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स्वास्थ्य सेवाओं में बिहार की ‘उपलब्धियां’

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रविश कुमार

बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट आई है. इस रिपोर्ट में बिहार के पांच ज़िलों के ज़िला अस्पतालों का अध्ययन किया गया है कि वहां 2014-15 से 2019-20 के बीच किस तरह के बदलाव आए हैं. इन अस्पतालों में जाने और ख़राब इलाज के कारण दर-दर भटकने वाली जनता को तो पता ही होगा. जब पांच साल में भी कुछ न बदले तब फिर ऐसी सूचना का क्या मतलब रह जाता है ?

CAG ने बिहारशरीफ़, जहानाबाद, हाजीपुर, मधेपुरा और पटना के ज़िला अस्पतालों के बारे में लिखा है कि केवल जहानाबाद में आईसीयू है लेकिन वहां उपकरण नहीं है. नर्स, पैरामेडिक्स स्टाफ नहीं है. दवा भी नहीं है. क्या इसे ICU कहा भी जाएगा ? पांचों ज़िला अस्पतालों में कार्डिएक केयर यूनिट नहीं थी. स्ट्रोक और कैंसर के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं थी. मतलब दिल का दौरा पड़ने पर किसी ने ज़िला अस्पातल का रुख़ किया तो मौत निश्चित है.

पांच ज़िला अस्पताल में आपातस्थिति में आपरेशन के लिए आपरेशन थियेटर तक नहीं है. यही नहीं जहां आपरेशन थियेटर मिली है वहां पर दवा भी नहीं है. अब आप सोचिए, ऐसी जगह पर स्वास्थ्य बीमा का कार्ड लेकर जाएंगे भी तो क्या इलाज होगा ? लेकिन मेरी मानिए तो इसे लेकर परेशान न हों, धर्म या जाति का गौरव बढ़ाने में लगे रहिए. उस काम में कम से कम मानसिक शांति की तो गारंटी है ही.

बिहार के कई ज़िला अस्पतालों में दस साल से बेड की संख्या नहीं बढ़ाई गई है. जो स्वीकृत संख्या है, उससे भी काफ़ी कम बेड उपलब्ध हैं. पंजीकरण काउंटर पर मरीज़ों की संख्या में 13 से 208 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. यही नहीं स्वीकृत पदों में से केवल 24 से 32 प्रतिशत बेड ही ज़िला अस्पतालों में मौजूद हैं. 59 प्रतिशत रोगियों ने अपने पैसे से दवा ख़रीदी. ज़ाहिर है नि:शुल्क दवा की योजना काग़ज़ पर ही सभी के लिए है.

पटना के अलावा नौ ज़िला अस्पतालों में ब्लड बैंक तक नहीं था. चार अस्पतालों के ब्लड बैंक में कहीं भी हेपिटाइटिस-ए का परीक्षण नहीं किया गया था. मतलब अगर यहां का ख़ून चढ़ गया और उस रक्त में हेपिटाइटिस-ए होगा तो मरीज़ का क्या हाल होगा, आप समझ सकते हैं. हाजीपुर के ज़िला अस्पताल में वेंटिलेटर, ईसीजी मशीन, कार्डिएक मॉनिटर काम नहीं करते हैं.

कई ज़िला अस्पतालों में टीटीई का इंजेक्शन था लेकिन इंजेक्शन होते हुए भी गर्भवती महिलाओं को नहीं दिया गया. लेकिन आप इन सब को नज़रअंदाज़ करते हुए बिहार दिवस के मौक़े पर ‘मैं बिहार हूं’ टाइप की कविता लिखते रहिए, ताकि आपकी भावनाएं गर्व कर सकें. अस्पताल और डॉक्टर को लेकर परेशान ही क्यों होना. जो आपका स्तर है, उसे किसी भी हाल में ऊपर नहीं आने देना है.

CAG की रिपोर्ट के अनुसार अस्पतालों में दवाओं और उपकरणों की सप्लाई के लिए बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर नाम की एक संस्था बनाई गई है. इसके पास 10 हज़ार करोड़ से अधिक का बजट है फिर भी खर्च केवल 3100 करोड़ हुआ है. पांच साल के दौरान BMSI के द्वारा 1000 से अधिक परियोजनाएं शुरू की हैं लेकिन 187 ही पूरी हुई हैं. 387 योजनाएं तो शुरू भी नहीं हो सकी हैं. 2014-20 तक डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिक्स स्टाफ की लगातार कमी रही लेकिन इन पदों को भरने के लिए कुल रिक्तियों को कभी प्रकाशित नहीं किया गया.

बीस साल से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं. बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था का यह रिकार्ड है. इलाज कराने के नाम पर घर और ज़मीन बेच देने, क़र्ज़ लेने में जो सुख मिलता है उसका कोई जवाब नहीं. कम से कम संतोष होता है कि इलाज के लिए जान लगा दिए, खूब सेवा किए। स्वास्थ्य को राजनीतिक सवाल बना देंगे तो फिर बिहार दिवस पर आप बिहार को लेकर गर्व ठेलते हुए कविता कैसे लिखेंगे – ‘मैं बिहार हूं, फ़लां हूं, ढिमकाना हूं, है कि नहीं ?

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