विष्णु नागर
लो जी, बधाई आपको, इस सरकार ने अब विज्ञान को भी भगवानों और बाबाओं की श्रेणी में ला खड़ा किया है. अब आप भी अक्षत, पुष्प, फलादि ले आइए, विज्ञान प्रभु की पूजा-अर्चना का पुण्य कमाइए और लोक-परलोक दोनों सुधारिए. सोमवार तक यह सुनहरा.अवसर सुलभ है. तब तक विज्ञान पूज्य रहनेवाला है.
हो सकता है आप उत्तर प्रदेश के चुनावों और यूक्रेन संकट में इस कदर फंसे हों कि आपको यह खबर ही न हो कि इन दिनों हमारी प्रिय भारत सरकार सप्ताह भर का ‘विज्ञान पूज्यते’ उत्सव मनाने में व्यस्त हैं, जिसका समापन कल सोमवार को ‘विज्ञान दिवस’ पर होगा. मोदी जी इस समय चुनावों में परम व्यस्त हैं वरना विज्ञान क्या है और वह क्यों पूज्य है, इस पर जनता का ज्ञानवर्द्धन अवश्य करते.
दरअसल इन दिनों उसे ज्ञान कहो या अज्ञान उसके एकमात्र सबसे विश्वसनीय भारतीय स्रोत वही हैं क्योंकि उन्होंने अपने अलावा सबकुछ बर्बाद करके हमें थमा दिया है कि जाओ, मौज करो. इस अवसर पर उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान अथवा अज्ञान से वंचित रह जाने की कमी लंबे समय तक इस देश मेंं अनुभव की जाएगी.
वैसे सरकार कुछ गलत नहीं कर रही है. हमारी यह महान परंपरा रही है कि मरने या मार देने से भी कोई न मरे तो उसे पूज्य बनाकर, उसकी पूजा करके मार दो और फिर हमेशा के भूल जाओ, सुखी हो जाओ. बुद्ध को अवतार का दर्जा देकर हमारे पूर्वजों ने ठीक यही किया और बौद्ध धर्म को बाहर का रास्ता दिखा दिया.
गांधी जी गोली मारने से भी नहीं मरे तो उन्हें पूजनीय बनाकर मार दिया. इस राज की मंशा विज्ञान को भी इसी प्रकार मारने की है. वह अधमरा तो किया ही जा चुका है, मर भी जल्दी जाएगा. उसकी मृत्यु का शोक भी सबसे पहले और सबसे ज्यादा उसे मारनेवाले ही मनाएंगे. आप-हम तो उनके पिछलग्गू साबित होंगे !
विज्ञान की हत्या के लिए किसी नाथूराम को अपने हाथ खून से रंगने की जरूरत नहीं. किसी अदालत को किसी गोडसे को फांसी पर चढ़ाने की आवश्यकता नहीं, बस उसकी पूजा जारी रखो, मंत्रपाठ करते रहो, वह खुद स्वेच्छा से अग्निकुंड में दाखिल हो जाएगा और पूजापद्धति अलग हो सकती है, पूजा करना किसी धर्म में पाप नहीं बताया गया है. किसी के किसी की पूजा करने पर किसी नास्तिक को भी आपत्ति नहीं. मारने की इससे अहिंसक पद्धति दुनिया में दूसरी विकसित नहीं हुई है.
विज्ञान को मारने के अनेक अहिंसक उपाय उपलब्ध हैं. एक तरीका अपनी हर मूर्खता को वैज्ञानिक और हर तार्किकता को मूर्खता सिद्ध करना है. आजकल यही सबसे अधिक प्रचलित और लोकप्रिय पद्धति है. शिखर से लेकर नीचे तक इसी का बोलबाला है. इस समय हिंदूवादी मूर्खता का बाजार बहुत गर्म है. यह मूर्खता इस हद तक सिर पर विराजमान है कि दुनिया में कहीं कुछ नई खोज हुई हो, नया बना हो, फौरन उसका इस्तेमाल शुरू कर दो और फिर कहो कि इसमें क्या रखा है, इसे तो हमारे पूर्वज हजारों साल पहले करके दिखा चुके हैं.
अरे जब तुम्हारे पूर्वज ये सब बहुत पहले कर चुके थे तो तुमसे इतना भी नहीं हुआ कि उसे जीवित रखते, उसमें नया जोड़ते ? सब हजारों साल पहले हो चुका था तो तुम हजारों साल तक हाथ पे हाथ धरे क्यों बैठे रहे ? तुम्हारे पास मुसलमानों और अंग्रेजों को दोषी दिखाने की तो बहुत फुरसत थी, उसे बचाने-बनाने का समय क्यों बिल्कुल नहीं था ?
हजारों साल तक तुम सिर पकड़ कर बैठे क्यों रहे ? फालतू और फुरसती लोग और कौमें खुद कुछ नहीं करतीं. दाढ़ी बढ़ाने, ज्ञान बचारने और दिनभर कपड़े बदलकर जोकरी करने के अलावा. सबकुछ हो जाने के बाद फोकटिया श्रेय लूटती रहती है और दुनिया को हंसने का सामान उपलब्ध करवाती रहती है.
वैसे आलसियों और मूर्खों के तर्क उनकी अक्ल की तरह ‘शानदार’ होते हैं. भारत में भी जिन्हें कुछ करना था, कर गए. उन्होंने पूर्वज-पूर्वज का खेल नहीं खेला. आज भी वे खेल नहीं रहे हैं. ऐसे महान देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर विज्ञान की पूजा न होना ही अवैज्ञानिक होता, पूजा होना सर्वथा ‘वैज्ञानिक’ है.