मर चुका आदमी इतना अच्छा लगता है
जितना अच्छा वह कभी जीते जी नहीं लगा था
मन होता है कि उसका सिर होता तो चूम लेते
हमेशा बस उसी के साथ रहते-चलते-डोलते
हमेशा उससे भी उसी के बारे में बातें किया करते
उसके गुण, उसके सामने गाते
वह कुछ ग़लत कहता तो
उसे ठीक करने की कोशिश नहीं करते
वह थप्पड़ मार देता तो उसके सामने
दूसरा गाल कर देते
कभी-कभी तो मन होता है कि
मरकर उसी के पास चले गए होते
तो कितना अच्छा होता !
मर चुके आदमी को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
इससे उसमें जीने की कोई ललक नहीं जागती
जबकि मर चुके आदमी ने न मरने के लिए
अपने आपसे बहुत संघर्ष किया था
वह हतप्रभ रह गया था
जब उसे पता चला था कि उसकी अंतिम सांसें चल रही हैं
वह रोना चाहता था बुक्का फाड़कर
तभी उसे मौत आ गई
मर चुके आदमी में पता नहीं
यकायक इतनी अच्छाइयां कहां से पैदा हो जाती हैं !
- विष्णु नागर
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