गिरिश मालवीय
देश भर की जमीन का डिमोनेटाइजेशन ! चौंकिए मत ! दरअसल आजकल मीडिया का काम ख़बरों को छिपाने का हो गया है. अब इस साल के बजट को ही ले लीजिए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने बजट भाषण में एक बड़ी महत्वपूर्ण घोषणा की थी लेकिन मीडिया उस घोषणा के प्रभाव की जानकारी देने के बजाय सरकारी विज्ञप्ति ही छाप देती है. हम बात कर रहे हैं ‘वन नेशन वन रजिस्ट्रेशन’ की.
बजट भाषण में घोषणा की गयी कि अब से देश की हर जमीन का आधार जैसा यूनिक नंबर होगा, इसके लिये लैंड का डिजिटल तरीके से रिकॉर्ड होगा. इसके लिए आधुनिक तकनीक और उपकरण का इस्तेमाल किया जायेगा. जमीनों की जियोकोडिंग और जियोटैगिंग की जाएगी और इसके लिए ड्रोन कैमरे की मदद ली जाएगी. केंद्र सरकार का लक्ष्य मार्च 2023 तक तक देशभर के लैंड रिकॉर्ड को डिजिटल करने का है.
सुनने में तो यह योजना बड़ी भली मालूम होती हैं. पहली नजर में तो इसमे कोई खोट आप निकाल नहीं पाएंगे लेकिन आपको पता होना चाहिए कि जमीन से संबंधित कानून हर राज्य के अलग-अलग है. य़ह राज्य सूची का विषय है. यानी देश भर की जमीनों को एक यूनिक नंबर देने के लिए आपको देश भर के अलग-अलग राज्यों में बने कानून को एक केंद्रीय कानून के तहत लाना होगा. और यहां हमारे सामने आता है नीति आयोग का बनाया हुआ ‘लैंड टाइटलिंग एक्ट.’
अब आप पूछेंगे कि ये कब हुआ ! तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पिछले साल देश में आधारभूत परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया आसान बनाने और भूमि के स्वामित्व में मुकदमेबाजी कम से कम करने के मकसद से नीति आयोग ने राज्यों के लिए मॉडल अधिनियम का एक मसौदा जारी कर दिया था.
इस मसौदा मॉडल अधिनियम और इसके नियमों से राज्य सरकारों को अचल संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन की प्रणाली की स्थापना, प्रशासन और प्रबंधन की शक्ति हासिल होगी.
मसौदा अधिनियम के मुताबिक, नोटिफिकेशन जारी होने के तीन साल के भीतर कोई व्यक्ति जमीन पर स्वामित्व से संबंधित अपनी आपत्ति रजिस्ट्रेशन ऑफिसर के समक्ष दर्ज करा सकेगा. इसके बाद यह अफसर इस मामले को भूमि विवाद समाधान अधिकारी के पास भेजेगा. समाधान अधिकारी के आदेश से असंतुष्ट होने पर इसके खिलाफ भूस्वामित्व अपीलीय अधिकरण के समक्ष 30 दिन के भीतर अपील की जा सकेगी. अधिकरण के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकेगा, जहां हाईकोर्ट की विशेष पीठ इन मामलों को सुनेगी.
इसका पायलट प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश में लागू होने जा रहा है.
मध्यप्रदेश सरकार देश में पहली बार लैंड टाइटलिंग एक्ट लेकर आ रही है. यहां के भूमि सुधार आयोग, आयुक्त भू अभिलेख, नगरीय आवास एवं विकास, पंजीयन विभाग सहित अन्य विभाग मिलकर इस एक्ट को मूर्त रूप दे रहे है. लैंड टाइटलिंग एक्ट को लागू करने के लिए सभी विभागों से डाटा लेकर इसे सिंक्रोनाइज किया जाएगा. लैंड टाइटलिंग एक्ट में मप्र में जमीनों का सौदा करने के लिए यूनिक आइडी बनाई जाएगी.
इसके बारे में हमारे एक मित्र Satyam Shrivastava ने Abhishek Srivastava के मीडिया पोर्टल ‘जनपथ’ में एक लेख में विस्तार से लिखा है. वे लिखते हैं –
‘दरअसल यह एक राष्ट्र, एक दल, एक झण्डा, एक विधान और एक नेता की सूक्ति से सम्पन्न ग्रामीण, कस्बाई व शहरी क्षेत्रों में विवादित निजी स्वामित्व की सम्पत्तियों के नियमितीकरण के लिए एक सार्वभौमिक व्यवस्था थोपे जाने का आगाज़ है.
‘यह न्यू इंडिया का एक ऐसा कानून है जिसका उद्देश्य तमाम निजी अचल संपत्ति पर नियत तिथि तक हुए कब्ज़ों को टाइटल में बदलना है. यह अचल संपत्ति मुख्यतया निजी ज़मीनें हैं. इसके अलावा कुछ और महत्व की संपत्तियां मसलन जलस्रोत, निजी अहाते, फ्लैट, मकान, खेत आदि शामिल हैं.
‘प्रथमदृष्ट्या यह लगता है कि यह जबरन या यथास्थिति में तमाम तरह के कब्ज़ों को वैध घोषित किए जाने की कोशिश है ताकि इन सम्पत्तियों पर चले आ रहे विवादों का अंतिम समाधान प्राप्त किया जा सके. इसे ऐसे भी देखा जा रहा है कि वास्तव में अवैध कब्जों को हटाकर उस भूखंड विशेष के असल मालिक को उसका अधिकार दिलाने के लिए है. इसका निर्धारण इस बात से होगा कि कौन उस ज़मीन या भूखंड के सच्चे कागजात पेश कर सकता है.’
अब आप कहेंगे कि ये सब तो ठीक हैं लेकिन इसे आप जमीनों का डिमोनेटाइजेशन कैसे कह रहे हैं ? आप याद कीजिए कि दरअसल नोटबंदी में हुआ क्या था ? नोटबंदी में हुआ यह था कि आप अपने घर में रखे हजार और पांच सौ के नोट जो अब लीगल टेंडर नही रह गए थे, उन्हें बदलवाने के लिए सक्षम प्राधिकारी के पास लेकर गए थे.
इस कानून में भी अपनी जमीन का आधार जैसा यूनिक नंबर लेने के लिए आपको किसी सक्षम प्राधिकारी के पास जाना होगा, वो भी पूरे कागज लेकर. अधिक विस्तार से समझना चाहते है तो वकील साहब आपको समझा देंगे.
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