Home गेस्ट ब्लॉग झारखंड : आदिवासी क्षेत्र में सीआरपीएफ के बंदूक के साये (सरकारी आतंक) के बीच एक दिन

झारखंड : आदिवासी क्षेत्र में सीआरपीएफ के बंदूक के साये (सरकारी आतंक) के बीच एक दिन

32 second read
0
0
484
झारखंड : आदिवासी क्षेत्र में सीआरपीएफ के बंदूक के साये (सरकारी आतंक) के बीच एक दिन
तस्वीर – अंजनी विशु
रूपेश कुमार सिंह

आदिवासी क्षेत्र में स्टेट टेरर (सरकारी आतंक) क्या होता है, इसे आज मैंने पहली बार अपनी आंखों से देखा. आप भी अगर जानने को इच्छुक हैं, तो इसे जरूर पढ़ें.

आज झारखंड के गिरिडीह जिला के खुखरा थानान्तर्गत चतरो गांव में संस्कृतिकर्मी सुंदर मरांडी का शहादत दिवस समारोह एवं मोरा करम पर्व का आयोजन किया गया था. इसमें बतौर अतिथि झारखंड जन संघर्ष मोर्चा के बच्चा सिंह, गोड्डा कॉलेज की प्रोफ़ेसर रजनी मूर्मू, अंजनी विशु, झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन, आदिवासी मूलवासी विकास मंच के नेताओं, स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि के साथ-साथ मैं भी मौजूद था.

जब हमलोग कार्यक्रम स्थल पर जा रहे थे, तो कार्यक्रम स्थल से 1 किलोमीटर पहले से ही लगभग 500 मीटर तक सड़क के किनारे सीआरपीएफ के जवान तैनात थे. कार्यक्रम प्रारंभ होने के साथ ही ग्रामीणों की भाषा में सीआरपीएफ के खुफिया विभाग के 4 व्यक्ति सिविल ड्रेस में कार्यक्रम का वीडियो बनाने लगे और कार्यक्रम में आये अतिथियों का तस्वीर लेने लगे.

उद्घाटन वक्तव्य की शुरुआत करते हुए मैंने कहा कि ‘सीआरपीएफ के बंदूक के साये में आयोजित कार्यक्रम में मौजूद सभी साथियों व वीडियो बना रहे सीआरपीएफ के ख़ुफ़िया विभाग के लोगों को मैं इन्कलाबी सलाम पेश करता हूं.’ इतना सुनते ही वे चारों खुफिया वाले वहां से चले गये.

कार्यक्रम के बीच में ही खाना खाने के लिए बगल में ही हमलोग सुंदर मरांडी के घर जा रहे थे, तभी लगभग 25 बाईक से लगभग 50 सीआरपीएफ वहां पहुंच गये और इशारा कर के बताने लगे कि वही बच्चा सिंह और रूपेश कुमार सिंह हैं. हमलोगों ने उनकी परवाह नहीं की और खाना खाने घर के अंदर चले गये.

खाना खाकर आंगन में मैं कुर्सी पर बैठा ही था कि सुंदर मरांडी के घर को चारों तरफ से सीआरपीएफ ने घेर लिया और कई अधिकारी व जवान आंगन में आ गये और खाना बना रहे आदिवासी ग्रामीणों व खाना खा रहे लोगों का वीडियो व तस्वीर लेने लगे. 2 सीआरपीएफ का जवान मेरा भी वीडियो व तस्वीर लेने लगे. मैंने पूछा कि ‘क्या बात है और वीडियो व तस्वीर क्यों ले रहे हैं ?’ इस पर उन्होंने कहा कि ‘हमलोग आपकी सुरक्षा में हैं.’

इसी बीच एक जवान ने आकर बोला कि ‘बच्चा सिंह को साहब बुला रहे हैं.’ बच्चा सिंह के साथ मैं भी अधिकारियों के पास गया. तो वे मेरा नाम जानने के बाद पूछने लगे कि आपने अपने भाषण में ‘सीआरपीएफ के बंदूक के साये में’ क्यों बोला ? मैंने कहा कि ‘मैंने जो देखा, वही बोला.’ इसपर वे तमक गये और लगभग 10 मिनट तक हमारे बीच में बहस होती रही.

अंतिम में मैंने कहा कि मैंने कोई असंवैधानिक बात नहीं बोला है, बाकी अगर आपको लगता है, तो मेरे ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज करा दीजिए. यह सुनते ही और बच्चा सिंह के द्वारा बीच-बचाव करने के बाद वे लोग नॉर्मल हुए.

क्या आदिवासी क्षेत्र में सीआरपीएफ किसी के आंगन में घुसकर वीडियो बना सकती है ? हम क्या और कैसे बोलेंगे, क्या यह सीआरपीएफ तय करेगी ? क्या झारखंड में सीआरपीएफ का राज चल रहा है ? जरा आप ही सोचिए, इस तरह के माहौल में आदिवासी ग्रामीण कैसे रहते होंगे ?

{ Pratibha ek diary is a independent blog. Subscribe to read this regularly. Looking forward to your feedback on the published blog. To get more updates related to Pratibha Ek Diary, join us on Facebook and Google Plus, follow us on Twitter handle… and download the ‘Mobile App‘ }

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

मरम्मत से काम बनता नहीं

आपके साथ जो हुआ वह निश्चित ही अन्याय है पर, आपके बेटे की क्या गलती जो बेशक बहुत अव्वल नहीं…