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सरकारी बैंकों के प्राइवेट होने में जानिए अपना नफा-नुकसान

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सरकारी बैंकों के प्राइवेट होने में जानिए अपना नफा-नुकसान

केंद्र सरकार अगले तीन दो-चार दिनों में सरकारी बैंकों के निजीकण का बिल संसद में पेश करने जा रही है. इस प्रस्तावित विधेयक को लेकर सरकारी बैंक कर्मचारियों में खलबली मची हुई हैं. बैंक यूनियनों ने दो दिन (16-17 दिसम्बर) की राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा कर दी है. बतौर नागरिक आपको जानना चाहिए कि मोदी सरकार सरकारी बैंकों के निजीकरण (Bank Privatization) की तरफ जो कदम बढ़ा रही है, वो सही है या गलत ? उससे आप कहां तक प्रभावित होंगे ? अभी प्राइवेट बैंकों की जो स्थिति है, क्या आप उससे संतुष्ट हैं ?

सबसे पहले यह तथ्य जान लीजिए कि अगर सरकारी बैंकों को प्राइवेट करने का बिल संसद में पास हो गया तो सरकारी बैंकों में अभी सरकार की हिस्सेदारी जो 51 फीसदी है, वह घटकर 26 फीसदी हो जाएगी. ऐसे में अगर वो बैंक डूबता है तो आपके पैसों की जिम्मेदारी सरकार की नहीं के बराबर होगी.

सरकार सिर्फ दो बैंकों सेंट्रल बैंक आफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज को प्राइवेट करने का विधेयक संसद में 6 दिसम्बर को लाने जा रही है. दरअसल, नीति आय़ोग ने निजीकरण के लिए विनिवेश पर सरकारी सचिवों के कोर ग्रुप की बैठक में कहा था कि दो सरकारी बैंकों और एक इंश्योरेंस कंपनी (Insurance Company) को प्राइवेट किया जाना चाहिए. नीति आय़ोग ने सरकारी सचिवों की बैठक में जो सुझाव दिए थे, उनमें इन दो बैंकों के नाम आए थे.

देखा जाए तो सिर्फ इन्हीं दो सरकारी बैंकों के कर्मचारियों को आंदोलन या हड़ताल वगैरह करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है. बैंक कर्मचारियों के आंदोलन में सभी सरकारी बैंकों के कर्मचारी-अधिकारी शामिल हो गए हैं, यह महत्वपूर्ण बात है लेकिन आप समझिए कि ऐसा क्यों होने जा रहा है ?

दरअसल, मोदी सरकार के काम करने के तरीके से अब तमाम कर्मचारी और मजदूर संगठन वाकिफ होते जा रहे हैं. एक बार सिर्फ इन्हीं दो बैंकों की आड़ में अगर सरकारी बैंक निजीकरण का विधेयक संसद में पास हो गया तो मोदी सरकार अन्य सरकारी बैंकों को भी धीरे-धीरे प्राइवेट कर देगी. इसलिए बैंक कर्मचारी वक्त रहते सचेत हो गए हैं और उन्होंने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इसलिए इस मुद्दे पर सरकारी बैंक कर्मचारियों का आंदोलन सही है, उनसे नागरिकों को सहमत होना चाहिए.

इस लेख के शुरुआत में आप जैसे नागरिकों से सवाल किया गया था कि अगर मोदी सरकार (Modi Government) सरकारी बैंकों का निजीकरण करने में कामयाबी होगी तो आप कहां तक प्रभावित होंगे ? लेकिन उससे पहले इस सवाल का जवाब आना चाहिए कि देश में प्राइवेट बैंकों की मौजूदा स्थिति से आप कहां तक संतुष्ट हैं ?

देश के प्राइवेट बैंकों की स्थिति

जून 1994 में आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) शुरू हुआ और अगस्त 1994 में ही एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) शुरू हुआ. हम लोगों के सामने देखते ही देखते देशभर में इनकी शाखाएं खुल गईं. इन दोनों बैंकों की आमद ने अनगिनत प्राइवेट बैंकों के रास्ते खोल दिए लेकिन प्राइवेट बैंकिंग में मार्केट लीडर अभी भी यही दोनों बैंक हैं.

आप लोगों में से जो भी इनमें से किसी भी बैंक के ग्राहक होंगे या दोनों के ग्राहक होंगे तो आपको यह पता होगा कि इन दोनों बैंकों ने किस शातिरपने से अपने नियम समय-समय पर बदले और अगर आज की तारीख में आपका पैसा इन दोनों बैंकों में पड़ा है तो आप अपनी मनमर्जी से उसे निकाल नहीं सकते. दोहरा रहा हूं, पैसा आपका है लेकिन आप आसानी से निकाल नहीं सकते.

अगर आपने एक महीने में चार बार से ज्यादा पैसा निकाला तो अगली निकासी पर आपको शुल्क देना होगा. शुरुआत में इन दोनों बैंकों ने गली-गली एटीएम खोल दिए लेकिन अब अचानक इनके एटीएम बंद यानी कम हो रहे हैं.

मैं जिस इलाके में रहता हूं वहां दो प्राइवेट बैंकों एचडीएफसी और इंडसइंड बैंक ने अपने एटीएम बंद कर दिए. अब मुझे दो किलोमीटर की दूरी पर पैसे निकालने के लिए इन बैंकों के एटीएम पर जाना पड़ता है. यह अलग बात है कि एटीएम पर पहुंचने के बाद या तो कैश नहीं होगा या तकनीकी कारणों से एटीएम काम नहीं कर रहा होगा.

हाल ही में सरकार ने नियम बनाया है कि अगर किसी भी बैंक का एटीएम खाली हुआ तो उस पर कार्रवाई होगी. लेकिन आप बेहतर समझ रहे होंगे कि एटीएम में कैश अक्सर नहीं होता और किसी भी बैंक पर आपने कार्रवाई होते हुए नहीं सुना होगा.

किसी भी प्राइवेट बैंक में अगर आप खाता खोलते हैं तो कम से कम दस हजार रुपये आपको उसमें डिपॉजिट रखना ही होगा. अगर इससे कम खाते में जमा रहा तो आपका पैसा कटने लगेगा. आप कितनी बार फोन करके झुंझलाते हैं, चिल्लाते हैं, पैर पटकते हैं लेकिन आपका पैसा कटना खत्म नहीं होता. ज्यादा शोर मचाने पर आपके खाते की नेगेटिव मार्किंग कर दी जाती है. आप तमाम तरह की सुविधाओं से वंचित कर दिए जाते हैं.

आप जैसे ही किसी प्राइवेट बैंक में खाता खोलते हैं, आपको क्रेडिट कार्ड और डीमैट खाता जबरन ठेलने की कोशिश की जाएगी. अगर आप सजग नहीं हैं तो आपको इन्हें मुफ्त बताकर थमा दिया जाएगा. पहले साल आपसे कोई पैसा नहीं लिया जाएगा. बैंक भी आपको कोई रिमांइडर नहीं भेजेगा लेकिन जैसे ही अगला साल शुरू होगा, आपके खाते से 600 रुपये या 800 रुपये कट जाएंगे.

अगर आप ऐतराज करेंगे तो कहा जाएगा कि बैंक की ब्रांच जाकर डिएक्टिवेट कराइए. यानी आनलाइन सुविधा का दम भरने वाला बैंक से अगर आपका जबरन थोपा गया डीमैट खाता हटवाना है तो आपको बैंक की ब्रांच में जाना होगा. जब आप उस ब्रांच में पहुंचते हैं तो आपको बताया जाएगा कि इस ब्रांच में नहीं, उस ब्रांच में जाना होगा. उस ब्रांच में जाने पर शहर की मुख्य ब्रांच में जाने को कहा जाएगा.

प्राइवेट बैंक हर महीने अपना कोई न कोई नियम बदलते रहते हैं लेकिन उसकी सूचना आपको कब मिलेगी, कोई नहीं जानता. अगर मिल भी जाएगी तो आपको उसे समझने के लिए दिमाग लगाना पड़ेगा. मसलन आपका कितना भी पैसा किसी प्राइवेट बैंक में पड़ा है और अगर वह बैंक दिवालिया होता है या डूब जाता है तो आपको दो-ढाई लाख रुपये तक वापस मिलेंगे. इस नियम की जानकारी किसी को नहीं थी लेकिन करीब तीन साल पहले यह नियम तब सार्वजनिक हुआ, जब एचडीएफसी बैंक के नियमों की सूची को एक पत्रकार ने अचानक पढ़ा और बताया.

2020 में जब निजी क्षेत्र का येस बैंक डूबा तो सरकार ने फौरन नियम लागू कर दिया कि कोई भी ग्राहक इस बैंक से एक महीने में पचास हजार रुपये से ज्यादा नहीं निकलवा सकेगा. आपका पैसा बैंक में पड़ा है लेकिन वही बैंक अब आपको पचास हजार से ज्यादा देने को तैयार नहीं.

लॉकडाउन के दौरान जब करोड़ों नौकरियां चली गईं तो सरकार ने निर्देश दिया कि सभी बैंक तीन-चार महीने ईएमआई लेट होने पर ब्याज नहीं लेंगे लेकिन किसी भी प्राइवेट बैंक ने सरकार के इस निर्देश का पालन नहीं किया. ग्राहकों ने शोर मचाया लेकिन फिर भी सरकार चुप रही.

आपका पैसा कब किस मद में काट लिया जाएगा, आपको अंदाजा नहीं होगा. चूंकि ये कटौती दस रुपये से लेकर सौ रुपये तक होती है, इसलिए आप उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं लेकिन कल्पना कीजिए कि एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, एक्सिस, इंडसइंड, कोटक महिन्द्रा बैंक ऐसी हरकत अपने कम से कम एक लाख ग्राहकों के साथ करें तो सोचिए कितना पैसा उस बैंक मालिक के पास पहुंच जाएगा.

भारत में प्राइवेट बैंकों की मौजूदा स्थिति को लेकर जनता अब खुश नहीं है और काफी लोग अपना खाता बंद कराकर सरकारी बैंकों में वापस चले गए लेकिन अब विकट स्थिति आने वाली है. अंततः प्राइवेट बैंकों के ही रहमोकरम पर आपको रहना पड़ेगा.

इस लेख में हम उन मुद्दों को नहीं छूना चाहते कि सबसे बड़े प्राइवेट बैंक आईसीआईसीआई बैंक की चेयरमैन चंदा कोचर को घोटाले में जेल जाना पड़ा. एचडीएफसी के चेयरमैन पर कई मुकदमे दर्ज हैं. एक्सिस बैंक की चेयरमैन का नाम नोटबंदी के दौरान बदनाम हुआ था.

जब प्राइवेट से सरकारी हुए थे बैंक

पुराने लोग तो जानते हैं कि 50 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 19 जुलाई, 1969 को देश के 14 बड़े निजी बैंकों को एक झटके में सरकारी कर दिया था, इसमें पंजाब नैशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, बैंक आफ बड़ौदा आदि थे. मौजूदा स्टेट बैंक आफ इंडिया उस समय इंपीरियल बैंक कहलाता था. इंदिरा गांधी के इस कदम को उस समय बहुत बड़ा प्रगतिशील कदम माना गया.

जिन राजा-महाराजा लोगों के पैसे से साठ के दशक में प्राइवेट बैंक चल रहे थे, वे इस फैसले से खुश नहीं हुए लेकिन अब पुराना दौर मोदी सरकार वापस लाना चाहती है. यही वजह है कि रिलायंस और अडानी ग्रुप बैंकिंग क्षेत्र में कूदने को तैयार बैठे हैं. बहुत सारे प्राइवेट बैंकों के शेयर इनके पास पहले से ही हैं. यानी बैंकिंग में अंबानी-अडानी युग आ जाए तो किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए.

इंश्योरेंस कंपनियों पर नजर

केंद्र सरकार बहुत पहले ही बीमा क्षेत्र में सौ फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति दे चुकी है. एलआईसी (LIC) इस देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है. देश के करोड़ों लोगों का इसमें आज भी सबसे ज्यादा विश्वास है, वजह ये है कि इसमें सरकार की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है. लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी में 2021-22 का बजट पेश करते हुए घोषणा की थी कि सरकार एलआईसी में 1.75 लाख करोड़ का विनिवेश करेगी यानी इतनी हिस्सेदारी बेचकर निजी क्षेत्र को इसमें घुसाया जाएगा.

जल्द ही एलआईसी का आईपीओ आएगा और निजी कंपनियां इसके शेयर खरीदकर इसमें घुसपैठ करेंगी. इसी तरह जनरल इंश्योरेंस (General Insurance) क्षेत्र की दो बड़ी कंपनियां भी प्राइवेट होने जा रही है. संसद के मॉनसून सत्र में यह बिल पास कराया जा चुका है. तीनों कृषि बिल की वजह से विपक्षी दलों और बीमा क्षेत्र की यूनियनों ने इस पर ध्यान नहीं दिया. नैशनल इंश्योरेंस और जनरल इंश्योंरेंस अब प्राइवेट हो जाएंगी. केंद्र सरकार की इन दोनों जनरल इंश्योरेंस कंपनियों में 51 फीसदी हिस्सेदारी है लेकिन वो अब कम होकर 26 फीसदी या उससे भी कम पर आ जाएगी.

निर्णायक मोड़

सरकारी बैंकों के निजीकरण के लिए लाए जा रहे विधेयक ने देश के कामगारों और नागरिकों को निर्णायक मोड़ पर पहुंचा दिया है. अगर देश के कामगार-नागरिक मिलकर किसानों जैसा ही आंदोलन मोदी सरकार की दमनकारी, कर्मचारी और मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ खड़ा करते हैं तो शायद सरकार फिर से घुटने टेकने को मजबूर हो. इसीलिए किसान नेता राकेश टिकैत ने निजीकरण के खिलाफ साझा आंदोलन की जरूरत बताई है.

इस संबंध में उन्होंने 4 दिसम्बर को ट्वीट करके अपनी बात कही थी. किसान और कामगार की लड़ाई हमेशा साझा रही है. उनका खून चूसने वाली पूंजीवादी व्यवस्था से साझा आंदोलन के जरिए ही लड़ा जा सकता है लेकिन प्रतिरोध के स्वर मध्यम या कमजोर हुए तो सिर्फ सरकारी बैंक ही प्राइवेट नहीं होंगे, आपको सांस लेने के लिए भी टैक्स देना होगा.

क्योंकि सरकार कह सकती है कि खुली हवा में सांस लेने पर टैक्स देना होगा, वरना पाकिस्तान से आने वाली उसी जहरीली हवा में सांस लेना होगा, जो देश के एक हिस्से को प्रदूषित कर रही है. क्योंकि सरकार जब यह बात सुप्रीम कोर्ट में कह चुकी है और चीफ जस्टिस उसे मजाक में टाल गए तो नियम बनाते कितनी देर लगेगी.

  • यूसुफ किरमानी

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