Home ब्लॉग लालू प्रसाद यादव को खत्म करने की ब्राह्मणवादी साजिश की गूंज सदियों तक गुंजती रहेगी

लालू प्रसाद यादव को खत्म करने की ब्राह्मणवादी साजिश की गूंज सदियों तक गुंजती रहेगी

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लालू प्रसाद यादव को खत्म करने की ब्राह्मणवादी साजिश की गूंज सदियों तक गुंजती रहेगी
लालू प्रसाद यादव को खत्म करने की ब्राह्मणवादी साजिश की गूंज सदियों तक गुंजती रहेगी

ब्राह्मणवादी सिस्टम में रहते हुए ब्राह्मणवाद के खिलाफ बोलना पानी में मगरमच्छ से दुश्मनी मोल लेना है, और ठीक यही दुश्मनी संयुक्त बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता लालू प्रसाद यादव ने मोल ले ली, जब वे दलितों, पिछड़ों, बंचितों की आवाज बनकर उभरे और बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने जिन्होंने सीधे-सीधे ब्राह्मणवादी सिस्टम को चैलेंज किया और ब्राह्मणवादी आतंक की खुलकर मुखालफत करते हुए दलितों, पिछड़ों, वंचितों के मूंह में आवाज दी ताकि वह भी इस संवैधानिक व्यवस्था में बराबर का हक पा सके.

लेकिन ब्राह्मणवादी व्यवस्था को संवैधानिक व्यवस्था से चुनौती देने वाले लालू प्रसाद यादव को इस बात का संभवतः भान न रहा होगा कि वह जिस ब्राह्मणवादी व्यवस्था की मुखालफत कर रहे हैं और जिस वंचितों के लिए कर रहे हैं, दरअसल उसकी नींव बहुत गहरी है और उसकी पैठ इस संवैधानिक व्यवस्था के अंदर भी घुसी हुई है. और जिस वंचितों की आवाज बने हैं वे वंचित अभी तक इतने बुलंद नहीं हो पाये हैं कि मुसीबतों की घड़ी में उनके पीछे डटकर खड़े हो सके.

बहरहाल, ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध लड़ते हुए लालू प्रसाद यादव के खिलाफ संवैधानिक व्यवस्था के अंदर तक बैठे ब्राह्मणवादियों ने एकजुट होकर जाल बुनना शुरू कर दिया, और उसे मौका मिला चारा घोटाले के रुप में. भारत मे चारा घोटाला एकमात्र ऐसा घोटाला है जिसमें इस घोटाले को पर्दाफाश करने वाले को ही अभियुक्त बना दिया गया और जेल की सलाखों तक पहुंचा कर उनका राजनीति हत्या का खुला घोषणा कर दिया.

मनीष सिंह लिखते हैं – समोसे में आलू अब भी है, पर बिहार में लालू नही है. वे झारखंड की जेल में सजा काट रहे हैं. भारत के इतिहास में पहली बार कोई मुख्यमंत्री फर्जी बिल बनाने और उसे पेमेन्ट करने के लिए जेल गया है. मजे की बात यह है कि कोई भी मुख्यमंत्री न बिल बनाता है, न चेक साइन करता है, न कोषागार जाकर आहरण करता है. तो जरूर फ़्रॉड करने वाले अफसरों ने सारे पैसे लालू को सौंपे होंगे ?

जी नही, ऐसा भी नहीं है. मामला क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी का है. मुख्यमंत्री ने आपराधिक षड्यंत्र किया, ऐसा गवाहों के बयानों में आया है. गवाहों के बयानों में उस मुख्यमंत्री की कॉन्सपिरेसी भी आई थी, जिसने अपने गुंडों को तीन दिन तक, अपनी राजधानी में मौत का नंगा नाच करने की छूट दी थी. जिसने सेंट्रल फोर्सज को दो दिन एयरपोर्ट से बाहर आने की इजाजत न दी थी. गवाह उसकी बैठकों, उसके निर्देशो के भी थे, लेकिन वो मुख्यमंत्री जेल में नहीं है.

दरअसल गवाह ही जेल में है.वो आईपीएस उम्र कैद भुगत रहा है, लेकिन वो किस्सा अलग है, आदमी अलग है, तो न्याय का आचरण भी अलग है. मजे की बात कि जिस षड्यंत्र को रचने का आरोप लालू पर साबित हुआ है, वह उनके 20 साल पहले से चल रहा था. यानी 1978 से पशुपालन विभाग, अपनी आवंटन राशि से अधिक की निकासी कर रहा था. न AG ने पकड़ा, न सीएजी ने…, सब सोए पड़े थे. तो पकड़ा किसने ? लालू ने, जिन्हें अब इसे पकडने के अपराध में सजा सुनाई गई है.

लालू प्रसाद यादव ने जांच बिठाई. एफआईआर की, एक नहीं, दो नहीं, पूरी 64 एफआईआर. छापे मरवाये, अफसरों को सस्पेंड किया. जांच कमीशन बिठाया कि इस बीच PIL दाखिल हो गयी क्योंकि भावी उपमुख्यमंत्री, सुशील कुमार मोदी को यकीन नहीं था कि लालू सरकार निष्पक्ष जांच करेगी. सो हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि मामला सीबीआई तोता को दे दिया जाये.

अब सीबीआई तोता ने सभी दर्ज 64 केस हैंडओवर ले लिए. खुद भी नई एफआईआर दर्ज की और इसमें लालू को ही नामजद कर दिया. वैसे तो शुरुआती जांच में नीतीश कुमार का भी नाम सीबीआई के दस्तावेजों में है लेकिन वे समता पार्टी बनाकर बीजेपी से मिल चुके थे. लेकिन लालू प्रसाद यादव ने बीजेपी से हाथ न मिलाया – न 1996 में, न 2016 या 2021 में. इसलिए 22,000 करोड़ के सृजन घोटाले में नीतीश सुरक्षित हैं. वे तीसरी बार अबाधित राज कर रहे हैं और लालू प्रसाद यादव जेल में हैं.

लालू तीसरे मामले में जेल जा चुके हैं. उनके केस में न कोई गवाह पलटता है, न बयान बदलता है. सबको बीस साल पहले का सब घटनाक्रम, एकदम साफ-साफ याद है.

लालू से नफरत की जा सकती है. कारण वास्तविक है. उनका दौर, बिहार में ‘ऊंची जात’ के परंपरागत आतंक को पलटकर ‘नीची जात’ के आतंक को स्थापित करने का रहा है. इस क्रम में कानून व्यवस्था का भट्ठा बैठा और बिहार अराजकता के गर्त में डूब गया.

यह अवश्य उनका अपराध है, इसकी सजा जनता की अदालत ने बार बार दी है लेकिन सेंट्रल एजेंसीज, विरोधी सरकार और उसके वेतन प्रमोशन पर जी रहे अफसरों की गवाही के आधार पर लालू प्रसाद यादव की न्यायिक हत्या पर मेरी असहमति है. इसलिए कि यह भारत की राजनीति में अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने की एक नई परिपाटी बिठाएगी. आने वाले दौर में सत्ता में बैठे लोग, अपने से पहले सत्ता में रहे लोगों के साथ वह सदाशयता न बरतेंगे, जो 70 साल की रवायत रही है.

याद रहे, लालू का मुकदमा, बदले की राजनीति के लिए, न्यायिक प्रक्रिया को मैनिपुलेट करने और सरकारी अफसरों से नेताओं को फंसवाने के कोर्स की प्रशिक्षण पुस्तिका बनेगी. तो आज जश्न मनाने वाले सुन लें – लालू की राजनैतिक हत्या, अब एक नजीर बनने वाली है.

लालू प्रसाद यादव को राजनैतिक प्रतिद्वंदिता में राजनैतिक चुनौती के रूप में राजनैतिक प्रतिद्वन्दी, मीडिया, प्रशासन ने मिलकर चुनिंदा जजों से एक मामले के अनेक मामले बनाकर शिकार बना दिया अन्यथा, चारा घोटाले का सनातनी पितामह जगन्नाथ मिश्र, सृजन घोटाले का बादशाह सुशील मोदी, व्यापम महाघोटाले का सरताज शिवराज चौहान, रक्षा सौदे की रिश्वतखोर जार्ज फर्नांडिस की प्रेयशी जया जेटली जो इनमें से प्रत्येक चारा घोटाले से सैकड़ों गुना डकारे बैठे, वो जेल में होते, लालू प्रसाद नहीं.

व्यापम घोटाले में शिवराज ने घोटाला मालूम होने पर एक एफआईआर किया, जिम्मेदारी खत्म, क्लीन चिट. वही लालू प्रसाद यादव को पता चलने पर 64 एफआईआर दर्ज करते हैं, जिम्मेदारी से नहीं भागे. गिरिराज सिंह के यहां सीबीआई रेड में 2 करोड़ बरामद, मामला रफा-दफा. जया जेटली को मामूली सजा, फैसले के साथ जमानत आदेश नत्थी.

लालू की सुनवाई में चुनिंदा जज शिवपाल सिंह पूर्वाग्रही, जातिद्वेष की मानसिकता से सुनवाई में और बाद में फैसले में भी गैरजरूरी राजनैतिक, जाति और सामाजिक स्तर सूचक टिप्पणियां पेश करते, रिकॉर्ड सजा, इस बात का ध्यान रखकर कि राजनैतिक भविष्य नष्ट हो सके. नरेंद्र मोदी, स्मृति ईरानी की नकली डिग्रियों के मामले में 8 वर्ष से कोई सुनवाई नहीं हुई. झारखण्डी बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे भी नकली एमबीए/ पीएचडी की डिग्री गले में डालकर शान से घूम रहा है, जबकि ऐसे ही आरोप में दिल्ली की आप सरकार में मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर पर आरोप लगते ही जांच, कार्यवाही और सजा हो जाता है ?

मात्र जन्मदिन की गलती पर अब्दुल्ला आजम को जेल में बंद कर दिया जाता है लेकिन बीजेपी नेताओं के खिलाफ कोई जांच नहीं, कोई कार्रवाई नहीं. विपक्षी नेताओं के खिलाफ गंध आने पर सूंघकर मीडिया से प्रचार-प्रसार करवा कर आरोपों की तुरंत-फुरंत जांच और उन चुनिंदा जजों की अदालत में मामले, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के 5 वरिष्ठ जज अपने सार्वजनिक मंच से सामूहिक रूप से स्पष्ट कर चुके हैं. इस देश में कानून के दोहरे मापदंड एवं कार्यवाही के लिए दोगली जातीय मानसिकता हैं.

लालू प्रसाद यादव को इस उच्च जातीय मानसिकता वाली कानून ने सजा दी है, बिकी हुई न्यायपालिका, विरोधियों को ठिकाने लगाने की सरकार की कार्यशैली ने लालू प्रसाद यादव को खत्म करने की अच्छी तैयारी की है लेकिन लालू प्रसाद यादव की भाजपा जैसे गुंडों के साथ न जाकर जो मिसाल कायम किया है, उसकी अनुगुंज सदियों तक रहेगी.

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