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मोदी सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीयों को रुस के खिलाफ मानव ढ़ाल बना रही है

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केन्द्र की मोदी सरकार यूक्रेन में पढ़ाई करने गये भारतीय छात्रों को क्यों नहीं लाना चाहती है ? इसका सीधा जवाब है भरोसेमंद दोस्त रुस को छोड़कर अमेरिकी साम्राज्यवाद का पुछल्ला बने केन्द्र की मोदी सरकार अमेरिकी ऐजेंट यूकेन के नवनाजी राष्ट्रपति जेलेंस्की की सेनाओं के लिए रुसी सैनिकों के सामने मानव ढ़ाल के बतौर प्रस्तुत करना, ताकि रुसी सेनाओं के भीषण हमले से बचा जा सकता है.

पिछले नौ दिनों से जारी यूक्रेन में नाजी फासिस्ट की जेलेंस्की की सरकार और अमेरिकी साम्राज्यवाद का गुंडा गिरोह नाटो की पैशाचिक नृत्य के खिलाफ रुसी सेनाओं के भीषण हमलों के बीच यूक्रेन के दस लाख से अधिक यूकेनी नागरिक यूक्रेन छोड़कर पड़ोसी देशों में भाग चुके हैं लेनिन महज 20 हजार भारतीय छात्रों को यूक्रेन से निकाला नहीं जा सका, यह मोदी सरकार की अकर्मण्यता से ज्यादा अमेरिकी ईशारे पर भारतीय छात्रों को यूकेनी सेनाओं के लिए ढ़ाल बनाने की ही एक घृणित कोशिश है.

सारी दुनिया जानती है कि भारत अपने आजादी के बाद से ही सोवियत संघ (अब रुस) के प्रति मित्रता का भाव रखता आया है, जिसका सोवियत संघ (अब रुस) ने भी न केवल सम्मान ही दिया है बल्कि दर्जनों ऐसे मसले हैं जिसके लिए रुस पूरी दुनिया से लड़ गया. लेकिन अब जब रुस ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के यूकेनी टट्टू फासिस्ट जेलेंस्की के खिलाफ बल प्रयोग कर दिया, तब अमेरिकी टट्टू मोदी सरकार ने दिखावे के तौर पर तो रुस के साथ रहा लेकिन भीतरी तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवाद, नाटो और उसका फासिस्ट टट्टू जेलेंस्की के साथ खड़ा हो गया.

यह कैसे किया गया है, इसे ऐसे समझा जाना चाहिए. भारतीय छात्रों को युक्रेन की राजधानी कीव से तुरंत निकलने की एडवाइजरी जारी की जाती हैं और इसके ठीक 12 घण्टे बाद भारत में बैठे हुए विदेश सचिव श्रृंगला कहते हैं कि ‘हमारे सभी नागरिकों ने कीव छोड़ दिया है, हमारे पास जो जानकारी है, उसके मुताबिक कीव में हमारे और नागरिक नहीं हैं, वहां से हमें किसी ने संपर्क नहीं किया है.’ इसके तुरंत बाद यह खबर आती है कि यूक्रेन की राजधानी कीव में भारतीय दूतावास को बंद कर दिया गया है. संभवत इसे समीपवर्ती शहर लीव में शिफ्ट किया जा सकता है.

खबरों के अनुसार यूक्रेन की राजधानी कीव में भारतीय दूतावास को यह सुनिश्चित करने के बाद बंद कर दिया गया है कि वहां अब कोई भारतीय नहीं रह गया है. यानी, हमारे विदेश सचिव की बातो का मतलब यह है कि कीव से हमसे किसी भारतीय ने सम्पर्क नही किया. इसका मतलब यह है कि उन्होंने कीव छोड़ दिया है ? इसके तुरंत बाद विदेश सचिव द्वारा एक आश्चर्यजनक दावा किया गया कि ‘जब हमने पहली एडवाइजरी जारी की थी तो उस समय हमारा अनुमान था कि 20,000 छात्र-छात्राएं यूक्रेन में हैं. उस समय से लगभग 12,000 लोग यूक्रेन छोड़ चुके हैं, जो कि यूक्रेन में हमारे नागरिकों की कुल संख्या का 60 प्रतिशत है.’

पत्रकार गिरीश मालवीय कहते हैं, ‘मुझे समझ नहीं आता कि इस बयान में ‘अनुमान’ जैसे शब्द की क्या जरुरत है ? बिना पासपोर्ट, बिना वीजा के कोई भारतीय छात्र वहां की यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है क्या ? आपको एग्जेक्ट मालूम होना चाहिए कि कौन छात्र कहां है, किस हाल में है, किस शहर में है, किस रास्ते पर चल रहा है ? समझ में नहीं आता कि कोई मीडिया चैनल यह पूछने की हिम्मत नहीं कर रहा है कि मोदी सरकार बताए कि युक्रेन में हमारे कितने छात्र लापता हैं ? अभी तक कोई ऑफिशीयल आंकड़ा नहीं है. अनुमान लगाए जा रहे हैं जबकि कई छात्राओं के अगवा किए जाने की बात सामने आई है.'[1]

‘चार हज़ार भारतीय छात्र छात्राएं युक्रेन की राजधानी कीव में फंसे हुए है, बाहर कर्फ्यू लगा हुआ है, दिन रात वहा बमबारी हो रही है, मिसाईल अटैक हो रहे हैं, उनके पास खाने को एक दाना नही हैं, खाना लेने एक छात्र बाहर निकला तो उसे गोली मार दी गईं, निकलना भी मुश्किल है क्योंकि वहां से हंगरी रोमानिया बॉर्डर की दूरी 500-800 किलोमीटर दूर है.’

यहीं पर सवाल है. मोदी सरकार अगर भारत को अगर अपना दोस्त राष्ट्र मानता तो ऐसे वक्त में वह सीधे रुस से बात करता और भारतीय छात्रों को रुसी बॉर्डर पार कराकर रुस भेज दिया जाता, जो वहां से नजदीकी भी पड़ता और सुरक्षित निकल भी जाते. फिर वहां से मोदी सरकार तमाम छात्रों को भारत मंगा लिया जाता. इराक युद्ध के वक्त पौने दो लाख भारतीयों को इराक से भारत लाने वाले सरकार के लिए महज 20 हजार छात्रों को भारत लाना कोई ज्यादा मुश्किल काम भी नहीं था.

लेकिन नहीं, अमेरिकी साम्राज्यवाद का पुछल्ला यह मोदी सरकार रुसी सेना के बढ़त के सामने भारतीय छात्रों को लाकर खड़ा कर दिया ताकि यूकेनी फासिस्ट सरकार के लिए भारतीय छात्र मानव ढ़ाल की तरह उपयोग हो तथा अगर गोलीबारी में किसी भारतीय छात्र की मौत होती है तो इसका उपयोग कर भारत के जनमानस के बीच रुस को बदनाम किया जा सके. हुआ भी यही, जब गोलीबारी में भारतीय छात्रों की मौत हुई तो रुस को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा, लेकिन भारतीय लोगों सिरे से इस आरोप को नकार दिया.

ऐसे में रुस की सेना और रुस के राष्ट्रपति पुतिन की ओर से जारी प्रेस बयान काफी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब वे कहते हैं कि ‘यूकेनी फासिस्ट सेना भारतीय छात्रों को बंधक बनाकर मानव ढ़ाल के तौर फर इस्तेमाल कर रहा है और उसे यूक्रेन से बाहर जाने नहीं दे रहा है.’ ठीक ऐसी ही तस्वीरों को भारतीय छात्रों ने साझा किया है कि यूकेनी फासिस्ट सेना भारतीय छात्रों को सीमा पार करने नहीं दे रही है और उसपर हमले करने, गोली मारने की धमकी दे रही है.

रूसी सेना के प्रवक्ता ने एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, ‘हमारी सूचना के मुताबिक, यूक्रेनी अधिकारियों ने खारकीव में भारतीय विद्यार्थियों के एक बड़े समूह को जबरन रोककर रखा हुआ है, जो यूक्रेनी सीमा से निकलकर बोलगोरोड जाना चाहते हैं … दरअसल, उन्हें बंधक बनाकर रखा गया है… रूसी सशस्त्र बल भारतीय नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाने के लिए तैयार है, और उन्हें रूसी धरती से अपने सैन्य विमानों या भारतीय सैन्य विमानों के ज़रिये घर भेजेंगे, जैसा भी भारत प्रस्ताव रखेगा…’

https://www.kooapp.com/koo/vmbjp/aeed5401-8317-4d5b-86ab-5d25deca56bd

इसके बावजूद अमेरिकी टट्टू मोदी सरकार की ओर बजाय एतिहाद कदम उठाने के, उल्टे मित्र राष्ट्र रुस के बयान का ही खण्डन करयूक्रेन के फासिस्ट सेनाओं का बचाव कर दिया. भारतीय विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि यूक्रेन में भारतीयों को बंधक बनाए जाने जैसी कोई ख़बर नहीं मिली है. वहीं भारतीयों को निकालने में यूक्रेन ऑथोरिटीज़ से पूरी मदद मिल रही है. युद्धरत देश में मौजूद भारतीयों से विदेश मंत्रालय लगातार संपर्क में है. उन्होंने कहा, ‘किसी भी विद्यार्थी के बारे में बंधक होने जैसी कोई सूचना नहीं मिली है… हमने यूक्रेनी अधिकारियों से विशेष ट्रेनों की व्यवस्था करने का आग्रह किया है, ताकि विद्यार्थियों को खारकीव से देश की पश्चिमी सीमा से सटे देशों में ले जाया जा सके…’.[2]

जबकि, यूक्रेन में फंसे छात्रों के द्वारा जारी हो रहे वीडियो, वक्तव्य यह चीख चीख कर कह रहा है कि यूक्रेन की फासिस्ट नवनाजीवादी सेना और उसकी सरकार भारतीय छात्रों के साथ न केवल दुव्यर्वहार ही कर रही है अपितु कुत्तों की भांति खदेड़ा जा रहा है, अपमानित किया जा रहा है और रुसी सैनिकों के सामने मानव ढ़ाल की तरह पेश किया जा रहा है.

आंकड़े बताते हैं कि यूक्रेन में रुसी सेना भीषण हमलों के बाद भी बहुत नागरिक कम हताहत हुए हैं. रुसी सेना यूक्रेन के अंदर बेहद संतुलित हमले कर रही है. वह मुख्यतः यूकेनी नवनाजी फासिस्ट ताकतों को ही निशाने पर ले रही है. यही हमला अगर अमेरिकी साम्राज्यवाद के नोटो गुंडों द्वारा किया गया होता तो जिस तरह भारतीय मानव ढ़ाल के तौर पर बनाया गया है अब तक लाखों नागरिक मारे जा चुके होते.

उपरोक्त तथ्य यह साफ दर्शाते हैं कि अमेरिकी टट्टू केन्द्र की मोदी सरकार और उसकी यूक्रेन स्थित दूतावास जानबूझकर भारतीय छात्रों को यूक्रेन में रुसी सेना के सामने उसकी बढ़त रोकने के लिए मानव ढ़ाल की तरह प्रयोग किया है, जो उसकी नीचता और मित्र रुस के साथ गद्दारी का जीताजागता प्रमाण है.

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