जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद संघी आईटी सेल ने अपनी यौन कुंठाओं को निकालने का जबर्दस्त आइडिया निकाला. उसने कश्मीर की महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और सरेआम बलात्कार करने, वहां की महिलाओं को बेश्या बनाने आदि जैसे कुप्रचारों का बाढ़ ला दिया, जिसके खिलाफ न केवल देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुप्पी साध लेते हैं अपितु उसकी गिद्द मीडिया ने इस मामले का प्रचार-प्रसार करने में भी अहम योगदान दिया.
संघी गुंडों के इस दुश्प्रचार के खिलाफ सबसे बुलंद आवाज अगर कहीं से आई तो वह था – सिख कौम, जिसने खुलेआम ऐलान किया कि अगर कोई कश्मीर की महिलाओं की ओर आंख उठा कर भी देखा तो उसकी आंखें निकाल लूंगा. यही वह पहली बुलंद आवाज थी जिसने इस यौन कुंठा से जनित संघी आईटी सेल के नापाक इरादों को रोकने के लिए बुलंद आवाज की प्रतिध्वनी समूचे देश में गुंजी.
मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ इस तरह के नफरती यौन कुंठाओं को बकायदा सरकारी चैनलों और भारत सरकार की ओर से प्रोत्साहित किया जा रहा है, इसके साथ ही ऐसे यौन अपराधियों को बचाने की कवायद भी. आखिर यौन कुंठाओं के खिलाफ भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खामोशी के साथ प्रोत्साहित क्यों करते है, इसका जवाब सौमित्र राय इस प्रकार देते हैं.
एक मित्र ने पूछा है कि देश में यौन हमलों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ बोलते क्यों नहीं ? मेरा सीधा जवाब है- क्योंकि वे खुद भी यौन हमलावर हैं. उनमें भी बुल्ली बाई मामले के आरोपी विशाल कुमार जैसे कीड़े हैं. मोदीजी के ‘दीदी ओ दीदी…’ वाले भाषण को याद कीजिए. उसके पीछे छिपी यौन भावना को न छिपाइए. ये उस महिला की ऑफलाइन नीलामी थी – जिसे बंगाल मां का दर्जा देता है. पेडिग्री मीडिया ने ऑनलाइन नीलामी की. ममता बनर्जी एक हिन्दू महिला हैं और नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री.
भारतीय हिन्दू समाज की यौन कुंठाओं और इस्लामोफोबिया से उसके संबंध को जानने के लिए किसी रिसर्च की ज़रूरत नहीं है. किसी पनवाड़ी की दुकान, सैलून, चाय के ठीहे, शराबखाने, बैचलर्स पार्टियों, हॉस्टल, मेस-जहां भी जाइयेगा आपको दुल्ली बाई और सुल्ली डील्स की तरह ऑफलाइन नीलामी की दास्तान मिल जाएगी.
नाबालिग से लेकर सठियाये बुज़ुर्ग तक- सिर्फ़ मज़े के लिए या ख़ुद को मर्द दिखाने के लिए, जात, मज़हब से परे किसी को भी बीच चौराहे पर नीलाम कर देते हैं. इनके अपने कोड वर्ड हैं. भद्दी गालियां हैं और चरित्र हनन के नित नए नवेले तरीके- जो इनकी ज़ात को जस्टिफाई करने के लिए होते हैं. पत्रकार, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील…तमाम कथित शिक्षित बिरादरी ऐसी ऑफलाइन नीलामी बाकायदा झूठे इतिहास और फ़र्ज़ी तथ्यों के सहारे करते हैं.
भारत का समाज सदियों से इस कोढ़ को ढो रहा है, मवाद तो 2014 के बाद से दिखना शुरू हुआ है. सुल्ली डील्स और दुल्ली बाई जैसे ऐप तो सिर्फ़ इसका सियासी मुखौटा हैं. बीजेपी और आरएसएस के घृणित हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के पीछे की गंदगी को ऐसे समझें –
उत्तराखंड की एक महिला बुल्ली बाई ऐप के 3 खाते चला रही थीं. उत्तराखंड वही राज्य है, जहां यति नरसिंहानंद ने ज़हर उगला है. इसी ऐप में बेंगलुरु का 21 साल का नौजवान विशाल कुमार सिखों को बदनाम करने के लिए खालसा सुप्रीमेसिस्ट के नाम से एक खाता बनाता है. 31 दिसंबर को वह बाकी के दोनों खातों का नाम बदलकर सिखों (खालसा) के नाम कर देता है, और जनवरी की पहली तारीख को देश की 100 मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें मॉर्फ कर नीलाम की जाती हैं.
मुम्बई पुलिस ने महिला और विशाल को दबोचा है. उम्मीद है दोनों के पीछे खड़े सफेदपोश चेहरे भी बेनकाब होंगे. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ठीक कहते हैं, हिंदुओं का डीएनए 40 हज़ार साल से नहीं बदला, शायद बदलेगा भी नहीं. नदियों-तालाबों में हगते और उसी में नहाते, पूजते इस समाज के दिमाग में यौन कुंठा और इस्लामोफोबिया के गंदे कीड़े गहरे जा घुसे हैं.
शौचालयों का चलन हुआ तो ट्रेन के संडास से लेकर पार्कों में पेड़ों तक में इसकी निशानियां देखी जा सकती हैं. फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि अब ये मुस्लिम महिलाओं के लिए हो रहा है. इन सबके बावज़ूद भारत में सिर्फ मोटी तनख्वाह लेने आई महिला आयोग की सदस्य मुंह बंद किये बैठी हैं, उन्हें नौकरी छोड़ देनी चाहिए. साथ में नारीवाद का झंडा उठाये घूम रहीं महिलाएं भी, क्योंकि ये यौन हमला मुस्लिम महिलाओं पर हो रहा है.
भारत ही दुनिया में इकलौता ऐसा देश है, जहां यौन अपराधों पर बोलने से पहले उम्र, जात, दौलत और मज़हब देखा जाता रहा है. नारीवाद स्त्री को एक सामान्य स्त्री के रूप में पुरुषों के बराबर देखने की तमीज़ पैदा करने का नाम है लेकिन सोच अगर सेलेक्टिव हो तो यह वैसा ही है, जैसे किसी प्रदूषित नदी के मल-मूत्र में जाकर डुबकी लगाना. मोदीजी भी यह काम कर चुके हैं, वे भी सेलेक्टिव तरीके से चुप रहते हैं. इसके खि़लाफ़ बोलिये, वरना ये गंदे कीड़े एक दिन अपने हिन्दू मां-बहनों की भी नीलामी करेंगे.
‘इसके खि़लाफ़ बोलिये, वरना ये गंदे कीड़े एक दिन अपने हिन्दू मां-बहनों की भी नीलामी करेंगे,’ और इसकी ऑफलाईन बिक्री, समर्थन तथा कानूनी बचाव के लिए तमाम रास्ते भी अपनाये गये, जिसमें न केवल मुस्लिम महिला अपितु खुद हिन्दु महिलाएं इसका शिकार हुई. एनआरसी कानून के समर्थक हिन्दुत्ववादी ताकतों ने दिल्ली की गार्गी कॉलेज की छात्राओं के साथ क्या सलूक किया, यह पूरी दुनिया को ज्ञात है. इसके अलावा कुलदीप सेंगेर, चिंमयानन्द जैसों ने मिलकर हिन्दु लड़कियों को अपना शिकार बनाया., खासकर दलित समुदाय की युवा लड़कियों को, जिसमें खुलेआम यौन हमले किये गये.
इसके बाद भी हम हिन्दुत्वादी ताकतों के नापाक मंसूबों को तो रोक नहीं पाये, जिसकी अशुभ परिणति एप के जरिये मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाईन निलामी की बोली लगाई गई. यह अलग बात है कि सामाजिक खासकर सोशल मीडिया पर लोगों के जबर्दस्त विरोध के कारण उन कारकूनों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे इन नफरती हिन्दुत्ववादी ताकतों की शिकार एक नई खेप का परिचय मिलता है.
उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले से गिरफ्तार की गई श्वेता सिंह को ‘बुल्ली बाई’ ऐप का मास्टरमाइंड माना जा रहा है, हालांकि इसके तार नेपाल से जुड़े होने के संकेत मिले हैं. श्वेता सिंह के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. पिछले साल कोरोना वायरस की दूसरी लहर में श्वेता ने महामारी के चलते अपने पिता को खो दिया और उससे पहले 2011 में कैंसर की बीमारी के चलते उसकी मां का निधन हो गया था. श्वेता की उम्र सिर्फ 18 साल है और वह इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही है. यानी श्वेता सिंह अनाथ पृष्ठभूमि की है, और दान के पैसों से अपना जीवन यापन कर रही है.
उत्तराखंड के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि श्वेता सिंह सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहा करती थी और ‘हिंदुत्व के विचार’ के साथ जुड़ी हुई थी. पहचान छिपाने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि हिंदुत्व विचारधारा के चलते अपने पोस्ट के माध्यम से दोनों (श्वेता और विशाल) संपर्क में आए और दोस्त बन गए. मुंबई पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद श्वेता ने अपनी गलती पर पछतावे से इनकार किया है.
आज हिन्दु महिलाएं चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि की हो, हिन्दुत्व की नफरत से लबरेज विचारधारा के कारण जिस तरह मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ ऑनलाईन नीलामी की दौर में खुद को बिना किसी पछतावे के शामिल कर रही है, आने वाले दिनों में इसी तरह ऑनलाईन बिक्री हिन्दु महिलाओं की भी होगी, क्योंकि हिन्दुत्व की विचारधारा खुद अपने-आप में ही महिला, दलित, अछुत विरोधी है. जिसका विरोध ही एक मात्र सही रास्ता हो सकती है.
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