क्या आपको पता है 26-27 फरवरी, 1991 की वो काली रात, जो इराक में युद्ध इतिहास के सबसे क्रूर नरसंहारों में से एक था ? कुवैत शहर से लगभग 32 किमी पश्चिम में राजमार्ग 80 पर फरवरी 26-27, 1991 की रात को, युद्धविराम की घोषणा के बाद, हजारों इराकी सैनिक और नागरिक बगदाद की ओर लौट रहे थे, जब राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अपनी सेना को पीछे हटने वाली इराकी सेना का वध करने का आदेश दिया.
गठबंधन सेना के लड़ाकू विमानों ने निहत्थे काफिले पर बमबारी शुरू कर आगे और पीछे के वाहनों को नष्ट कर दिया, ताकि कोई भी न बच सके. नरसंहार ऐसा कि समाप्त होने के बाद, लगभग 2,000 क्षतिग्रस्त इराकी वाहन और हजारों इराकी सैनिकों के जले और खंडित शव मीलों दूर तक पड़े रहे, जिसे ‘मौत का राजमार्ग’ कहा जाने लगा. बसरा की ओर जाने वाली एक अन्य सड़क, राजमार्ग 8 जिसके किनारे कई सौ क्षतिग्रस्त वाहन आज भी पड़े हैं.
एक दिन पहले, बगदाद ने रेडियो पर घोषणा की थी कि इराक के विदेश मंत्री ने सोवियत युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 660 के अनुपालन में सभी इराकी सैनिकों को कुवैत से हटने का आदेश दिया है, हालांकि राष्ट्रपति बुश ने इस पर विश्वास करने से इनकार कर दिया था और जवाब दिया था कि ‘इराकी सेना के पीछे हटने का सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं था. वास्तव में, इराकी इकाइयां लगातार लड़ रही हैं .. हम युद्ध पर मुकदमा चलाना जारी रखते हैं.’
अगले दिन, इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने खुद रेडियो पर घोषणा की थी कि वापसी वास्तव में दो राजमार्गों पर शुरू हो गई है और उस दिन पूरी हो जाएगी. जिस पर बुश ने राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की घोषणा को ‘एक आक्रोश’ और ‘एक क्रूर धोखा’ कहते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की थी.
इराक के आत्मसमर्पण और युद्ध के मैदान को छोड़ने के प्रस्ताव को स्वीकार करने के बजाय, जिससे एक समझौता हो सकता है जो संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुकूल नहीं हो सकता है, बुश और अमेरिकी सैन्य रणनीतिकारों ने जितना संभव हो सके उतने इराकियों को मारने का फैसला किया.
बमबारी आधी रात के करीब शुरू हुई. पहले तो अमेरिका और कनाडा के जेट विमानों ने काफिले को आगे या पीछे जाने से रोकने के लिए उसके आगे और पीछे के सिरों पर बमबारी की, फिर बार-बार बमबारी करके फंसे हुए काफिले पर हमला किया. संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य कमान के कमांडर-इन-चीफ को बुश प्रशासन से ‘कुवैत शहर से किसी को या किसी भी चीज़ को बाहर नहीं जाने देने’ का निर्देश मिला था.
नतीजतन, हाइवे से डायवर्ट किए गए किसी भी वाहन को ट्रैक किया गया, शिकार किया गया और व्यक्तिगत रूप से नष्ट कर दिया गया. आत्मसमर्पण करने वाले निहत्थे इराकी सैनिकों को भी गोलियों से भून दिया गया. एक भी इराकी नहीं बचा जिसका जश्न पूरी दुनियां में मनाया गया. जानकारों का मानना है कि उस नरसंहार की रात 50 हजार इराकी सैनिक व नागरिक मार दिये गए.
यह एक जघन्य युद्ध अपराध था. पश्चिमी मीडिया, जो आज यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई पर गला फाड़ फाड़कर चिल्ला रही है कि ये सब गलत हो रहा है, तब इसी ने इराक में अमेरिकी नरसंहारों का पूरा समर्थन किया ! वक्त बदलेगा, हम ना सही हमारी आने वाली नस्लें इन्हें भी ऐसे ही तबाह व बर्बाद होते देखेंगी आज नहीं तो कल.
- शौकत अली