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यूक्रेन में फंसे छात्र ज़िंदगी बचाकर लौटे, अब देश में ज़िंदगी बनाने का बड़ा सवाल…

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रवीश कुमार

सुमी से भारतीय छात्रों के निकाले जाने की कहानी वहां से शुरू होनी चाहिए जब छात्र आज बस से यूक्रेन के एक शहर पोल्तावा के लिए रवाना हुए. सीधे मंज़िल पर पहुंच जाने से आपरेशन गंगा के इस हिस्से का किस्सा तमाम प्रयासों के साथ न्याय नहीं करेगा. 24 फरवरी से छात्रों को अपील करते करते 12 दिन बीत गए थे. 12 वां दिन एक उम्मीद की तरह आया लेकिन छात्र नहीं निकल सके. आज सब कुछ वैसा हुआ जो कल हो जाना चाहिए था. छात्र अपने होस्टल से बस से रवाना हो गए. यह कोई मामूली घटना नहीं था. सही मायनों में ये इवेकुएशन हो रहा था क्योंकि छात्रों को वहां से निकाला जा रहा था जहां वे फंसे थे. हम आपको क्रमवार बताना चाहते हैं. ताकि पता चले कि निकालने के दौरान क्या क्या हो रहा था.

यह उस वक्त की तस्वीर है जब बस छात्रों को लेने आई. उस वक्त भारत में दोपहर के 12 बज रहे थे और सुमी में सुबह के पौने नौ. छात्रों को इस हिदायत के साथ बस में सवार होने के लिए कहा गया कि मंज़िल पर पहुंचने से पहले वीडियो सार्वजनिक न करें. युद्ध के समय में ऐसी हिदायत ज़रूरी भी होती है. पर कहा गया कि जब मंज़िल पर पहुंच जाएं तो वीडियो साझा कर सकते हैं.

सुमी से निकलने के समय से हम एक छात्र के संपर्क में थे. वह बता रहा था कि रास्ते में हर एक किलोमीटर पर यूक्रेन की सेना का चेक पोस्ट मिल रहा था. एक जगह पर रेड क्रास की टीम भी मिली. सुमी से पोल्तावा 174 किलोमीटर दूर है और बसों का काफिला पोल्तावा की तरफ ही निकल पड़ा था. अब आप जो वीडियो देखेंगे वह मात्र 27 सेकेंड का है लेकिन अंदाज़ा मिलेगा कि यूक्रेन के भीतर के हालात किस तरह के हैं. यह वीडियो हमें भारतीय समय के अनुसार दोपहर एक बजे के आस-पास मिला था.

पहले लगा था कि इन छात्रों को रुस की सीमा से निकाला जाएगा जो वहां सबसे करीब थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बस दूसरी दिशा में मुड़ गई, पश्चिमी सीमा की तरफ जहां पोलैंड है. पोल्तावा पहुंच कर इन छात्रों को ट्रेन से विनित्सिया होते हुए लवीव पहुंचना था. इन्हें करीब एक हज़ार किलोमीटर की यात्रा तय करनी थी जिसके लिए कम से कम दस घंटे तो लगने ही थे. अभी यह सब बता ही रहा था कि छात्र ने लिखा कि रूसी सेना के लोग फोन बंद करने के लिए कह रहे हैं. उसने फोन बंद कर दिया. इसका मतलब रुसी सेना की भी भूमिका थी और यूक्रेन भी सहयोग कर रहा था.इसी छात्र ने बताया था कि कई चेकपोस्ट पर केवल यूक्रेन की सेना ही थी. रुसी सेना नहीं.

अगली सूचना मिलने से पहले सोमवार का यह वीडियो देखिए. बसों में छात्रों बिठा कर उतार दिया गया. सोमवार को भारत में इनके परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई थी मगर मायूसी छा गई. फिर भी दूतावास के लगातार संपर्क के कारण छात्रों का भरोसा बना रहा कि कुछ होगा. कोशिश हो रही है. लेकिन यह कोशिश शिथिल न पड़ जाए इसके लिए सोने से पहले छात्रों ने एक अपील रिकार्ड कर भेज दिया.

शनिवार को छात्रों का सब्र टूट गया था. उन्होंने वीडियो बनाया कि अपने जोखिम पर जा रहे हैं तब दूतावास ने ऐसा न करने की चेतावनी थी. ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि गुरुवार को भारी बमबारी हुई थी. बमबारी तो सोमवार की रात भी हुई लेकिन छात्र उस तरह आतंकित नहीं हुए जैसे सोमवार को हो गए थे. ऐसा नहीं था कि सोमवार को सुमी पर बमबारी नहीं हुई. मेहताब की भेजी यह तस्वीर उन आशंकाओं को खड़का रही थी कि इन छात्रों को निकालने में देरी नहीं होनी चाहिए. कभी भी कुछ हो सकता है.

रूस और यूक्रेन के बीच सीज़फायर की बात हो रही थी, मानवीय गलियारा बनाने की घोषणा भी हुई लेकिन सोमवार को सीज़फायर इस बात को लेकर टूट गया कि यूक्रेन नहीं चाहता कि उसके नागरिक रूस की सीमा में प्रवेश करें. आज भी यूक्रेन के विदेश मंत्री की तरफ से बयान आया कि रुस ने मैरियूपोल में कई हज़ार नागरिको को बंधक बना रखा है. इस तरह के तनाव के बीच भारतीय छात्रों को निकालना आसान नही रहा होगा.आज सुबह करीब दस बजे रशिया टुडे ने यह सूचना ट्विटर पर एक सूचना साझा की जिसके अनुसार साफ हो गया कि आज भी नागरिकों को निकालने के प्रयास किए जाएंगे.

इस खबर में रुस के रक्षा मंत्रालय और सेना की तरफ से दावा किया गया था कि यूक्रेन के बीस लाख लोगों ने रुस से अपील की है कि यहां से निकाले. रुस ने कहा कि वह कीव, चेर्निगोव, मारियूपोल, खारकोव औऱ सुमी से नागरिकों को रुसी इलाके की तरफ निकालने के लिए तैयार है. जो लोग कीव और चेर्निगोव से निकलेंगे उन्हें बेलारुस लाया जाएगा. वहां से हवाई जहाज़ से रुस लाए जाएंगे. बाकी तीन शहरों से शरणार्थी सीधे रुस की सीमा पार कर सकते हैं. यूक्रेन इसके लिए अपने इलाके से इन्हें निकलने में मदद करेगा.

रुसी सेना ने कहा कि मंगलवार की सुबह सात बजे से अस्थायी रुप से सीज़फायर होगा. कीव से आग्रह किया जाता है कि वह बाहर बजे तक इस प्रस्ताव को माने. मानवीय गलियारा बनाने का दारोमदार केवल यूक्रेन पर है. इस न्यूज़ में केवल यूक्रेन के नागरिकों के निकालने जाने का ज़िक्र था, सुमी शहर का ज़िक्र था मगर भारतीय छात्रों के बारे में कुछ नहीं था.

लगता है रूस ने अपने स्टैंड में बदलाव किया है. अपनी सीमा के अलावा यूक्रेन के रास्ते से भी निकलने का विकल्प दिया है. यूक्रेन ने रूसी सीमा से जाने को लेकर विरोध किया था लेकिन दो विकल्पों की बात पर उसका कोई सख्त विरोध नज़र नहीं आया. दोपहर के वक्त यूक्रेन की समाचार एजेंसी ने एक वीडियो ट्विट किया

यह वीडियो सुमी शहर का बताया गया. इन बसों से सभी विदेशी नागरिकों को निकाला जा रहा है. बस के भीतर चीन के भी छात्र बैठे नज़र आए. इस वक्त भारतीय समय के अनुसार दोपहर के 2 बजकर 23 मिनट हो रहे थे. उमा शंकर सिंह ने बताया कि विदेश मंत्रालय ने कहा है कि सुमी से भारतीय छात्रों के निकलने की खबर सार्वजनिक की जा सकती है. समाचार एजेंसी PTI ने केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी का बयान ट्विट कर दिया कि सुमी में रह गए सभी 694 छात्र वहां से पोल्तावा के लिए निकल चुके हैं.

6 मार्च को यूक्रेन में भारतीय दूतावास ने ट्विट कर बताया था कि दूतावास की टीम पोल्तावा में मौजूद है ताकि भारतीय छात्रों को सुमी से निकाल कर पोल्तावा होते हुए पश्चिमी सीमा तक ले जाया जाए. 7 मार्च को यह प्लान कैंसल हो गया था, 8 मार्च को इसी प्लान पर काम शुरू हुआ. यूक्रेन के कई शहरों से विदेशी नागरिकों को निकाला जा रहा था. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र में बहस हो रही थी, भारत सहित कई देश रुस से सीधा संवाद कर रहे थे.

पांच बजे के आस पास ANI ने यह वीडिओ जारी किया कि सुमी से 12 बसों का काफिला निकला है. वहां से सभी भारतीय छात्रों को निकाल लिया गया है. उनके साथ भारतीय दूतावास के अधिकारी और रेड क्रास की टीम भी चल रही है. बांग्लादेश औऱ नेपाल के नागरिकों को भी निकाला गया है. वीडियो उस समय का है जब ये काफिया सुमी से पोल्तावा जा रहा है.

युद्ध के हालात में 174 किलोमीटर का सफर तय करने में सामान्य दिनों से ज्यादा समय लगना स्वाबाविक है.इस बीच भारतीय दूतावास ने एडवाइज़री जारी की कि आज के सीज़फायर को देखते हुए जो भी जहां फंसा है वहां से अपनी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए निकलने की कोशिश करे.काफी देर तक सुमी से निकले छात्रों से संपर्क नहीं हो सका. उनका फोन बंद रहा. छात्रों ने भी कहा था कि पोल्तावा पहुंचने से पहले संपर्क नहीं हो सकेगा.

दूसरी तरफ भारत यूक्रेन के मायकोलाइव बंदरहगाह में फंसे भारतीय नाविकों को भी निकालने में लगा था.यूक्रेन में भारतीय दूतावास ने ट्विट किया है कि यूक्रेन के शहर से 57 नाविकों को निकाला गया है. जिसमें 2 लेबनान और 3 सीरीया के हैं. यहां से अभी कुछ और नाविकों को निकाला जाना है. यह भी पूरी तरह से इवेकुएशन है. रूस पर नागरिको को निकलने का रास्ता देने के लिए काफी दबाव था. इस आक्रामक माहौल में रूस ने इन कोशिशों में सहयोग ही किया.

सीज़फायर टूटा लेकिन सीज़फायर हुआ भी और कई लोग निकले भी. संयुक्त राष्ट्र में अमरीका फ्रांस औऱ यूक्रेन रूस पर मानवीय गलियारा बनाने का दबाव डालते रहे. फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र में कहा है कि रुस का दोहरापन है. ऐसे बहुत कम यूक्रेनी होंगे जो रुस में शरण लेना चाहते होंगे. संयुक्त राष्ट्र के मार्टिन ग्रिफिथ्स ने अपील की कि मारियूपोल, खारकिव मेलितोपोल और अन्य शहरों से नागरिको को निकाला जाना बहुत ज़रूरी है. भारत ने भी सोमवार का प्लान फेल हो जाने पर संयुक्त राष्ट्र में चिन्ता जताई थी केवल अपने नागरिकों के लिए नहीं बल्कि सभी नागरिकों के लिए.

इसके अलावा भारत के प्रधानमंत्री मोदी भी रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से कई बार बात कर चुके थे. संयुक्त राष्ट्र में रुस के राजदूत नेबेन्ज़िया ने एलान किया कि रुसी सेना मंगलवार सुबह सात बजे से सीज़फायर करेगी और मानवीय गलियारा बनाएगी. इस खबर में लिखा है कि लोगों को विकल्प दिया जाएगा कि वे रुस से जाना चाहता है या यूक्रेन के शहर से जाना चाहते हैं. सुमी में फंसे 694 भारतीय छात्रों का परिवार एक पल में एक साल जी रहा था. उनके लिए आज की खबर यकीन करने लायक नहीं थी, उनकी बेकरारी बढ़ने लगी जब खबर पहुंची कि सुमी से भारतीय छात्रों को लेकर बसें निकल गई हैं.

सुमी शहर से 694 छात्रों का सुरक्षित चले आना और निकाल लेना सामान्य घटना नहीं है. यहां से इन्हें निकालना सबसे मुश्किल लक्ष्यों में था. 13 दिन लग गए लेकिन किसी को नुकसान नहीं हुआ. इस दौरान कई राज्यों के छात्र रिपोर्टर बन गए हैं. उन्होंने सीख लिया कि अपनी बात कैसे देश और सरकार तक पहुंचानी है.

छात्रों को सुमी के ये बंकर बहुत दिनों तक याद आएंगे. शायद उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर कर गया होगा. बम धमाकों के बीच एक इनका हर पल मौत के साये में गुज़रता होगा. यूक्रेन के कई शहरों में रहने वाले भारतीय छात्र अपने दम पर यूक्रेन की सीमा तक पहुंच गए थे लेकिन सुमी में सैंकड़ों छात्र इन बंकरों में फंसे रह गए. अगर रूस सीज़फायर नहीं करता, भारत सरकार सक्रिय पहल नहीं करती तो इन छात्रों को और इंतज़ार करना पड़ जाता. सुमी की ये तस्वीरें बार बार याद दिलाती रहेंगी युद्ध को लेकर उछलने से पहले दूसरों या अपनों के बारे में एक तरह से सोचा जाना चाहिए. इन बंकरों के कवरेज ने यहां रहने वाले कई लड़के और लड़कियों को रिपोर्टर बना दिया.

किसी लड़की ने अंग्रेज़ी में वीडियो बनाया तो किसी ने हिंदी में ताकि सरकार को सुनाई दे. देश को समझ आए. रिपोर्टर बन इन तमाम छात्रों में मैं खास तौर से महताब और फैसल का ज़िक्र करने जा रहा हूं.फैसल और मेहताब के बनाए वीडियो ने भी इस मामले में बड़ी भूमिका अदा की. ऐसे वक्त में जब आई टी सेल यूक्रेन में फंसे छात्रों पर हमला कर रहा था कि गलती छात्रों की है. छात्रों पर आरोप लग रहे थे कि ये लोग मीडिया में बयान देकर भारत को बदनाम कर रहे हैं लेकिन फैसल और महताब इससे नहीं डरे. उनके और उनके जैसे छात्रों के बार बार बोलने से सुमी पर देश और दुनिया का ध्यान गया. 694 छात्रों की वापसी में इनकी कोशिशें भी शामिल हैं.

फैसल और महताब दोनों ही मोतिहारी के हैं. मेरे ज़िले के हैं. महताब की भाषा थोड़ी परिष्कृत है, लेकिन फैसल की नहीं. लेकिन फैसल के बोलने के अंदाज़ से मुझे अपना अतीत याद आ गया. मैं भी कभी फैसल की तरह हिन्दी और अंग्रेज़ी के शब्द बोलता था तो लोग हंस देते थे. क्योंकि भोजपुरी का टोन आ जाता था. सुमी से भेजे गए एक वीडियो में जब फैसल बोल रहा था तब वहां कुछ छात्रों की हंसी सुनाई दी. मैं इस हंसी को पहचान गया. इसे giggle कहते हैं. एक तरह से दूसरों पर हंसना.

हम आपको फैसल को बोलते हुए सुनाएंगे. यह बताने के लिए कि सूचनाओं का अस्तित्व बेहद स्वतंत्र होता है. कई बार सूचनाएं खुद ही व्याकरण और बोलने की शुद्धता को धक्का मार कर अलग कर देती हैं. उन्हें व्याकरण नाम के साबुन और शैंपू से नहा धो कर तैयार होना अच्छा नहीं लगता. जब आपको चोट लगती है या सामने से गोली आती दिखती है तो आप वही बोलते हैं जो आप होते हैं.

यूक्रेन से आ रही मदद की तमाम आवाज़ों में, भाषाओं में, फैसल की आवाज़ काफी अलग ध्वनित हो रही थी. मैंने इस बात को पहले दिन ही नोट कर लिया था लेकिन आज के लिए बचा कर रखा था. सोचा था कि जब वह सुरक्षित लौट आएगा तो पूरी दुनिया को बताऊंगा कि सुमी में सैंकड़ों भारतीयों के बीच एक फैसल नाम का लड़का था जिसकी तरह मैं कभी बोलता था, आज वो मेरी तरह बोल रहा है लेकिन काम वही कर रहा है. सही बात को सही सही रिपोर्ट कर रहा है ताकि 694 लोगों की जान बच जाए. भाषा और सूचना का यह प्रथम और अंतिम महत्व है. हम फैसल की रिपोर्टिंग के कुछ हिस्से फिर से दिखा रहे हैं ताकि आप फैसल के बोलने के अंदाज़ को लेकर खूब हंसे और उसे प्यार करें.

मेडिकल की पढ़ाई में स्थानीय भाषा का अपना महत्व होता है. वर्ना जब मरीज़ कहेगा कि नटटी बथ रहा है, कपार बथ रहा है, खखर के नहीं बोल पा रहे हैं तो कई डाक्टर नहीं समझेंगे कि क्या बोल रहा है.भारत में मेडिकल की पढ़ाई की हकीकत का अंदाज़ा शायद उन लोगों को नहीं है जो किसी को भी लेक्चर दे रहे थे कि यूक्रेन क्यों पढ़ने गए.यह संकट यह बता रहा है कि सरकारों ने शिक्षा पर खर्च करना बंद किया है इसलिए आबादी पर यह तबाही आई है. यह भी सही है कि आबादी को धर्म से मतलब है शिक्षा से नहीं. शिक्षा का निजीकरण इतना भयावह हो चुका है कि सस्ती शिक्षा के लिए लोग जहां तहां पलायन कर रहे हैं.

लेकिन देहरादून में प्रदर्शन कर रहे चौथे वर्ष के इन 150 छात्रों को प्राइम टाइम से उम्मीद है कि हम आवाज़ उठाएं. क्या आप जानना चाहेंगे कि इनके साथ क्या हो रहा है. ये सभी 2017 के बैच के मेडिकल छात्र है. मेडिकल कालेज देहरादून के जॉलीग्रांट में है. उस साल राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी की थी कि राज्य के छात्रों से चार लाख प्रति वर्ष से अधिक फीस नहीं ली जा सकेगी. मैनेजमेंट कोटा और बाहरी छात्रों के लिए फीस की सीमा 5 लाख तय की गई थी. कालेज ने इस अधिसूचना के खिलाफ नैनिताल हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी. लेकिन आज तक फैसला नहीं आया. इस बीच जब अंतिम वर्ष की परीक्षा करीब आई तब कालेज ने कहा कि पुरानी फीस देनी होगी. परीक्षा में तभी बैठने दिया जाएगा जब 23 लाख रुपये का चेक देना होगा.

क्या कोई औसत भारतीय परिवार इस तरह से 23 लाख का चेक दे सकता है? कई छात्र इस वजह से परीक्षा में नहीं बैठ सके हैं. ऐसी खबरों पर क्या आई टी सेल और वो लोग हंगामा करेंगे कि ऐसा क्यों हो रहा है, किसे फर्क पड़ता है कि ये छात्र यहां धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. मां बाप और कॉलेज प्रशासन के बीच आज बैठकें होती रहीं. Himalayan institute of medical science का तर्क थोड़ा अजीब है. संस्थान का कहना है कि नैनिताल हाई कोर्ट का फैसला नहीं आया है. लेकिन अगर बढ़ी हुई फीस के पक्ष में फैसला आया तो वह इन छात्रों से कैसे वसूलेगा, ये तो कालेज से जा चुके होंगे. इसलिए उनसे चेक मांगा जा रहा है कि अभी चेक दे दें और जब फैसला आएगा तब उसे कैश कराया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए और बताना चाहिए कि क्या ऐसा हो सकता है.

इसी तरह की चिन्ता यूक्रेन से लौटने वाले छात्रों को घेरने वाली है. उन सभी के अहम दस्तावेज़ छूट गए होंगे. जो छात्र प्रथम द्वितीय वर्ष में हैं उनका क्या होगा. कब पढ़ाई फिर से शुरू होगी या नहीं होगी. नेशनल मेडिकल कमिशन ने कहा है कि जिन छात्रों ने पढ़ाई पूरी कर ली है और इंटर्नशिप बाकी है उनके लिए भारत के कालेजों में व्यवस्था की जाएगी लेकिन जो लौट रहे हैं औऱ पहले दूसरे साल तक ही पढ़े हैं उनका क्या होगा. भारत में मेडिकल की पढ़ाई की दिक्कतें आज से नहीं है, ये और बात है कि वही दिक्कतें आज भी हैं.

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