गिरीश मालवीय
देश को लूटने में महमूद गजनवी को भी पीछे छोड़ दिया. देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने गुजरात की कई कंपनियों पर 22,842 करोड़ के फ्रॉड का आरोप लगाया है. इस घोटाले को बैंकिंग फ्रॉड में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला कहा जा सकता है क्योंकि यह नीरव मोदी से भी बड़ा घोटाला है. घोटाले का समय अप्रैल 2012 से जुलाई 2017 तक बताया गया है.
देश का सबसे बड़ा बैंक घोटाला एबीजी शिपयार्ड का मामला वैसा बिलकुल नहीं हैं जैसा मीडिया बताने की कोशिश कर रहा है. सबसे पहले यह समझिए कि घोटालेबाज कौन है ? ऋषि अग्रवाल इस कम्पनी के कर्ता-धर्ता है, जो इस घोटाले का मुख्य किरदार हैं. ऋषि अग्रवाल रवि और शशि रुइया की बहन के लडके हैं.
फोर्ब्स के अनुसार रुईया ब्रदर्स 2012 में देश के सबसे अमीर व्यक्ति थे. उनकी कम्पनी एस्सार ग्रुप है, जो अब बिखर चुकी है. मुख्य कम्पनी एस्सार ऑयल भी 2018 में रूस के कम्पनी के हाथों बिक चुकी हैं. यानी यह घोटाला एस्सार से भी जुड़ा हुआ है, मीडिया यह तथ्य बता ही नहीं रहा है.
एबीजी शिपयार्ड जहाज बनाने वाली देश की सबसे बड़ी प्राइवेट कंपनी हैं. इसके शिपयार्ड गुजरात के दहेज और सूरत में स्थित है. भारतीय नौसेना के लिए युद्धपोतों और विभिन्न अन्य जहाजों का निर्माण के लिए यह कम्पनी अधिकृत है. इस श्रेणी में सिर्फ तीन कंपनियां ही आती हैं, जिसमें से अनिल अंबानी की रिलायंस नेवल (पुराना नाम पीपापाव शिपयार्ड) भी एक थी. अनिल अंबानी ने भी 2017 में एबीजी को खरीदने की कोशिश की थी.
अभी जो ख़बर आई हैं वो यह है कि सीबीआई ने मामला दर्ज किया है लेकिन इसकी शिकायत बैंकों के कंसोर्टियम ने आठ नवंबर 2019 को दर्ज कराई थी. डेढ़ साल से अधिक समय तक जांच करने के बाद सीबीआई ने इस पर कार्रवाई की है.
मामला जरूर एसबीआई के कहने पर दर्ज हुआ है लेकिन इस घोटाले में आईसीआईसीआई सबसे ज्यादा नुकसान में हैं क्योंकि एबीजी पर सबसे अधिक राशि ₹7,089 करोड़ उसकी ही बकाया है. इसके अलावा आईडीबीआई बैंक का ₹3,639 करोड़ फंसा हुआ है. आईडीबीआई को जबरदस्ती मोदी सरकार ने एलआईसी के हाथों खरीदवाया है इसलिए एलआईसी भी इस घोटाले से नुकसान में है. एबीजी पर एसबीआई का ₹2,925 करोड़ बकाया है.
एबीजी का मामला नीरव मोदी की तरह नहीं हैं क्योंकि आज की तारीख में एबीजी शिपयार्ड में आईसीआईसीआई बैंक की 11 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि आईडीबीआई बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और पंजाब नैशनल बैंक में से प्रत्येक की 7 फीसदी हिस्सेदारी है. इसी प्रकार देना बैंक की हिस्सेदारी 5.7 फीसदी है. यानी बैंकों की पूरी रकम डूब चुकी है.
रिजर्व बैंक ने जून 2017 में बैंकों को जिन 12 कंपनियों को बैंकरप्सी कोर्ट में ले जाने को कहा था, उनमें एबीजी शिपयार्ड भी शामिल थी. उस वक्त एबीजी शिपयार्ड के लिए सिर्फ लिबर्टी हाउस ने ही बोली लगाई थी. लिबर्टी हाउस ने 10 साल में इतना पैसा चुकाने की बात कही थी. वो कैश बिलकुल भी नहीं दे रहा था इसलिए ऑफर को बैंक रिजेक्ट कर दिया था.
यह ग्रुप पहले से ही मुश्किल में था. 2014 में जब मोदी सत्ता में आए थे तब आईसीआईसीआई बैंक के नेतृत्व में 22 बैंकों के समूह ने एबीजी शिपयार्ड के 11,000 करोड़ रुपये के कर्ज को पुनर्गठित करने के लिए सहमति जताई थी ताकि पुनर्भुगतान के लिए कंपनी को अतिरिक्त समय मिल जाए. यानी उस वक्त भी उसे और लोन दिया गया इस प्रक्रिया को एवरग्रीनिग कहा जाता है. यानी लोन वसूलने के लिए और लोन देना.
2014 में 11 हजार करोड़ का लोन 2022 में 23 हजार करोड़ का कैसे हो गया ? यानी कि साफ़ है मोदी सरकार के सात सालों में उसे हजारों करोड़ रुपयों का और लोन दिया गया ?
द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ एबीजी शिपयार्ड स्कैम
एबीजी शिपयार्ड के मामले में मोदी सरकार साफ़-साफ़ झूठ बोल रही है. जिस कम्पनी का लोन 2017 में ही NPA हो गया था, उसका मामला जानबूझकर पांच साल तक लटका कर रखा गया और आज हमें 2022 में यह बताया जा रहा है कि बैंकों में जमा किए गए हमारे पैसों से बांटा गया 23 हजार करोड़ का लोन डूब गया है.
कहीं पर लिख के रख लीजिए कि देश के इस सबसे बड़े बैंक घोटाले के सारे आरोपियों को साफ़ बचा लिया जाएगा. अभी तक एक भी आरोपी की गिरफ्तारी की ख़बर नहीं आई है. घोटाले के मुख्य कर्ता-धर्ता ऋषी अग्रवाल के बारे में भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है कि आखिर वह है कहां ? सिंगापुर में हैं या भारत में ?
दरअसल इस पूरे फ्रॉड के सभी तथ्य कभी भी बाहर नहीं आएंगे, क्योंकि अगर पोल खुल गईं तो भारत की पूरी बैंकिंग व्यवस्था ढह जाएगी. सच्चाई यह है कि लोन देने वाले बैंकों के कंसोर्टियम का नेतृत्व आईसीआईसीआई बैंक कर रहा हैं, लेकिन सीबीआई से शिकायत के लिए एसबीआई को आगे किया गया. एबीजी को दिए गए कुल लोन में आईसीआईसीआई बैंक का हिस्सा लगभग एक तिहाई है. सबसे बडी गलती भी इसकी पूर्व सीईओ रही चंदा कोचर की हैं.
आपको उपर मैंने बताया ही था कि ऋषि अग्रवाल एस्सार के मालिक रुईया ब्रदर्स के सगे भांजे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस तरह से एबीजी शिपयार्ड को सबसे बड़ा लोन देने वाला बैंक आईसीआईसीआई है, वैसे ही एस्सार ग्रुप को कर्ज देने वाला भी सबसे बड़ा बैंक आईसीआईसीआई ही था.
2015 तक यह ग्रुप देश की तीन सबसे बड़ी कर्जदार कंपनियों में शामिल था. आईसीआईसीआई बैंक एस्सार ग्रुप को कर्ज देने वाला सबसे बड़ा बैंक रहा. इसने मिनेसोटा और इसके यूके स्थित रिफाइनरी प्रोजेक्ट के लिए भी फंड दिया, इसके बदले में आईसीआईसीआई की चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कम्पनी में रुइया से इन्वेस्टमेंट करवाया गया.
ऐक्टिविस्ट और व्हिसल ब्लोअर अरविंद गुप्ता ने आरोप लगाया था कि एस्सार ग्रुप के रुइया ब्रदर्स को ICICI बैंक की ओर से मदद की गई ताकि उनके पति दीपक कोचर के न्यूपावर ग्रुप को ‘राउंड ट्रिपिंग’ के जरिए इन्वेस्टमेंट हासिल हो सके. रवि रुईया ने अपने दामाद निशांत कनोडिया के मैटिक्स ग्रुप और इसकी होल्डिंग इकाई फर्स्टलैंड होल्डिंग्स लिमिटेड के जरिये दीपक कोचर की कंपनी में 453 करोड़ रुपये का निवेश किया.
सरकारी एजेंसियों ने इस संदर्भ में मैटिक्स ग्रुप के मालिक निशांत कनोडिया से पूछताछ की थी, जो एस्सार ग्रुप के चेयरमैन रवि रुइया के दामाद हैं. जब दामाद पर सवाल उठे हैं तो भांजे की कंपनी को दिए गए लोन को केसे छोड़ दिया गया ? आखिरकार लोन देने वाले बैंकों के कंसोर्टियम का नेतृत्व आईसीआईसीआई बैंक ही तो कर रहा था.
व्हिसल ब्लोअर अरविंद गुप्ता ने यह सारे आरोप साल 2016 में लगाए थे, लेकिन उस वक्त कोई कार्यवाही नही की गई. बाद में विडियोकॉन ग्रुप के 3,250 करोड़ के कर्ज में चंदा कोचर का इन्वॉल्वमेंट सामने आया और 2019 में उन्हें आईसीआईसीआई बैंक के चेयरमैन पद से हटाया गया लेकिन सीबीआई को इस पूरे मामले की विस्तृत जांच करने से मोदी सरकार ने रोक दिया.
बीमार पड़े हुए केबिनेट मंत्री अरुण जेटली ने अमेरिका से 25 जनवरी, 2019 को एक फेसबुक पोस्ट लिखी. जेटली की इस पोस्ट का शीर्षक था ‘इनवेस्टीगेटिव एडवेंचरिज्म वर्सेज प्रोफेशनल इनवेस्टीगेशन.’ जेटली ने लिखा, ‘पेशेवर जांच और जांच में दुस्साहस के बीच आधारभूत अंतर है. हजारों किलोमीटर दूर बैठा, मैं जब ICICI केस में संभावित लक्ष्यों की सूची पढ़ता हूं तो एक ही बात मेरे दिमाग में आती है कि लक्ष्य पर ध्यान देने की जगह अंतहीन यात्रा का रास्ता क्यों चुना जा रहा है ?’
दरअसल सीबीआई ने वीडियोकॉन लोन मामले में आईसीआईसीआई बैंक के अन्य टॉप अफसरों पर केस क्या दर्ज किया, ये बात जेटली को नागवार गुजर गई. उन्होंने एफआईआर लिखने वाले सीबीआई अफसर को ही शंट करा दिया. सीबीआई ने चंदा कोचर के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले में बैंकिंग क्षेत्र के के. वी. कामथ तथा अन्य को पूछताछ के लिये नामजद किया था.
के. वी. कामथ भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के बिग डैडी हैं. वे ICICI बैंक के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं. कामथ उद्योग और बैंकिंग के क्षेत्र में बहुत तगड़ी पकड़ रखने वाले शख्स है. मोदी सरकार ने 2015 में केवी कामथ को ‘ब्रिक्स’ देशों द्वारा स्थापित किए जा रहे 50 अरब डॉलर के ‘न्यू डिवेलपमेंट बैंक’ (एनडीबी ) का प्रमुख भी नियुक्त किया था और के. वी. कामथ की मदद से ही एस्सार ग्रुप का सबसे कीमती एसेट एस्सार ऑयल को रूस की सरकारी कंपनी रोसनेफ्ट के नेतृत्व वाले समूह को 83 हजार करोड़ रुपये में बिकवाया.
यह सौदा 2015 में जब हुआ तब गोवा में ब्रिक्स देशों का सम्मेलन चल ही रहा था. उस वक्त मोदी जी ने अपने प्रचार के लिए यह मौका भुना लिया और देश भर के बड़े अखबारों में इस रकम को आज तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बतलाते हुए पूरे पेज के विज्ञापन छपवाए थे. लेकिन जब 2019 में सीबीआई के हाथ के. वी. कामथ तक पुहंचे तो उसे भी आगे बढ़ने से रोक दिया गया.
केवी कामथ चंदा कोचर से ठीक पहले आईसीआईसीआई बैंक के सीईओ थे. बहुत संभव है कि एबीजी शिपयार्ड को लोन दिलवाने वाले वही हो क्योंकि वीडियोकॉन को जिस समिति ने 3250 हजार करोड़ का लोन मंजूर किया है, उसके अध्यक्ष के. वी. कामथ ही थे. अगर एबीजी शिपयार्ड को अनाप शनाप तरीके से लोन देने का मामला पूरी तरह से खुल गया तो सारी पोल पट्टी बाहर आ जाएगी, इसीलिए ऋषि अग्रवाल जैसे लोगों को सेफ पैसेज दिया जा रहा है ताकि वह अपनी सम्पत्ति देश से बाहर सेटल कर ले और इन मामलों में अपना मुंह बन्द रखें.
तो यह है इस घोटाले के पीछे छिपी हुई अनटोल्ड स्टोरी. मीडिया मोदी सरकार से अभी तक यह क्यों नहीं पूछ रहा कि 23 हजार करोड़ के इस घोटाले का मुख्य आरोपी ऋषि अग्रवाल कहां हैं ? उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा रहा ?
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