रूस की एक मात्र मांग है कि यूक्रेन अमेरिकी साम्राज्यवाद का गुंडा गिरोह नाटो से अपना संबंध खत्म करे, और यूक्रेन न केवल नाटो के गुंडा गिरोह में शामिल होना चाहता है बल्कि अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ मिलकर रूस को खत्म करने के लिए जमीनी आधार बनने के लिए न केवल पूरी तरह तैयार है बल्कि वह अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ मिलकर रूस पर हमला भी कर रहा है. इसलिए यह कहना मूर्खता है कि यूक्रेन पर हमला रूस ने किया है, बल्कि रूस पर हमला यूक्रेन के जमीन का इस्तेमाल करते हुए अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसका नाटो गिरोह कर रहा है.
यह कहना बिल्कुल फिजूल है कि रूसी सेना के सामने केवल यूक्रेन की सेना लड़ रही है. असलियत में रूस से यह लड़ाई पूरी अमेरिकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व में पूरी नाटो गिरोह लड़ रहा है और इसके ही साथ लड़ रहा है अमेरिकी पोषित मीडिया घराना, जिसमें भारत का भोंपू दलाल मीडिया भी शामिल है. दुनिया को यह जानना होगा कि रक्तपिपाशु अमेरिकी साम्राज्यवाद रूस को मिटाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, ऐसे में पूरी दुनिया को अमेरिकी हमलावारों के खिलाफ बोलना होगा, उसकी युद्ध पिपाशु इच्छा का प्रतिकार करना होगा, वरना रूस के बहाने यह युद्ध उन तमाम देशों की जनता से है जो अमेरिकी साम्राज्यवाद से सहमत नहीं है.
बहुत दिन नहीं बीते हैं जब इसी अमेरिकी साम्राज्यवाद ने दुनिया भर की ताकत के साथ मिलकर सोवियत संघ को घेरकर खत्म करने का अभियान चलाया था और दर्जनों देशों के साथ मिलकर सोवियत संघ को खत्म करने के लिए सैन्य हमले किये थे. तत्कालीन समाजवादी सोवियत संघ ने तब तो इसका मूंह तोड़ जवाब दिया था, फिर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी सोवियत संघ को खत्म करने का विशाल मुहिम चलाया था, जिसे सोवियत जनता ने खत्म कर दिया था. लेकिन अंततः 1956 के बाद गद्दार ख्रुश्चेवी संशोधनवादी ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के सहयोग से सोवियत संघ को खत्म करने के अभियान में शामिल हो गया, जो अंततः 1991 में टुकड़ों में विभक्त हो गया और बस रूस बनकर रह गया.
अमेरिकी साम्राज्यवाद इतना से ही शांत नहीं बैठा. उसने तब भी रूस के खिलाफ न अपना अभियान बंद नहीं किया और न ही दुनिया की जनता पर अपना कायराना हमला ही बंद किया. चीन, कोरिया, वियतनाम, कम्बोडिया, पेरू, इराक, ईरान, अफगानिस्तान जैसे तमाम असहमत देशों को खण्डहर बनाने के अपने अभियान में लगा रहा. रूस, जिसका पतन भी पूंजीवाद में हो गया है, को एक बार फिर इराक की ही भांति खण्डहर बनाने के अभियान में अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने रूस के पड़ोसी देश (भूतपूर्व सोवियत संघ का टूटा हिस्सा) को अपने में मिलाता गया, जिसमें यूक्रेन भी था, जब 2014 में रूसी समर्थक यूक्रेनी राष्ट्रपति को यूक्रेन छोड़कर भागना पड़ा क्योंकि अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने यूक्रेन में विद्रोह भड़का दिया था, और फिर यूक्रेन की सत्ता पर अमेरिकी टट्टू जेलेंस्की को बिठाल दिया.
अमेरिकी टट्टू जेलेंस्की ने तब से रूस के खिलाफ अमेरिकी साम्राज्यवाद के सानिध्य में रूस के खिलाफ अभियान चला दिया. निःसंदेह रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने सही कहा था कि उसे यूक्रेन के खिलाफ यह सैन्य कार्रवाई बहुत पहले करना चाहिए था. अगर रूस अब भी यूक्रेन पर हमला नहीं किया होता तब बहुत जल्दी ही अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसका गुंडा वाहिनी नाटो रूस पर यूक्रेन के जमीन का इस्तेमाल करते हुए हमला कर दिया होता. अमेरिकी टट्टू जेलेंस्की आज जिस निर्लज्जता के साथ रूस की जनता के खिलाफ अमेरिका के इशारे पर युद्ध लड़ रहा है, वह यही बतलाता है.
अब जब अमेरिकी साम्राज्यवाद ने खुलकर रूस पर हमला करने का आदेश गुंडा गिरोह नाटो को दे दिया है और नाटो के नेतृत्व में गुंडा वाहिनी रूस पर हमला करने के लिए निकल चुका है, तब यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि एक बार फिर रूस को मिटाने के लिए निकले अमेरिकी अभियान को रोकने के लिए समूची दुनिया को अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़े हो जाना चाहिए. बेशक रूस अब समाजवादी देश नहीं रहा और राष्ट्रपति पुतिन के इस घोषणा में कितना दम है कि वह एक बार फिर सोवियत संघ को खड़ा करना चाहता है, कहा नहीं जा सकता. लेकिन इसके बाद भी रूस पर अमेरिकी साम्राज्यवादी का कब्जा हो जाना किसी दुःस्वप्न से कम नहीं होगा.
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