सोवियत साहित्य से मेरा प्रथम परिचय तब हुआ जब मैं 10वीं कक्षा में थी. अजीब बात है कि कबाड़खाने और कबाड़ी के ठेले पर में रखी वस्तुएं मुझे आकर्षित करती हैं और मैं उनसे कुछ न कुछ खरीद ही लेती हूं. ऐसे ही ये पुस्तक मुझे कबाड़ की दुकान पर किलो के भाव बिकते रद्दी में मिली और मैं मामूली दाम दे कर ये मैली-सी जिल्द वाली अमुल्य पुस्तक खरीद लाई.
सोवियत साहित्य के क्षेत्र में प्रथम पुस्तक जो मैंने पढ़ी थी वो यही थी, सोवियत साहित्य के पितामह कहे जाने वाले मक्सिम गोर्की की पुस्तक ‘थ्री ऑफ़ देम.’ रादुगा प्रकाशन से प्रकाशित हुई हिन्दी अनुवाद वाली इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि इसका हिन्दी नाम ‘उनमें से तीन’ होना चाहिये था.
रुसी साहित्य का हिन्दी अनुवाद कर हिन्दी और रूसी भाषा के मध्य एक पुल का निर्माण करने वाले रदुगा प्रकाशन (मास्को) में सम्पादक अनुवादक रहे डॉ. मदन लाल मधू का आभार हिन्दी के पाठक सदैव व्यक्त करते रहेंगे. मधू जी न केवल शब्दों का अनुवाद किया बल्कि लेखक के भाव को भी पुस्तक में उतार सकने में सक्षम हुए. इस पुस्तक में बहुत से पात्र हैं जिनमें से मुख्यतः तीन लोगों की कहानी है. इसके तीन नायक हैं इल्या लुन्योव, पावेल ग्राचोव और याकोब फिलिमनोव.
इस पुस्तक की कहानी शुरु होती है केरजेनेत्स नदी के कछार के जंगलों और कठोर स्वभाव के धनी किसान अंतिपा लुन्योव से जो पचास वर्ष की आयु तक इस पापमय जीवन जीने के बाद सन्यासी बन कर जंगल में रहने लगा.
इस पुस्तक का एक नायक इल्या लुन्योव का बाप और अंतिपा का बेटा याकोव गांव में आग लगाने के जुर्म में साइबेरिया भेज दिया जाता है और अब इल्या के पालन-पोषण की जिम्मेदारी इल्या के चाचा तेरेंती पर आ जाती है.
रूस के एक गांव से निकल कर इल्या चाचा के साथ शहर चला जाता है और एक गंदी झुग्गी में रहने लगता है. जहां एक हीं मकान में कई लोग रहते हैं. यहीं उसकी मुलाकात विभिन्न स्वभाव परंतु एक हीं पृष्ठभूमि यानी सर्वहारा वर्ग के लोगों से होती है.
पावेल ग्राचोव एवं उसके लोहार और कठोर स्वभाव के पिता सावेल, काबाड़ का काम करने वाले दयालू दादा येरेमई, शराबखाने के मलिक दुराचारि और भ्रष्ट पेत्रुखा, पेत्रुखा का धर्म भीरू और सरल बेटा याकोव सहित शराबी पेर्फिशका और उसकी बेटी माशा से होती है. इस पुस्तक के तीनों नायक उस गलीज से निकलने की कोशिश करते हैं जहां रहने को उन्हें मजबूर किया गया. वे नैतिक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लोगों को देख कर तिलमिलाते हैं.
इसका एक नायक याकोव नेकदिल और भीरू है, जो सदैव किसी न किसी पुस्तक में डूबा रहता है. ईश्वर और मानव सहित दूनियां की सभी चीज़ों की उत्त्पति को ले कर सवाल करता है और उसी में खोया रहता है. अपने पिता के शराबखाने में काम करने को मजबूर किया जाता है और पीटा जाता है. अंत में स्वयं को नैतिक भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा देता है.
दुसरा नायक इल्या लुन्योव साफ सुथरी जिंदगी बिताना चाहता है. उसकी आकांक्षाएं बस पेट भर लेने तक ही सीमित नही है. जीवन कैसे जिया जाए और नैतिक पतन से कैसे बचा जाए, ये सोचते हुये अपराधी बन जाता है और अपनी नैतिकता खो देता है.
तीसरा नायक है सावेल लोहार का मनमौजी बेटा पावेल. पिता के द्वारा मां की हत्या कर दिये जाने पर और पिता को हत्या के जुर्म में साइबेरिया भेज दिये जाने पर वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो जाता है और अपने सामने कोई उद्देश्य रखता है. फटेहाली में भी मस्त रहता है, कविताएं लिखता है और जेल की सैर भी कर आता है. ये तीनों जीवन के क्रुर बन्धन से स्वयं को छुड़ाना चाहते हैं. अंत में केवल पावेल हीं जीवन का सही मार्ग खोज सकने में सफल हो पाता है. वे तीनों एक हीं घर के अलग अलग खोली में रहते हैं.
इल्या कबाड़ का काम करने वाले दादा येरेमई का शागिर्द बन जाता है. वह कचरा चुनता है, मेहनत करता है और स्कुल भी जाता है. कबाड़ इकट्ठा कर वो शाम को घर लौटता है और घर के सभी बच्चों को कबाड़ से निकाल कर टूटे-फूटे खिलौने बांट देता. नन्हे परंतु तीक्ष्ण बुद्धि के कबाड़ी का स्कुल में अपमान होता है.
दादा येरेमई की मृत्य को काफी करीब से देखने वाला वो काबाड़ी पूरी दुनियां और अपने चाचा के नैतिक पतन को देख विरक्त हो जाता. उसे घृणा होती है अपने चाचा और शराबखाने के मालिक पेत्रुखा से जब वो देखता है कि कबाड़ का काम कर दादा येरेमई द्वारा जोड़े गये पैसे जिससे वह एक गिरजाघर बनाने के लिए जमा करता है. उसे वे चुरा लेते हैं वो भी तब जब येरेमई की आखिरी सांसें चल रही होती हैं.
स्कुल छोड़ वह एक मछली की दुकान में काम करने लगता है और अधिक ईमानदार होने की वजह से वहां से निकाल दिया जाता है. मछली के दुकान का मालिक उसे निकालने से पहले कहता है, ‘मुझे इस बात से क्या मतलब कि तीन में से एक आदमी ईमानदार है ? मेरे लिए तो एक हीं बात है. हमें एक खास किस्म की कसौटी चाहिये. अगर एक ईमानदार हैं और नौ बदमाश तो उस से किसी का कोई भला नही होने का और जो ईमानदार है उसका अंजाम बुरा होगा…लेकिन सात ईमानदार है और तीन बदमाश तो तुम्हारे पक्ष की जीत होगी. जो गिनती में अधिक होते हैं वे सही होते हैं.’
दुकान का मालिक यह कहते हुये उसे उसकी ईमानदारी की वजह से निकाल देता है और इल्या वापस घर लौट आता है. अब वह फेरी वाला बन जाता है और गले में बक्सा लटका शहर की सडकों पर सामान बेचा करता है. ये घर इल्या को अभिशप्त लगता है. जहां से चाह कर भी कोई निकल कर साफ सुथरी जिंदगी नही जी सकता.
शराबखाने के शोर से बच कर शाम को ये युवा कैसे जीवन जिया जाए, कौन सी किताबें पढ़ी जाए, दुनियां की उत्पत्ति कैसे हुई, ये विचार करते हुये गर्मागर्म बहस और समोवार से गर्मागर्म चाय पीते हुये तथा पत्ते खेलते हुये पेर्फीश्का मोची के तहखाने नुमा घर में बिताते है. गौर करने पर लगता है कि सर्वहारा वर्गों की दशा दुनियां के सभी भागों में लगभग एक-सी ही है.
भारत और रुस की सामाजिक व्यवस्था काफी मिलती जुलती थी. अतः गोर्की को समझ सकने में अधिक दिक्कत नही होती. मेहनतकश लोगों एक ऐसा वर्ग जो समाज में वर्गहीन होता है. दुनियां के सभी क्षेत्रों में इनकी स्थिति कमोबेश ऐसी हीं रही है. अच्छा जीवन कैसे जिया जाए, सोचते सोचते ये लोग कब नैतिक पतन और नैतिक भ्रष्टाचार के के शिकार होते चले जाते हैं, इन्हें भी नहीं पता चलता. हमेशा की तरह बुर्जुआ तथा सर्वहारा वर्ग के बीच चल रहे संघर्षों को गोर्की ने इस उपन्यास में भी बखुबी उकेरा.
गोर्की के लेखनी के प्रभाव का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि औपनिवेशिक भारत में गोर्की की किताब ‘मां’ पढ़ना गैरकानूनी था. गोर्की को पढ़ना सिर्फ रुस को जानना भर नहीं है. गोर्की की लेखनी संसार के सभी भागों के लोगों को समझने में मदद करती है जो स्वयं को जीवन के क्रुर बन्धन से छुड़ा सकने के लिए जद्दो-जहद कर रहे हैं.
- आकांक्षा पाठक
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