गंगा में बह रही युवक की लाश कह रही है
हमारी हत्या हुई !
ऑक्सीजन बिना तड़प कर
मरी सारी माताएं रो रही हैं
इस सरकार ने हमारी सांसें छीन लीं !
इसके हाथों घोटा गया हमारा गला !
चिता की लकड़ी के लिए रोता
एक दादा का शव पूछता है
ये हत्यारे अभी तक शासन में हैं ?
रेत में दफनाया युवक का शव कहता है
मुझे अभी नहीं मरना था !
मैंने तो बारात के लिए नए जोड़े सिलवाए थे !
लाखों अनाथ मुर्दे एक साथ बोलते हैं
जिस सरकार ने हमें मारा हम उसके खिलाफ हैं
सरकारी क्रूरता को मिटाना ही हमारा इंसाफ है
दवा के बिना मारा गया एक कंकाल बोलता है
यदि हमारे हत्यारों को वोट दिया तो
हमें तुम्हारा दिया पिंड ना मिले !
पैदल चल चल कर रास्ते में मारा गया मजदूर बोलता है
यदि इन हत्यारों को चुना तो
हमें ना मिले मोक्ष !
यदि वधिकों का साथ दिया तो
हम युग युग तक भटकें प्रेत बन कर
यदि जुमलेबाजों का नाम लिया तो
हम हवा में गूजेंगे इनके खिलाफ प्रेत बन कर !
अस्पताल के बाहर मरा एक किसान बोलता है
हम तुमको धिक्कारेंगे तुम हत्यारों के आगे यदि झुके
हम तुमको धिक्कारेंगे तुम हत्यारों के हाथों यदि बिके !
फेफड़े गल गए जिस नव ब्याहता के वह रोती है
कायरों के हाथ से निकालो प्रदेश को
कायरों के जबड़े से निकालो प्रदेश को !
रातों के अंधियारे में नारा लगा रहे हैं
कोरोना में मारे गए लोग
गंगा में शवों का जुलूस निकल रहा है
गंगा के मैदान में छाती पीट कर हर शव कह रहा है
हमें याद रखना
जैसे हम मारे गए जैसे हम दुत्कारे गए
इनको भी उपेक्षा से मारो
इनको दुत्कारो
इन लफ्फाज निकम्मों को गद्दी से उतारो !
- बोधिसत्व, मुंबई
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]