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न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का डिजिटल करेंसी यानी सम्पूर्ण नियंत्रण : चौतरफा नियंत्रण

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न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के लिए कैशलेश सोसायटी. कैशलेश समाज का असली मकसद है ‘सम्पूर्ण नियंत्रण : चौतरफा नियंत्रण.’ यानी, फासीवाद ! इक्कसवी सदी का फासीवाद.

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का डिजिटल करेंसी यानी सम्पूर्ण नियंत्रण : चौतरफा नियंत्रण

girish malviyaगिरीश मालवीय

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का सबसे अहम ओर सबसे घातक हथियार आज सामने आ गया है. मोदी सरकार के यूनियन बजट में देश की पहली डिजिटल करेंसी जारी करने की घोषणा कर दी गई है. भारत का रिजर्व बैंक हमारे समय की अब तक की सबसे महत्वपूर्ण परियोजना को शुरू कर रहा है और वह है 2022 में डिजिटल मुद्रा की शुरूआत.

दरअसल कोरोना महामारी ने वैश्विक समाज के सभी क्षेत्रों, खासतौर पर अर्थव्यवस्था में जिन कमजोरियों को उजागर किया है, उससे पूंजीवाद के वर्तमान रूप क्रोनी कैपटलिज्म पर एक बड़ा संकट आ खड़ा है और इस संकट को दूर करने के लिए पूरे विश्व के विभिन्न देशों के रिजर्व बैंकों के बीच डिजिटल मुद्रा की दौड़ शुरू हो गई है. यह कदम एक क्रांतिकारी परिवर्तन साबित होने जा रहा है. अभी तक हम जिस जीवनशैली को जानते हैं, उसमें नगदी यानी कागजी मुद्रा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन अब पूरी व्यवस्था ही बदलने जा रही है.

इस दुनिया के ताकतवर लोग अच्छी तरह से जानते हैं अधिकतम लोगों पर अधिकतम नियंत्रण स्थापित करने के लिए नकदी को समाप्त करना होगा. पेपर मनी को डिजिटल मनी द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा, जो टेक्नोक्रेट को हर एक वित्तीय लेन-देन को ट्रैक करने की अनुमति देगा. यह एक तरह से नए युग में नए तरह की गुलामी की शुरुआत हैं.

कोरोना काल में इस समय दुनिया अपने आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक और सामाजिक प्रयोग के बीच में है, जहां इंटरनेट सबसे महत्वपूर्ण होकर उभरा है. अब इस तकनीक के जरिए हमारे जीवन को पूरी तरह से डिजिटाइज करने की कोशिश कर रही है.

मार्च 2020 में विश्व अर्थव्यवस्था को जो जोरदार झटका लगा है, उसका सबसे बड़ा असर मौद्रिक प्रणाली पर पड़ा है. यह संकट सिर्फ नोट छापने और ब्याज दरों में कटौती से खत्म नही होने वाला है.

न्यू वर्ल्ड आर्डर कहता है कि जो देश इस डिजिटल मुद्रा की तरफ अपने कदम नही बढ़ाएगा, वह अपनी मुद्रा के बुरे से बुरे अवमूल्यन के लिए तैयार रहे. पिछले कई वर्षों से वित्तीय क्षेत्र मे हम पर डिजिटलीकरण थोपा जा रहा है. नोटबन्दी का घोषित उद्देश्य काला धन रोकना नही बल्कि मुद्रा का डिजिटलीकरण करना था. अब
आश्चर्यजनक रूप से बैंक मर्ज किए जा रहे है, शाखाएं बंद की जा रही हैं, नकदी को पीछे धकेला जा रहा है.

यह कोई कांस्पिरेसी थ्योरी नही है, यह सच्चाई है, जिससे बुद्धिजीवी नजरे चुरा रहे हैं. कोरोना ऐसी व्यवस्था के लिए गोल्डन अपॉर्च्युनिटी लेकर आया है क्योंकि अर्थव्यवस्था उद्योगपतियों के कर्ज़ के बोझ के नीचे दबी हुई है और यह लोन डूब रहा है, मरता क्या न करता वाली सिचुएशन है.

कोराना काल का उत्तरार्द्ध आ गया है, अब ब्रम्हास्त्र चलाने का समय है. अमेरिका में भी यूएस डॉलर को पूरी तरह से डिजिटल बनाने का विचार, जो कुछ साल पहले अकल्पनीय था, अब तूल पकड़ता जा रहा है. डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स दोनों ने पारंपरिक कागजी डॉलर के साथ-साथ अब ‘डिजिटल डॉलर’ पर विचार करना शुरू किया है लेकिन इस खेल में अमेरिका अभी पीछे है.

इस खेल में सबसे आगे है चीन, जिसने कई महीने पहले ही डिजिटल युआन जारी कर दिया है. दरअसल चीन में हाल के वर्षों में ऑनलाइन भुगतान की कई सेवाएं लोकप्रिय हुई है, उनमें एन्ट ग्रुप का अली-पे और टेसेन्ट ग्रुप का वीचैट-पे सबसे लोकप्रिय हैं. (जैसे भारत में पेटीएम ). इनकी बढ़ती लोकप्रियता से चीन सरकार को ये अंदेशा हुआ कि देश में सारा वित्तीय लेन-देन निजी हाथों में जा सकता है इसलिए उसका तोड़ उसने डिजिटल युआन के रूप में निकाला है.

लोग इतने भोले है कि उन्हें डिजिटल मनी और क्रिप्टो करंसी के बीच मूलभूत अंतर की समझ नही है, वो इसे एक ही समझ रहे हैं. दरअसल यह मुद्रा सेंट्रल बैंक ( रिजर्व बैंक) द्वारा जारी डिजिटल करेंसी है. यह बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी नही है बल्कि यह उसके लगभग विपरीत है क्योंकि क्रिप्टो करेंसी विकेंद्रीकृत होती है; वे सरकारों द्वारा जारी या समर्थित नहीं होती लेकिन, डिजिटल करेंसी को केंद्रीय बैंक द्वारा जारी और विनियमित किया जाता है और लीगल टेंडर के रूप में इसकी स्थिति की गारंटी राज्य द्वारा दी जाती है.

यह क्रिप्टोकरंसी या पेटीएम जैसी नही है. डिजिटल मुद्रा के अस्तित्व में आने के बाद कोई भी व्यापारी इसे स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता. यह बहुत बड़ी योजना है. आज लोग इस घोषणा के परिणाम समझ नही पा रहे हैं लेकिन हमारे पूरे आर्थिक व्यवहार को यह डिजिटल करंसी बदल कर रख देगी इतना जान लीजिए.

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क्या आप जानते हैं कि रिजर्व बैंक द्वारा चलाए जाने वाली डिजिटल करेंसी के मूल में क्या कॉन्सेप्ट हैं ? इसके मूल में है कैश का खात्मा, नकदी लेनदेन को समाप्त कर देना. आप देख ही रहे हैं कि बैंक लगातार हर साल ने प्रति माह मुफ़्त पैसा निकालने की संख्या घटाते जा रहे हैं. इस तरह हमें मजबूर किया जा रहा है कि या तो हम नेट बैंकिंग और कार्ड के जरिए लेन-देन को अपनाएँ या नकदी की निकासी की क़ीमत अदा करें.

ऐसे अघोषित दबाव दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं. नोट बंदी का मुख्य उद्देश्य भी यही था, दरअसल न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के लागू होने में नकदी का चलन सबसे बड़ी दिक्कत है और भारत में ही सबसे ज़्यादा नकदी संचालन में है.

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर को लागू करने के लिए इसकी योजना काफी पहले से बनाई जा रही है. सितंबर, 2012 में विश्व में ‘बेटर दैन कैश एलायंस’ लांच किया गया, इसके अंतर्गत यह बताया गया कि कई कारणों से नकदी छापना, उसकी निगरानी, भंडारण, चलन को नियंत्रित करना महँगा है और इससे भी बढ़कर कैशलेस सोसायटी सरकारों को जनता पर और अधिक नियंत्रण का मौका देता है.

भारत में इस बारे मे हम ठीक से नहीं समझते हैं क्योंकि इस ओर बुद्धिजीवियों का ध्यान ही नहीं है लेकिन दुनिया के कई देशों की सरकारें नकदीविहीन समाज बनाने के लिए उत्सुक है. वे नकदी को क्रमशः नकारात्मक नजरों से देखने लगीं है. वहा नकदी से क़ीमत चुकाने को ‘संदिग्ध गतिविधि’ माना जाने लगा है.

आईटी और दूरसंचार क्षेत्र में काम करने वाले इस फोरम के ‘रणनीतिक साझेदार’ (बड़े अन्तर्राष्ट्रीय कारपोरेशन) लेन-देन और वित्त के डिज़िटलीकरण के अभियान को बहुत आक्रामक ढंग से चलाते हैं. ‘पे-पाल’ के मुख्य कार्यकारी डान शुलमैन ने 2015 के वित्तीय समावेशन सम्मेलन में कहा. ‘जब तक पूरी दुनिया पूरी तरह डिजिटल लेन-देन नहीं अपना लेती, तब तक पैसे को डिजिटल रूप से नकदी के रूप में बदलने की जरूरत बनी रहेगी.’

चूँकि यह उनकी निगाह में महँगा सरदर्द है, इसलिए उसने आगे कहा कि ‘हमारा सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी नकदी है. अभी पूरी दुनिया का 85 फीसदी लेन-देन नकदी में होता है. अभी हम इसी पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं.’ नकदी के प्रति इसी वैमनस्‍य का प्रदर्शन करते हुए अफ़्रीका की बड़ी मोबाईल कम्पनी इकोनेट के संस्थापक चेयरमैन स्ट्राइव मासीईवा ने कहा कि ‘हम नकदी का सफाया करना चाहते हैं.’

अधिकांश विकसित देशों में डिजिटल मुद्रा को सर्वशक्तिमान बनाने के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिशें बड़े पैमाने पर जारी हैं. अर्थशास्त्रियों और मीडिया को इस काम में लगा दिया गया है. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व प्रधान अर्थशास्त्री और 2016 में छपी ‘नगदी का अभिशाप’ (द कर्स ऑफ कैश) किताब के लेखक केनेथ रोगोफ ने बड़े मूल्य के नोटों को धीरे-धीरे खत्म करके कैशलेस समाज बनाने का रास्ता सुझाया और इन सारे सुझाव के बाद ही भारत में नोटबंदी की गई थी.

अभी तो नहीं लेकिन भारत में लगभग दस पंद्रह सालो में सरकार नकदी को ग़ैर-कानूनी घोषित कर देंगी. लोगों को मजबूर किया जाएगा कि वे या तो अपना पैसा बैंकों में रखें या बाजार में लगाएँ. इस तरह केंद्रीय सरकार और केंद्रीय बैकों का उद्धार किया जाएगा. दरअसल नकदी, यानी कैश ही व्यक्तिगत स्वायत्तता का आखिरी क्षेत्र बचा है. इसमें ऐसी ताकत है जिसे सरकारें नियंत्रित नहीं कर सकतीं, इसलिए इसका खात्मा जरूरी है.

जाहिर है, सरकारें हमें असली मकसद नहीं बताएँगी क्योंकि इससे प्रतिक्रिया हो सकती है. हमें बताया जाएगा कि यह हमारी ही ‘भलाई’ के लिए है. अब इस ‘भलाई’ को चाहे जैसे परिभाषित किया जाए. इसे हमारा फायदा बताकर बेचा जाएगा. ‘खबरें छापी जाएँगी कि लूट-पाट घटी है. अपराध को अंतिम तौर पर हरा दिया गया है. लेकिन यह नहीं बताया जाएगा कि हैकिंग की घटनाएँ बेइंतहा बढ़ जाएँगी, बैकों के घोटाले आसमान छूने लगेंगे. गरीबों को कहा जाएगा कि अमीर अब अपनी आमदनी नहीं छिपा पाएँगे और उन्हें अपनी आमदनी पर समुचित कर देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के लिए कैशलेश सोसायटी की स्थापना बहुत जरूरी है. कैशलेश समाज का असली मकसद है ‘सम्पूर्ण नियंत्रण : चौतरफा नियंत्रण’ और इसे हमारे सामने ऐसे आसान और कारगर तरीके के रूप में पेश किया जाएगा, जो हमें अपराध से मुक्ति दिलाएगा यानी फासीवाद को चाशनी में लपेटकर पेश किया जाएगा.

जी हां ! फासीवाद ! इक्कसवी सदी का फासीवाद. यह होने जा रहा है और कोई इसे रोक नही सकता क्योंकि जिन लोगो (बुद्धिजीवियों) के पास समाज को इस संकट के बारे में समझाने बताने की जिम्मेदारी है, वो बिलकुल हक्के बक्के बैठे हुए हैं.

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