कश्मीर में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद और भारत पोषित आतंकवाद कश्मीरी आवाम के खिलाफ क्रूर जंग छेड़े हुए हैं. तो वहीं कश्मीरी आवाम कश्मीरी राष्ट्रीयता की मांग को लेकर मुक्ति युद्ध चला रही है, जिसका नेतृत्व जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट कर रहा है, जिसके अध्यक्ष को यसीन मलिक को भारत सरकार ने तिहाड़ जेल में बंद कल रखा है.
कश्मीरी राष्ट्रीयता की मांग को लेकर मुक्ति युद्ध चला रही जनता का नरसंहार करने के लिए भारत सरकार ने लाखों की तादात में भारतीय सेना को हुला दिया है, जो हर दिन कश्मीरी जनता पर जुल्म ढ़ाह रही है, क्रूरतम तरीकों से उसकी हत्या कर रही है और उनकी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार तक को अंजाम देती है ताकि कश्मीरी मुक्ति योद्धाओं के मनोबल को तोड़ा जा सके.
इसी कड़ी में मुक्ति युद्ध चला रही कश्मीरी जनता का बड़े पैमाने पर नरसंहार करने के उद्देश्य से देश की सत्ता पर काबिज तत्कालीन भाजपा गठबंधन वाली सरकार वी. पी. सिंह के नेतृत्व में कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू कर राज्यपाल जगमोहन के नेतृत्व में कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगाया. इस तमाम प्रक्रिया का नेतृत्व करने के लिए तत्कालीन भाजपा की ओर से कश्मीर प्रभारी के तौर पर आज के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मा दिया गया था.
89 कश्मीरी पंडितों की हत्या के आड़ में 1635 कश्मीरी मुसलमानों की हत्या को छिपाकर आज जब कश्मीरी फाईल्स जैसी साम्प्रदायिक फिल्मों के माध्यम से देश में मुसलमानों के खिलाफ साम्प्रदायिक नफरत फैलाया जा लहा है तब इसी फिल्म के कलाकार अनुपम खेर ने 2013 ई. में जो ट्वीट किया था, उसे आज जानना चाहिए. कश्मीरी पंडितों के आड़ में नफरत का कारोबार करने अनुपम खेर अपने ट्वीट में लिखते हैं –
मैं देख रहा हूं कि कुछ लोग विस्थापन को लेकर कश्मीरी पंडितों के हाहाकार को धार्मिक रंग दे रहे हैं. ये धर्म के बारे में नहीं है. मानवीय पीड़ा के बारे में है, जिससे हिंदु और मुस्लिम दोनों गुज़रे.
न भूलिए. न माफ करिए. हमें कश्मीरी मुस्लिमों के साथ पंडित महिलाओं के बारे में नहीं भूलना चाहिए. दोनों कमोबेश एक समान दुःख से गुज़रे हैं.
समस्या कश्मीरी पंडितों और मुस्लिमों के साथ नहीं है. हम सालों तक शांति से एक-दूसरे के साथ रहे हैं. ये सब पॉलिटिशियंस का किया धरा है दोस्त.
कश्मीर के लिए मेरा दिल रोता है. राजनीति और आतंकवाद ने वहां के लोगों के लिए इस जन्नत को जहन्नुम बनाकर छोड़ दिया है. हिंदु और मुस्लिम दोनों के लिए.
अनुपम खेर का यह जवाब अगर साम्प्रदायिक ताकतों को समझ में न आये तो 1990 के ही वर्ष में दर्जनों कश्मीरी पंडित के हस्ताक्षर से जारी इस पत्र को पढ़ लेना चाहिए, जिसे श्रीनगर से प्रकाशित ‘अलसफा’ कार्यालय में उसके सम्पादक के नाम लिखा गया था. पत्र का मजमून अंग्रेजी में था, इसलिए हमने इसका हिन्दी अनुवाद अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है.
‘कश्मीर फाईल्स’ जैसे साम्प्रदायिक नफरत के पीछे वही लोग हैं, जो उस समय कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए ज़िम्मेदार थे. जो समझते हैं कि कश्मीर में तथाकथित आतंकवादी गतिविधियों के लिए सिर्फ़ वहां के मुस्लिम ज़िम्मेदार हैं, उनको कश्मीरियत का अर्थ मालूम ही नहीं है. यह कश्मीर की आज़ादी की लड़ाई है और भारत की भूमिका इसमें आक्रांता की है. इस चिट्ठी को कश्मीर को समझने के लिए ज़रूर पढ़ें.
यह पत्र कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की ही नहीं बल्कि कश्मीर की सम्पूर्ण समस्या पर एक बेहतरीन प्रस्तुति है. पाठकों को, जो कश्मीर समस्याओं को समझना चाहते हैं, इस पत्र को बार-बार पढ़ें और तमाम लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित करे.
संपादक महोदय, / दिनांक 22.09.1990
अलसफा, श्रीनगर
महाशय,
हम अधोहस्ताक्षरी अपने और अपनी बिरादरी की ओर से अपनी गहरी कृतज्ञता आपके अखबार के प्रति ज्ञापित करते हैं. हम पूरी तरह से आपकी विचार एवं संवेदनाओं से इत्तेफाक रखते हैं जैसा कि श्रीमान कौल के लेख में परिवेक्षित होता है.
इस बात पर कोई दो राय नहीं है कि कश्मीरी पंडितों को जगमोहन, हमारी ही बिरादरी के कुछ लीडरान और कुछ निहित स्वार्थों के द्वारा बलि का बकरा बना दिया गया है. समूचा नाटक भाजपा, आरएसएस और शिवसेना जैसे हिन्दू साम्प्रदायिक संगठनों के द्वारा राज्य सरकार और राज्य की प्रशासनिक तंत्रों के सहयोग से रचा गया है. इस नाटक के मुख्य चरित्र आडवाणी, वाजपेयी, मुफ्ती मोहम्मद सईद और जगमोहन थे. और राज्य प्रशासन को जोकर का रोल मिला था.
आज यह खुली सच्चाई है कि कश्मीर पर भारतीय कब्जे वाली जमीन पर भारतीय सेना ने हजारों-लाखों कश्मीरी मुसलमानों के नरसंहार की योजना बनाई थी. उनका निशाना विशेषकर 14 से 25 वर्ष के युवा थे, ताकि बांकि जनता को हमेशा के लिए गुलामी में सदा के लिए धकेल दिया जायें. इस षडयंत्र के चितेरे थे – आडवाणी, वाजपेयी, मुफ्ती और जगमोहन.
विश्वस्त सुत्रों के अनुसार कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाने की वृहद योजना बनाई गई ताकि भारी साम्प्रदायिक हिंसा हो और इस बहाने वहां की मुस्लिम आबादी का कानून-व्यवस्था स्थापित करने के नाम पर नरसंहार किया जाये. इसी कड़ी में विदेशी पत्रकारों को भी घाटी छोड़ने को कहा गया. स्थानीय प्रेस पर पाबंदियां लगाई गई. दरअसल, यह पूरी दुनिया को कश्मीर में चल रहे षड्यंत्र से अंधेरे में रखने के लिए था.
कुछ स्वनामधन्य कश्मीरी पंडितों के नेता, जिनका मुख्य नेतृत्व एक स्टोव मैकेनिक से राजनीतिज्ञ बने डॉ. फारूख अब्दुल्ला के दलाल, एच. एन. जट्टू घाटी में घूम-घूमकर पंडितों को वहां से निकल जाने की सलाह दे रहे थे. हमें यह कहा गया कि हमारा घाटी से निकल जाना धर्म एवं भारत की अखण्डता की रक्षा के लिए बहुत जरूरी है. हमें यह भी कहा गया कि हमारा पलायन अखण्ड भारत के सपने को पूरा करने के लिए भी जरूरी था.
हमें यह विश्वास दिलाने की कोशिश की गई कि स्थानीय मुस्लिम आबादी के सहयोग से पाकिस्तान बहुत जल्द घाटी पर कब्जा करने वाला है. हमें यह विश्वास दिलाया गया कि घाटी से निकलना हिन्दुओं के रक्षा का एकमात्र उपाय बचा हुआ है क्योंकि अब लड़ाई हिन्दुत्व और इस्लाम के बीच आ पहुंची है. हमें यह कहा गया कि इस्लामिक आतंकवाद के हटने के बाद हमें फिर से अपने घरों में वापिस बसा दिया जायेगा. आज तक वह दिन नहीं आया और इन हालातों में हमारे पास अब कोई आशा भी नहीं बची है.
हमें सारे देवी-देवताओं का वास्ता देकर कहा गया था कि घाटी छोड़ने के बाद हमारी सारी जरूरतों को ख्याल रखा जायेगा और हमें जो चाहिए वह दिया जायेगा. साथ ही हमें यह भी धमकाया गया कि अगर हमने उनका आदेश नहीं माना तो हमारे उपर सख्त कार्रवाई की जायेगी. आज हमें लगता है कि हमें धोखा दिया गया क्योंकि आज हम समझते हैं कि कश्मीर की समस्या कभी भी दो धार्मिक बिरादरी की लड़ाई नहीं थी वरन यह कश्मीर की जनता की आजादी की लड़ाई भारतीय कब्जे के खिलाफ थी.
घाटी से निकलने के बाद हमारी जो दुर्दशा की कहानी अब इतिहास के पन्नों में सिमट गई है. हमें हर प्रकार के शोषण का सामना करना पड़ा है और हमारी दुर्दशा की कोई सीमा नहीं है. हम अपनी दुर्दशा के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराते क्योंकि हम वेबकूफ बनने के लिए तैयार थे. जगमोहन और उनके मित्रों को इतिहास हमेशा के लिए देशद्रोहियों की श्रैणी में ही रखेगा.
अब यह बात जगजाहिर है कि घाटी से निकले हुए कश्मीरी पंडितों को यहां (जम्मू) के लोग विदेशी आक्रांता मानते हैं. जम्मू के डोगरा और डांगरा (हिन्दू) हमारे साथ कुत्तों और सुअरों के जैसा व्यवहार कर रहे हैं और हमारा शोषण करने का कोई मौका नहीं छोड़ते. वे हमें आर्थिक तौर पर भी हर संभव तरीके से ठगते हैं. मकान किराये और दूसरी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार से जो हमें छोटी सी राशि मिलती है, इसके लिए भी वे हमसे रंजिश का भाव रखते हैं. वे हमें परजीवी समझते हैं यद्यपि उनका व्यापार हमारे उपर ही निर्भर करता है.
यह एक दुःखद सच्चाई है कि घर-बार छोड़ने से पहले हमने अपने कीमती सामान औने-पौने दामों पर बेच कर चले आये और जो कुछ भी हमें गहने इत्यादि बेचकर मिला था, वह आज डोगरा (हिन्दू) लोगों के हाथ में चला गया है. इस बिन्दु पर यह समझना जरूरी है हमारे और इन डोगरा लोगों के बीच किसी भी मुद्धे पर कोई समानता नहीं है. यहां तक कि जिस हिन्दू धर्म का निर्वाह वे करते हैं उस हिन्दू धर्म के बारे में हमें कुछ नहीं पता.
दरअसल हिन्दू कोई धर्म नहीं है, एक जीवन शैली है इसलिए हम कश्मीरी मुसलमानों से अपने को ज्यादा करीब पाते हैं. हम और हमारे कश्मीरी मुसलमानों को इतिहास, संस्कृति, मूल्यबोध, परंपरा, रीति-रिवाज और भाषा एक है. हम कश्मीरी मुसलमानों पर इसलिए निर्भर हैं क्योंकि वे घाटी में बहुसंख्यक हैं.
हमें आज यह कहने में शर्म आती है कि न सिर्फ हमने अपनी मातृभूमि (कश्मीर) को धोखा दिया है बल्कि उन लोगों को भी धोखा दिया है जिन्होंने हमें सदियों से प्यार, मोहब्बत और इज्जत बख्शी. यह धोखा हमने अपने लोगों को उस वक्त दिया है जब उनकी कठिनाई की घड़ी थी और हमें उनके साथ खड़े होने की जरूरत थी. हम इस बात पर शर्मिंदा हैं कि हम अपने ही देश (कश्मीरी राष्ट्रीयता) के खिलाफ अपने देश के दुश्मनों के साथ खड़े हो गये और अपने देश की आजादी (कश्मीरी राष्ट्रीयता) की लड़ाई में शामिल नहीं हो सके.
हम इस बात पर भी शर्मिंदा हैं कि हम जाने-अनजाने घाटी की स्थिति को साम्प्रदायिक रंग देने में अपना योगदान दिया जबकि हमें कश्मीर की आजादी की लड़ाई में कश्मीरी मुसलमानों के साथ मिलकर लड़नी चाहिए थी. इस धोखा के लिए ईश्वर भी हमें माफ नहीं कर सकते. यह हमारी मातृभूमि (कश्मीर) को बचाने की लड़ाई थी, जिससे खुद को अलग कर हमने अपने मुस्लिम भाई-बहनों का प्यार, सम्मान और विश्वास को हमेशा के लिए खो दिया. जो आज भी अपनी मातृभूमि की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे हैं. फिर भी हमें विश्वास है कि वे हमें मोहम्मद साहेब के रास्ते पर चलते हुए और सच्चे इस्लाम की आत्मा के मद्देनजर वे हमें माफ कर देंगे और फिर से गले लग लेंगे.
जम्मू में रहने वाले कश्मीरी ब्राह्मणों को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है – पहला, जिनके पास जम्मू में जमीन और मकान है. श्री कौल ने बिल्कुल सही कहा है कि ये लोग हमें घुसपैठी और भिखारी समझते हैं. वे समझते हैं कि हम धोखे से सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं. दूसरे वर्ग में वे लोग हैं, जिनके पास घाटी में कोई सम्पत्ति नहीं है. ये लोग हवकडल, गनपतयार, राईनवार इत्यादि जगहों से आये हैं और इनके पास कोई निश्चित आय का स्त्रोत नहीं रहा.
ये सरकारी सहायता से खुश हैं क्योंकि इनके पास घाटी में भी आय का कोई निश्चित स्त्रोत नहीं था. विशेषकर यही लोग कश्मीरी मुस्लिमों के खिलाफ आवाज उठाते हैं क्योंकि वे घाटी में लौटना ही नहीं चाहते. इनमें से ज्यादातर लोगों ने अपनी बेटियों की शादी कश्मीरी मुस्लिम लोगों से की है ताकि समय आने पर उनसे सहायता मिल सके. ज्यादातर स्वघोषित नेतागण इसी वर्ग से आते हैं. तीसरे वर्ग में वैसे कश्मीरी पंडित हैं, जिन्होंने अपने पीछे लाखों सम्पत्ति घाटी में छोड़ आये. ये घाटी में लौटने के लिए सबसे ज्यादा लालायित हैं.
हम श्री कौल के साथ पूरे कश्मीरी पंडित बिरादरी की ओर से हमारे कश्मीरी मुस्लिम भाई और बहनों से आग्रह करते हैं कि वे हमें माफ कर दें और हमारी दगाबाजी को भूलकर हमें घर लौटने दें. हम भारतीय सेना के कब्जे की भूमि का भी विरोध करते हैं. हम भारत सरकार और भारत की शांतिप्रिय जनता से अपील करते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू की इच्छाओं का मान रखते हुए हमें कश्मीर में लौटने दिया जाये.
हम विश्व बिरादरी और यूनएनओ से अपील करते हैं कि वे भारत को कश्मीरी जनता पर अत्याचार करने से रोके. हम यूएनओ से यह भी अपील करते हैं कि वह 1948 के प्रस्ताव के सन्दर्भ में भारत को कश्मीर में जनमत संग्रह कराने के लिए दवाब डालें.
कृपया, हमारे कश्मीरी भाई-बहनों को हमारा सलाम और शुभेच्छा भेजे ! हम उनकी हिम्मत और शौर्य की दाद देते हैं और जिस बहादुरी से वे भारतीय फौज की हिंसा का सामना कर रहे हैं उसकी दाद देते हैं. हम उन्हें बताना चाहते हैं कि यह एक अस्थायी दौर है और हमारे महान शहीदों के खून बहुत जल्द फतह हासिल कर लेगा.
हम आशा करते हैं कि हमें स्वतंत्र, मुक्त और समृद्ध जम्मू और कश्मीर देश का सपना बहुत जल्द पूरा होगा.
अलसफा में प्रकाशित पत्र का कटिंग, जो अंग्रेजी में है –
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