यूक्रेन जो सोवियत संघ का एक हिस्सा था, पर रुस के हमले पर छाती पीटने वाली पश्चिमी मीडिया और भारतीय मीडिया जिस तरह यूक्रेन के राष्ट्रीयता की आजादी की मांग के साथ खड़ा है और नवनाजी जेलेंस्की के साथ मिलकर आजादी की गीत गा रही है, ठीक उसी तरह कश्मीर में चल रही संयुक्त कश्मीर के आजादी की मांग के लिए लड़ रही कश्मीरी राष्ट्रीयता के समर्थन में पश्चिमी और भारतीय मीडिया घिग्घी क्यों बंध जा रही है ? जबकि कश्मीरी जनता पर भारतीय सेना का कहर उसी तरह ढ़ाया जा रहा है.
भारत की तथाकथित आजादी के बाद से ही कश्मीर घाटी तीन हिस्सों में बंट गया. तीन हिस्सों में विखण्डित कश्मीर की एकजुटता कश्मीरी जनता की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा है और इसी महत्वाकांक्षा का सबसे लोकप्रिय चेहरा है यसीन मलिक. यसीन मलिक ने कश्मीरी आवाम की इस महत्वाकांक्षा के लिए जिस संगठन का गठन किया, वह है – जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट. जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) घाटी का न केवल सबसे महत्वपूर्ण संगठन है बल्कि सबसे ताकतवर संगठन भी है.
कश्मीरी राष्ट्रीयता की लड़ाई लड़ने वाला जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट न केवल भारत अधिकृत कश्मीर में भारत सरकार के खिलाफ अपितु पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी पाकिस्तान सरकार के खिलाफ भी सशस्त्र आन्दोलन का नेतृत्व कर रहा है. यही कारण है कि इस संगठन पर न केवल भारत बल्कि पाकिस्तान समर्थित राज्य आतंक का सीधा हमला होता है. दूसरे शब्दों में कहा जाये तो कश्मीरी राष्ट्रीयता की लड़ाई भारत और पाकिस्तान दोनों के सशस्त्र सेनाओं से है.
भारत अधिकृत कश्मीर में भारत समर्थक राजनीतिक दलों के समर्थन में लाखों की तादाद में भारतीय सेना कश्मीरी जनता पर जुल्म ढ़ा रही है, उसकी हत्यायें कर रही है, कश्मीरी महिलाओं के साथ बलात्कार को अंजाम दे रही है, तो वहीं पाकिस्तान समर्थक राजनीतिक दलों के द्वारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर भी पाकिस्तानी सेना द्वारा इसी तरह का दमन ढ़ाया जा रहा है. यही कारण है कि जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और उसकी समर्थक आजादी की मांग कर रही जनता इस दोनों देश की फौज का निवाला बन रही है.
भारत सरकार ने विगत दिनों जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट पर प्रतिबंध लगा दिया है. यासीन मलिक के नेतृत्व वाला ये संगठन राज्य में आजादी का नारा लगाने वाला पहला संगठन था, जिसने शुरू में भाजपा के एक नेता को निशाना बनाया था जो कश्मीर में भारत समर्थक राजनीति दल के तौर पर उभरा और वहां की जनता पर भारतीय सेना के माध्यम से जुल्म ढ़ा रहा है, जो कश्मीरी पंडित थे.
घाटी में 1988 से सशस्त्र संघर्ष चलाने के कारण जेकेएलफ पर शुक्रवार को प्रतिबंध लगा दिया है. आजादी का नारा लगाते हुए इस समूह ने भारत समर्थक कश्मीरी पंडितों, सरकारी कर्मचारियों और कश्मीरी लोगों पर जुल्म ढ़ाने वाले ताकतों को अपना निशाना बनाते हैं. जेकेएलएफ ने पहली बार 14 सितंबर 1989 को भारत समर्थक एक कश्मीरी पंडित जो बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष पंडित टीकालाल तापलू थे, की हत्या की. इस संगठन ने तीन सरकारी इमारतों में विस्फोट भी किया, जिसमें एक अगस्त 1988 को श्रीनगर के टेलीग्राफ कार्यालय में किया विस्फोट शामिल है.
जेकेएलएफ के सदस्यों ने 17 अगस्त 1989 को श्रीनगर में भारत समर्थक नेशनल कॉन्फ्रेंस के स्थानीय नेता मोहम्मद यूसुफ हलवाई, सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश एन. के. गंजू की भी चार अक्टूबर 1989 को गोली मारकर हत्या कर दी, जिन्होंने जेकेएलएफ नेता मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी.
तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का आठ दिसंबर 1989 को उस समय श्रीनगर में अपहरण कर लिया था, जब वह अस्पताल से घर लौट रही थी. जिसके बदले जेल में बंद जेकेएलएफ के पांच नेताओं को छोड़ने पर पांच दिन बाद 13 दिसंबर को रुबिया सईद को रिहा किया गया. इस संगठन द्वारा 25 जनवरी 1990 को वायुसेना के चार अधिकारियों की भी हत्या की गई.
घाटी में अपनी आजादी के लिए कश्मीरी राष्ट्रीयता के लिए सशस्त्र संघर्ष चला रहे इस संगठन की तमाम गतिविधि कश्मीरी आवाम की महत्वाकांक्षा से मेल खाता है. यही कारण है कि भारतीय सेना के हर हमले का जवाब वहां की समूची आवाम एकजुट होकर देती है. और भारत सरकार की सेनाएं कश्मीरी जनता पर किस तरह दमन ढ़ाती है, कश्मीर पर बनी फिल्म थी ‘धोका’ में अनुपम खेर, जो आज कश्मीरी पंडित के बहाने साम्प्रदायिक नफरत का पोस्टर ब्यॉय बन गया है, कश्मीरी बाप का किरदार बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया था, और उसी फिल्म का यह दृश्य है, जिसमें भारतीय सेना को अनुपम के सामने उसकी बेटी का बलात्कार करते हुए दिखाया गया है, जो वहां की हक हकीकत भी है. नीचे वह दृश्य देखिये और कश्मीरी आवाम के साथ भारतीय सेना के आतंक को महसूस कीजिए.
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