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चुनाव बाद पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ेंगे यानी मंहगाई बढ़ेगी ?

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चुनाव बाद पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ेंगे यानी मंहगाई बढ़ेगी ?

रविश कुमार

महंगाई के समर्थकों के अच्छे दिन आने वाले हैं. उन्हें फिर से मध्यम वर्ग को गर्व से समझाने का मौका मिल सकता है कि पेट्रोल और डीज़ल के बढ़े हुए दाम को राष्ट्र के नाम योगदान समझें. 100 रुपया लीटर पेट्रोल खरीदना बहुत ज़रूरी है. यह कोई आसान काम नहीं था लेकिन महंगाई के सपोर्टरों ने करके दिखा दिया था. वैसे तो आज भी महंगाई कम नहीं हुई है लेकिन उस वक्त जब जनता की कमाई आधी हो गई थी और महंगाई के ओले बरस रहे थे, तब बिना छाता लिए महंगाई के ये सपोर्टर उसी जनता को समझा रहे थे कि महंगाई पर ध्यान न दें. देश का विकास हो रहा है. यह काम आज के भारत से पहले किसी भी राजनीतिक दल के समर्थक नहीं कर सके थे.

7 मार्च को वोट पड़ जाने के बाद जब पेट्रोल के दाम बढ़ने की स्थिति आएगी, फिर से महंगाई के सपोर्टरों को अपना हुनर दिखाने का मौका मिलेगा और वे कामयाब भी होंगे. वैसे जब महंगाई के समर्थन में नेहरु को लांच करा दिया गया हो तब तो और भी संदेह नहीं होना चाहिए कि जनता महंगाई का रोना रोने वाली है. मसलन, जून 2021 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 73 डॉलर प्रति बैरल थी तब लखनऊ में पेट्रोल 93 रुपया 63 पैसा लीटर था. अगस्त 2021 में कच्चे तेल की कीमत कम हो गई और करीब 70 डॉलर प्रति बैरल हो गई, तब लखनऊ में पेट्रोल 98 रुपये 92 पैसे लीटर हो गया. यानी कच्चे तेल की कीमत घटने पर भी पेट्रोल महंगा हुआ. इस वक्त जब अतंराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 94 डॉलर प्रति बैरल है तब लखनऊ में पेट्रोल 95 रुपये 26 पैसा लीटर मिल रहा है.

इस समय जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 94 डॉलर प्रति बैरल हो गया है. अगस्त 2021 की तुलना में 24 डॉलर ज़्यादा हो चुका है. पांच राज्यों के चुनाव के कारण दाम नहीं बढ़ रहे हैं लेकिन क्या 7 मार्च के बाद इसे बढ़ने से सरकार रोक पाएगी ? 4 नवंबर 2021 के बाद से पेट्रोल के दाम में कोई बदलाव नहीं आया है. 4 नवंबर को केंद्र ने पेट्रोल पर 5 और डीज़ल पर 10 रुपये के उत्पाद शुल्क की कटौती की थी. उसके बाद राज्यों ने वैट की दरों में कमी की जिससे दाम घटने लगे मगर उसके बाद भी आज भी देश के तीन बड़े महानगरों में पेट्रोल 100 रुपया लीटर से ज्यादा है और कई शहरों में 95 रुपया लीटर मिल रहा है.

मुंबई में 4 नवंबर से पेट्रोल के दाम में बदलाव नहीं आया है. आर्थिक सर्वे में अनुमान लगाया गया है कि भारत की जीडीपी 8-8.5 प्रतिशत के आसपास तब रहेगी जब अंतर्रराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल रहेगा. अगर सात मार्च तक कच्चे तेल का भाव यहां तक नहीं आता है और 85 से 95 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहता है, तब भी क्या मुमकिन होगा कि पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़ेंगे ?

इस वक्त जब पेट्रोल 90 रुपया लीटर से अधिक पर बिक रहा है तो क्या जनता उसे राहत समझती है और जब दाम बढ़े तब क्या उसका समर्थन कर पाएगी ? या महंगाई के सपोर्टरों से पूछेगी कि इतने महंगे पेट्रोल का समर्थन कैसे करना है ? एक समय था जब सरकार तेल के आयात पर सब्सिडी देती थी ताकि जनता को परेशान न हो लेकिन अब जब यह सब्सिडी नहीं दी जाती है और कहा जाता है कि बाज़ार से सब तय हो रहा है. तो तीन महीने से पेट्रोल और डीज़ल के दाम क्यों नहीं बढ़े, जबकि इस दौरान अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल 20 प्रतिशत से अधिक महंगा हुआ है. इसका मतलब है कि जब सरकार को लगता है कि राजनीतिक असर दूर है तब वह दाम बढ़ाने का इशारा कर देती है और जब लगता है कि चुनाव आने वाले हैं और चल रहे हैं तब दाम पर रोक लगाने का इशारा कर देती है.

पिछले कुछ साल में जब भी चुनाव हुए हैं पेट्रोल और डीज़ल के दामों का बढ़ना रोक दिया गया है. कम से कम लगातार चुनावों का यह फायदा तो है ही कि रोज़गार की बात हो जाती है और पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़ते हैं. सूचक पटेल ने इस ट्रेंड को लेकर एक रिसर्च किया है. देखने का प्रयास किया है कि आचार संहिता लगने के 15 दिन पहले क्या होता है ? चुनाव के दौरान क्या होता है ? और चुनाव खत्म होने के बाद क्या होता है ? 2021 में जब बंगाल विधान सभा चुनाव होने वाले थे तब आचार संहिता लागू होने से पहले 15 दिन में 11 बार पेट्रोल के दाम में बदलाव हुआ था. हर बार दाम बढ़ा था.

बंगाल चुनाव के समय 36 दिनों के दरम्यान केवल 4 बार पेट्रोल के दाम में बदलाव आता है और चारों बार दाम घटाए जाते हैं. बंगाल चुनाव के नतीजे आने के 15 दिन के बाद 15 दिन में 8 बार दाम में बदलाव आता है. हर बार दाम बढ़ता है. फिलहाल आप अपनी जेब का ख्याल शुरू कर दीजिए कि 7 मार्च को जब वोट पड़ जाएगा तब उसके बाद पेट्रोल और डीज़ल के दाम किस रफ्तार से बढ़ने लगेंगे और यहां कहां जाकर रुकेगा क्योंकि इस वक्त अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का दाम पिछले साल के अगस्त की तुलना में 24 डॉलर प्रति बैरल ज्यादा है.

अगर आपको लगता है कि बंगाल के चुनाव में ऐसा हुआ तो यूपी, पंजाब और अन्य तीन राज्यों के चुनाव के बाद नहीं होगा तो एक और उदाहरण देना चाहूंगा. बिहार चुनाव के समय पेट्रोल के दाम 9 सितंबर 2020 को दिल्ली में पेट्रोल का दाम 82.08 रुपया लीटर हो गया था. आचार संहिता लागू होने से पहले के 15 दिन में 6 बार पेट्रोल के दाम कम हुए थे. 25 सितंबर 2020 को आचार संहिता लगती है और दाम 81 रुपये 6 पैसे लीटर हो गया. 25 सितंबर से लेकर 10 नवंबर के बीच पेट्रोल का दाम स्थिर रहता है. 81 रुपये 6 पैसे लीटर. 10 नवंबर को नतीजे आए थे. 19 नवंबर तक दाम नहीं बढ़ते हैं. 20 नवंबर 2020 को दिल्ली में पेट्रोल 81 रुपया 23 पैसा लीटर हो गया यानी बढ़ गया. 30 नवंबर को 82 रुपया 34 पैसा लीटर हो गया.

इस तरह से आप देखते हैं कि बिहार सरकार के समय जब पेट्रोल के दाम 82 रुपया लीटर था उस वक्त सरकार महंगाई को लेकर कितनी संवेदनशील और सतर्क थी, आज तो दाम 95 रुपया लीटर है और चुनाव हो रहे हैं. चुनाव के बाद पेट्रोल का रेट कहां जाएगा, किसी को पता नहीं है. इस समय आप 93 से 95 रुपये लीटर पेट्रोल भरा रहे हैं. लोगों को एडजस्ट करा दिया गया है कि 95 रुपया लीटर नया सस्ता है. जैसे न्यू नार्मल होता है उसी तरह से ये नया सस्ता है.

पिछले साल जब पेट्रोल 110 रुपया लीटर गया तब सारी बातें कही गईं कि उत्पाद शुल्क बहुत ज्यादा है. उत्पाद शुल्क के नाम पर सरकार ने ऐतिहासिक वसूली की. एक साल में करीब चार लाख करोड़ रुपये वसूल लिए गए. इतनी रकम कभी नहीं वसूली गई थी. उस दौर में महंगाई के सपोर्टर सड़क पर जनता के बीच सीना तान कर बहस कर रहे थे कि महंगाई सही है. उतनी बुरी नहीं है. चुनाव का खेल शुरू हो चुका है. लखीमपुर खीरी केस के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को ज़मानत मिल गई. गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे को लखीमपुर खीरी के किसानों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इस घटना का संबंध भी उस गाड़ी से है जो पेट्रोल और डीज़ल से चलती है, जिसके दाम के बारे में हम बात कर रहे हैं.

तीन अक्तूबर 2020 को जब पेट्रोल और डीज़ल के दाम आसमान छू रहे थे तब यह थार जीप किसानों को इस तरह रौंदती चली जाती है. लखीमपुर खीरी की यह घटना बताती है कि कुछ लोगों के लिए पेट्रोल कभी महंगा नहीं होता है मगर लोगों की जान हमेशा सस्ती रहती है. यह कोई दुर्घटना नहीं थी, साज़िश थी. एसआईटी ने अपने आरोप पत्र में लिखा है. हत्या की साज़िश के आरोप में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे अभय मिश्रा को गिरफ्तार किया गया था. चार महीने से जेल में थे. संयुक्त किसान मोर्चा इनकी गिरफ्तारी और गृह राज्य मंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहा था. इसकी राजनीतिक व्याख्या की जा रही है कि मतदान शुरू होते ही ज़मानत पर हत्या के आरोपी बाहर आने लगे हैं तो इसकी भी हो ही सकती है कि चुनाव खत्म होते ही पेट्रोल और डीज़ल के दाम आसमान छूने लगेंगे. कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने कहा कि राज्य सरकार को इस ज़मानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए.

‘देखिए जजमेंट एकतरफ होता है और जांच एजेंसी का काम अलग होता है. अगर जांच एजेंसी अच्छे से काम करती है तो जजमेंट भी उसी के अनुरुप होगा. अब अगर इन्होंने ठीक से साक्ष्य कलेक्ट नहीं किए, या प्रजेंट नहीं किए मैं तो कहूंगा कि ये जो बेल हुई है, ये जांच एजेंसी का फेलियर है कि वह कोर्ट को कंविंस नहीं कर पाए, तुरंत अपील की जाए और स्टे मांगा जाए. ये इतना सीरीयस अफेंस है, एक पावर में रहते हैं, डेयर करके आफेंस करते हैं कि हमने धमकी भी दी और करके भी दिखाया. ‘क्या एसआईटी सुप्रीम कोर्ट में आशीष मिश्रा की ज़मानत को चुनौती देगी ? इस सवाल को यही रहने देते हैं. अब आते हैं नेहरु पर.

लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने महंगाई और नेहरु का ज़िक्र कर इसकी बहस में नेहरु को लांच कर दिया है. व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में कई साल तक नेहरू के मीम बने हैं और उन्हें मुसलमान बताया गया है. यही नहीं आज की हर बड़ी नाकामी को नेहरु से जोड़ दिया जाता है. नेहरु से नफरत करने के मामले में मध्यम वर्ग ने कभी निराश नहीं किया है. उम्मीद है 7 मार्च के बाद जब पेट्रोल महंगा होगा तो नेहरु के नाम पर स्वागत करेगा. ध्यान से सुनिएगा, कहीं प्रधानमंत्री चुनाव के बाद अंतर्राष्ट्रीय कारणों के लिए भूमिका तो तैयार नहीं कर रहे हैं. यह भी देखिएगा कि प्रधानमंत्री मज़ा लेेने के लिए नेहरू का नाम किस तरह से ले रहे हैं.

वैसे महंगाई पर कांग्रेस के राज में पंडित नेहरू जी ने लाल किले से क्या कहा, वो जरा आपको मैं बताना चाहता हूं, पंडित नेहरू ! देश के पहले प्रधानमंत्री, लाल किले से बोल रहे हैं ! देखिए, आपकी इच्छा रहती है ना कि मैं पंडित जी का नाम नहीं लेता हूं, आज मैं बार-बार बोलने वाला हूं. आज तो नेहरू जी ही नेहरू जी ! मजा लीजिए आज ! आपके नेता कहेंगे मजा आ गया ! उम्मीद है आपको भी मज़ा आया होगा. नेहरु के बहाने आपको महंगाई पर भी मज़ा आया होगा. इस भयंकर महंगाई के दौर में जब जनता गरीबी में धकेली जा रही है, उसके पास खाने कमाने के मौके और पैसे नहीं हैं, तब नेहरु का नाम मज़ा लेने के लिए लिया जा रहा है. यह नेहरु की कितनी बड़ी उपयोगिता है कि फटेहाल में उन्हें मज़ा लेने के लिए याद किया जा रहा है. अब आगे सुनिए प्रधानमंत्री कैसे आज की महंगाई को नेहरु के दौर की महंगाई से जोड़ देते हैं.

पंडित नेहरू जी ने लाल किले पर से कहा था और ये उस जमाने में कहा गया था तब ग्लोबलाइजेशन इतना नहीं था, नाम मात्र का भी नहीं था. उस समय, नेहरू जी लाल किले से देश को सम्‍बोधन करते हुए क्या कह रहे हैं, कभी-कभी कोरिया में लड़ाई भी हमें प्रभावित करती है. इसके चलते वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं. ये थे नेहरू जी ! भारत के पहले प्रधानमंत्री ! कभी-कभी कोरिया में लड़ाई भी हमें प्रभावित करती है. इसके चलते वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं और यह हमारे नियंत्रण से भी बाहर हो जाती हैं. देश के सामने, देश का पहला प्रधानमंत्री हाथ ऊपर कर देता है. आगे क्‍या कहते हैं, देखो जी आपके काम की बात है. आगे कहते हैं, पंडित नेहरू जी आगे कहते हैं अगर अमेरिका में भी कुछ हो जाता है तो इसका असर वस्तुओं की कीमत पर पड़ता है. सोचिए, तब महंगाई की समस्या कितनी गंभीर थी कि नेहरू जी को लाल किले से देश के सामने हाथ ऊपर करने पड़े थे

क्या प्रधानमंत्री चुनाव बाद के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं कि पेट्रोल डीज़ल के दाम अंतर्राष्ट्रीय कारणों से बढ़ते हैं जो कि इन दिनों चुनावी कारणों से नहीं बढ़ रहे हैं ? क्या यह कह रहे हैं कि नेहरु के समय ग्लोबलाइज़ेशन नहीं था तब नेहरु ने महंगाई को लेकर हाथ खड़े कर दिए थे ? भारत दो सौ साल के उपनिवेश से आज़ाद हुआ था. अंग्रेज़ों ने इसे लूटा था. हर चीज़ आयात होती थी तो ज़ाहिर है बाहर के देशों में दाम का असर यहां होगा. अमर्त्य सेन और ज़ां द्रेज़ को लेकर हमने एक पोस्ट लिखा था, इनकी किताब पर मिल सकता है.

भारत और उसके विरोधाभास. यह किताब ज्यां द्रेज़ और नोबल पुरस्कार विजेता प्रो अमर्त्य सेन ने लिखी है. आज़ादी से ठीक चार साल पहले बंगाल में पड़े अकाल से भारत में 20 से 30 लाख लोगों की मौत हो गई थी. इतने ही लोगों की मौत 1947 के बंटवारे में हुई. अंग्रेज़ों ने इस मुल्क को जी भर कर लूटा था. दादा भाई नौरोजी की किताब ‘ड्रेन आफ वेल्थ’ के बारे में प्रधानमंत्री को पता ही होगा. एक उजड़े और बिखरे चमन के रुप में यह मुल्क आज़ादी के बाद की यात्रा करता है.

इस किताब में अमर्त्य सेन और ज्या द्रेज़ लिखते हैं कि आर्थिक मोर्चे पर, आज़ादी के बाद कई दशकों तक भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर खासी सुस्त थी. सालाना करीब 3.5 प्रतिशत. फिर भी औपनिवेशिक दौर की करीब शून्य और कभी-कभी माइनस दर की तुलना में यह एक बड़ी छलांग थी. नेहरु ने देश की जीडीपी को ज़ीरो से 3.5 पर पहुंचाया. यानी 3.5 प्रतिशत का इज़ाफा किया. 2014 से 2021 तक क्या नरेद्र मोदी भारत की जीडीपी में इतनी वृद्धि कर पाएं हैं ? 1951 में एक भारतीय औसतन 32 साल का जीवन जीता था और आज 66 साल जीता है. क्या यह तरक्की बिना देश को गरीबी और कुपोषण से निकाले ही हो गई होगी ?

एक और बात है. भारत औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी व्यवस्था से आज़ाद हुआ था, जो ठीक-ठीक भले न हो लेकिन आज के ग्लोबल व्यवस्था का ही एक ही रुप था. उस समय की महंगाई और गरीबी से आज तुलना करना सही नहीं होगा. अगर वो सही है तो फिर प्रधानमंत्री मोदी को भी बताना चाहिए कि 2014 में प्रधानमंत्री मोदी महंगाई और पेट्रोल के दाम को लेकर जो कहा करते थे, उसकी तुलना में आज पेट्रोल और डीज़ल के दाम कहां है !

2014 के साल में क्या उन्हें नेहरु का पता नहीं था. 2014 में पेट्रोल 60 (70-72) रुपया लीटर ही हुआ था. तब का यह प्रचार है कि स्कूटर खड़ा कर दिया है. बस से चलने लगे हैं. बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है. क्या आज ये सब असर नहीं पड़ता होगा जब पेट्रोल 95 रुपये लीटर बिक रहा है और 110 रुपये लीटर तक बिका है ? क्या तब नेहरु और अंतर्राष्ट्रीय कारण नहीं थे ? क्या गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें नहीं पता था ? लोकसभा में प्रधानमंत्री ने विपक्ष को याद दिलाया कि जब वे सरकार में थे तब महंगाई को लेकर क्या कहते थे, लेकिन खुद भूल गए कि जब वे विपक्ष में थे तो महंगाई को लेकर क्या कहते थे और सरकार में आकर आज के विपक्ष की भाषा क्यों बोल रहे हैं ?

2012 का एक बयान सुनाता हूं. तब लगता है कि नेहरू की खोज नहीं हुई थी. तो इसी के हिसाब से क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पेट्रोल और डीज़ल के दाम वहां पहुंचा सकते हैं, जहां मनमोहन सिंह छोड़ गए थे ? 2014 जनवरी में दिल्ली में पेट्रोल का रेट 71.52 था. इस समय 95 रुपया लीटर से अधिक है. लोकसभा में जिस तरह से महंगाई की बहस में नेहरु को लाया गया है, उससे यही लगता है कि प्रधानमंत्री चुनाव के बाद महंगाई के लिए तैयार कर रहे हैं. तब यही नेहरू वाला बयान चलाया जाएगा कि जब नेहरु ने हाथ खड़े कर दिए तब क्यों नहीं पूछा गया ?

लेकिन प्रधानमंत्री तो खुद को नेहरु से श्रेष्ठ बताते हैं, तब फिर उन्हें नेहरु की तरह हाथ ऊपर नहीं करने चाहिए बल्कि कहना चाहिए कि 7 मार्च के बाद पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़ेंगे. हम नरेंद्र मोदी हैं, नेहरु नहीं हैं. वैसे नेहरु से पहले नसीब भी एक कारण था. महीना फरवरी का ही था बस साल 2015 था. अगर मोदी के नसीब के कारण डीजल, पेट्रोल के दाम कम होते हैं तो फिर बदनसीब को लाने की जरूरत क्या है ?

महंगाई को लेकर अगर प्रधानमंत्री यह साबित भी कर देते हैं कि कांग्रेस के कारण है, नेहरु के कारण है तो उससे जनता का क्या भला होने वाला है ? क्या वे कांग्रेस की इस गलती को ठीक कर पेट्रोल और डीज़ल के दाम 80 रुपये लीटर से कम कर देंगे ? या फिर से विकास के लिए पेट्रोल का महंगा होना ज़रूरी बताया जाने लगेगा ? जैसा कि पिछले साल मंत्रीगण बताते नहीं थकते थे.

आज़ाद भारत के समय एक गरीब देश को ग़रीबी से बाहर निकालना था और उसका निर्माण करना था. नेहरु ने जो उस समय कहा था वह अपनी वास्तविकता थी. उस समय की. क्या आज प्रधानमंत्री बता सकते हैं कि आज की वास्तविकता क्या है, जब अंतरराष्ट्रीय कारण से दाम बढ़ रहे हैं तो फिर चुनाव के समय क्यों बंद हो जाते हैं ? और चुनाव के बाद क्यों शुरू हो जाते हैं ? फिलहाल आप सरसों तेल के दाम के लिए भी खुद को तैयार कर सकते हैं. वैसे भी अभी दे ही रहे हैं. क्या खाद्य तेलों के दाम भी बढ़ने वाले हैं ?

ब्लूमबर्ग में प्रतीक परिजा ने लिखा है कि पाम ऑयल के दाम में 15 प्रतिशत और सोया तेल के दाम में 12 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है. भारत इन दोनों तेल का आयात करता है. पिछले साल 14 अक्तूबर को सराकर ने खाद्य तेलों को सस्ता करने के लिए आयात शुक्ल में कटौती की थी लेकिन अब फिर से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इनके दाम बढ़ने से लोगों की परेशानी बढ़ सकती है. पिछले साल सरसों का तेल 60 रुपये किलो से बढ़ कर 170-180 हो गया. अहमदाबाद में 195 रुपया किलो है तो पटना में 178 रुपया किलो मिल रहा है.

आम आदमी के लिए सरसों तेल सोना हो गया था. इसलिए यूपी चुनाव को देखते हुए राज्य सरकार मार्च के महीने तक मुफ्त राशन के साथ एक किलो सरसों तेल भी मुफ्त दे रही है. आठ फरवरी को राज्य सभा में सरकार ने बताया है कि 31 मार्च तक के लिए खाद्य तेल पर स्टाक लिमिट लगा दी गई है. रिज़र्व बैंक ने भी कहा है कि महंगाई की दर पांच फीसदी से अधिक हो सकती है. जबकि उससे अनुसार 2 से 4 फीसदी के बीच महंगाई सहनशील मानी जाती है. रवीश रंजन ने कुछ लोगों से बात की है. एक महिला ने कहा कि 500 रुपया किलो सरसों तेल हो जाए तो कोई बात नहीं है.

महिला – तेल क्या रेट है. तेल पांच सौ रुपए हो जाए तब भी मोदी योगी है.

दूसरा व्यक्ति – हमारे लिए बुलडोजर मुद्दा नहीं है, मंहगाई और रोजगार मुद्दा है. नौकरी निकल नहीं रही है. मंहगाई सातवें आसमान पर है. सिलेंडर के दाम और तेल के दाम कहां पहुंच गया. महंगाई के समर्थक वाकई लाजवाब हैं. यह उनकी राजनीतिक शक्ति है कि लोगों ने दिमागी शक्ति का इस्तेमाल छोड़ दिया है. 100 रुपया लीटर पेट्रोल और 500 रुपया किलो सरसों तेल के दाम के सपोर्टर पैदा कर देना इतना आसान नहीं होता, वह भी उस प्रदेश में जहां मार्च तक एक किलो सरसों तेल फ्री दिया जा रहा है. अजय सिंह ने बनारस के कुछ लघु व मध्यम उद्योगों की हालत पर रिपोर्ट पेश की है.

यूपी में पहले चरण की 58 सीटों के लिए मतदान हुआ, पर मतदान के दौरान बहुत सारे वोटरों ने शिकायत की कि उनका नाम इस बार वोटर लिस्ट से कट गया है. कुछ लोगों ने ये भी शिकायत की कि जब वो वोट डालने पोलिंग बूथ पहुंचे तो पता चला कि उनका वोट पहले ही डाला जा चुका है. वहीं योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि यूपी को बंगाल और केरल नहीं बनाने देना है. राष्ट्रवाद का नाम लेते लेते, हर बात में ‘एक राष्ट्र-एक राष्ट्र’ करते विरोधी दलों की सरकारों वाले राज्यों के प्रति प्रेम का यह इज़हार ठीक वैसा है जैसे महंगाई की बहस में नेहरू के नाम का मज़ा लेना. कभी आपने सोचा था कि आपको ऐसा बना दिया जाएगा. आप क्या से क्या हो गए ये अभी नहीं, बीस साल बाद सोचिएगा.

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ROHIT SHARMA

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