20 लाख ईवीएम का घपला करने और ‘बुलडोजर बाबा की जय’ का उदघोष करते हुए उत्तर प्रदेश की सत्ता पर बुलडोजर ने कब्जा जमा लिया है. अब यह बुलडोजर अपना कारनामा दिखा रहा है, जिसकी पहली झलक ही में एक गरीब दुकानदार का जूस मशीन बुलडोजर से उठा लिया गया तो वहीं एक गरीब परिवार का घर बुलडोजर चलाकर ढ़ाह दिया गया है. अब एक एक कर यह बुलडोजर गरीबों, पीड़ितों, कमजोरों पर चलाया जा रहा है ताकि गुंडें, मवालियों, हत्यारों और बलात्कारियों का राज निर्विरोध कायम रह सके.
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा की ‘जीत’ ने भाजपा को और ज्यादा उत्साहित कर दिया है. अब वह 2024 के लोकसभा चुनाव में खुद को निःकंटक मान लिया है. जैसा कि विगत 8 सालों में यह साबित हो चुका है भाजपा अपराधियों और बलात्कारियों का एक संगठित समूह है, इसलिए वह तमाम लोग जो अपराधियों और बलात्कारियों के विराट ध में हैं या इस समूहों के साथ नहीं हैं, अपराधी साबित कर दिये जा रहे हैं. पीड़ित या पीड़िता ही दोषी ठहराये जा रहे हैं और दोषी पुरस्कृत किया जा रहा है.
ऐसी ही एक घटना जयपुर में घटी है, जिसके बारे में डॉ. रमेश चंद्र पाराशर लिखते हैं कि कस्बे के छुटभैये उद्दण्ड नेताओं, बेलगाम पत्रकारों और नकारा पुलिस की जुगलबंदी किसी मासूम की किस तरह जान ले लेती है, ये विगत 29 मार्च को डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या से साबित हुआ. जयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर लालसोट (जिला दौसा, राजस्थान) की युवा चिकित्सक, गोल्ड मेडलिस्ट डॉ अर्चना शर्मा, कभी गांधीनगर मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर भी रह चुकीं थीं. उनके पति डॉ सुमित उपाध्याय जो एक साइकियाट्रिस्ट हैं, के कथनानुसार, उनकी पत्नी ने एक गर्भवती महिला का सिजेरियन ऑपरेशन किया. (यह महिला पहले भी इनके अस्पताल में सिजेरियन ऑपरेशन से जुड़वाँ बच्चे पैदा कर चुकी थी.)
गर्भवती महिला एक कॉम्प्लिकेटेड केस था, जो लालसोट से दौसा, फिर वहां से जयपुर रेफ़र हुआ था. अंततः इनके लालसोट में आकर भर्ती हुआ. ऑपरेशन के बाद दुर्भाग्यवश पीपीएच (Post partum hemorrhage) याने ब्लीडिंग शुरू हो गई. लाख प्रयासों के बाद भी यह दंपत्ति उस ब्लीडिंग को रोक नहीं सके, जो अंततः मरीज की मौत का कारण बनी. PPH एक जटिल कॉम्प्लिकेशन है. कई बार इसमें जान नहीं बचाई जा सकती. कोई भी चिकित्सक जानबूझकर अपने मरीज को मौत के मुंह में नहीं ढकेलता है.
मरीज की मौत से क्षुब्ध मगर चिकित्सक दंपत्ति के प्रयासों से संतुष्ट परिजनों को स्थानीय भाजपाई नेताओं, पत्रकारों ने एक बड़ी रकम मुआवजे में दिलाने का लालच देकर लाश का अंतिम संस्कार नहीं करने दिया. डॉ. सुमित के कथनानुसार, इन्हीं भाजपा नेताओं ने लाश को घर से उठवाकर, अस्पताल के सामने रखवा दिया और धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. फिर इन्हीं सब लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाकर डॉक्टर दंपत्ति के खिलाफ IPC की धारा 302 का मुकदमा दर्ज करा दिया.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी चिकित्सक के विरुद्ध, पुलिस द्वारा, किसी भी प्रकार का मुकदमा, गिरफ्तारी, या वारंट तब तक जारी नहीं किया जा सकता जब तक मेडिकल काउंसिल या डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी अपनी प्राइमाफेसी जांच में दोषी होने की रिपोर्ट न दे दे. यह तथ्य जानते हुए भी स्थानीय DSP, SHO ने सीधे IPC 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.
गिरफ्तारी और बदनामी के डर से डॉ. अर्चना शर्मा बेहद दबाव और डिप्रेशन में आ गयीँ. इसी के चलते उन्होंने विगत मंगलवार 29 मार्च को आत्महत्या कर ली. उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा, जिसमें उन्होंने खुद को निर्दोष बताया. ये बेहद दुःखद है. हर जिले में आपको ऐसे छुटभैये नेता, पत्रकारों व पुलिस का अघोषित गैंग मिल जायेगा. ये गैंग छोटे अधिकारियों, व्यापारियों, डॉक्टरों और उनके नर्सिंग होम पर घात लगाए रहते हैं.
ज्योंही किसी की कोई कमजोर नस इनकी पकड़ में आ जाती है, ये सक्रिय हो जाते हैं. धरना, प्रदर्शन, अखबार बाजी चरम पर करेंगे. मक़सद रहेगा कि बन्दे को इतना ‘नर्वस’ कर दो कि इनके चरणों में शरणागत हो जाये. फिर शुरू होती है इनकी ब्लैकमेलिंग. फिर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि ये धन दोहन पर ही रुक जायेगी या तन दोहन तक पहुंचेगी? इनकी तिकड़मों में पुलिस प्रशासन के छुटभैये भी कभी जाने अनजाने शामिल हो जाते हैं.
स्थानीय इस गैंग ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके धत् करम् का अंजाम डॉ अर्चना की आत्महत्या तक पहुंच जायेगा. बहरहाल मामला राजस्थान के मुख्यमंत्री से लेकर, पूरे देश के चिकित्सकों में फैल गया है. देश और समाज पर नेताओं के वर्चस्व के कारण तथाकथित ये छुटभैये नेता उद्दंड और बेलगाम हो गए हैं. अपनी नेतागिरी की ‘हनक’ को आजमाने और चमकाने की नियत से कोई भी कारनामा करने से बाज नहीं आते. देश प्रदेश के आकाओं का संरक्षण प्राप्त होने से इनका मनोबल भी जरूरत से ज्यादा ‘हाई’ रहता है.
अब देखना है कि ये दुःखद ‘एपिसोड’- समाज, नेतागिरी, पुलिस, प्रशासन की व्यवस्था में कोई परिवर्तन लेकर आता है या ब्लैक मेलिंग के शातिर गैंगों को और दुस्साहसी बनाकर जाता है.
वहीं मेडिकल शिक्षा के नाम पर राजस्थान में भ्रष्टाचार की घटना का जिक्र पत्रकार रविश कुमार करते हुए लिखते हैं – राजस्थान में एक निजी यूनिवर्सिटी के लिए बिल पेश होती है और जब पता चलता है कि सब कुछ फ़र्ज़ी है तो विधेयक वापस लिया जाता है. इसके लिए रिपोर्ट बनाने वाले सभी सदस्यों के यहां आयकर विभाग को जाना चाहिए. विधेयक वापस होना सुधार का कदम हो सकता है लेकिन यह किस व्यक्ति की यूनिवर्सिटी है जो इस हद तक सरकार के भीतर दखल रखते हुए रिपोर्ट बनवा लेता है और विधेयक आ जाता है.
कुछ दिन पहले पटना गया था. वहां एक निजी कॉलेज से जुड़े व्यक्ति अपनी व्यथा सुनाने आए. उन्होंने बताया कि किसी विषय को पढ़ाने से पहले निरीक्षण कार्य होता है, इसके लिए बक़ायदा लाख डेढ़ लाख की फ़ीस जमा होती है. पहले यह फ़ीस बीस पचीस हज़ार थी. जब निरीक्षण करने वाला दल उनके कॉलेज पहुंचा तो सदस्य मंडल ने अलग से नगद पैसे लिए.
सदस्य मंडल में प्रोफ़ेसर टाइप के लोग होते हैं. आपसे परिचय तो धमक कर देंगे कि हम प्रोफ़ेसर हैं लेकिन किसे पता कि ये जनाब पढ़ाने की जगह घूस कमाने के प्रोफ़ेसर हैं ! इस तरह से जितने बच्चों की मंज़ूरी मिली है उससे कई गुना ज़्यादा इसके लिए मंज़ूरी की फ़ीस और रिश्वत देने में लग गया. और उनके अनुसार बिहार में यह आम है.
बात है कि यह सब इतना आम हो चुका है कि इस प्रक्रिया से जुड़े लोगों से बात कर डर लगने लगता है कि फिर तो बदला ही क्या ? हम लोग इतनी सावधानी से रहते हैं, गलती बचाने में ही जान निकली रहती है और इतनी बड़ी तादाद में लोग आराम से लेन देन कर रहे हैं. ये वो लोग हैं जो हर सरकार में पाला बदल कर सिस्टम का लाभ लेने आ जाते हैं. लाभ लेते रहते हैं.
बाक़ी मैं अब युवाओं से काफ़ी प्रभावित हूं कि वे शिक्षा जैसे विषय को महत्व नहीं देते हैं. उनका काम कोचिंग से चल जाता है. भारत के युवा अच्छे हैं. उन्हें जाति और धर्म के गौरव की सप्लाई होती रहे, मस्त रहेंगे.
जो भी इस निजी यूनिवर्सिटी से जुड़े लोग हैं अब उनके बारे में इतना ही जानने का मन है कि इनका जीवन किस ठाठ से गुजर रहा है ? कौन सी नई गाड़ी ख़रीदी है ? छुट्टी मनाने कहां गए हैं ? क्या इन्हें ये सब करते हुए संविधान से लेकर ईश्वर और समाज का भय नहीं होता ? फिर ये लोग धर्म का नाम लेकर कैसे मैदान में कूदे रहते हैं ? पूजा करते समय इन्हें डर नहीं लगता ? या ये भगवान को भी जनता समझ बैठे हैं ?
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