Home गेस्ट ब्लॉग खून की कमी से जूझती महिलाएं और बच्चों की भारी तादाद

खून की कमी से जूझती महिलाएं और बच्चों की भारी तादाद

14 second read
0
0
290

खून की कमी से जूझती महिलाएं और बच्चों की भारी तादाद

यह कोई 7-8 साल पहले की बात है. जिस बस्ती में मैं रहती थी, वहीं रचना भी रहती थी. साल-भर की रचना अक्सर मेरे कमरे में आ जाया करती और खेला करती. एक बार मेरे दोस्त के मध्यवर्गीय भाभी और भइया अपनी बच्ची के साथ आए हुए थे. उनकी बच्ची भी साल-डेढ साल की थी. वो मेरी गोद में थी, इतने में ही रचना भी आ गई, और गोदी में चढ़ने की जि़द करने लगी. मैंने उसे भी दूसरे हाथ में गोदी में उठा लिया. गोदी में एक हाथ में गुलाबी चेहरा और दूसरे हाथ में पीला चेहरा.

मुझे याद है कि एक बार गुलाबी चेहरे और फिर पीले चेहरे, फिर गुलाबी चेहरे को देखते हुए मेरी आंखें झपक गई थींऔर अपने गले में अटकी किसी चीज़ को मैंने गटका था. रचना के पिता अच्छे कारीगर हैं, वे सुपरवाइज़री भी कर लेते हैं लेकिन इतना नहीं कमा पाते थे कि बच्चों को पर्याप्त पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा सकें. अपने आस-पास की मज़दूरों-मेहनतकशों की बस्तियों में जाकर देखिए, आपको चारों तरफ़ रचना जैसे पीले चेहरे ही दिखाई देंगे.

पिछले दिनों एन.एफ़.एच.एस. (2019-20) की रिपोर्ट जारी हुई है. यूं तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में भारत के राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रजनन क्षमता, शिशु और बाल मृत्यु दर, परिवार नियोजन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण, एनीमिया, स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन सेवाओं का उपयोग और गुणवत्ता आदि से संबंधित भी जानकारी मिलती है. यहां हम ख़ून की कमी और कुपोषण के बारे में कुछ बात करेंगे. ख़ून की कमी की जड़ें पर्याप्त पोष्टिक भोजन की कमी में ही हैं.

सर्वेक्षण में दिए गए आंकड़ों से यह तथ्य सामने आया है कि भारत के 14 राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों की आधी से ज़्यादा औरतों और बच्चों में ख़ून की कमी है यानी वे एनीमिया के शिकार हैं. पिछले साल, दिसंबर 2020 में इसके पहले चरण के निष्कर्षों को जारी किया गया था. उसमें शामिल 22 में से 13 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में भी औरतों और बच्चों में एनीमिया की यही स्थिति थी और उससे यह भी पता चला था कि देश में बच्चों में कुपोषण का स्तर बढ़ गया है.

पहले चरण में जहां 22 राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश शामिल थे, वहीं दूसरे चरण में 14 राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश शामिल हैं, लेकिन कुल मिलाकर 36 में से 27 राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों में औरतों और बच्चों में एनीमिया की हालत बेहद चिंताजनक है. बच्चों के संदर्भ में कहें तो यह अपने आप में भयावह स्थिति है कि सभी उम्र के समूहों में एनीमिया में सबसे अधिक बढ़ौतरी 6-59 महीने की उम्र के बच्चों में हुई हैं. आंकड़ों के मुताबिक़, 6-59 महीने की उम्र के बच्चों में एनीमिया शहरी क्षेत्रों में 64.2 फ़ीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 68.3 फ़ीसदी है.

हालांकि भारत सरकार द्वारा जारी ऐसे आंकड़े ना तो पहले हैं और न ही अंतिम होंगे. साल-दर-साल हम ऐसे आंकड़ों से रूबरू होते ही हैं. पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि एजेंसी (FAO) ने कहा है कि दुनिया-भर में लगभग तीन अरब लोगों, यानी विश्व की कुल आबादी के लगभग 40 प्रतिशत हिस्से के पास, अपने लिए स्वस्थ भोजन की एक ख़ुराक का प्रबंध करने के साधन उपलब्ध नहीं हैं.

यूं तो सभी जानते हैं कि शरीर में ख़ून की कमी का एक महत्वपूर्ण कारण पर्याप्त भोजन यानी पोष्टिक भोजन का ना मिलना है. औरतों के संदर्भ में कहें तो उनकी शारीरिक संरचना के चलते यानी कि माहवारी, गर्भाधान, प्रसव आदि के कारण औरतों के शरीर में ख़ून की कमी लगातार ही बनी रहती है. और इस कमी को दूर करने के लिए अतिरिक्त ध्यान देने और व्यवस्था करने की ज़रूरत होती है. लेकिन भारतीय सामाजिक परिवेश और इसकी बनावट के चलते ना सिर्फ़ औरतों को पर्याप्त पोष्टिक भोजन नहीं मिलता, बल्कि ज़्यादातर को तो अपना पेट भरने के लिए खाना भी नसीब नहीं होता.

दूसरी ओर, पूरा आर्थिक ढ़ांचा ही इस तरह का बना हुआ है कि 10-10, 12-12, घंटे काम करने के बावजूद लोग इतना नहीं कमा पाते थे कि अपने बच्चों का पेट भर सके, पर्याप्त और पोष्टिक भोजन मिलना तो दूर की बात है.

वैसे तो इस सर्वेक्षण को अनेकों अख़बारों, न्यूज़ चैनेलों, न्यूज़ पोर्टलों, आदि-इत्यादि ने कवर किया है, लेकिन कहीं भी इस पूंजीवादी व्यवस्था को कटघरे में नहीं खड़ा किया गया है, जो कि इन तरह की तमाम समस्याओं की जननी है. अमीरी-ग़रीबी की खाई, भुखमरी-कुपोषण पूंजीवादी व्यवस्था में बढ़ते ही जा रहे हैं. सरमाएदारों और पूंजीपरस्त नेताओं से हम यह उम्मीद ही नहीं कर सकते कि वे रचना जैसे पीले चेहरों को थोड़ी लालिमा प्रदान कर सकेंगे.

  • विमला (मुक्ति संग्राम से)

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…