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मैं संघियों की बात भला क्यों मानूं ?

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मैं संघियों की बात भला क्यों मानूं ?

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार

बचपन में मुसलमानों के बारे में वही सब सुना जो आमतौर पर कहा जाता है
कि ये लोग जुम्मे के जुम्मे नहाते हैं, हर काम हिंदुओं से उल्टा करते हैं. उल्टे तवे पर रोटी पकाते हैं. हिंदू सिर की तरफ से नहाना शुरू करते हैं, यह पहले पांव धोते हैं. यह पान बहुत खाते हैं. यह मुर्गे बकरिया पालते हैं. यह सुरमा लगाते हैं. यह दाढ़ी में मेहंदी लगाते हैं वगैरह-वगैरह.

हमारा ब्राह्मणों का परिवार था. सबसे बड़े ताऊ पंडित ब्रहम प्रकाश शर्मा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. उनकी स्मृति में मुजफ्फरनगर में सरकार द्वारा बनाया गया सार्वजनिक द्वार आज भी मौजूद है. मेरे पिताजी गांधी जी के साथ सेवाग्राम में रहे विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में रहे. अपने आसपास फैली हुई नफरत भरी बातें कानों से होते हुए दिमाग तक पहुंचती थी.

कुछ समय के लिए हम उन्हें सच भी समझने लगते थे लेकिन जब मैं मुजफ्फरनगर के एसडी इंटर कॉलेज में पढ़ने पहुंचा तो मेरे दोस्त बने गुरजीत जो सरदार था, राजेश खत्री था, इफ़्तिख़ार और साजिद सुन्नी मुसलमान.

मैंने देखा मेरे मुसलमान दोस्त रोज नहाते हैं. हमसे भी ज्यादा साफ सफाई का ख्याल रखते हैं. न किसी के घर में बकरियां, ना मुर्गियां, न कोई सूरमा लगाता था, ना कोई दाढ़ी में खिजाब. यह हमारे त्यौहार में शामिल होते थे. हम इनके त्यौहार में. हम साथ में खेल खेले, पिक्चर देखी, साइकिलों की दौड़ लगाई.

एक बार क्लास में हम लोग कोई बात कर रहे थे. लेक्चरर कब आए पता नहीं चला. उन्होंने हमें खड़ा करके जोर से डांट पिलाई और प्रिंसिपल के पास ले गए. हमसे कहा गया कि सब लोग गुरुजी के पांव छुओ. इफ़्तिख़ार बोला मैं पांव नहीं छू सकता हमारे मजहब में हराम है. गुरुजी ने कहा – तुम्हें कालेज से निकाल देंगे. पता नहीं हम लोगों को क्या हुआ, हम बाकी के दोस्त मैं, राजेश और गुरजीत बोले – सर अगर इफ़्तिख़ार को कॉलेज से निकालेंगे तो हम तीनों को भी निकाल दीजिये.

प्रिंसिपल मेरा पारिवारिक बैकग्राउंड जानते थे. उन्होंने थोड़ी-सी डांट डपट करके हमें वापस क्लास में भेज दिया. बाद में मैं ग्रेजुएशन के लिए हरदोई चला गया. वाह, मेरे दोस्तों में रश्मि कांत, राजकुमार, मनोज और मुनीश और इश्तियाक थे. कॉलेज में हड़ताल कराने के लिए दूसरे कॉलेज के लड़के आए. हमारे उप प्रधानाचार्य और कॉमर्स के टीचर शुक्ला जी ने कहा यह लड़के हमारे प्रिंसिपल साहब को पीट रहे हैं, क्या कॉलेज में कोई बहादुर छात्र नहीं है ?

मैं साहित्य परिषद का उपाध्यक्ष था. मैंने अपने दोस्तों से कहा – चलो इन्हें रोकते हैं. जोरदार भिड़ंत हुई. मेरे सिर पर एक हॉकी लगी. आज भी मेरे माथे पर नीले रंग की वो नस उभरी हुई है. इश्तियाक ने हॉकी चलाने वाले लड़के को दौड़ाया. वो लड़का नाले में गिर गया. उससे उसकी टांग टूट गई.
खैर, अगले दिन हम जाकर घायल लड़के से अस्पताल में मिले और जो कुछ हुआ उसके लिए दु:ख व्यक्त किया.

मेरे छोटे बहनोई मुस्लिम थे. पिछले साल कोरोना में वे नहीं रहे. मेरी मां के अंतिम समय में उन्होंने बेटे से बढ़कर उनकी सेवा की. साफ सफाई के मामले में वे पूरे परिवार में सबसे बढ़कर थे. मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मैंने वहां काम किया. 80 हज़ार मुसलमानों को बेघर कर दिया गया था, वह लोग टेंट में रहते थे.

मुझे आश्चर्य होता था कि वहां भी वह लोग रोज नहाते थे और धुले हुए साफ कपड़े पहनते थे. मुझे कोई मुसलमान आज तक गंदा नहीं मिला. पिताजी जब मेरठ गांधी आश्रम में थे. हम उनके साथ रहते थे. मेरी मां की सहेली थी खैरुन्निसा. उनके चार बच्चे थे – यासीन फारुख शकीला और मेहरून्निसा. वह मेरी मां को और मेरी मां उन्हें बहन की तरह प्यार करती थी. मेरठ में जब दंगे हुए तो उनके पूरे परिवार को मां ने घर में रखा था. हमारा आधा दिन उनके ही घर में गुजरता था.

मुजफ्फरनगर में रशीद ताऊजी नकी ताऊजी उनके पूरे परिवार हमारे अपने परिवार जैसे थे. सामाजिक काम करते समय मुझे सैकड़ों बार मुसलमानों की बस्तियों में उनके गांव में उनके घरों में दिन-रात रहने और रुकने का मौका मिलता है. जो प्यार और सुरक्षा मुझे उनके बीच में मिलती है, वह मैं बयान नहीं कर सकता. मेरे पास तो मुसलमानों के बारे में अपना अनुभव है. मैं संघियों की बात भला क्यों मानूं ?

एक शब्द है रेजिमेंटेशन. फौज में सैनिकों की एक यूनिट को रेजिमेंट कहा जाता है. रेजिमेंटेशन का अर्थ है कि वे सारे जिन लोगों का रेजिमेंटेशन किया जाना है, वह एक ढंग की वेशभूषा पहने. एक तरह के धर्म को मानें. एक व्यक्ति को नेता माने और एक ही विचारधारा को सही मानें और एक खास विचारधारा से नफरत करें. यानी उन सब का दिमाग एक तरह से सोचे.

इस तरह की कोशिश दुनिया में बहुत सारे तानाशाहों और दूसरे लोगों ने की है. यह हमेशा विभिन्नता से नफरत करते हैं. यह अलग तरह की संस्कृति से नफरत करते हैं. अलग तरह के कपड़ों से नफरत करते हैं. अलग तरह की जीवन शैली से नफरत करते हैं. अलग तरह के विचार से नफरत करते हैं. दूसरे धर्म से नफरत करते हैं. पड़ोसी देश से नफरत करते हैं.

रेजिमेंटेशन का विरोधी विचार है प्लूरलिज्म. यानी जहां अलग-अलग विचार हो, अलग-अलग संस्कृतियां हो, अलग-अलग धर्म हो और सब एक साथ एक दूसरे का सम्मान करते हुए रहें. भारतीय संविधान प्लूरलिज्म को मान्यता देता है लेकिन भाजपा और आरएसएस रेजिमेंटेशन के विचार को मानने वाले हैं.

इनके दस्तावेज मौजूद हैं कि इन्होंने हिटलर और मुसोलिनी की तारीफ की थी और आज भी यह लोग पूरे देश का रेजिमेंटेशन करना चाहते हैं. यूनिफॉर्म का विचार ही रेजिमेंटेशन की शुरुआत है. सब को एक जैसा क्यों होना चाहिए ? अलग-अलग तरह का होने में क्या बुराई है ?

सबको एक जैसा बनाने की बजाय आप अमीरी गरीबी मिटाएं. सुख और दु:ख के बीच जो जीवन स्तर का फर्क है, उसको मिटाने के लिए काम करें. वहां बराबरी लाने की कोशिश करने से दुनिया में सुख बढ़ेगा. लेकिन यह तानाशाह सोच के लोग हैं. यह अपनी विचारधारा को लादने के लिए सारी कूद फांद कर रहे हैं.

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