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उदारीकरण की नीतियों के कारण श्रीलंका बदहाल

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उदारीकरण की नीतियों के कारण श्रीलंका बदहाल
उदारीकरण की नीतियों के कारण श्रीलंका बदहाल

श्रीलंका के राजनीतिक और आर्थिक हालात और ज्यादा बिगड़ते जा रहे हैं. लोगों को न खाने को अनाज मिल रहा है और न ही पेट्रोल पंप पर ईंधन मिल पा रहा है. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के पूरे मंत्रिमंडल ने इस्तीफा सौंप दिया है और वहां सरकार में नए चेहरों को लाने की कोशिश की जा रही है. इस बीच एक अहम घटनाक्रम में पीएम महिंदा राजपक्षे के परिवार के कई सदस्यों ने देश छोड़ दिया है.

श्रीलंका के प्रमुख अखबार डेली मिरर की एक रिपोर्ट के अनुसार महिंदा राजपक्षे सरकार में मंत्री रहे उनके बेटे नमल राजपक्षे की पत्नी लमिनी राजपक्षे श्रीलंका छोड़ दिया है. इसके साथ ही पीएम महिंदा राजपक्षे के समधी यानी के लमिनी राजपक्षे भी श्रीलंका छोड़कर दूसरे देश चले गए हैं. ये लोग किस देश में गए हैं अभी इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन सरकार के खिलाफ बढ़ते विरोध प्रदर्शनों और लोगों के गुस्से के बीच ये सभी देश छोड़कर चले गए हैं.

लोगों के विरोध से निपटने के लिए सरकार ने सूचनाओं पर नियंत्रण करते हुए सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया है, जबकि मुख्य धारा की मीडिया भारत की ही तरह दलाली पर उतरी हुई है. लेकिन इससे बिगड़ती अर्थव्यवस्था को कोई सहारा नहीं मिल सकता सिवाय फजीहत और जनाक्रोश के. महंगाई और अव्यवस्था के खिलाफ लोगों का गुस्सा लगातार बढ़ रहा है. गुरुवार रात को प्रदर्शन कर रही भीड़ राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गई थी. पुलिस के साथ झड़प में कई लोग घायल हुए थे. बहरहाल श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इमरजेंसी लागू कर दी है.

‘नागरिक’ पत्रिका श्रीलंका के इस भयावह आर्थिक संकट पर टिप्पणी करते हुए लिखता है कि श्रीलंका में पिछले कई महीनों से जारी आर्थिक संकट और गहरा गया है. श्रीलंका में खाने-पीने की चीजों पर महंगाई बेतहाशा बढ़ गयी है. सब्जी, दूध, दवाईयां लोगों की पहुंच से बाहर हो गयी हैं. दंगे की आशंका के कारण पैट्रोल पम्पों पर सेना तैनात कर दी गयी है. यहां तक कि लोग श्रीलंका छोड़कर अपने पड़ोसी देश भारत आने लगे हैं. अगर कुछ और समय तक यही स्थिति रही तो श्रीलंका से लोगों का पलायन शुरू हो सकता है.

श्रीलंका का संकट मुख्यतया इस समय डॉलर के रिजर्व भण्डार के लगभग खत्म हो जाने से जुड़ा है. दिसम्बर 2019 में जहां उसका रिजर्व भण्डार 7.3 अरब डालर था, वहीं फरवरी 2022 तक उसके पास मात्र 2.3 अरब डालर का भण्डार रह गया है और उसे इस साल अभी 4 अरब डालर का कर्ज और चुकाना है.

अभी उसके पास जितना रिजर्व भण्डार है उससे बाकी जरूरत की चीजों मसलन दूध, दवाईयां सब्जी आदि को छोड़कर केवल एक महीने का ईंधन और भोजन ही खरीदा जा सकता है. आवश्यक चीजों के दाम इतने बढ़ गये हैं कि लोग उन्हें खरीद ही नहीं पा रहे हैं. ऐसे में सौ-सौ ग्राम के दूध-सब्जी के पैकेट तैयार किये जा रहे हैं ताकि लोग उन्हें खरीद सकें. महंगाई की दर 17 प्रतिशत तक पहुंच गयी है जबकि खाने-पीने की चीजों में यह 25 प्रतिशत तक बढ़ गयी है.

कागज आयात न करने की स्थिति में दो अखबारों ने अपना प्रकाशन बंद कर दिया है. पेपर न छपने की वजह लाखों बच्चों की परीक्षाओं को स्थगित कर दिया गया है. बिजली में भारी कटौती की जा रही है. दिन में मात्र 4-5 घंटे ही बिजली दी जा रही है. लोग अंधेरे में रहने को विवश हैं क्योंकि अंधेरे में जलाने के लिए मोमबत्तियां तक नहीं हैं. पैट्रोल पंप पर लाइन इतनी लम्बी है कि दो लोगों की मौत हो गयी है. वहीं एक झगड़े में एक व्यक्ति की मौत हो गयी.

श्रीलंका की वर्तमान परिस्थितियों के लिए शासक वर्ग के कुछ फैसले जिम्मेदार रहे हैं. जब गोटबाया राष्ट्रपति बने तो उन्होंने कुछ चीजों के आयात को प्रतिबंधित कर दिया था ताकि रिजर्व भण्डार को खाली होने से रोका जा सके. इन प्रतिबंधित आयातों में खाद का भी आयात बंद कर दिया गया था जिसकी वजह आर्गेनिक तरीके से खेती में उत्पादन को बढ़ावा देना था लेकिन इसकी वजह से खेती में उत्पादन काफी घट गया और बाहर से अनाज, चावल आदि आयात करना पड़ा.

इसके अलावा सरकार ने घरेलू उपभोग बढ़ाकर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए टैक्स की दर काफी कम कर दी, जिससे सरकार का आय कर के रूप में राजस्व घट गया. 35 प्रतिशत लोग टैक्स देने की श्रेणी से बाहर हो गये. इसका फायदा श्रीलंका के मेहनतकश लोगों को नहीं बल्कि खाते-पीते परिवारों को मिला.

इसके साथ ही कोरोना काल में भी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था नीचे गिरती गयी. श्रीलंका में जीडीपी का 12 प्रतिशत पर्यटन से आता था. कोरोना में इससे मिलने वाली कमाई बंद हो गयी. इसके अलावा आय के अन्य साधन कपड़ा और चाय का निर्यात भी ठप्प हो गया. कोरोना काल में बाहर काम कर रहे श्रीलंकाई नागरिक वापस घरों को लौटने लगे. इसके साथ ही उनको जो डॉलर के रूप में वेतन मिलता था, वह भी डॉलर के रिजर्व भण्डार में से कम हो गया.

वर्तमान में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भी श्रीलंका में संकट पैदा हो गया है, खासकर पैट्रोल और गैस के क्षेत्र में. श्रीलंका रूस से पैट्रोल और गैस का आयात करता है और अनाज, रिफाइण्ड आदि का आयात यूक्रेन से. चाय व कॉफी का निर्यात ज्यादतार यूक्रेन को होता था. रूस व यूक्रेन के युद्ध के कारण जहां श्रीलंका को अपना आयात महंगा पड़ रहा है वहीं अपना निर्यात रोकना पड़ रहा है. यह स्थिति भी श्रीलंका की वर्तमान परिस्थिति में आग में घी का काम कर रही है.

कुल मिलाकर श्रीलंका के शासक वर्ग के सामने विकट स्थिति पैदा हो गयी है. श्रीलंका के पास भारत और चीन के साथ आईएमएफ के सामने हाथ फैलाने की मजबूरी बन गयी ताकि वह अपनी अर्थव्यवस्था को बचा सके. श्रीलंका के विदेश मंत्री अप्रैल के प्रथम सप्ताह में अमेरिका जा सकते हैं. भारत और चीन जहां अपने विस्तारवादी मंसूबों के साथ श्रीलंका के शासक वर्ग को अपने प्रभाव में लेना चाहते हैं, वहीं आईएमएफ भी अर्थव्यवस्था की रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर श्रीलंका पर अपनी नीतियां थोपने का काम करेगा.

देखने में ऐसा लग सकता है कि श्रीलंका में अभी हाल में ही यह संकट पैदा हुआ है लेकिन ऐसा नहीं है. 1977 से श्रीलंका में उदारीकरण की नीतियां जारी है और उन्होंने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को वहां पहुंचा दिया, जहां एक झटके में उसकी अर्थव्यवस्था ताश के पत्ते की तरह ढह गयी. जिन भी देशों में उदारीकरण की नीतियां लागू हुई हैं उन्हें देर-सबेर ऐसे ही हश्र का सामना करना पड़ा है.

उदारीकरण के अंधी गली में जा घुसे भारत की हालत भी देर सबेर श्रीलंका के जैसी ही होने वाली है. यह अनायास नहीं है कि अब भारत के मुख्य अखबारों मे भारत छोड़कर विदेश जाकर बसने के विज्ञापन छपने लगे हैं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने इसकी शुरुआत भी कर दी है.

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