भाजपा और उसके थिंकटैंक न केवल भारत में ही बल्कि सारी दुनिया में गाली का पर्याय बन गया है. किसी को मूर्ख और जाहिल कहना हो तो उसे आसान तरीका में भाजपाई कहा जा सकता है. भाजपा ने यह मुकाम बड़ी ही मेहनत और सिद्धत से हासिल किया है. जाहिल भाजपा र उसके थिंक टैंक आरएसएस का यह ज्ञान पूरी बेहाई से छलकने लगा है. भखड़ा नागला डैम से बिजली उत्पादन के नेहरू के योजना से खफा यह संघी भरे सभमें मंच से घोषणा करता है कि यदि पानी से बिजली निकाल दिया जायेगा तो फिर खेती के लिए वह पानी किस काम का बचेगा.
उपरोक्त संघी ज्ञान से आगे बढ़ते हुए भाजपा-संघ ने देश दुनिया में अनेकों मुकाम हासिल किया है. बड़ा शेर नरेन्द्र मोदी जहां नाले के दुर्गंध से चुल्हा जलाने का ज्ञान बेमोल देता है तो वहीं उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट नाईट्रोजन से ऑक्सीजन बनाने का खोज करते हैं. परीक्षा में हल्के प्रश्न को पहले हल करने औल कठिन प्रश्न को बाद में हल करने की गुरुजनों की सलाह के विपरीत नरेन्द्र मोदी जब इसके उलट यानी कठिन प्रश्न को पहले हल करने का ज्ञान छात्रों के बीच देते हुए अपना पीठ थपथपाते हैं तब गृहमंत्री अमित शाह का यह ज्ञान फीका लगने लगता है कि बारहवीं पास कर इंटर में नामांकन कराने वाले छात्रों को लैपटॉप दिया जायेगा.
दरअसल, मूर्ख और जाहिल गुंडों ने जब से दैश की सत्ता पर कब्जा किया है, तब से ऐसे ऐसे बेमोल ज्ञान दुनिया को अचंभित कर रहे हैं. परंतु, बात यही खत्म नहीं होती. उत्तर प्रदेश, जहां सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे हजारों महान रचनाकारों नै इस प्रदेश का नाम दुनिया भर में रौशन किया है, वहीं जाहिल संघी अजय सिंह बिष्ट ने यह कहते हुए उत्तर प्रदेश की जनता और नौजवानों को लज्जित करते हुए अयोग्य बता दिया कि नौकरियां तो बहुत है लेकिन उत्तर प्रदेश में उसके योग्य लोग नहीं मिल रहे हैं.
लेकिन बात इससे भी आगे तब बढ़ गई जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव आचारसंहिता को धता बताते हुए जब उसने उत्तर प्रदेश की जनता को एक शब्द में आतंकवादी बता दिया. दरअसल, उत्तर प्रदेश की ‘अयोग्य’ जनता ने जब हत्या और बलात्कारियों के गिरोह भाजपा को चुनाव के दौरान वोट न देकर समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साईकिल छाप पर वोट देने लगी, तो इन हत्यारों और बलात्कारियों के सरगना नरेन्द्र मोदी, जो दुर्भाग्य से देश के प्रधानमंत्री भी हैं, ने साईकिल को आतंकवादी गतिविधियों से जोड़ दिया और साईकिल छाप पर वोट डालने वाले लोगों को आतंकवादी बता दिया.
उत्तर प्रदेश की जनता के द्वारा चुनाव में वोटों के द्वारा एक के बाद भाजपा को एक नकारने से भड़के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट जहां वोट न दो ने वाले लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाकर ध्वस्त करने की धमकी दे रहने हैं तो वहीं भाजपा नेता बकायदा विडियो जारी कर वोट न देने वाली जनता को मारने, फर्जी केसों में फंसाकर जेल भेजने, घरों को बुलडोजर से ध्वस्त करने के लिए हजारों बुलडोजर का जखीरा भेजने की धमकी दे रहे हैं.
इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश में चुनाव की घोषणा होने से पहले ही 70 साल में पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव आयोग को अपने दफ्तर बुलाकर धमकाया या लालच दिया. जिस कारण जब भाजपा की चुनावी सभाओं में लोगों का टोटा पड़ने लगा, जबकि अन्य दलों की सभाओं में भारी भीड़ जुटने लगी, तब चुनाव आयोग के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी दलों के चुनावी सभाओं को कोरोना का बहाना बताकर बैन कर दिया लेकिन भाजपा की चुनावी सभा तब भी चालू रही, हलांकि तब भी जनया ने उसके नुक्कड़ सभाओं को भी न केवल नकार ही दिया अपितु उसे लाठियां लेकर खदेड़ना शुरू कर दिया.
इतना ही नहीं चुनाव के ऐन बीच नरेन्द्र मोदी चुनावी राजनीति करते रहे. यहां तक की इधर वोट डाले जा रहे हैं और उधर नरेन्द्र मोदी टीवी पर भाषण झाड़ रहे हैं. वहीं उत्तर प्रदेश की जनता को धमकाने के लिए अखबारों में प्रथम पृष्ठ पर मोटी हेडलाइन में गृहमंत्री अमित शाह का बयान छाप दिया कि – उत्तर प्रदेश में अगर सपा की सरकार बनती है तो आतंकियों की सप्लाई होगी.
जब इससे भी बात बनती नहीं दिखी तब जो सबसे बड़ी चीजें दिखी वह थी बड़े पैमाने पर लोगों के नाम मतदान सूची से गायब होना और ईवीएम का खेल. यानी वोट चाहे किसी को दिया गया हो परन्तु, वह वोट भाजपा के खाते में जाता था. एक जगह तो ईवीएम से समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह को ही गायब कर दिया गया था. इसके बाद अब जब उत्तर प्रदेश में तीन चरण के चुनाव हो चुके हैं तब इस की प्रबल संभावना है कि वोटों की गिनती में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों का होना. जैसा कि किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत संभावना जतलाते हुए कहते हैं – दूसरे दलों की गिनती जहां एक से शुरू होगी, वहीं भाजपा के वोटों की गिनती 15 हजार से शुरु ही होगी. यानी 15 हजार वोटों की धांधली.
ये सभी एक ऐसी हकीकत है जिसमें उत्तर प्रदेश की जनता को भारत सरकार के द्वारा उलझाया जा रहा है, उसे न केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. उसे अयोग्य और आतंकवादी साबित करने का सरकारी अभियान शुरू कर दिया गया है. उत्तर प्रदेश को गाली बना रही है भाजपा. एनडीटीवी इंडिया के एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर प्रियदर्शन लिखते है –
बात छोटी सी थी, मगर बढ़ गई. इस चक्कर में यूपी को गाली पड़ गई. राहुल गांधी ने बजट की आलोचना की. यूपी के वित्त राज्य मंत्री ने कहा कि ‘राहुल को बजट समझ में नहीं आया.’ इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त राज्य मंत्री की पीठ थपथपाई, कहा – ‘बिल्कुल सही किया, यूपी जैसा जवाब दिया.’ समझना मुश्किल है कि निर्मला सीतारमण का क्या आशय था ? ‘यूपी जैसा जवाब’ क्या होता है ? क्या वे कहना चाहती थीं कि यूपी वाले तू-तड़ाक जैसे जवाब में भरोसा रखते हैं ? या वे यह बताना चाहती हैं कि यूपी वालों को जानकारी हो या न हो, वह जवाब देना जानते हैं ?
यह सच है कि यूपी-बिहार की छवि एक अभिजात तबके में मज़ाक का विषय रही है. बिहारी हिंदी या बलियाटिक भोजपुरी जैसे विशेषण या ‘जाट रे जाट यानी सोलह दूनी आठ’ जैसे मुहावरे ऐसे लोगों को बहुत गुदगुदाते हैं. नफ़ीस कपड़े पहनने वाले, नफ़ीस अंग्रेज़ी बोलने वाले, अपने आधे-अधूरे ज्ञान को नकली भाषा में चबा-चबा कर बांटने वाले ये लोग दरअसल सिर्फ यूपी-बिहार को नहीं, उस पूरी भदेस भारतीयता को उपहास की नज़र से देखते हैं जो सभ्यता की उनकी कसौटी पर खरे नहीं उतरती. ऐसे लोगों के लिए कभी हिंदी कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने एक कविता लिखी थी- ‘जाहिल मेरे बाने’. कविता इस तरह है-
‘मैं असभ्य हूं क्योंकि खुले नंगे पांवों चलता हूं
मैं असभ्य हूं क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूं
मैं असभ्य हूं क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूं
मैं असभ्य हूं क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूं
आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर
आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर
आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी
आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथी
आप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं
आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े ख़ून सने हैं
आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे
आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग हमारे
मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने
धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूं याने !
ये लोग नहीं जानते कि दरअसल ये जाहिल बाने की हिंदुस्तान की शोभा हैं. क़िस्सा मशहूर है कि महात्मा गांधी- जिन्हें चर्चिल ने ‘नंगा फकीर’ कहा था- जब 1931 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम से मिले तो उन्होंने अपनी जानी-पहचानी धोती पहनी थी और एक शॉल लपेट रखी थी. गोलमेज सम्मेलन के लिए आए लोगों को तब जॉर्ज पंचम ने दावत का न्योता दिया था जिसमें सबसे औपचारिक पोशाक में आना अपेक्षित था. बाद में पत्रकारों ने गांधी से पूछा कि क्या आपकी पोशाक उपयुक्त थी ? गांधी का जवाब था- इसकी फ़िक्र मत कीजिए. मेरे हिस्से के कपड़े भी सम्राट ने पहन रखे थे.
अरविंद मोहन की किताब ‘गांधी और कला’ में एक दिलचस्प प्रसंग आता है. गांधी के पास एक कंबल था जो ओढ़ते-ओढ़ते लगभग घिस और फट गया था. गांधी जी ने जमनालाल बजाज की पत्नी जानकी देवी बजाज को दिया कि वे इसे सिल दें. जानकी देवी ने कंबल को उलट दिया, और उस पर एक मोटा रंगीन कपड़ा लगा दिया. गांधी बहुत खुश हुए. उन्होंने कहा कि यह लंदन ले जाने के लिए सबसे सही है.
यह अनायास नहीं है कि यह गांधी बीजेपी को समझ में नहीं आते. वह उदात्तता और चकाचौंध के आकर्षण में पड़ी एक ऐसी पार्टी है जिसे सबकुछ भव्य और दिव्य चाहिए- अपने भगवान का मंदिर भी. अयोध्या में वह करोड़ों दीए जलवाती है ताकि गिनीज बुक में नाम आ सके. यह भी अनायास नहीं है कि उसका बहुत सारा ज़ोर तरह-तरह की सुंदरीकरण की योजनाओं पर है जिसका दरअसल मूल मक़सद सभी सेवाओं को उच्चवर्गीय अपेक्षाओं के अनुकूल बनाना है, भले इसकी जो क़ीमत चुकानी पड़े वह गरीब आदमी चुका न पाए.
यूपी और निर्मला सीतारमण पर लौटें. निर्मला सीतारमण की भी एक छवि है और यूपी की भी एक छवि है. दोनों छवियां एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं. निर्मला सीतारमण एक अलग और संभ्रांत भारत की नुमाइंदगी करती लगती हैं और यूपी एक भदेस भारत का हिस्सा जान पड़ता है. जाहिर है, यह छवियों का खेल है, सच इनसे अलग है. संभ्रांतता की भी अपनी विरूपताएं होती हैं और भदेसपन का भी अपना सौंदर्य.
यूपी इस देश का बहुत बड़ा हिस्सा है. वह छोटा-सा भारत है. वहां लखनऊ भी है जिसे तहज़ीब का शहर कहते रहे, वहां इलाहाबाद भी है जिसे पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता रहा. यहां मथुरा है जहां कृष्ण हुए जो प्रणय के देवता हैं और युद्ध के भी. वे रासलीला भी करते हैं और महाभारत के परिपार्श्व में भी केंद्रीय भूमिका में खड़े रहते हैं. वहां बनारस भी है जो सभ्यता के सबसे लंबे समय का साक्षी है. यहां अयोध्या है जहां राम हुए और जिसे दुनिया ने निजामे हिंद माना. यूपी ने कई प्रधानमंत्री दिए. नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात छोड़ा और यूपी से अपनी पहचान जोड़ी.
मुश्किल यह है कि यूपी की ये पहचानें मिटती जा रही हैं और उसकी एक उद्धत और आक्रामक, भदेस और हमलावर पहचान विकसित की जा रही है. उसकी गरीबी और बेरोज़गारी तक का मज़ाक बनाया जा रहा है. उसकी गंगा-जमुनी संस्कृति को जिन्ना और पाकिस्तान विमर्श की फूहड़ता के साथ नष्ट किया जा रहा है. राम, कृष्ण और शिव जैसे भारतीय महास्वप्न के प्रतीक शहरों अयोध्या, मथुरा और काशी को ओछी राजनीति के केंद्रों में बदला जा रहा है.
निर्मला सीतारमण शायद इसी यूपी को जानती हैं. इसलिए वे राहुल गांधी की बात पर एक उद्धत-आक्रामक जवाब को ‘यूपी टाइप जवाब’ कह कर दरअसल पूरे यूपी का अपमान कर डालती हैं. क्या अब भी यूपी इन्हीं लोगों के साथ खड़ा रहेगा ? ऐसे अवसरों पर धूमिल याद आते हैं. ‘संसद से सड़क तक’ में उनकी एक कविता है- ‘कवि 1970’. उसकी आख़िरी पंक्तियां हैं-
‘वादों की लालच में / आप जो कहोगे / वह सब करूंगा / लेकिन जब हारूंगा / आपके ख़िलाफ़ ख़ुद अपने को तोड़ूंगा / भाषा को हीकते हुए अपने भीतर / थूकते हुए सारी घृणा के साथ / अंत में कहूंगा— / सिर्फ़, इतना कहूंगा— ‘हां, हां मैं कवि हूं, / कवि—याने भाषा में / भदेस हूं; / इस क़दर कायर हूं / कि उत्तर प्रदेश हूं !’
क्या वाकई यूपी ऐसी गाली खाने का हक़दार है ?
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सोशल मीडिया पर भाजपा की चरित्र के लिए एक शानदार टिप्पणी थी – आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि सत्ताधारी दल के केरल से आए एक राज्यसभा सदस्य, जो पहले केन्द्र में मंत्री भी रह चुके हैं और भाजपा एवं मोदी सरकार के ‘थिंक टैंक’ के महत्त्वपूर्ण सदस्य भी हैं, के.जी. अल्फोंसे ने एक साक्षात्कार में यह खुलेआम एलान किया है कि ‘भारत के लोगों को अंबानी और अडानी को पूजना चाहिए, जिनके कारण भारत के लोगों को रोजगार मिलता है. पर, भारत के विपक्षी दल उन पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की आलोचना कर और भारतीय अर्थव्यवस्था में उनके महती योगदान को नकार कर देश को शर्मसार किया है.’
उनका यह बयान इस तथ्य को स्पष्टत: रेखांकित करता है कि आज न सिर्फ भारत की संपूर्ण अर्थव्यवस्था, बल्कि सरकार भी अंबानी और अडानी जैसे पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की मुट्ठी में कैद हो चुके हैं, और वे इन पूंजीपतियों के इशारे पर नाचने के लिए मजबूर हैं. यही कारण है कि अपने अबतक के कार्यकाल में मोदी सरकार ने जो भी नीतियां बनाई है, निर्णयों को लागू किया है, या फिर कार्ययोजनाओं को अमल में लाया है, सारे के सारे सिर्फ पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हितों की रक्षा में किए गए हैं या बनाए गए हैं.
मोदी सरकार के माध्यम से पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों ने भारतीय संविधान, लोकतंत्र, संसद और कार्यपालिका सहित न्यायपालिका का भी अपहरण कर लिया है, और देश का सारा कानून और शासन-प्रशासन उनके हितों के लिए कृत-संकल्प हो चुके हैं. राष्ट्रीय हित का अर्थ भी अब सिर्फ़ पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हित ही हो गए हैं. इनकी सेवा करना, इनके आदेशों को मानना, इनकी गुलामी करना और इनकी पूजा करना ही अब राष्ट्रभक्ति है, और जो भी इनके हितों के खिलाफ है, वह राष्ट्रद्रोही है.
विगत साढ़े सात सालों में मोदी सरकार ने सिर्फ और सिर्फ अंबानी और अडानी जैसे पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हितों के लिए ही समर्पित रही है. संविधान, लोकतंत्र, मानवाधिकार और न्यायपालिका की मर्यादा और अस्मिता को तार-तार करते हुए इनके आर्थिक हितों का ही संवर्द्धन और संरक्षण किया गया है. किसानों, मजदूरों और नवजवानों के खिलाफ अबतक किए दमनात्मक कार्रवाईयों और बनाए गए कानूनों और भाजपा की गालियों को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. उत्तर प्रदेश की जनता को इस.अपमान का माकूल जवाब भाजपा को देना ही होगा.
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