कृष्णकांत
इंडिया गेट पर 1971 के शहीदों की याद में जल रही ‘अमर जवान ज्योति’ को बुझाने के बाद आज नरेंद्र मोदी जी ज्ञान बांच रहे हैं कि ‘शहीदों का योगदान अमर है.’ अगर उन्हें शहीदों की सच में कद्र है तो शहीदों के सम्मान में 50 साल से जल रही अमर जवान ज्योति क्यों बुझाई गई ?
कह रहे हैं कि वॉर मेमोरियल म्युजियम में एक नई ज्योति जलाई गई है इसलिए पुरानी का उसी में विलय कर दिया गया. दो ज्योतियों का विलय कैसे संभव है ? क्या किसी की समाधि को शिफ्ट किया जा सकता है ? क्या किसी के प्रति आस्था और सम्मान का विलय किया जा सकता है ? क्या शहीदों के प्रति सम्मान की भावना कोई राजनीतिक पार्टी है, जिसका विलय करा दो ?
संघी और भाजपाई मिलकर महात्मा गांधी के कद और सम्मान के साथ हमेशा गोडसे का विलय कराने की कोशिश करते रहे हैं. आज भी कर रहे हैं लेकिन कर नहीं पाए. उन्हें समझना चाहिए कि आस्थाओं का और सम्मान का विलय नहीं होता.
विलय किया क्यों गया ? कारण क्या था ? कह रहे हैं कि दो ज्योति का रखरखाव संभव नहीं था. क्या 50 साल से जल रही एक ज्योति के रखरखाव का खर्च मोदी के दसलखा सूट से भी ज्यादा था ? भारत सरकार के खजाने से प्रधानमंत्री अपने लिए आठ आठ हजार करोड़ के दो विमान खरीद सकते हैं, 20 हजार करोड़ का हवामहल बनवा सकते हैं, 12 करोड़ की कार खरीद सकते हैं, जासूसी के लिए इजराइल से हथियार खरीद सकते हैं, शहीदों के लिए एक ज्योति का खर्च नहीं उठा सकते ? भारत इतना गरीब कब से हो गया कि शहीदों के लिए जल रहे एक दिये का खर्च न उठा सके ?
नई ज्योति जलाने का तुक क्या था ? युद्ध 1971 में हुआ था, सैनिकों के सम्मान में ज्योति उसके बाद जलाई गई थी ? उसे क्यों छेड़ा गया ? शहीदों का अपमान क्यों किया गया ? क्योंकि उसका उद्घाटन इंदिरा गांधी ने किया था ? इनको करना धरना कुछ नहीं, बस देश तबाह करना है और नेहरू और इंदिरा की भद्दी नकल करनी है.
आरएसएस का नया तरीका है कि जिसे मिटाना होता है, ये उसी के नाम का नारा लगाते हैं. सुबह नरेंद्र मोदी गांधी को फूल चढ़ाकर आए हैं और अब उनके अंडाणु ट्विटर पर हत्यारे की जय बोल रहे हैं और ट्रेंड करा रहे हैं. पत्रकारों और आम लोगों के ट्विटर अकाउंट सस्पेंड कराने वाली सरकार इस तरह नफरत भरे ट्रेंड क्यों नहीं रुकवाती है ? क्योंकि इन्हीं की शह पर यह हो रहा है.
इनका मकसद है पूरे भारत की ऐतिहासिक विरासत और स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को मिटाना, धर्मनिरपेक्ष और बहुलता से परिपूर्ण भारत को नष्ट करके एक घृणास्पद विचारधारा की स्थापना करना. वही विचारधारा जो हिटलर के नाजीवाद से प्रेरित है, जो घृणा पर आधारित है, सावरकर और गोलवलकर के अनुसार जिसमें यह माना गया है कि मुसलमानों, इसाइयों और कम्युनिस्टों की भारत में कोई जगह नहीं है. ये लोग रहना चाहें तो हिंदुओं की संस्कृति अपना कर दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रह सकते हैं.
इसी विचार को लागू करने के लिए धर्म पर आधारित सीएए और एनआरसी नाम के घृणास्पद कानून बनाने की कोशिश की गई. मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि सांप्रदायिकता धर्म और संस्कृति की खाल ओढ़कर आती है. अपने असली रूप में सामने आने में उसे लज्जा आती है. आरएसएस और भाजपा ने धर्म, संस्कृति के साथ राष्ट्रवाद की खाल ओढ़ रखी है.
स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को बताया था कि हमारी धरती पर सभी धर्मों के लिए जगह है. वसुधैव कुटुंबकम हमारा मूलमंत्र है. महात्मा गांधी का भारत पूरी दुनिया में अपनी बहुलता और विविधता के लिए सराहा गया. आज उसी खूबी पर चोट की जा रही है. भारत की संसदीय परंपराओं से लेकर भारत के इतिहास पर और भारत के शहीदों पर हमला बोला जा रहा है.
संघ की विचारधारा ने यह तरीका अपनाया है कि जिसे खत्म करना हो, पहले उसके आगे सिर झुकाओ. हत्यारा गोडसे जब गांधी के पास पहुंचा तो विरोधी बनकर नहीं पहुंचा था. वह आम आदमी की तरह गया, गांधी के पैर छुए और धोखे से गोली मारी.
नरेंद्र मोदी अमर जवान ज्योति पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने जाते रहे हैं. उन्हें यह नहीं लगा कि जिस ज्योति के सामने देश के प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्ष जाकर सिर झुकाते हों, उसे खंडित नहीं करना चाहिए, उन्होंने कर दिया. उनका सिर जहां-जहां झुकता है, आप कैसे विश्वास करेंगे कि उनकी श्रद्धा सच्ची है ? यह बहुत दुखद और आहत करने वाला है.
यह आपको तय करना है कि आप इस दुष्कृत्य के साथ हैं या इसके खिलाफ हैं ?
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