विष्णु नागर
भाजपा मौलिक विचारों की जननी है. मौलिक विचार भाजपाइयों को ही क्यों आते हैं, इसका रहस्य आज तक मुझे समझ में नहीं आया. आखिर सेक्यूलर लोग वैचारिक दृष्टि से इतने कमजोर क्यों हैं कि उन्हें न पहले मौलिक विचार आते थे, न अब आते हैं. जैसे आंध्र प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष सोमू वीरराजू के मन में यह मौलिक विचार आया कि अगर 70 रुपये में अच्छे किस्म की दारू की बोतल उपलब्ध करवाई जाए तो आंध्र के सभी एक करोड़ दारूखोर मतदाता भाजपा को वोट देंगे और उसकी सरकार बन सकती है.
यह इतना स्वदेशी विचार है कि मुझे नहीं लगता कि यह किसी को दुनियाभर में पहले कभी आया होगा. बाकी दल तो मतदान के एक-दो दिन पहले मतदाताओं को दारू पिलाकर छुट्टी पा लेते हैं, मगर इस बंदे का बड़प्पन देखिए कि यह पूरे पांच साल तक अच्छी दारू का प्रबंध करने का वायदा कर रहा है ! कितनी बड़ी बात है !कैसा उदार हृदय है ! और यह वायदा वह चुनाव से समय नहीं कर रहा, बहुत पहले कर रहे हैं. वहां चुनाव 2024 में होंंगे ! इससे पता चलता है कि वह कितना खरा आदमी हैं. वोटर का भला उसने आज से ही सोचना शुरू कर दिया है !
सोमू जी की एक ही वाजिब शर्त है कि आंध्र के सभी एक करोड़ दारूप्रेमी मतदाताओं भाजपा को वोट देना पड़ेगा ! सच भी है कि पांच साल तक जो सरकार 70 रुपये में शराब उपलब्ध करवाएगी, वह इतनी न्यूनतम अपेक्षा तो रखेगी. भाजपा पांच साल तक दारू का प्रबंध भी करे और तुम उसे वोट भी न दो !
सोमू जी ने तो यहां तक कहा है कि अगर शराब सस्ती करने से सरकार को अधिक राजस्व मिलता है तो हम 70 की बजाय 50 रुपये में भी शराब दे सकते हैं. आप खुद देखिए उन्हें अपने प्रदेश के नागरिक हितों की कितनी अधिक चिंता है कि वह 20 रुपये और भी कम कर दे सकते हैं. एक मोदी है, जो वैक्सीन के पैसे भी लोगों से वसूल रहे थे, सौ रुपये से अधिक पेट्रोल के दाम करके. वह तो थोड़ी शरम आ गई कि अपना नया बंगला और नया संसद भवन के नाम पर हमसे उन्होंने सीधे-सीधे पैसा नहीं वसूला. इस रोशनी में देखें तो सोमू जी, तेरा तुझको अर्पण टाइप आदमी लगते हैं.
सोमू जी न गोरक्षा के चक्कर में पड़े, न लव जिहाद के, न धर्मांतरण के. पूरी तरह यह सेकुलर विचार है. इसमें हिंदू-मुसलमान नहीं है. सबका साथ, सबका विकास है. इसके अलावा यह व्यावहारिक आइडिया भी है. सोमू जी के अनुसार हर दारूखोर आंध्रवासी 12 हजार हर महीने दारू पर खर्च करता हैं. मोदी सरकार के पास न जाने कितनी चीजों के आंकड़े नहीं होते मगर आंध्र के भाजपा अध्यक्ष के पास शराबियो के तथा शराब पर होनेवाले मासिक खर्च के भी आंकड़े हैं.
इसका अर्थ है कि मोदी से अधिक सक्षम नेता तो सोमू जी हैं. आंध्र की सरकार के पास भी ये आंकड़े नहीं होंगे, मगर भाजपा अध्यक्ष के पास हैं. जो नेता शराबियों के उस पर होनेवाले खर्च के आंकड़े रख सकता है, वह क्या नहीं कर सकता !
वह प्रधानमंत्री होने की पूरी योग्यता रखते हैं. जो आदमी शराब का प्रतिदिन का खर्च चार सौ रुपया रोज से घटाकर 70 रुपये रोज पर ला रहा है, वह शराबियों का ही हितचिंतक नहीं है, शराबियो के परिवारों का भी हितचिंतक है. जो शराबियों की 330 रुपये रोज की बचत करवा रहा है, वह संदेश दे रहा है कि जितना चाहे पियो मगर बचत का पैसा परिवार पर खर्च करो.कितना महान आइडिया है !
इस तरह सरकार का एक रुपया भी खर्च नहीं होगा, फिर भी लोगों को 330 रुपये की प्रतिदिन की बचत होगी ! दारू भी खुलकर पियो और बचत भी खुलकर करो. सरकार भी खुश, जनता भी खुश. पीनेवाला भी सुखी और पिलानेवाला भी सुखी. कोई मित्र घर आए तो यह पूछने की जरूरत नहीं कि तुम चाय पिओगे या काफी ? सीधे सामने बोतल रख दो. वह मना नहीं कर पाएगा !
पत्नी भी सुखी, पति भी सुखी. चलो मान लिया 30 रुपये और शराबी ने चनाचबैना पर खर्च कर दिए तो भी शुद्ध 300 रुपये का लाभ होगा. पति भी खुश, पत्नी भी खुश. बच्चे भी खुश. पत्नी, पति से झगड़ेगी नहीं, ताने नहीं मारेगी. पति भी क्यों उससे झगड़ेगा ! ‘सुखी परिवार उन्नति का आधार’ का यह फार्मूला अभी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब आदि में भी कारगर हो सकता है ! मोदी जी ध्यान दें.
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