Home ब्लॉग जेल में बंद अपने नेताओं की रिहाई और ईलाज के लिए सीपीआई माओवादी का प्रतिरोध सप्ताह

जेल में बंद अपने नेताओं की रिहाई और ईलाज के लिए सीपीआई माओवादी का प्रतिरोध सप्ताह

2 second read
0
0
398

जेल में बंद अपने नेताओं की रिहाई और ईलाज के लिए सीपीआई माओवादी का प्रतिरोध सप्ताह

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के बिहार झारखंड एरिया कमेटी द्वारा अपने संगठन के केंद्रीय कमेटी व पोलित ब्यूरो सदस्य सह पूर्वी रीजन ब्यूरो सचिव प्रशांत बोस व उनकी पत्नी शीला मरांडी जो जेल में बंद हैं, को बेहतर इलाज कराने एवं बिना शर्त रिहाई की मांग को लेकर बिहार एवं झारखंड राज्य में 21 से 26 जनवरी तक प्रतिरोध सप्ताह मनाने का निर्णय लिया गया है. इसके साथ ही 27 जनवरी को 24 घंटे का एक दिवसीय बंद का आह्वान किया है.

विदित हो कि विगत 12 नवंबर को झारखंड के सरायकेला एवं पूर्वी स‍िंहभूम पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों की संयुक्त टीम द्वारा चांडिल-कांड्रा टोल प्लाजा के पास से ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो के सचिव और एक करोड़ के इनामी प्रशांत बोस उर्फ किशन दा, उनकी पत्नी शीला मरांडी उर्फ शीला दी, बिरेन्द्र हांसदा उर्फ जितेन्द्र, राजू टुडू उर्फ निखिल उर्फ बाजु, कृष्णा बाहदा उर्फ हेवेन और गुरूचरण बोदरा को गिरफ्तार किया गया था. उनकी यह गिरफ्तारी तब हुई थी जब वे बेहतर इलाज के लिए शहरों में कहीं जा रहे थे.

माओवादियों द्वारा जारी पर्चा में राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि प्रशांत बोस उर्फ किशन दा एवं उनकी पत्नी शीला मरांडी दोनों साथियों का स्वास्थ्य खराब है. वे लोग कई गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. अस्वस्थ रहने के बाद भी दो माह से कठिन जेल यातना झेल रहे हैं. सरकार द्वारा मानव मूल्यों पर गौर करते हुए दोनों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराया जाना चाहिए था लेकिन अब तक वैसा कुछ नहीं किया गया है.

जमुई के एएसपी अभियान, ओंकार नाथ सिंह कहते हैं कि नक्सलियों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है, तो निःसंदेह यह सरकार का ही आदेश होगा और सरकार बजाय जेलों में बंद चंद लोगों की कुशलता सुनिश्चित करने के वह माओवादियों के नाम पर सैकड़ों लोगों की जिन्दगी तबाह करने पर उतारू है, जिसमें पुलिसिया महकमों के सिपाहियों की भी मौत हो सकती है. ऐसी बेवकूफ सरकार का दर्शन ही जनता के मत्थे मढ़ी हुई है.

मूर्ख सरकार की इस कारिस्तानी का ही नतीजा है कि माओवादी अपने इस प्रतिरोध सप्ताह के महज चंद दिनों के भीतर ही सरकार के नाकों में दम भर दिया है, अभी तो 27 जनवरी की पूर्ण बंदी का दिन आना बांकी ही है. जबकि इस सरकार को उसकी ही खुफिया एजेंसियों ने मुख्यालय को सूचना दी है कि बंद के दौरान माओवादी झारखंड-बिहार में अपने प्रभाव वाले क्षेत्र के इलाके में पुलिस की टीम पर हमला कर सकते हैं, लेकिन ऐसे भकचोंहर सरकार से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है.

सीपीआई माओवादी के सशस्त्र पीएलजीए ने अपने प्रतिरोध सप्ताह के पहले ही दिन झारखंड के गिरिडीह जिले के पीरटांड़ प्रखंड के खुखरा व मधुबन में विस्फोटक लगाकर दो मोबाइल टावर को उड़ाकर अपने प्रतिरोध का आगाज कर दिया. (तस्वीर देखें)

गिरीडीह में उड़ाया मोबाइल टॉवर
गिरीडीह में उड़ाया मोबाइल टॉवर

वहीं, गढ़वा जिले में माओवादियों के सशस्त्र प्लाटून ने सीआरपीएफ और जिला पुलिस के संयुक्त टीम को उड़ाने के लिए भंडरिया थाना क्षेत्र के बहराटोली गांव के एक कच्ची सड़क में टिफिन बम लगाया था, जिसे तत्काल तो पुलिसिया टीम ने समय रहते डिफ्यूज कर दिया है, पर यह बम इतना शक्तिशाली था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस बम को डिफ्यूज करने के दौरान इतनी भयानक आवाज हुई कि अगर पुलिसिया टीम इस बिस्फोट के जद में आता तो चिथरे भी न बचते. (तस्वीर देखें)

बम को डिफ्यूज करने के दौरान हुई भयानक आवाज

इसी तरह अनेक छोटी बड़ी घटनाएं इस प्रतिरोध सप्ताह के दौरान हुई है और आगे भी होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, जबकि अभी 27 जनवरी का पूर्ण बंद आने ही वाला है. यानी केन्द्र और राज्य की यह सरकार ठान ली है कि भले ही सैकड़ों पुलिसिया मारे जाये, लेकिन जेल में बंद माओवादियों के दो लोगों का ईलाज सरकार नहीं करायेगी. कहा भी गया है विनाशकाले विपरीत बुद्धि.

सरकारों को यह जरूर सोचना चाहिए कि अभी जेल में बंद माओवादियों के इलाज के लिए जब माओवादी इतनी उत्पात मचा सकते हैं, अगर वे जेल में मर जाते हैं तब वे कितनी सिपाहियों को मौत के घाट उतारेंगे, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. वैसे भी माओवादी खून का बदला खून से लेने के सिद्धांत का मजबूती से पालन करते हैं.

और हां, सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह कि सरकार, चाहे वह कोई भी हो और कितनी ही ताकतवर क्यों न हो, माओवादियों को खत्म नहीं कर सकती क्योंकि सीपीआई-माओवादी देश के जनता का सच्चा प्रतिनिधि है, जिसे मिटाने का अर्थ है देश से करीब 100 करोड़ की आबादी को खत्म कर देना. जाहिर है यह परजीवी सरकार अपने शिकार को खत्म नहीं कर सकती, यदि ऐसा करने का दुःसाहस कोई भी सरकार या सत्ता करेगी तो वह खुद हीं खत्म हो जायेगी. हां, यह बिल्कुल संभव है कि शिकार खुद इस परजीवी सरकार को उखाड़ कर खत्म कर दे.

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…