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मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल को मंहगा कर किसका हित साध रही है ?

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पेट्रोल-डीजल की मंहगाई मेहनतकश जनता का खून निचोड़कर कॉरपोरेट घरानों का खजाना भरता है.

मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल को मंहगा कर किसका हित साध रही है ?
मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल को मंहगा कर किसका हित साध रही है ?

क्रूड ऑयल का दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुस-यूक्रेन युद्ध के कारण 120 डॉलर तक पहुंच गया है लेकिन मजाल है कि पिछले दो-तीन महीनों में पेट्रोल-डीजल के दामों में एक पैसे की भी बढ़ोतरी हुई हो ! कारण पांच राज्यों में चल रहे चुनाव. यानी चुनाव ही वह कारण है कि जिसके कारण मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल का दाम नहीं बढ़ाया है.

इससे एक चीज पूरी तरह साफ हो जाती है कि विगत वर्षों में रोज-रोज बढ़ाये जा रहे पेट्रोल-डीजल के दामों का कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल के बढ़ने-घटने से तय नहीं होता बल्कि देश की जनता को लूटने खसोटने के लिए मोदी सरकार की नीतियों से तय होता है.

जब मोदी सरकार संकट में आने लगती है तो पेट्रोल-डीजल के दाम घट जाता है, चाहे अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल का कीमत कुछ भी हो. ठीक उसी तरह जब यह मोदी सरकार संकट से बाहर रहती है तो पेट्रोल-डीजल का दाम घट जाता है, चाहे अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल का कीमत कुछ भी हो.

अभी पांच राज्यों में चल रहे चुनावों के कारण लोग मोदी सरकार के लिए खतरा बन कर उभरे हैं. मोदी सरकार इस बात को अच्छी तरह समझ रही है कि इन राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में अगर भाजपा हार जाती है तो केन्द्र में मोदी सरकार का बना रहना खासा मुश्किल हो सकता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत 120 डॉलर होने के बाद भी घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल का दाम चुनाव की घोषणा होने के बाद ही 90 रुपये लीटर पर अटकी हुई है.

लेकिन तेल कंपनियों ने वर्ष 2019-20 के औसतन 60.47 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले 2020-21 में 44.82 डॉलर प्रति बैरल यानी 15.55 डॉलर कम दाम पर क्रूड खरीदा. इसके बावजूद उस दौरान दौरान पेट्रोल करीब 21 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत  लगभग 29 रुपये प्रति लीटर महंगा कर दिया गया था.

लेकिन आज जब उत्तर प्रदेश में अंतिम चरण के साथ मतदान समाप्त हो जायेगा, लोगों को अंदेशा है कि पिछले कई महीनों से 90 रुपये पर ठहरी हुई पेट्रोल-डीजल के दामों में मोदी सरकार उछाल लाने जा रही है, जो 150 से 200 रुपये प्रति लीटर तक जा सकती है और मंहगाई के समर्थक इसके फायदे भी बताने लग जायेंगे.

पत्रकार गिरीश मालवीय लिखते हैं, पेट्रोल डीजल की महंगाई के लिए सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार जिम्मेदार है, यह बात अच्छी तरह से समझ लीजिए. क्योंकि पिछली बार जब कच्चे तेल की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल के ऊंचे स्तर तक गई तब पेट्रोल की रिटेल कीमत सिर्फ 65.76 रुपये थी. हम बात कर रहे हैं 2013 की, जब मनमोहन सरकार सत्ता में थी.

कल से पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ने का जो सिलसिला शुरू होने वाला है उससे देश में महंगाई भयानक रूप से बढ़ने वाली है. सरकार के भोंपू बने हुए न्यूज चैनल और अखबार आपको बार-बार रूस युक्रेन युद्ध के कारण बढ़ी हुई कीमतों को सही ठहराने की कोशिश करेंगे. लेकिन आपको यह जान लेना चाहिए कि जब क्रूड की कीमत कम होती हैं तो पैट्रोल डीजल की कीमतें कम नहीं की जाती बल्कि एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर सरकार अपनी जेब भरने लग जाती हैं.

ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है, पिछले साल की ही बात है. तेल कंपनियों ने वर्ष 2019-20 के औसतन 60.47 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले 2020-21 में 44.82 डॉलर प्रति बैरल यानी 15.55 डॉलर कम दाम पर क्रूड खरीदा. इसके बावजूद पिछले उस दौरान दौरान पेट्रोल करीब 21 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत  लगभग 29 रुपये प्रति लीटर महंगा कर दिया गया.

यानि मोदी सरकार में जब क्रूड महंगा हुआ और तेल के दाम बढ़े तो आम लोगों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन जब-जब सस्ता हुआ तो सरकार ने टैक्स बढ़ाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाया.

मोदी सरकार में जब तेल के दामों को डी-रेग्युलेट किया गया, तब कहा गया था कि इससे आम लोगों को फायदा होगा. मोदी सरकार का दावा था कि इससे उपभोक्ता को सीधा लाभ मिलेगा. अगर तेल की कीमतें घटेंगी तो आपको सस्ता तेल मिलेगा और बढ़ेंगी तो आपको इसके लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी.

लेकिन मोदी सरकार ने कभी भी कच्चे तेल के सस्ते दामों का लाभ जनता तक कभी पहुंचने नहीं दिया लेकिन जैसे ही दाम बढ़े तुरंत दाम बढ़ाए गए. जून 2014 में एक लीटर पेट्रोल पर साढ़े 9 रुपए और डीजल पर करीब साढ़े 3 रुपए एक्साइज ड्यूटी थी लेकिन आज मोदी सरकार पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 27.9 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 21.8 रुपए प्रति लीटर वसूल रही है. यानी आज भी एक्साइज ड्यूटी पेट्रोल पर तिगुनी और डीजल पर लगभग 10 गुना ज्यादा है.

मोदी सरकार यदि चाहें तो अब भी ड्यूटी घटाकर कीमतों को कंट्रोल रख सकती हैं लेकिन वो ऐसा करेंगी नही क्योंकि उसे पता हैं कि बढ़ी हुई कीमतों को सही बताने के लिए उसके अंधभक्त जी जान लगा देंगे.

मंहगे पेट्रोल-डीजल के समर्थक लोगों को बरगलाने में कामयाब हो गये हैं कि मंहगा पेट्रोल-डीजल एक अच्छी चीज है. इससे केवल गाड़ी चलाने वाले लोग ही परेशान होंगे, तुम्हें क्या है ? लेकिन यह समझना होगा कि पेट्रोल-डीजल के मंहगे होते कीमत का सीधा संबंध रोजमर्रा की चीजों के दामों में भी बेतहासा बढ़ोतरी होगी क्योंकि वस्तुओं के ढुलाई की लागत बढ़ जायेगी. अभी चुनाव भी खत्म नहीं हुआ है लेकिन गैस सिलेंडर के दामों में 150 रुपये की बढ़ोत्तरी हो चुकी है.

भाजपा और मंहगाई के समर्थक लोगों को यह बताने में कामयाब हो गई है कि मंहगाई केवल कांग्रेसी काल में ही डायन थी, अब वह अम्मा बन गई है. जो लोगों को यह समझना होगा कि मंहगाई न तो डायन है और न ही अम्मा, शोषक वर्गों के हित में साधने वाला वह षडयंत्र है, जो लोगों का, खासकर मेहनतकश जनता का खून निचोड़कर कॉरपोरेट घरानों का खजाना भरता है.

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