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आरएसएस का सैनिकद्रोही बयान, देशद्रोही सोच एवं गतिविधियां

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मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में सेना के एक जवान अंशू तोमर दो दिन की छुट्टी पर अपने घर आया तो भाजपा के नेता ने उक्त सैनिक को सरेआम दौड़ाकर गोली मार दिया, जिसे गंभीर हालत में ग्वालियर अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया. भाजपा नेताओं के सैनिकों के प्रति इस ‘‘सम्मान’’ को कौन सा नाम दिया जाये ? एक सैैैनिक के सर के बदले दस सर काटकर लाने वाले भाजपाई आज अपने ही सैैैनिकों का सर काटनेे पर आमदा है.

सैनिकों के सम्मान के नाम पर हर किसी को सैनिकद्रोही और देशद्रोही होने का तगमा पहना कर आरएसएस और भाजपा अपने तमाम जनविरोधी नीतियों और कारनामों को छुपाकर रखना चाहता है परन्तु ऐसे ही वक्त जब आरएसएस के सुप्रीमो मोहन भागवत कहते हैं कि ‘‘भारतीय सेना को तैयार होने में 6-7 महीने लगेंगे जबकि संघ के स्वयंसेवकों को दो से तीन दिन ही लगेंगे’’, तब आरएसएस और भाजपा हमारे सैनिकों से कितना प्रेम करते हैं, स्पष्ट हो जाता है. असल में हमारे सैनिकों के कार्यप्रणाली और निष्ठा पर मोहन भागवत का यह सीधा हमला कोई नया नहीं है. आरएसएस का जन्म ही देश के गद्दारों की श्रेणी से हुआ है.

अंग्रेजी शासन का जासूस बनकर क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर पहुंचाने वाले आरएसएस आज भी देशप्रेमियों और समाजसेवियों को जेल और फांसी पर पहुंचाने का काम अनवरत् जारी रखे हुए है. हमारे देश के महान क्रांतिकारी अमर शहीद भगत सिंह के खिलाफ अंग्रेजों के कोर्ट में संघी शोभा सिंह और शादी लाल की झूठी गवाही देने के कारण ही भगत सिंह को फांसी दिया गया तो वहीं संघी वीरभद्र ने अंग्रेजों की मुखबिरी करके महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद की हत्या करवा दी. नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में संघी गोलवलकर ने हिन्दुओं के भर्ती न होने के बजाय अंग्रेजों की फौज में भर्ती होने का आह्वान किया. आजाद भारत में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी बाजपेयी ने क्रांतिकारी लीलाधर बाजपेयी के खिलाफ अंग्रेजों के कोर्ट में गवाही दी, जिसकारण क्रांतिकारी लीलाधर बाजपेयी को सजा हो गई. गांधी के अंग्रेजों भारत छोडों आन्दोलन में आरएसएस के संघियों ने अंग्रेजों को सुझाव दिया कि आन्दोलनकारियों को मार दिया जाये.

फोर्ट विलियम काॅलेज विभाजन की नीति के अनुसार हिन्दु-मुसलमान और हिन्दी-उर्दू के आधार पर संघी सावरकर द्वारा हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की वकालत और अंत में गांधी-नेहरू-जिन्ना के विरोध के बावजूद अंगेजों से देश का विभाजन और पाकिस्तान का निर्माण में हर संभव तरीका अपनाया और अंत में गांधी को ही गोली मार दी.

ऐसे देशद्रोही गद्दार संघी अगर आज भारतीय सेना की निष्ठा और कर्तव्यपरायणता पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो देशवासियों के लिए इसका बहुत ही गहरा, सख्त और खतरनाक संदेश है.
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ROHIT SHARMA

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