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चौथा आदमी

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मैं इस तीसरी दुनिया का
हर वह चौथा आदमी हूं
जिसके पास किराए का मकान भी नहीं है
लेकिन मताधिकार है !

ये अलग बात है कि
रायफल के कुंदे से मारते हुए
जब उन्होंने मुझे अपने गांव,
जंगल से बाहर किया था
तभी से इस देश की अनगिनत
घुमंतू प्रजातियों में शामिल होने की मेरी कोशिश
आज तक सफल नहीं हुई

यानी कि मैं इस जनता का वह
चौथा आयाम हूं
जिसे जानने की ज़रूरत
त्रि-आयामी सत्य के मकड़जाल में फंसे
मेधा के लिए नहीं है

आप कह सकते हैं कि
पूरी पिक्चर में मेरी हैसियत
बस एक एक्स्ट्रा आर्टिस्ट की है

वावजूद इसके
मैं किसी भीड़ का हिस्सा नहीं हूं

हो सकता है कि
डॉक्युमेंटरी बनाते समय
किसी फ़ोटोग्राफ़र के फ़्रेम में
मेरा चेहरा आ गया होगा
किसी सड़क पर रेंगते हुए

वावजूद इसके
मैं किसी भीड़ का हिस्सा नहीं हूं

हो सकता है कि
मेरे जैसे करोड़ों मिल कर
बना देते हों उनके रजिस्टर में
अति पिछड़े ज़िलों की फ़ेहरिस्त

वावजूद इसके
मैं किसी भीड़ का हिस्सा नहीं हूं

दरअसल
वयस्क मताधिकार का गंदा-सा बस्ता
सर पर लादे हुए
मैं किसी बूथ तक नहीं पहुंचा हूं कभी
और, इसके लिए
मेरी अंतरात्मा ने कभी मुझे नहीं कचोटा

इसके उलट
अपने मताधिकार का प्रयोग करना ही
मुझे अपने अंतरात्मा का सौदा करना लगता है
क्यों कि आदमी अपने भार को औरों पर लाद कर
जब निश्चिंत हो जाता है
उसी समय वह थोड़ा-सा घट जाता है

इसी तरह एक रात
नींद में बड़बड़ाते हुए
जब मैं गा रहा था कोई गीत
जो तीन चौथाई की भाषा में नहीं थी
उन्होंने समझ लिया मुझे क्रांतिकारी
और ठूंस दिया मुझे कारागार में

मैं कहता रह गया कि
गीत गाने के वावजूद
मैं एक भीड़ का हिस्सा नहीं हूं

वे नहीं समझे
लेकिन, उस दिन मैं समझ गया
जिसे मैं अपना समझ कर
आज तक जीता रहा
जिसके पेड़ों के कटने पर
आज तक मैं रोता रहा
जिसके बच्चों के बिना इलाज मरते देख

आज तक मैं तड़पते रहा
जिसके कुरूप नेताओं पर
आज तक मैं हंसता रहा
जिसकी बस्तियों को उजाड़ कर
बने हुए मॉल और सोसाइटी पर
मैं आज तक थूकता रहा
वह देश तो मेरा कभी था ही नहीं

फिर राजद्रोह और देश द्रोह को
एक मान भी लो तो भी
मैं तो दोषी नहीं साबित होता

उन्होंने कहा कि
तुम हमारी तीसरी दुनिया के
चौथे आदमी हो
और यही है तुम्हारा अपराध !

  • सुब्रतो चटर्जी

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