Home ब्लॉग अमेरिकी साम्राज्यवाद के निशाने पर परमाणु वैज्ञानिक और महत्वपूर्ण राजनयिक

अमेरिकी साम्राज्यवाद के निशाने पर परमाणु वैज्ञानिक और महत्वपूर्ण राजनयिक

6 second read
0
0
304
अमेरिकी साम्राज्यवाद के निशाने पर परमाणु वैज्ञानिक और महत्वपूर्ण राजनयिक
मोहसिन फखरीजादेह और होमी जहांगीर भाभा

भारतीय सेना के सर्वोच्च पदाधिकारी सीडीएस विपिन रावत की हत्या कर दी गई. वे तमिलनाडु के कुन्नुर में भारत के सबसे आधुनिक हैलिकॉप्टर एमआई 17 से यात्रा कर रहे थे. सीडीएस विपिन रावत की हैलिकॉप्टर दुर्घटना उनकी मौत की वजह बतायी जा रही है. विपिन रावत के मौत के वास्तविक कारण की पड़ताल शायद ही कभी हो पाये क्योंकि इसी प्रकार दुनिया भर में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों की हत्या की जा चुकी है और आगे भी की जाती रहेगी.

असल में विरोधी मतों के प्रतिनिधियों की हत्या का यह सिलसिला कोई नई बात नहीं है. दुनिया की राजनीति को संचालित करने वाला अमेरिका और उसके शार्गिदों द्वारा दुनिया भर में उन हत्याओं को अंजाम दिया जा रहा है, जो उनके विरोध में कहीं भी खड़ा होने की कोशिश करते हैं. इसी परिप्रेक्ष्य में यह जानना बेहद दिलचस्प होगा कि भारत का प्रधानमंत्री, जो प्रधानमंत्री बनने से पहले ‘लाल लाल आंखें’, ‘एक के बदले 10 सिर’, ‘काला धन’ आदि-आदि का उद्घोष किया करते थे, आखिर वे प्रधानमंत्री बनने के साथ ही खामोश क्यों हो गये ?

आज भी भारत की जमीन को हथियाने और 1962 के बाद पहली वार भारतीय सैनिकों की हत्या करने वाले चीन के खिलाफ मोदी ने ‘लाल-लाल आंखें’ नहीं दिखाई, काला धन को लाने का शंखनाद करने वाले मोदी के कार्यकाल में काला धन कई गुना बढ़ गया, पाकिस्तान जैसे छोटे देश से 10 सिर काट कर लाने वाले मोदी पुलवामा में अपने ही सैनिकों लाशें ढ़ोते नजर आये. यहां तक कि वे पुलवामा हादसा का जांच तक नहीं कर पाये, उल्टे अब अपने ही बनाये सीडीएस रावत की लाश से दो-चार हो गये.

इसी तरह की हजारों ऐसी घटनाओं को गिनाया जा सकता है, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खामोश नजर आये, उल्टे कांग्रेस के जिन-जिन नीतियों के खिलाफ वे बोलते थे, प्रधानमंत्री बनने के बाद न केवल उसके पक्के पक्षधर ही बन गये अपितु पूरी ताकत से रातोंरात उसे लागू करने में लग गये, तो इसके पीछे कारण क्या हो सकता है ?

सीडीएस विपिन रावत की मौत का रहस्य पुलवामा की ही तरह शायद ही कभी सुलझे, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि विपिन रावत निश्चत रूप से किसी बड़ी ताकतों के खिलाफ खड़े थे, जिन्होंने उनकी जान ली. इसके साथ ही यह भी पूरी तरह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी जान उन ‘बड़ी ताकतों’ की मुट्ठी में है. अगर प्रधानमंत्री मोदी भी उन ‘बड़ी ताकत’ की मांगों को नहीं मानेगी तो उनका भी कत्ल कर दिया जायेगा और किसी दुर्घटना का नाम दे दिया जायेगा.

नरेन्द्र मोदी इस चीज से वाकिफ हैं, इसीलिए वे प्रधानमंत्री बनने से पहले और प्रधानमंत्री बनने के बाद यू-टर्न ले लिया है. इससे एक चीज और साफ हो जाती है कि प्रधानमंत्री चाहे कोई भी बने, वह इन ‘बड़ी ताकतों’ के खिलाफ जाने की सोच भी नहीं सकता, अन्यथा उनका कत्ल कर दिया जायेगा.कहा जाता है कि भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या भी इसी ‘बड़ी ताकत’ ने किया था, जब वे सोवियत संघ गये थे.

संभावना यह जतायी जा रही है कि यह ‘बड़ी ताकत’ विश्व की जनता का सबसे बड़ा दुश्मन अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके साथी हैं, जो पूरी दुनिया पर नियंत्रण स्थापित करना ही उनका मकसद है, ताकि इस साम्राज्यावादी लूट को बरकार रखा जा सके. पूरी दुनिया में इसी नियंत्रण को स्थापित करने की कोशिश में अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने अपने अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसी-सीआईए-के माध्यम से दुनिया की सराकारों को नियंत्रित करने, विरोध करने वाले सत्ताधीशों को ठिकाने लगाने जैसे करतब को अंजाम दे रहा है.

इसी कड़ी में दुुनिया भर के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिकों की हत्या की जा रही है. एक वेबसाइट की रिपोर्ट में भारत के परमाणु कार्यक्रम के महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा से जुड़ी यह जानकारी सामने आ रही है. इस वेबसाइट ने 11 जुलाई 2008 को एक पत्रकार ग्रेगरी डगलस और सीआईए के अधिकारी रॉबर्ट टी क्राओली के बीच हुई कथित बातचीत को फिर से पेश किया है.

इस बातचीत में सीआईए अधिकारी रॉबर्ट के हवाले से कहा गया है कि हमारे सामने समस्या थी. भारत ने 60 के दशक में आगे बढ़ते हुए परमाणु बम पर काम शुरू कर दिया था. उन्होंने इस बातचीत में रूस का भी जिक्र किया है जो भारत की मदद कर रहा था. भाभा का उल्लेख करते हुए सीआईए अधिकारी ने कहा, ‘मुझपर भरोसा करो, वह खतरनाक थे. उनके साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण ऐक्सिडेंट हुआ. वह परेशानी को और अधिक बढ़ाने के लिए वियना की उड़ान में थे, तभी उनके बोइंग 707 के कार्गाे में रखे बम में विस्फोट हो गया.’

इस विमान हादसे के बाद इस इलाके में पत्रकारों का समूह भी गया था जिसको वहां पर विमान के कुछ हिस्से भी मिले थे. इसके अलावा वर्ष 2012 में वहां पर एक डिप्लोमेटिक बैग भी मिला जिसमें कलेंडर, कुछ पत्र और कुछ न्यूज पेपर्स थे. रॉबर्ट का कहना है कि सीआईए का हाथ सिर्फ भाभा के विमान को हादसाग्रस्त करने में ही नहीं था बल्कि लाल बहादुर शास्त्री की मौत में भी था. 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए. 1953 में जेनेवा में अनुष्ठित विश्व परमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलन में उन्होंने सभापतित्व किया. भाभा 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे, तब वो भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे. वो कभी भी अपने चपरासी को अपना ब्रीफ़केस उठाने नहीं देते थे.

चूंकि परमाणु बम का निर्माण होना किसी भी देश की मजबूती का सबसे बड़ा पैमाना है, इसलिए अमेरिकी साम्राज्यवाद किसी भी देश को मजबूत बनते देखना खुद के लिए खतरे की घंटी समझता है, इसलिए वह किसी भी कीमत पर किसी भी अन्य देशों को परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ते देखना नहीं चाहता है. वह फौरन उसपर तमाम तरह के प्रतिबंध, आक्रमण या उसके प्रधानमंत्री अथवा परमाुण कार्यक्रम से जुड़े महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों की हत्या कर देता है. इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पर अमेरिकी हमला इसी उद्देश्य से केन्द्रित था तो इरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या भी इसी कारण से था, जिस कारण से भारतीय परमाणु वैज्ञानिक होेमी जहांगीर भाभा की हत्या की गई थी.

ईरान के इस परमाणु वैज्ञानिक की हत्या इतने सुनियोजित और आर्टिफिसियल इंटेलिजेंट के उच्च तकनीक के इस्तेमाल कर अमेरिकी साम्राज्यवादी पिट्टु इजरायल के मोसाद के द्वारा की गई कि एकबारगी सारी दुनिया हिल गई. और अब इसी कड़ी में भारतीय सेना के सर्वोच्च पदाधिकारी विपिन रावत की भी हत्या की गई, जो किसी भी संदेह के बगैर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की ओर इशारा करती है.

इसी सिलसिले में यह भी जानना बेहद दिलचस्प होगा कि भारत के परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा के अलावे इस के अनेकों परमाणु वैज्ञानिक इस हमले का शिकार हुए हैं. हरियाणा के रहने वाले राहुल शेहरावात ने एक आरटीआई के माध्यम से सरकार से यह जानकारी मांगी थी जिसके जवाब में परमाणु ऊर्जा विभाग ने बीते चार साल (2009-13) के आंकड़े सार्वजनिक किए, जिसमें यह तथ्य सामने आया कि बॉर्क में सी-ग्रुप के दो वैज्ञानिक साल 2010 में अपने आवास में फांसी झूलके पाए गए जबकि उसी ग्रुप के अन्य वैज्ञानिक को 2012 में उनके आवास पर मृत पाया गया.

बार्क के एक मामले में पुलिस ने दावा किया किया कि वे वैज्ञानिक काफी दिनों से बीमार चल रहे थे, जिसकी वजह से उन्होंने आत्महत्या कर ली. बाद में पुलिस ने केस को बंद कर दिया. साल 2010 में बार्क में ही तैनात दो अनुसंधानकर्ताओं की रासायनिक प्रयोगशाला में लगी रहस्यमयी आग में मौत हो गई थी.

वहीं एक दूसरे वैज्ञानिक की उसके आवास पर ही हत्या कर दी गई थी. इसके अलावा मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस टेक्नोलॉजी में तैनात एक वैज्ञानिक ने भी आत्महत्या कर ली, उस केस को भी पुलिस ने बंद कर दिया. वैज्ञानिकों की मौत की यह घटना यहीं खत्म नहीं हुई, इनमें कलपक्कम में तैनात एक वैज्ञानिक ने 2013 में समुद्र में कूदकर अपनी जान दे दी तो वहीं एक अन्य वैज्ञानिक ने कर्नाटक के करवार के काली नदी में कूद कर अपनी जान दे दी. इन आंकड़ों से एक बात तो साफ है कि किसी भी अन्य देशों की भांति हमारे देश के परमाणु वैज्ञानिकों की जिंदगी महफूज नहीं है.

ये आंकड़े 2009 से 2013 के महज 4 साल के हैं, उसके बाद कितने वैज्ञानिकों, राजनयिकों, सेनानायकों की हत्यायें इसी प्रकार कर दी गई है, के आंकड़े भी शायद ही कभी मिल सके. सीडीएस विपिन रावत की हत्या भी इसी कड़ी से जुड़ी है, जिसकी जांच भी कुछ दिनों बाद बंद कर दी जायेगी.

बहरहाल, भारत के हिन्दुत्व की राजनीति का झंडा उठाकर देश की जनता के बीच नफरत फैलाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बेहद सुरक्षित माने जा सकते हैं, क्योंकि वह न केवल अमेरिकी साम्राज्यवाद के जूतों तले रहकर खुश है अपितु चीनी सामाजिक साम्राज्यवादी ताकत के सामने भी नतमस्तक है.

कायर नरेन्द्र मोदी की कायरता का प्रदर्शन न केवल देश की जनता के ही सामने हो चुका है, अपितु सारी दुनिया इस कायर बेवकूफ की हरकतों से वाकिफ हो चुकी है. सारी दुनिया और देश ने देखा है तथाकथित कोरोना काल में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की धमकी पर रातोंरात दवाईयों की खुराक को अमेरिका भेजते हुए. फिर देश में नफरत का व्यापार कर साम्राज्यवादी जूतों को सहलाने वाले ऐसे कायर, डरपोक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या आखिर अमेरिकी या चीनी साम्राज्यवादी ताकतें भला क्यों कर करें ?

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…