मेरे एक घनिष्ट मित्र को मेरे एक मत से काफी समय से तकलीफ थी. आज पता चली.
मैंने अक्टूबर माह से मेट्रो में सफर बंद कर दिया था. मेरा मानना था कि मेट्रो ने किराया 60% बढ़ाकर अपने मूल उद्दयेश के साथ बहुत बड़ा अतिक्रमण किया है. फिर ये भी सुचना थी कि आगे भी अक्टूबर माह में किराया बढेगा जो बढ़ा और आज करीब दोगुना किराया पिछले 4 महीने से लागू है.
इसका नतीजा यह हुआ कि करीब 3 लाख लोगों ने मेट्रो का सफर छोड़ बस सेवा, दुपहिया वाहन को फिर से इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. सिर्फ ट्रांसपोर्ट पर प्रति माह अचानक से 1000-1500 रूपये परिवार के एक सदस्य का खर्चा बढ़ जाना बहुत से दिल्ली वासियों के लिए जोर का झटका था. नोटबंदी की मार से MSME सेक्टर से जुड़े तमाम आम जन (दिल्ली में अगर आबादी 1.60 करोड़ है, तो 1.20 करोड़ लोग 8000-20000 प्रतिमाह पर गुजर बसर करते हैं).
अगर घर के दो सदस्य भी बाहर काम पर जाते हैं तो सीधा 2000-3000 खर्चे का बोझ वे सहन नहीं कर सकते. दिल्ली की आधी आबादी पहले ही पुराने मेट्रो के भाड़े को नहीं झेल सकती थी. पर इस मूल्य वृद्धि ने एक ही झटके में 3 लाख को मेट्रो से उतार दिया, और कई लोग अपनी जरूरतों में कटौती कर आज भी किसी तरह मेट्रो में सफर करते हैं.
हां, एक बड़ा मध्य वर्ग भी दिल्ली में है, जिसे थोडा सा मुश्किल तो हुई, पर वह इसे आसानी से मैनेज कर सकता है, और कर भी रहा है.
पर क्या आपको पता है कि दिल्ली मेट्रो सेवा किन उद्देश्यों के लिए बनाई गई थी ? एक ऐसे समय जब पेट्रोल डीजल जैसे तेजी से खत्म होते प्राकृतिक संसाधन जिसपर भारत की आत्मनिर्भरता कभी नहीं थी. एक ऐसे शहर जिसमे चौपाया वाहन इतनी चौड़ी सडक और फ्लाईओवर के बावजूद इतना प्रदुषण छोड़ते हैं, कि दुनिया के सबसे प्रदूषित इलाके हर 10 में से 5 दिल्ली के ही इलाके मिलते हैं.
एक तो हम डॉलर के बदले पेट्रोल डीजल फूंकते हैं, दूसरा फ्री में इस शहर को प्रदुषण से बर्बाद करते हैं. आज हर 10 घर में एक आदमी अचानक कैंसर से पीड़ित निकल आ रहा है.
मेट्रो सेवा यह ध्यान में रखकर बनाई गई थी, कि एक ऐसी यातायात की व्यवस्था सरकार, जनता के टैक्स के पैसे से सर्वसुलभ कराएगी जो अफोर्डेबल हो, प्रदुषण मुक्त हो, आरामदायक हो और ट्रैफिक में कम समय ले. मेट्रो मेन के नाम से प्रसिद्द दिल्ली मेट्रो के चेयरमैन तक ने कई बार इसे उद्ध्रत किया कि दिल्ली मेट्रो कोई प्रॉफिट मेकिंग एंटरप्राइज नहीं, बल्कि नागरिक को एक ऐसी सुविधा प्रदान करने वाली सेवा है जिसमे अगर घाटा भी होता है तो उसे सरकार को चलाना उसकी जिम्मेदारी है. कहीं न कहीं वे मेट्रो सेवा में प्राइवेट प्लेयर के आने के खिलाफ भी लगते हैं. दिल्ली में इसका उदाहरण हमने अनिल अम्बानी की एअरपोर्ट मेट्रो प्रोजेक्ट में देख लिया है.
ऐसे में ऐसा क्या हुआ. ऐसी कौन सी टेक्निकल टीम बैठी जिसने किराया दुगुना करना का फरमान दिल्ली मेट्रो को दिया जिसे वह टाल नहीं सकी ? दिल्ली सरकार के विरोध के बावजूद दिल्ली मेट्रो इस बात पर अड़ी रही कि हमें तो कमेटी की बात को मानना पड़ेगा. केंद्र की बीजेपी सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही. किसी को इस बात से मतलब नहीं कि दिल्ली की जनता को सुलभ सेवा मुहैया की जा सके. दिल्ली की जनता को हैरान परेशान कर अगर दिल्ली की राज्य सरकार को निकम्मा साबित कर कुछ फायदा किसी को मिलता है, तो भविष्य में उसके परिणाम सुखद ही होंगे, ऐसी आशंका मुर्खता है.
अब आता हूँ पुराने सवाल पर. तो हमारे मित्र को हमारी बात नागवार गुजरी. उनके हिसाब से ये सब मानवतावादी चोंचले हैं, और मेट्रो का बहिष्कार कर आप उससे नहीं लड़ सकते. यह एक तरह का सठियाया हुआ व्यवहार है. हमें नीतिगत विरोध करना चाहिए.
मेरा मानना है कि हाँ यह एक नैतिक प्रश्न है साथ ही यह एक नीतिगत सवाल भी.
क्या यह सवाल हमें खुद से नहीं पूछना चाहिए कि जो सार्वजानिक सेवा कल तक 10 रूपये में उपलब्ध थी, जिसमे सबके साझे हित थे उसे अगले ही दिन 20 रूपये करने से क्या सरकार सीधे सीधे एक विशाल जन समुदाय को उस सुविधा से सीधे सीधे वंचित कर देना चाहती है. अगर किराया बढ़ाना इतना ही जरुरी था, तो पहले 2000 रूपये आप दिल्ली के उन सभी लोगों को अलग से दो जिनकी मासिक आय 20000 या उससे कम है, फिर आप अगर दुगुना किराया वसूलते हो तो कोई दिक्कत नहीं इस शहर में 2लाख विद्यार्थी भी पढ़ते हैं. DU, JNU, Jamiya, Ambedkar University सहित कई Engineering, MBA कॉलेज के छात्र छात्राएं अपने घर परिवार से हर माह एक निश्चित फीस और किराये के पैसे प्राप्त करते हैं और उसे पूरा करने के लिए भी उस परिवार को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है यह वह परिवार ही जानता है.
ऐसे में दिल्ली के आम नागरिकों, छात्रों, महिलाओं से क्या यह अपील नहीं करनी चाहिए कि हमें कम से कम 3 महीने तक मेट्रो सेवा का उपयोग नहीं करना चाहिए.
अगर 3 महीने आप थोडा ज्यादा समय लगाकर, ज्यादा तकलीफ झेलकर एक जगह से दुसरे जगह commute करते हैं, तो दिल्ली मेट्रो की ridership जो आज भी 30 लाख के करीब है उसे 15 लाख तक ले आये और लगातार इस जनविरोधी कदम का विरोध किया जाए तो Delhi Metro और Central Government इस बात पर सोचने पर मजबूर हो, उसे भी पता चले कि इस देश में सिर्फ NPA करने वाले और बैंकों के लाखों करोड़ खा पचा और डकार कर मुहँ बिचकाने वालों के सरोकार के लिए यह सरकार नहीं चुनी है हमने.
आपका सहयोग अपेक्षित है.
AISA, SFI, DUTA, TradeUnion सहित AAP और kejriwal की दिल्ली सरकार ने कुछ कुछ प्रयास, विरोध प्रदर्शन लगातार किये हैं, पर हम मध्यवर्ग के लोग यह बात भूल जाते हैं कि यह देश आख़िरकार हमारा है. लड़ाई भी हमारी है और बेहतर भी हमने बनाना है. आपकी लड़ाई आपको खुद लड़नी है, कोई सुपरमैन आकर आपकी लड़ाई नहीं लड़ेगा.
यूरोप अमेरिका में लोकतंत्र 300-400 सालों की लड़ाई से मिला था, यहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद झोली में मिला. जितना दिन चल सकता था चला, अब हर बार आपको अपने स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क बिजली, पानी, मौलिक अधिकार, अभिव्यकि की आजादी के लिए कदम कदम पर लड़कर पाना होगा. संविधान और कानून भी सिर्फ उनकी मदद करता है जो अपने लिए साक्ष्य, साधन और पैसे से वकील खरीदते हैं.
@साथी रविन्द्र पटवाल के वाल से साभार