Home लघुकथा कलियुग के धर्मराज की सदेह कुम्भीपाक यात्रा

कलियुग के धर्मराज की सदेह कुम्भीपाक यात्रा

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कलियुग के धर्मराज की सदेह कुम्भीपाक यात्रा
कलियुग के धर्मराज की सदेह कुम्भीपाक यात्रा

कलियुग के धर्मराज, 36 बरस तक राज कर-कर के ऊब गए थे. चहुं ओर विकास हो चुका था. पांडूराष्ट्र भी बन चुका था लेकिन जनता आज भी पेट्रोल-डीजल के दाम रोती थी, फिर भर भर के गालियां देती थी, और भर भर के वोट भी. कब तक झेलते, सो वानप्रस्थ का फैसला कर लिया.

नियत तिथि और दिन के साथ अपने भाइयों सहित, सपत्नीक हिमालय की ओर बढ़े. यह उनका पुराना इलाका था. 35 साल तक भिक्षाटन यही किया था. पर इस बार आगे जाना था, बहुतई आगे.

तो बढ़ते गए. वनस्पति समाप्त हो गयी, बर्फ आ गई. चोटियों की चढ़ान तीखी हो गयी थी. कदम डगमगाने लगे और पांचाली फिसल कर गिर गयी.

सभी रूककर देखने लगे, पर धर्मराज ने पलटकर नही देखा – ‘बोले उसे पाप का फल मिला है.’

पत्रकार ने पूछा – ‘कौन सा पाप ?’

धर्मराज बोले – ‘उसे सम्पूर्ण कैबिनेट को एक बराबर प्रेम करना था, पर ये पगली मुझे औरो से ज्यादा चाहती थी. यही अपराध था उसका…

आगे जज गिरा. धर्मराज ने पलटकर नही देखा. बोले – ‘उसे पाप का फल मिला है.’

‘कौन सा पाप ?’ – पत्रकार ने पूछा

धर्मराज बोले – ‘उसे कानून के आधार पर फैसले देने थे, वह आस्था के आधार पर देने लगा. यही पाप था उसका.

आगे केंचुए भाई फिसल गये. धर्मराज ने पलटकर नही देखा. बोले- ‘उसे पाप का फल मिला है.’

‘कौन सा पाप ?’ – पत्रकार ने पूछा

धर्मराज बोले- ‘उसे लोकतंत्र और संविधान के प्रति वफादारी निभानी थी, वह मेरा वफादारी करता रहा. बस, यही पाप था उसका.’

आगे आईटी सेलिया खाई में गिरा. पत्रकार ने इस बार धर्मराज से कुछ नही पूछा. कुछ देर बाद वह खुद भी गिर गया. धर्मराज ने मन ही मन कहा –  ‘एक नम्बर के झुट्ठे थे ससुरे !’

विमान आ चुका था. संबित की बोर्डिंग को लेकर थोड़ी बहस हुई. इसी बेचारे ने अब तक साथ निभाया था, कैसे छोड़ जाते ! लेकिन फिर विमान में स्पेस कम होने के कारण धर्मराज ने बोर्डिंग के लिए खुद का चयन किया और उड़ गए. स्वर्ग जाना तय था. 70 सालो में पहली बार कोई सदेह स्वर्ग जा रहा था.

विमान एयरपोर्ट पर उतरते ही धर्मराज ने आदत के अनुसार शून्य में हाथ हिलाना शुरू कर दिया कि तभी नर्क के पहलवानों ने उनमें बेड़ियां डाल दी.

एक लकड़ी में हाथ पैर बांधकर टांगा, और उठाकर ले गए एक भवन में. ‘कुम्भीपाक’ का बोर्ड लगा था. अंदर ले गए, वहां नाली की गैस का भट्ठा लगा था. ऊपर कड़ाही में तेल ख़ौल रहा था, जैसे किसी युवा ने पकौड़े तलने की तैयारी की हो. पहलवान उसमें फेकने को थे ही कि घबराहट में धर्मराज चिल्लाए –

– ‘अरे, मेरा कुसूर क्या है ??’

– ‘सृष्टि का सबसे विशालतम झूठ तुम्हीं ने बोला था न ??’ एक पहलवान भौहे ऊंची की – ‘कि अच्छे दिन आने वाले हैं..!!’

  • मनीष सिंह

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