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कहानी का शीर्षक – सावधान : ऐंकर शराब पीए था

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कहानी का शीर्षक - सावधान : ऐंकर शराब पीए था

रविश कुमार

पेश है रवीश कुमार की नई कहानी. लेखक ने बिना पिए ही लिख डाली. कल पोस्ट करने के बाद हटा ली थी, कहानी में सुधार किया गया है ताकि कमला पसंद पुरस्कार मिल जाए.

कहानी का शीर्षक- सावधान: ऐंकर शराब पीए था

कहानी-

हर दिन झूठ और नफ़रत को सच की तरह परोसते परोसते ऐंकर का गला सूखने लगा. दोपहर से ही शाम के ख़्याल में डूब जाने की आदत सी हो गई है. हर समय बड़बड़ाता है. पी कर भी और बिना पिए भी. जब प्रदीप किसानों को आतंकवादी बोलता तब दफ्तर के लोग समझ जाते हैं कि शराब पी ली है. जब ख़ालिस्तास्नी बोलता है तो मान लिया जाता है कि पिछली रात का नशा बचा हुआ है. इसी तरह प्रदीप के किस्से दफ्तर में आबाद थे जिन पर सरकारी फाइलों की तरह अति संवेदनशील और गुप्त होेने का ठप्पा लगा रहता है.

ग़ाज़ीपुर बोर्डर पर जमे किसानों को देखते ही प्रदीप बड़बड़ाने लगा. रौशनी समझ गई कि पिछली रात का नशा बचा है. ज़्यादा पीने वालों की हलक में थोड़ी सी शराब हमेशा बची रहती है. प्रदीप मेरठ पहुंचने से पहले सरकारी ठेके की दुकान से एक बोतल ख़रीदना चाहता था. रौशनी ने याद दिलाई कि एक बोतल पड़ी हुई है. हां, रास्ते में बोतल ख़त्म हो गई तो ? रौशनी, तुम्हारी तरह शराब हर वक्त साथ ज़रूरी है. दोनों का रोमांस ऐसा ही है. ऐंकरिंग की इस जोड़ी ने झूठ और प्रोपेगैंडा इतना रचा है कि कई बार शहर में दंगा होते होते बचा है. रात की नींद से भागने के लिए प्रदीप को शराब की लत लग गई. रौशनी प्रदीप के साये में दो बूंद की साथी बन चुकी थी. मेरठ के सफ़र पर मैनहटन की बातें होने लगी. प्रधानमंत्री के दौरे के समय विदेश मंत्रालय की दी हुई शराब की. रौशनी ने याद दिलाई, सरकारी ठेके पर मत रुको, लोग तुम्हें पहचान लेंगे.

नोएडा और ग़ाज़ियाबाद में पसरे अपार्टमेंट से आगे बढ़ते ही महानगर में समा जाने को आतुर खेतों में बड़े-बड़े बोर्ड खड़े दिखने लगे. एक विज्ञापन में पतलून और शर्ट में एक युवा लड़की के हाथ में हिन्दी का अख़बार है. आयशा जुल्का की तस्वीर उस अख़बार को नए ज़माने का बना रही है, जिसका नाम प्रदीप के साथ साथ मेरठ के दंगे में आया था. नए ज़माने के ऐसे कई बोर्ड के बीच पीले रंग का बड़ा सा बोर्ड देख रौशनी ने कार धीमी कर ली. किसी आर्टिस्ट ने बेहद करीने से रेखाचित्रों से समझाया था कि अब दुर्घटनाओं के समाचार ख़त्म हो गए हैं. शराब पीकर ऐंकरिंग करने की दुर्घटनाओं की ख़बर से लोग जागते हैं. सावधान: ऐंकर शराब पिए था. तुम अब भी पीने की सोच रहे हो ? दिल्ली लौट कर पी लेना. दूसरों के संघर्ष को चाकलेट के रैपर में लपेट कर बेचने वाली रौशनी ने कहने के लिए कह दी. सख़्त होना उसकी आदत में शुमार नहीं है. प्रदीप ने बोर्ड से नज़रें हटा ली और सामने की तरफ देखने लगा. बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ के नारे से भरे ट्रक भारत की तरक्की को ढो रहे हैं. सरकार ने संसद में बताया है कि इसके बजट का सारा पैसा इसी प्रचार में ख़त्म कर दिया है. बेटियां बजट से नहीं बचती हैं इसलिए उनका बजट स्लोगन में ख़र्च कर दिया गया है.

प्रदीप शाम के ख़्याल में डूबने लगा. दोपहर की तेज़ धूप और पिछली रात के झूठ से बचने के लिए उसे शाम ढूंढने की आदत है. शराब पीने वालों के लिए किसी वक्त शाम कर लेते हैं. उन्हें शराब का नही, शाम का बहाना चाहिए. शाम है तो शराब है. 8pm का ब्रांड देखकर वह अपने आठ बजे के लाइव शो की शाम में डूब गया. जल्दी लौटने की बात करने लगा. चैनल का फेस है इसलिए जर्नलिज़्म का फेस है.

मैं भी प्रदीप और रौशनी के बारे में ही सोच रहा था. लोगों ने दोनों का वीडिया टैग कर ट्विट पर खूब सारे चटखारे लिए थे. प्रेस क्लब से मनोहर लाल का फोन आने लगा. ऑल्ट न्यूज़ के ज़ुबेर ने मैसेज कर पूछा है कि ऐंकर के शराब पीने पर मेरा क्या कहना है ? मुझे कुछ नहीं कहना, सब्ज़ी ख़रीद रहा हूं. लिस्ट लेकर आया हूं. वैसे उतनी ही सब्ज़ी है यहां जो मैंने लिस्ट में लिखी है. फिर मैं लिस्ट से सब्ज़ी क्यों ख़रीद रहा हूं ? बिग बास्केट से क्यों नहीं मंगा लेता ? पत्रकारिता में फेल होने के कई कारणों में से एक यह भी रहा है. हर बड़े ईवेंट पर मैं मंडी में होता हूं या छुट्टी पर होता हूं.

पास से गुज़रते हुए दो ख़रीदार बातें करने लगे. देखो ये ऐंकर है, ख़ुद ही तरकारी ख़रीद रहा है. ये वही तो नहीं जो शराब पीता है. एक ड्राइवर शराब पीता है तो इसका मतलब यह नहीं कि सारे ड्राइवर शराब पीते हैं. शराब पीना नैतिकता का प्रश्न नहीं है, अर्थव्यवस्था का है. मैंने अपना तर्क तैयार करना शुरू कर दिया, तभी टमाटर का रेट बताकर सब्ज़ी वाले ने चर्चा का रुख़ मोड़ दिया. ऐंकर का शराब पीना शहर में ख़बर है और बाज़ार में मैं फंस गया. बिना बात के वायरल होने लगा.

मैं बचाव में उतर गया. उसका पीना ग़लत तो नहीं है. टीवी डिबेट की तरह हिंसक होने की आशंका में मैंने टमाटर छोड़ आलू उठा लिया. आलू हथियार की तरह काम आ सकता है. टमाटर चिपकता है और आलू छिटकता है. निशाना चूक भी गया तो भी किसी न किसी को लगेगा. ख़बर बन ही जाएगी मगर उसकी नौबत नहीं आई. धनिया का पत्ता उठाते हुए सोचने लगा कि पीने के बाद प्रदीप ने क्या कहा ? इतना हंगामा क्यों है ? न्यूज़ चैनल नियामक संस्था का वह अध्यक्ष है तो उसका कौन बिगाड़ लेगा. जब पत्रकारिता की सारी नैतिकताओं का पतन जायज़ है तो शराब पीना नाजायज़ कैसे है ? शराब पी कर उसने अच्छा किया बल्कि उसे ड्रग्स का कारोबार भी करना चाहिए. ED के अधिकारी वैसे भी मेरे घर आएंगे, प्रदीप के घर तो कभी नहीं जाएंगे. इसका फायदा प्रदीप को उठाना चाहिए, पीना चाहिए, पिलाना चाहिए. लोग मेरी बात से सहमत हो गए. समझ गए कि ये वाला ऐंकर फ्रस्ट्रेट हो चुका है. ऑल्टो कार से चलता है.

ऐंकर प्रदीप ने बोतल खोल ली. रौशनी ने दो बूंद की आशा में रफ़्तार बढ़ा ली. प्रदीप पिछली रात का सारा किस्सा हु ब हू दोहराने लगा. उसे पीने के बाद की सारी बात याद रहती है ताकि वह साबित कर सके कि वह पिया हुआ नहीं था. शराबी भूल जाते हैं. प्रदीप याद रखता है. रौशनी तुम तो जानती हो, शराब पीने के बाद ही तो मैं संभलता हूं. मेरा शराब पीना राष्ट्रवाद के लिए ज़रूरी है. यह एक नशा है. जैसे किसी को शराब से नफ़रत का नशा है वैसे मुझे शराब से मोहब्बत का नशा है. प्रदीप पोएटिक होने के मूड में आया ही था कि बगल से अशोक ले लैंड का बहत्तर पहियों वाला ट्रक भारतीय अर्थव्यवस्था को लादे हुए गुज़र गया. दिल्ली से लखनऊ जा रहा था. देश की प्रगति किसे अच्छी नहीं लगती. प्रदीप का आत्मविश्वास बढ़ गया। बोलत आधी ख़ाली हो गई.

न्यूज़ एक नशा है जानेमन. रौशनी को जानेमन कहलाना पंसद नहीं. पहले था लेकिन जबसे प्रदीप का व्हाट्स एप मैसेज वायरल हुआ है जिसमें उसने नई ऐंकर को जानेमन लिखा था, रौशनी को इस शब्द से नफ़रत हो गई है. चिढ़ गई. आधी बोतल ख़ाली होते ही तुम जानेमन पर आ गए. सॉरी. न्यूज़ एक नशा है नशेमन. अब ठीक ? जो तुम्हें लगता है करो. मुझे मेरठ से दिल्ली लौटना है. धर्म ध्वजा वाले ट्विटर अकाउंट से विश्व गौरव पर ट्विट करना है. मैंने तो अपनी लाइन सोच ली है. दिल्ली से लखनऊ जा रहा यह ट्रक, भारत के सपनों को पूर्वांचल की वादियों में पहुंचाएगा. बेटियों को बचाएगा. इस ट्रक से जलने वाले ऐंकर के पीने पर हाहाकार मचा रहे हैं जैसे इस देश में पानी की नहीं शराब की कमी हो गई है. देखना मेरे इस ट्विट पर हाई कमान का भी लाइक मिल जाएगा. क्या पता इस बार फोलो-बैक मिल जाए. मेरी भी तो लाइन सुन लो. सुनाओ. वैसे भी बोतल ख़त्म होने जा रही है. प्रदीप खिड़की पर लुढ़क गया. बड़बड़ाने लगा. बेख़ुदी में फेसबुक लाइव का बटन दब गया और लाइव हो गया.

‘सवाल ये नहीं है कि ऐंकर शराब पिए था. सवाल यह है कि क्या ऐंकर शराब पीने के बाद झूठ बोल रहा था ? अगर प्रदीप पीने के बाद झूठ नहीं बोल रहा था तब फिर लोगों को मुझसे क्या शिकायत है ? क्या आप लोग नहीं चाहते कि प्रदीप भी सच बोले ? सच की पत्रकारिता करे ? एक दिन शराब पी कर ऐंकरिंग कर ही दी तो क्या हो गया. मैंने तो शराब की इज़्ज़त रखी है. शराब पीने के बाद झूठ नहीं बोला है. शराब मेरे जीवन का एक सच है. लड़खड़ाता तो मैं बिना पिए भी हूं. शराब पीकर डगमगा गया तो हंगामा मचा है ? मुझे किसी की मौत पर शराब नहीं पीनी चाहिए थी लेकिन मैंने शराब अपने ज़मीर की मौत पर पी थी. पत्रकारिता की मौत पर पी थी. जब भी पत्रकारिता मरती है, मैं शराब पीता हूं. जब भी ज़मीर मरता है मैं शराब पीता हूं. मौत का ग़म हल्का करने के लिए मैंने शराब नहीं पी. इतने सालों से हर रात आठ बजे पत्रकारिता को मार रहा हूं, मैंने मार दी है, मैं सफल हो गया हूं. पीना उस सफलता की पार्टी है. किसी को क्या प्राब्लम है. हिक् हिक् हिक् …’.

फेसबुक पर लाइव देखने वालों की संख्या दस लाख पहुंच गई. रौशनी को फोन आने लगे कि सब सुन रहे हैं. प्रदीप क्या बक रहा है. प्रदीप ने कहा सुनने दो, मैं दोहरा जीवन नहीं जीता. फेसबुक बंद कर दो और दिल्ली चलो. आज शो जल्दी करूंगा. लाइव. रौशनी ने इस मौके पर वह बात नहीं बताई कि हाई कमान का लाइक मिला है. उसका ट्वीट ही ऐसा था कि हाईकमान की लाइन मिलनी ही थी. मन ही मन उसने मन से बातें करने लगी. आज एक और झूठ सच हो गया. भारत की अर्थव्यवस्था की चमक दिल्ली से गांवों की तरफ फैल रही है. प्रदीप समझ गया था. दोनों के जीवन में ख़ुशियां आई टी सेल के सपोर्ट से ही आती हैं. ट्विट पर रिस्पांस की बात छेड़ उसने बोतल में बची शराब की आख़िरी बूंद ग्लास में उड़ेल दी. कार में बोलत रखने की सुविधा ने पीना आसान कर दिया है. पीते पीते स्टुडियो आ गया है.

सीधा प्रसारण चल रहा है. प्रदीप चल नहीं पा रहा है. सहयोगियों ने पीठ ठोक कर हौसला बढ़ा दिया कि ये ऐंकरिंग का नहीं बार टेबल है. इसे बार टेबल समझ कर बोल दीजिए. आप पोपुलर ऐंकर हैं. सरकार साथ में हैं. आप न होते तो इस सरकार की महफिल की कोई शोभा नहीं बढ़ती. प्रधानमंत्री को सबका साथ सबका विश्वास नहीं मिलता. जितना पीकर आए हैं वह काफी है आज के लाइव के लिए. माइक अप होने के बाद ऐंकर ने सबसे पहली बात जो कही वो सौ फीसदी सच थी. उसकी हर बात मैंने नोट कर ली थी. यू-ट्यूब का कुछ पता नहीं, कब डिलिट कर दिया जाए. इसलिए मैंने जो नोट किया उसे आपके साथ साझा कर रहा हूं. कैमरा स्थिर था, प्रदीप झूम रहा था.

‘हिचकी प्यास नहीं होती है. हिचकी शराब होती है, जो गले में कहीं अटकी होती है. जो नीचे उतरने से पहले अगले पेग का इंतज़ार करती है. जब अगला पेग नहीं आता है तब हिचकी आती है. हिचकी झांकती है कि अगला पेग कब आएगा. हिचकी हिसाब मांगती है. हिचकी उस व्हीस्की की कसक है जो पी गई है और जो पीनी बाकी है. शराब का संगीत है हिचकी. हिक् हिक् हिक् …’.

दर्शक का सीना चौड़ा होने लगा. उन्हें लगा कि उनका ऐंकर शराब के औषधीय गुण बता रहा है. सब जल्दी जल्दी नोट करने लगे. व्हाट्स एप में फार्वर्ड करने लगे. ऐंकर को फीडबैक मिल गया. फेसबुक पर दर्शकों की संख्या एक लाख पार कर चुकी है. शो हिट है. प्रदीप झूमने लगता है. उसके कानों में एक गीत बजने लगा. वह दोनों हाथ से अपने माथे को दबाता है कि म्यूज़िक का बटन बंद हो जाए मगर बंद नहीं होता. वह गाने लगता है – ‘झूमती चली हवा…याद आ गया कोई’. होश में आते ही प्रदीप ने पूछा कि क्या मैं बोल नहीं रहा हूं ? कैमरामैन की चुप्पी से वह नाराज़ हो गया. मैं बोल नहीं रहा तो कौन बोल रहा है. मैं किससे बात कर रहा हूं. वो किससे बात कर रहे हैं. कौन सर ? कैमरामैन की ज़ुबान फिसल गई – सर आप गा रहे हैं.

सब्ज़ीमंडी से लौट कर मैं चखना पर अधूरे निबंध को पूरा करने लगा. यह लेख साहित्य अकादमी अवार्ड के लायक तो नहीं है कि मगर कमला पसंद पुरस्कार की उम्मीद है. विज्ञापन बंद होने के बाद गुज़ारे के लिए यहां वहां लिखने का सरदर्द पाल लिया हूं. कहानी के इस हिस्से में उस दरबान का प्रसंग है जो हर रात पीने वालों के छोड़े हुए चखने का इंतज़ार करता है. चने पर नींबू की खटास से भिनभिनाता हुआ वह प्लेट की सतह पर बह रही कबाब का तेल चट करने लगता है. दरबान के पास चखने के एक से एक किस्से थे. चखना देखकर वह पीने वाले की तलब और उसका क्लास बता देता था. दालमोट के साथ पीने वाले उसे कत्तई पसंद नहीं. उस तक भी प्रदीप के पीकर ऐंकरिंग करने की बात पहुंच गई थी. बात के नशे के असर में वह भी गेस्ट हाउस के बाहर खड़ा होकर चखना ग्रंथ बांचने लगा. यहां मैंने जानबूझ कर पुराण नहीं लिखा है. संस्कृति की मर्यादा से खिलवाड़ की अनुमति किसी को नहीं है.

‘अच्छा चखना होता है तो लोग ज़्यादा पीते हैं. लोग ज़्यादा पीते हैं तो सरकार ज़्यादा कमाती है. सरकार ज़्यादा कमाती है तो सरकार ज़्यादा बेचती है. ऐंकर शराब नहीं बेचता है. पारो कहती है कि ऐंकर शराब छोड़ दे. पारो से कहो तुम देश छोड़ दो. ऐंकर सरकार नहीं छोड़ सकता. सरकार को नहीं छोड़ सकता तो शराब भी नहीं छोड़ सकता.’

जब सरकार को नहीं छोड़ सकता तो शराब भी नहीं छोड़ सकता. दरबान इस पंक्ति को लोग हैशटैग बना लेंगे, इस आशा में मैंने मूल कहानी में इसे रहने दिया. ऐंकर के पक्ष में देश की जनता खड़ी हो गई. शराब को भारतीय संस्कृति से जोड़ा जा चुका है. शराब पीने पर हमले को भारतीय संस्कृति पर हमला घोषित कर दिया गया. ऐंकर के शराब पीने की आलोचना करने वालों के ख़िलाफ़ त्रिपुरा में राजद्रोह का मुकदमा दायर हो गया है. मेरे पास मैसेज आने लगे कि मैं इसे अपने शो में उठाऊं और जनता को जागरुक करूं. मैंने इग्नोर कर दिया. दरबान के प्रसंग को आगे बढ़ाने लगा. मेरी कहानी में वह बोले जा रहा है.’ शराब का संबंध संस्कृति से है. संस्कृति का संबंध सरकार से है. जनता का संबंध भीड़ से है. भीड़ का संबंध झूठ से है. झूठ का संबंध शराब से है. ऐंकर के शराब पीने पर सवाल मत उठाओ. सवाल उठाने वाले जेल में दाल का पानी पी रहे हैं. ऐंकर अब भी शराब ही पी रहा है.’

निष्कर्ष-

टीचर ने कमला पसंद पुरस्कार प्राप्त इस कहानी को सुनाते हुए गर्व भाव से अपने प्रिय छात्र की तरफ़ देखा, थोड़ा मुस्कुराया और फिर पूरे क्लास पर नज़र फेरते हुए कहा, कहानी का शीर्षक कौन कौन नहीं समझा सका, हाथ उठाओ ?  एक स्वर से आवाज़ आई. समझ गए सर ! सावधान, ऐंकर शराब पिए था.

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