कैसा लगता है
घर से दूर
अंजाने में
अंजाने शत्रुओं के बीच की
गोलाबारी में मारा जाना
निर्दोष होना
बचे रहने की गारंटी नहीं है यहां
निर्लिप्त होना भी नहीं
निष्पक्ष होना भी नहीं
कैसा लगा होगा उन्हें
जो विदेशी ज़मीन पर मारे गए
स्वदेशी राजाओं की तरफ़ से
अंजाने शत्रुओं के विरुद्ध लड़ते हुए
कैसा लगता होगा
उनके परिजनों को
उनकी याद में जलाई गई ज्योति को
बुझते देखते हुए
ये आंसू सूख जाएंगे
अफ़सोस के खोखले शब्द
गुम हो जाएंगे सरकारी फ़ाईलों में
तुम्हारी मुस्कुराती हुई तस्वीर पर
वोट मांग कर
वे लौट जाएंगे अपने अपने आरामगाहों में
मांओं की सूनी गोद
श्रावण संध्या सा दिखेगी
कुछ धुंधली
कुछ उजली
विधवाओं की सूनी मांग की तरह
- सुब्रतो चटर्जी
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