शासन भी हिल जायेगा.
सुप्रीम कोर्ट केवल ऐसे ही लुच्चे, लफंगों, बलात्कारियों के लिए आरक्षित है. वहां आम जनों के किसी भी पीड़ा का केवल मनोरंजन का साधन है. ऐसे में देशवासियों की उम्मीद केवल जनता की जन-अदालत से हैं.
यह जन-अदालत जिसका निगरानी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी – माओवादी करता है. केवल माओवादी द्वारा निर्दिष्ट यह जन अदालत ही जनताको वास्तविक न्याय दे सकती है और दोषियों को दंडित कर सकता है. यह सुप्रीम कोर्ट और उसकी यह न्यायपालिका केवल अपराधियों और हत्यारों को बचाने के लिए ही है और पीड़ितों को दंडित करने के लिए.
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