संसद के बजट सत्र में वर्तमान में चल रही टोल नाकों की व्यवस्था के संदर्भ में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कह रहे हैं कि ‘अब मैं एक जीपीएस सिस्टम लाना चाहता हूं. टोल ही नहीं रहेंगे. टोल नहीं रहने से मतलब टोल खत्म नहीं होगा. आपकी गाड़ी में जीपीएस सिस्टम लगा देंगे. गाड़ी में जीपीएस सिस्टम अनिवार्य भी कर दिया गया है. जीपीएस पर रिकॉर्ड होगा कि आपने कहां से एंट्री ली और कहां निकले और आपके बैंक अकाउंट से पैसा कट जाएगा. कोई आपको रोकेगा नहीं, कुछ नहीं.
यह दुनिया में एक नई व्यवस्था लागू की जा रही है. शायद जर्मनी और रूस में ऐसी व्यवस्था है, बाकि दुनिया के अन्य विकसित देशों में यह व्यवस्था है कि जहां से आप हाइवे पर प्रवेश करते हैं वहां ऊपर लगे सेंसर से आपकी गाड़ी के ऊपर लगे फास्टेग टाइप के क्यू आर कोड से आपके गाड़ी के हाइवे में प्रवेश को आइडेंटिफाई कर लिया जाता है और जब आप हाइवे से नीचे उतरते हैं वहां भी ऊपर लगे हुए गेट के सेंसर से फास्टेग क्यूआर कोड को स्कैन कर आपकी लिंक अकाउंट से रकम काट ली जाती है. यानी, वहां सरकार को हाइवे एंट्री पर जगह जगह पर गेट लगाने होते हैं.
लेकिन भारत में लागू की जा रही व्यवस्था में सारी जिम्मेदारी वाहन चलाने वाले पर ही थोपी जा रही है. उसे अनिवार्य है कि वह जीपीएस सिस्टम अपनी गाडी में लगवाए और एक एकाउंट को फास्टेग सिस्टम से लिंक रखे, चाहे आपका चार पहिया वाहन सालों तक शहर के बाहर हाइवे पर न जाए तो भी आपको अपने वाहन पर फास्ट टैग और जीपीएस लगाना जरूरी कर दिया गया है.
सरकार तो कह रही है कि टोल टैक्स कलेक्शन के नए सिस्टम के लिए सरकार की ओर से पुराने वाहनों में मुफ्त GPS लगवाया जाएगा. यानी सरकार आपकी कार / चार पहिया वाहन में GPS Tracker डिवाइस लगाएगी, जिसमें सिम लगी होगी. इसे पावर व्हीकल की बैटरी से मिलेगा. इसमें 4G,3G और 2G सभी सिम लग सकती हैं. यह ट्रैकर वीक नेटवर्क सिग्नल पर भी काम करता है.
यदि कोई वाहन चालक एक पॉइंट से हाईवे पर चढ़ने के बाद 35 किलोमीटर की यात्रा करके हाईवे छोड़ता है तो उससे केवल 35 किलोमीटर के लिए ही टोल टैक्स वसूला जाएगा. इसका सबसे बड़ा नुक़सान किसानों और आम स्थानीय नागरिकों को होगा जो 59 या उससे कम किलोमीटर के दायरे में रहते हैं और उनको अपने खेत रिश्तेदार या काम पर इसी दायरे में रोज आना जाना होता है.
अभी तक इनको किसी टोलप्लाजा से नहीं गुजरना होता था इसलिए इस अतिरिक्त वसूली से मुक्त थे लेकिन अब 60 से लेकर 1 किलोमीटर तक भी चलने वाले से इसकी वसूली की जाएगी. कोई भी व्यक्ति इससे अछूता नहीं रहेगा, यहां तक दो पहिए वाले भी नहीं. महंगे डीजल-पेट्रोल और गैस की मार पहले से झेल रहे मध्यम और गरीब वर्ग इस जबरिया वसूली से भीख मांगने या अपराध (चोरी, डकैती लूट) की दुनिया में जाने को मजबूर हो जाएगा.
सबसे बड़ी बात तो यह है कि चार पहिया वाहनों में जीपीएस लगाना हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है. जैसे मान लीजिए, आप सरकार के खिलाफ कोई आंदोलन कर रहे हैं और एक शाम को आपकी गाड़ी मांस बेचने वाले की दुकान पर रुकती है तो उन्हें बस गौरक्षकों को ईशारा ही करना है, बीच रोड पर आपकी लिंचिंग हो सकती है.
सिर्फ इतना ही नहीं आप कार में बैठे किससे क्या बात कर रहे हैं, यह भी सरकार सुन सकती है. तकनीक के द्वारा यह भी सम्भव है कि कंट्रोल रूम से आप जहां हैं, वहीं आपकी कार के इंजन को सेटेलाइट के जरिए बन्द कर दिया जाए और कार को लॉक कर दिया जाए, जब तक पुलिस नहीं आती आप अपनी कार में ही लॉक रहे.
यह तो बस झलकियां है इस तकनीक से और क्या क्या हो सकता है उसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. भले ही यह एक दो साल में न हो, पर यकीन मानिए यह जब होगा तब तक पूरा देश एक सर्विलांस स्टेट में बदल जाएगा और लोग बेवकूफों की तरह अपनी सुरक्षा के तर्क पर इसे स्वीकार भी कर लेंगे.
लाखों-लाख करोड़ डूब रहे हैं. बिजनेसमैन बैंकों को लूट रहे हैं. मीडिया यह बात आपको नहीं बताएगा क्योंकि आपके लुट जाने में ही आपकी कोई दिलचस्पी नहीं बची है. आपके लिए फिल्मी जहर लॉन्च किया गया है, जिसे मुफ्त में उपलब्ध कराने की योजना पर काम चल रहा है. आप धार्मिक जहर का आनंद लीजिए, खजाना लूटने वाले बेदर्दी से लूट रहे हैं.
पिछले पांच साल में बैंकों के 6 लाख करोड़ डूब गए. इंसोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 5 साल में 4946 कंपनियां दिवालिया हुई हैं, इसमें 457 कंपनियों के केस सॉल्व किए गए. इन 457 कंपनियों ने बैंकों से 8 लाख 30 हजार करोड़ कर्ज लिया था, इसमें 6 लाख करोड़ रुपये बैंकों के डूब गए.
हाल ही में एमटेक नाम की एक कंपनी ने सरकारी बैंकों को 25,000 करोड़ का चूना लगाया है. एमटेक ग्रुप ऑफ कंपनीज ने देश के बैंकों से 25,000 करोड़ का कर्ज लिया और यह कर्ज नहीं लौटाया. उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. एमटेक ऑटो पार्ट बनाने वाली दिल्ली-चंडीगढ़ बेस कंपनी है. यह सब सरकार और वित्तीय एजेंसियों की जानकारी में हुआ है. कांग्रेस पार्टी ने इसे घोटाला करार दिया है और सरकार पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की है.
पिछले महीने एक गुजराती कंपनी का ऐसा ही घोटाला सामने आया था. एबीजी शिपयार्ड नाम की कंपनी ने 27 बैंकों से 23 हजार करोड़ का कर्ज लिया और यह पैसा डूब गया. आरबीआई ने डर्टी डजन कंपनियों की एक लिस्ट जारी कि जिसमें 12 कंपनियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा गया कि इन कंपनियों पर बैंकों के 2.5 लाख करोड़ रुपये डूब गए. जून 2021 की कुछ रिपोर्ट इंटरनेट पर मौजूद हैं जिनमें कहा गया है कि ऐसे बिजनेसमैन और कंपनियों ने मिलकर सरकारी बैंकों को आठ लाख करोड़ का चूना लगाया.
क्रोनोलॉजी ये है कि आप एक कंपनी बनाइए. सरकारी बैंक से कर्ज लीजिए, फिर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दीजिए और सरकारी खजाने का पैसा आपके बाप का हो गया. सरकार पर्दे के पीछे से आपको कुछ नहीं होने देगी.
यह लूट किस तरह हो रहा है इसे एक उदाहरण से समझिए. दुबई की एक कंपनी चीन से करीब 3,30,000 डॉलर का कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामान ख़रीदती है. वह सामान दुबई की बजाय सीधे गौतम अडाणी की कंपनी को भारत में डिलीवर होता है. फिर दुबई की वही कंपनी भारत में अडाणी समूह को उसी सामान के लिए 1300% मुनाफ़े के साथ अपना 43,00,000 डॉलर का बिल भेजती है. अडाणी ग्रुप यह रक़म SBI से लिये हुए ऋण से चुका देता है. इसी तरह की कई डीलिंग दक्षिण कोरिया की कंपनी से भी होती हैं.
इसके अलावा इसी तरह का और भी बहुत सारा लेन-देन होता है. फिर अडाणी की यह कंपनी कागजों में भारी नुक़सान दिखाती है और क़र्ज़ वापस करने में अपनी असमर्थता जताती है. जांच के बाद पता चला कि इस तरह का धंधा करने वाली बहुत सारी ऑफ़शोर कंपनियां मॉरीशस के एक ट्रस्ट की हैं और उस ट्रस्ट का ट्रस्टी विनोद शांतिलाल अडाणी है यानी सेठजी की आंखों के तारे गौतम अडाणी का सगा बड़ा भाई !
दुबई की उस कंपनी का भी एकमात्र डायरेक्टर वही विनोद शांतिलाल अडाणी है जो पिछले 30 साल से NRI है. विनोद शांतिलाल साइप्रस का नागरिक है और दुबई में रहता है. विनोद शांतिलाल अडाणी का बेटा प्रणव अडाणी भारत में अडाणी समूह की कई कंपनियों के बोर्ड में है, जिनमें प्रमुख रूप से अडाणी एंटरप्राइजेज और अडाणी टोटल गैस शामिल हैं.
यह पहली बार नहीं है कि विनोद शांतिलाल अडाणी का नाम ‘टैक्स हैवन’ में पंजीकृत किसी कंपनी में आया है. उसका नाम पनामा पेपर्स में भी द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सामने आया था जिसे उसने अडाणी समूह की फ्लैगशिप कंपनी अडाणी एक्सपोर्ट्स के गठन के कुछ महीने बाद 4 जनवरी, 1994 को बहामास में स्थापित एक कंपनी के सम्बंध में 2016 में प्रकाशित किया था. कुछ खेल समझ में आया मितरों ?
ये सत्ताधारी और पूंजीपति वर्ग राजसत्ता और अपार धनशक्ति के बल पर देश की जनता को हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद या भारत-पाकिस्तान जैसे न जाने किन-किन मामलों में उलझा कर देश को इस तरह मिलजुलकर बिलों में 1300% तक का मुनाफा दिखाकर लूटने में व्यस्त हैं.
यह सब राष्ट्रवादियों की निगहबानी में हो रहा है, इसलिए वे मुंह खोलने से रहे. वे बोलेंगे भी तो नेहरू को जिम्मेदार बता देंगे. विपक्ष की सक्रियता अपर्याप्त साबित हो रही है. जनता को यह पता ही नहीं है कि उसके टैक्स का जो पैसा सरकारी खजानों में जमा है, वह लूटा जा रहा है. आप में से जो जागरूक लोग हैं, वे क्यों चुप हैं ? आप क्यों चुप हैं ? वह पैसा तो आपका है !
इन घोटालों को लेकर विपक्षी विरोध अपर्याप्त है. कांग्रेस राफेल से लेकर इन घोटालों तक, हर मामले को जिस तरह ट्विटर और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उठा रही है, उससे बेशर्म भाजपा सरकार पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. भाजपा सिर्फ चुनाव हारने से डरती है. जब तक यह मुद्दा सड़क पर नहीं आएगा, जब तक देश का बच्चा-बच्चा यह नहीं जानेगा कि कैसे देश के बैंकों को लूटा जा रहा है, तब तक भाजपा पर न कोई असर होगा, न इन घोटालों की जांच होगी, न जनता सरकार से कोई हिसाब मांगेगी.
अपनी क्षमता में हर व्यक्ति को यह बात पहुंचाइए कि 80 प्रतिशत को इस हालत में पहुंचा दिया गया है कि वह सरकारी राशन पर जिंदगी काट रही है. युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है. सरकार महंगाई बढ़ाकर जनता से वसूली कर रही है और वह पैसा कंपनियां लूट रही हैं. यह इसलिए नहीं हो रहा है कि सरकार मजबूर है और वह कुछ नहीं कर पा रही है बल्कि यह इसलिए हो रहा है क्योंकि या तो सरकार ऐसा चाहती है या फिर सरकार इसमें शामिल है. यह राजनीति और कॉरपोरेट के घिनौने गठजोड़ का नतीजा है. यह जनता को लूटकर नेताओं और उद्योगपतियों की जेब भरने का कार्यक्रम है. राष्ट्रवाद के पर्दा डालकर आपको लूटा जा रहा है.
आपको मोदी ने 15 लाख तो दिए नहीं बल्कि एक लाख करोड़ का कर्जदार जरूर बना दिया. आज की खबर है कि वित्त मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में बताया है कि दिसंबर तिमाही तक सरकार पर कुल कर्ज का बोझ बढ़कर 128.41 लाख करोड़ रुपये हो गया है. इस लिहाज से देश के हर नागरिक पर 98,776 रुपये का कर्ज लदा है. यह आंकड़ा भी दिसंबर 2021 तक का है. आज तो प्रति व्यक्ति एक लाख रुपए का कर्ज़ मोदी सरकार चढ़ा चुकी हैं.
सीधा गणित पकड़िए देश की जनसंख्या है लगभग 130 करोड़ और सरकार पर कर्ज है मोटा मोटा 130 लाख करोड. यानी हो गया न हर व्यक्ति पर 1 लाख रुपए का कर्ज़ ! यही थे अच्छे दिन, जिसे दिखाने का वादा आपसे हमसे किया गया था. मोदी कितने ही राज्यों के चुनाव क्यों न जीत जाए, चाहें वह 2024 भी जीत जाए लेकिन उससे यह हकीकत नही बदल जाएगी कि मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था का भट्ठा बिठा दिया है.
मै यह क्यों कह रहा हूं उसकी भी वजह है. आज 2022 में हम पर 128.41 लाख करोड़ रुपये कर्ज है. यह तो आप देख ही रहे हैं लेकिन आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि जब मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार जून 2014 में देश को मोदी जी के पास छोड़कर गई थी तब तक देश के ऊपर कुल कर्ज मात्र 54.90 लाख करोड़ रुपए था.
यानी आजादी के 67 सालों में यानी महज 55 लाख करोड का कर्ज और मोदी जी के मात्र 8 साल के राज में 73 लाख करोड़ का कर्ज़ ! जी हां यह सच है. यह लोग न्यू इंडिया बनाने की बात करते हैं, बताइये ! ऐसे बनाया जाएगा न्यू इंडिया ? देश को कर्ज में डुबोकर ?
मार्च 2019 के अंत में सरकार पर 84.68 लाख करोड़ का कर्ज था, और आज हम मार्च 2022 में खडे हैं. यानी 36 महीने में सरकार ने 42 लाख करोड़ रुपए का लोन ले लिया. यानी हर महीने एक लाख करोड़ से भी अधिक का लोन सरकार ले रही है. बेशक कोरोना काल इसमें शामिल हैं लेकिन आप यह भी देखिए कि इसी दौरान पैट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर सरकार ने कई लाख करोड़ कमाए हैं.
अब आप समझ पाएंगे कि क्यों मोदी सरकार सार्वजनिक संपत्तियों, सरकारी कंपनियों और देश में उपलब्ध संसाधनों को जल्द से जल्द बेच देने की जल्दी मचा रही है. दरअसल जिस व्यक्ति पर कर्ज़ गले तक आ जाता है तो उसकी सबसे पहली नजर पुरखों की जोड़ी हुई संपत्ति पर ही होती हैं !
- गिरीश मालवीय और कृष्ण कांत
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