अल्लामा इकबाल के शहर, हमारी सरताज खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा की ससुराल पाकिस्तान के सियालकोट में कट्टरपंथियों ने जो किया उससे न मानवता बची, न धर्म. श्रीलंका के रहने वाले प्रियान्था कुमारा जिस फैक्ट्री का मैनेजर था, उस फैक्ट्री की दीवार पर लगे कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान का पोस्टर लगा था.
तहरीक-ए-लब्बैक वही संगठन है जिस पर पहले पाकिस्तान में पाबंदी लगी थी, फिर दो महीन पहले लाहौर सहित कई जगह जम कर हिंसा हुई थी. तहरीक-ए-लब्बैक के गुंडों ने पुलिस वालों को भी मार दिया था.
इस संगठन के मुखिया साद रिज़वी को 12 अप्रैल, 2021 को लोगों के विरोध और हिंसक प्रदर्शन के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. पाकिस्तान सरकार और टीएलपी के बीच 31 अक्टूबर को हुए एक समझौते के तहत उनकी रिहाई हुई है. प्रियांथा कुमारा ने उसे सामान्य राजनितिक पोस्टर समझा और उस पोस्टर को फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया.
इस बीच हल्ला हो गया कि इस पोस्टर पर कुरान की आयतें लिखी थी. ऐसा करते हुए कुछ मजदूरों ने देख लिया और कुछ ही देर में यह बात पूरी फैक्ट्री में फैल गई. बड़ी संख्या में मजदूर जमा हो गए और मैनेजर को उसके कमरे से घसीटते हुए बाहर निकाला और उसे तब तक पीटा जब तक कि उसकी मौत नहीं हो गई. इसके बाद उसे आग के हवाले कर दिया.
देखते ही देखते एक इंसान राख में तब्दील हो गया. वैसे खुदा को पहले भी कोई खतरा नहीं था, न ही कुरान शरीफ के लफ्ज़ किसी आग से समाप्त किये जा सकते हैं- लेकिन धर्म का असली मर्म – इंसानियत जरुर मर गई.
वैसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि यह पाकिस्तान में इंसानियत के लिए काला दिन रहा परन्तु पाकिस्तान को कट्टरपंथी बनाने, दुसरे धर्म से नफरत करने और एक जाहिल, गैर पढ़़े लिखे और मुफलिस मुसलमान को इस्लाम का रक्षक बताने वाली तकरीरें तो आप भी करते हैं – कश्मीर में भडका कर युवाओं को मरवाते हैं. हालांकि इस बार सोशल मिडिया पर लाखों पाकिस्तानी पूछ रहे हैं – ‘हम क्या बन गए हैं ?’
पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉक्टर आरिफ़ अल्वी ने इमरान ख़ान के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए कहा है कि यह बहुत दुःखद दिन है. इस मसले में असल सवाल तो यह है कि क्या कुरान की आयतें किसी सडक पर चिपकाने वाले पोस्टर पर लिखना क्या ईश निंदा नहीं हैं ?
वैसे पाकिस्तान एक असफल रास्त्र गुंडों और आतंकियों का गठजोड़ और इस समय भिखमंगा भी हो गया है लेकिन यह हमारे लिए सीख भी है – बहुसंख्यक धर्मान्धता इसी तरह मोब लिंचिंग करवाती आई – चाहे पहलु खान हो या इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह या गत दो महीने से गुरुग्राम में खुले मैदान में नमाज़ पढने से रोकने के लिए एकत्र हो रहे लम्पट.
श्रीलंका की घटना दुनिया के उन सभी इस्लामिक देशों के लिए विचार करने का अवसर है जहां ईश निंदा कानून लागु हैं. यह कानून इंसानियत के खिलाफ या इन्सान को हैवान बनाने का लायसेंस है.
एक जिन्दा इन्सान जला दिया गया और इससे कैसे धर्म बच गया ? कोई इस्लाम का जानकार बताएगा ? जो सर धड़ से जुदा नारे लगाते और लगवाते हैं ?
- पंकज चतुर्वेदी
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