राकेश आजाद
कोई जितना मर्जी शांति के लिए चीखे चिल्लाए, साम्राज्यवादी दुनिया में युद्ध और अशांति को कभी नहीं रोका जा सकता. रूस-यूक्रेन युद्ध कभी ना कभी तो होना ही था. अगर रूस इसे शुरू ना करता तो दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी अमेरिका शुरू कर ही देता क्योंकि उसने तो तैयारी कर ही रखी थी. बस बात ये है कि रूस ने इसे शुरू कर दिया.
अकेले रूस को ही कोसने का सीधा मतलब है कि आप दुनिया के सबसे बड़े आतंकी अमेरिका और नाटो को पूरी तरह से जायज बता रहे हैं. और इसका ये मतलब भी बनता है कि आपके अनुसार अमेरिका-नाटो की साजिशों के जानने के बाद भी रूस चुपचाप बैठ जाता और इंतजार करता कि कब अमेरिका नाटो पूरा मजबूत हो कर रूस पर एकमुश्त हमला करता और उसका हाल इराक जैसा कर देता.
दूसरी बात ये कि जब आपके चारों तरफ वाले पड़ोसी आपकी घर की दीवार पथ आपकी तरफ बंदूकें लगा कर आपको ये उपदेश दे कि हमारा आपसे लड़ने का कोई मंसूबा नहीं है बल्कि हम तो आपके साथ प्यार से रहना चाहते हैं तब आप इतने बेवकूफ नहीं होंगे कि अपने आपको झूठी तसल्ली दे कर जिंदा रखें कि ये कभी आपका नुकसान नहीं करेगा इसलिए आप उसके साथ ओम शांति ओम का गाना गाएं.
अंदर ही अंदर आपको भी पता होगा कि किसी ना किसी दिन ये शांति की आड़ में आप पर हमला करेगा ही और आपको खत्म करेगा. यही डर एक ना एक दिन आपको अपने बचाव के लिए उसका प्रतिउत्तर देने के लिए मजबूर करेगा. और रूस के पास ये सोचने का तो इतना बड़ा कारण भी है कि सोवियत संघ को तोड़ने में सबसे बड़ा हाथ अमेरिका का ही है.
युद्ध को सिर्फ एक ही हालत में रोका जा सकता है जब पूरी दुनिया में समाजवाद का वर्चस्व हो और पूंजीवाद उसके सामने आंख उठाने की हिम्मत न करे. जब तक सोवियत संघ में समाजवाद था तब भी अमेरिका और उसके पालतू कुत्तों ने हमेशा समाजवाद को खत्म करने के लिए अपनी साजिशें कायम रखी.
पूंजीवाद से बचने और समाजवाद को कायम रखने के लिए समाजवादी देश को भी युद्ध लड़ने पड़ सकते हैं क्योंकि ‘शांति शांति’ चिल्लाने से ये पूंजीवादी पिल्ले कभी भी समाजवाद को जीने नहीं देंगे बल्कि इन पिल्लों को मार-मार के भगाने से ही समाजवाद को कायम रखा जा सकता है. और जब हर तरफ समाजवाद कायम होगा सिर्फ तभी सही मायनों में शांति कायम हो सकती है वर्ना सिर्फ नकली शांति ही कायम की जा सकती है जैसा कि शीत युद्ब.
बिना लड़े तो किसी एक देश में समाजवाद कायम नहीं किया जा सकता तो पूरी दुनिया में कैसे शांति संभव है ? और आज जो दुनिया इतने कष्ट झेल रही है तो इसके पीछे भी कहीं ना कहीं जनता द्वारा पूंजीवाद चुना जाना ही एक कारण है. इसलिए अब अगर पूरी जनता को इससे अंतिम मुक्ति हासिल करनी है तो जनता को भी समझना होगा कि इस पूंजीवादी दुनिया में यही उनकी नियति है और पूंजीवाद का अंत करके ही वो चैन से जी सकते हैं.
ऐसे वे चाहे शांति और तरक्की के लिए लाख दुहाई देते रहें तो भी युद्ध और अशांति की आग में उनको झुलसना ही होगा. और ये सब जनता तभी समझ सकती है जब वो खुद भी इस सच को समझने के लिए तैयार हो और इस पूरे सच को जनता को समझाने वाले सच्चे, ईमानदार और काबिल कम्युनिस्ट पार्टी मौजूद हों ना कि अमेरिका नाटो गुंडा गैंग को समर्थन और बढ़ावा देने वाले.
दुनिया में असली शांति बहाल करने के लिए भी आखिरकार युद्ध ही लड़ने पड़ेंगे चाहे वो किसी एक देश के अंदर हों या फिर दो अलग अलग देशों के अंदर. अगर ऐसा न होता तो मार्क्स को ROLE OF FORCE IN HISTORY लिखने की जरूरत ही ना पड़ती.
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