Home गेस्ट ब्लॉग डेढ़ लोगों का बंधक बना लोकतंत्र

डेढ़ लोगों का बंधक बना लोकतंत्र

3 second read
0
0
344

डेढ़ लोगों का बंधक बना लोकतंत्र

संसद में तीनों काले कानून वापस ले लिए गए. डेढ़ लोगों की सरकार ने जिस तरह बिना संसद में चर्चा किए उन्हें पास किया था, उसी तरह बिना चर्चा किए वापस ले लिया.

700 किसानों की मौत, लाखों किसानों का एक साल तक सड़क पर बैठे रहना, प्रदर्शनों की वजह से अरबों का नुकसान, न्यूनतम समर्थन मूल्य, आवारा पशुओं की समस्या, बेतहाशा बढ़ती कृषि लागत, कम आय, उर्वरकों की कमी आदि मसलों पर चर्चा कौन करेगा ? चर्चा की मांग करने वाले 12 राज्यसभा सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया गया.

यह संसद हमें जब मिली थी तब इसकी अगुवाई करने वाला शख्स प्रधानमंत्री बनने से कई साल पहले अपने ही खिलाफ छद्म नाम से लेख लिख रहा था. आज का प्रधानमंत्री कोई फैसला लेकर सैकड़ों लोगों की जान ले लेता है, लेकिन विपक्ष को बोलने तक नहीं देता.

बात 1937 की है. स्वतंत्रता आंदोलन अपने उरूज पर था. नेहरू तीसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे. उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी.

इसी बीच एक दिन कोलकाता की मासिक पत्रिका ‘मॉडर्न रिव्यू’ में ‘राष्ट्रपति’ शीर्षक से एक लेख छपा. लेखक का नाम था ‘चाणक्य.’ इस लेख में कहा गया, ‘नेहरू को लोग जिस तरह से हाथों हाथ ले रहे हैं और उनकी लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, आशंका इस बात की है कि कहीं वो तानाशाह न बन जाएं इसलिए नेहरू को रोका जाना बहुत ज़रूरी है.’

लेख में अंत में कहा जाता है, ‘वी वान्ट नो सीज़र्स’. बाद में खुलासा हुआ कि ये लेख खुद नेहरू ने चाणक्य नाम से लिखा था. नेहरू इस बात को लेकर सतर्क थे कि अपनी बढ़ती लोकप्रियता के चलते कहीं वे तानाशाह न बन जाएं.

आज प्रधानमंत्री से ये उम्मीद कर सकते हैं ? आज पत्रकारों और लेख लिखने वालों के लिए जगहें खत्म कर दी गई हैं. ज्यादातर पत्रकारों के पांव में घुंघरू बांध दिया गया है. वे कसीदा पढ़ सकते हैं, आलोचना नहीं कर सकते.

अब विपक्ष पर भी यही आजमाया जा रहा है. आज डेढ़ लोगों की सरकार ने किसानों के मसले पर चर्चा नहीं होने दी. लोकतंत्र डेढ़ लोगों का बंधक बन गया है. आपका जीवन और आपकी मृत्यु का फैसला भी वही डेढ़ लोग ले रहे हैं.

मन में आया तो ऐसे कृषि कानून बना डाले जो पूरी तरह किसानों के खिलाफ और पूंजीपतियों के समर्थन में थे. किसानों ने विरोध किया तो अपनी ट्रोल आर्मी लगाकर उनका मजाक उड़ाया. नाराजगी इतनी बढ़ गई कि भाजपा सांसदों और विधायकों की पिटाई तक होने लगी.

जब लगा कि हार सामने खड़ी है तो डेढ़ लोगों की मर्जी से कानून वापस हो गया. इस देश की संसद क्या इस तरह चलने दी जा सकती है ? क्या अब 140 करोड़ जनता का फैसला सिर्फ डेढ़ लोगों की सरकार लेगी जो खुद दो पूंजीपतियों की बंधक है ?

  • कृष्ण कांत

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…