भक्त – भगत सिंह मेरे आदर्श है … भगत सिंह जिंदाबाद … जय हिन्द … जय श्री राम !
मैं – भगत सिंह को पढ़े हो ?
भक्त – नही
‘फिर आदर्श कैसे मानते हो ?’
‘क्योकि वो देश की आजादी के लिए फांसी पे झूल गए. मैंने अजय देवगन और बाबी देओल की भगत सिंह पे आधारित फ़िल्म सैकड़ों बार देखी है. हर हर महादेव ! भगत सिंह अमर रहे !’
‘फिल्मों में सब कुछ सही नहीं होता और भगत सिंह को वाकई आदर्श मानना है तो पहले पढ़ों !’
‘तुम्हारा टाईम लाईन तो गोड़से भक्तों की तरह है. एक नेता की भक्ति ज्यादा है, देश की कम है. भड़काऊ पोस्ट भी बहुत हैं !’
‘भगत सिंह नास्तिक थे, मार्क्सवादी थे, वामपंथी विचार धारा वाले थे. धर्म और जात पात नहीं मानते थे. पूंजीवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ते थे. गरीब मजदूरों के हक की बात करते थे. वो व्यवस्था परिवर्तन चाहते थे … उनका कहना था गोरे अंग्रेज चले जायेंगे तो भूरे आकर लूटेंगे.’
उनके लिखे लेख … घर को अलविदा … अछूत समस्या … मैं नास्तिक क्यों हूँ … लाहौर का घोषणापत्र … धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम … साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज … नये नेताओं के अलग-अलग विचार … विद्यार्थी और राजनीति … भगत सिंह का पत्र सुखदेव के नाम पत्र … असेम्बली हॉल में फेंका गया पर्चा … बम काण्ड पर सेशन कोर्ट में बयान … हमे गोली से उड़ाया जाए … ये सब पढ़ो, तुम्हे भगत सिंह को और करीब से समझने में मदद मिलेगी और थोडा दिमाग का ढक्कन भी खुलेगा.’
भक्त – ‘मैं नहीं पढता ये सब. भगत सिंह जिंदाबाद ! जय श्री राम ! हर हर महादेव !’
‘सचमुच तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता. शायद तुम्हारे लिए भगत सिंह भी तुम्हारी राजनितिक पार्टी के ही थे.’
‘अबे साले देश के गद्दार … मादर@#$ … तेरी बहन@#@ … तू मुझे सिखाएगा भगत सिंह के बारे में … साले कुते तेरे को पाकिस्तान भेज देंगे हम …’.
- मनीष सिंह
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